गुरुवार, 20 अगस्त 2009
हमने जसवंत सिंह जैसे तोपखान को नहीं वक्शा..तुम किस खेत की मूली हो---
श्री जसवंत सिंह जी एक वरिष्ठतम भारतीय जनता पार्टी के नेता थे , एक दिन पहले वे थे के स्थान पर हैं के अधिकारी रहे ,बीजेपी राज में भी आतंकवादीयों को कन्धार तक छोडने गये थे ,तब पार्टी ने आलोचनाओं पर ध्यान न देते हुए सिंह साहब को बचा लिए और बार-बार उन्हें बचाते रहे हैं, लेकिन इस बार जिन्ना के मामले में जसवंत सिंह जी को पार्टी ने जिन्दा दफन करके मातम मना रहे हैं । देश का बटवारा तो हो चुका हैं और अनेक इतिहासकारों ने बटवारे के लिए श्री जवाहर लाल नेहरू के साथ गॉंन्धी जी को भी दोषी ठहराये हैं । कहते हैं कि नेहरू जी ने प्रधान मंत्री पद के लिए देश और कांग्रेस का भी बटवारा करने में परहेज नहीं रखते थे ,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द रेडियो ,रेंगुन से देश का बटवारा न करने के लिए अनेक बार आह्वान करने के पश्चात भी उस समय सत्ता लोलुपों ने नेताजी को नकारा था ,और आगे भी उन्हें नकारते रहे, यहॉं तक कि नेताजी के जीवित रहने के बाद भी उन्हें मृतक घोषित करने का ऐतिहासिक भूल किया गया, जोकि रहस्य के घेरे से उबारने में सालों लग सकता हैं । इतिहास को तोड़ -मरोड़ कर रखने का एक परम्परा इस देश में लगातार जारी हैं ,आज के इतिहास से तो मेरे जैसे लोगों का विस्वास भी उठ चूका हैं ,इतिहास जो जैसे चाहे वैसे लिखा सकता हैं इतिहासकार आज कलम के सौदागार बन गए हैं ,कहीं कहीं तो दबाव से भी इतिहास लिखाने का प्रकरण सामने आया हैं अब यदि जसवंत सिंह जी को इतिहास के बारे में कुछ ज्ञान हो और इस दुनियॉं छोड़ने के पहले कुछ सच्चाई लोगों के सामने रखकर जाना चाहते हैं तो लोगों को हायतौवा मचाने की क्या आवश्यकता हैं ? जब इस देश में लिखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिला हुआ हैं तो एक पार्टी मौलिक अधिकार का इस तरह हनन करने में लगे हुए हैं जो वास्तविक रूप से असहनीय हैं एवं मौलिक अधिकार का गला घोटने के समान हैं । पिछले समय बीजेपी ने सुश्री उमा भारती को भी कुछ इसी तरह के वातावरण में पार्टी से निष्काषित कर दिया था , आज बेजेपी के पास क्या बचा हैं ? प्रमोद महाजन नहीं रहे ,अटलजी भी जाने के राह पर ,लाल कृष्ण आडवानी जी भी कितने दिन के मेहमान हैं ?तेज तर्रार स्वाध्वी उमा भारती भी नहीं रही ,भाई ! खाली मैदान में गोल मारकर क्या हॉसिल कर लोगे ? मेरे जानकारी के अनुसार मुहम्मद अली जिन्ना भारत के बटवारे के लिए जितनी जिम्मेदार नहीं थे, उससे अधिक जिम्मेदार तो हमारे देश के प्रतिष्ठित नेता ही रहे हैं ,जो नेता देश के बटवारे के लिए अधिक जिम्मेदार हैं उन्हें तो षडयंत्र पूर्वक सम्मानीत किया गया हैं , यहॉं तक कि कालपात्र में भी देश के इतिहास को स्वार्थपूर्ण ठंग से दफना दिया गया था ,जनता पार्टी के राज में हमने यह भी देखा और सुना है । अब जिन्ना जी के बारे में कौन क्या लिख रहे हैं उसके चलते दबाव बनाना पार्टी से निकाल कर दुसरों पर यह भयादोहन करना कि यदि पार्टी के धारनानुसार नहीं लिखा गया तो निकाल दिए जाओगे ,देखा हैं ! हमने अच्छे अच्छे तोप खानों को नहीं बक्शा हैं तो तुम किस खेत की मूली हों ?
गुरुवार, 6 अगस्त 2009
भाई के लिए दुआ मांगने आई थी मन्दिर में, युवती को नंगी कर पुजारिओं ने पीटा
दलित जीवन हाय तेरी यही कहानी ,मंदिरों में लुटती आस्मत ,नंगी तेरी जवानी । आए दिन दलितों पर अमानुषिक अत्याचार का सिलसिला रूकने का नाम ही नहीं ले रहा हैं ,इस आवाज को उठाते हुए दक्षीण के प्रेरियर रामास्वामी नायकर ,महाराष्ट्र के ज्योतिबा फुले ,छत्तिसगढ से गुरू घासीदास,कबीर दास ,बंगाल के महाप्रभु चैतन्य,हरिचॉंद गुरूचॉद ,आधुनिक समय के बाबा साहेब अम्बेडकर के साथ ही साथ न जाने कितने महापुरुषों ने छुआछुत ,जाति-पाति पर आन्दोलन और इस पर आवाज उठाते रहे है ,आज भी जाति-पाति, छुआ छुत मिटने का नाम नहीं ले रहा हैं । पिछले समय एक दलित शिक्षिका को होली के दिन अपने बच्चे और पिता के साथ ही साथ गॉंव वालों के सामने कुछ नरपिशाच के द्वारा नंगी कर सारे शरीर में रंग मला गया ,और इसके बाद भी कई घटना घट चुकी हैं अभी रक्षा बन्धन के दिन उत्तराखंड के राजधानी देहरादून के नजदीक स्थित प्रसिद्ध हनोल मंदिर में राखी पूजा कर भाई के कलाई में उस राखी को बॉध कर प्रेम और रक्षा का वचन जैसे अटूट बन्धन के लिए ईश्वर से मंदिर में आशिर्वाद मांगने गई थी ,ऐसी पवीत्र भावना के आगे जालिम से जालिम भी पिधल जाते हैं ,किन्तु इस युवती को मंदिर के पूजारीयों ने निर्वत्र कर मारा -पिटा ,मात्र इसलिए कि वह दलित हैं । लोग तमाशा देखते रहे ,भगवान के मंदिर में इस कु कृत के लिए आग क्यों नहीं लग गई ? बज्र क्यों नहीं गिरा ? भगवान के सामने एक पवीत्र युवती का अपमान भगवान कैसे सहन करती है ? क्या भगवान नाम के व्यापार के आगे भगवान भी आज लचार हो चुके हैं ? ऐसी ओछे मानसीकता के पूजारीओं को पूजा अर्चना करने का हक किसने दिया ? अविलम्ब पूजारी के पद से हटाकर उसे दंडित करना अति आवश्यक हैं । देश के लोग आज भी उंच -नीच की भावना से हटने को तैयार नहीं है । मानव-मानव में इस तरह की नफरत !!!!!!!!!! कदापी सहन नहीं हो सकता । यदि वक्त रहते समाज देश के लोग न जागे तो यह एक महामारी के रूप में सामने आ रहा हैं इसका परिणाम भी भयावह होगा । यदि दलित लोग एक अलग राज्य की कल्पना करने लगे तो क्या स्थिति होगी कल्पना करने पर भी रोंगटें खडी हो जाती हैं । बाबा साहेब अम्बेडकर ने तो दलितों के लिए अलग राज्य की मांग की थी । यदि दलितों पर हो रहे अत्याचार से आक्रोशित समाज भी बाबा साहेब जैसे मांग करने लगे तो आज हम क्या जवाब देंगे ? मुझे तो लगता हैं कि इस देश से हजारों साल तक अब आरक्षण की समस्या का समाधान नहीं हो सकता । जब कुछ ओछे मानसीक सम्पन्न लोग अपने को ऊँचा समझने को मान सम्मान समझते है और जन्मजात ऊँचा समझने में उन्हें सन्तोस मिलता हैं तो दलित समाज चाहे करोड़पति हो जाए फिर भी आरक्षण को खत्म करना कयों चाहेगा ? जब तक ऊँच नीच की भावना इस समाज में रहेगा तब तक आरक्षण भी खत्म नहीं हो सकता ,चाहे हम चित्कार करते रहे,माथा फोंड़ डाले ,मानव समाज यदि सम्मान से जीने लायक न रहे तो इस देश में प्रजातंत्र भी आगे चल कर एक सपना ही बन कर रह जाएगा ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)