क्या इस देश में मर्दों की कमी हो गई है? इस सवाल करने के पीछे मेरा एक विशेष उददे्श्य भी है । उदेद्श्य पर सीधा न आकर मैं एक डाक्टर मित्र के बारे में लिखना चाहता हूँ , पेशे में डाक्टर होने के बाद भी सामाजिक और राजनैतिक घटनाओं पर उनके नज़र पैनी रहती हैं ,एक दिन वे मुझसे कहने लगे कि -एस . के ! तुम जानते हो कि इस देश में हेपिटाइसिस बी के बाद सी डी ई भी बच्चों को लगाना शुरू हो गया है ? और इस काम के लिए विदेशी दवाई कंपनीयॉं अंतर्राष्ट्रीय क्लबों का सहारा ले रहा है। आजकल लॉयन और रोटरी क्लब जैसे अनेक क्लब भी दवाई कम्पनीयों के विक्रय प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए दवाई बेचने में लगी हुई हैं, यह सबको दिखाई दे रही है। कहने को तो वे इसे सेवा का नाम दे देती है पर वास्वतिकता इसके ठीक विपरीत है।
मेरे मित्र ने आगे कहने लगे कि राय ! `इस देश में विदेश से जो भी दवाई आती है उसका विशेष जॉच पडताल न करते हुए प्रोयोग में लाया जाता है , मैंने बच्चों को हेपेटाइसिस की दवाई लगाने के पश्चात भी पीलिया जैसे खतरनाक बिमारी से बच्चों को मरते हु, देखा है। यदि दवाई में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती तो बच्चे मरते ही क्यों ?
डाक्टर ने एक ओर रहस्य बताया, जिसे सुन कर किसी को विश्वास ही नहीं होगा उन्होंने कहा कि अमेरिका हमारा न कभी दोस्त था और न है, आगे भी दोस्त होने की संभावना नहीं है। जनसंख्या पर हाय तौबा मचाने वाला अमेरिका हमारे देश के आने वाली पीढी को पंगू बनाने की षड़यंत्र पर कानूनी मुहर लगा दिया और बच्चों को जो दवाईयॉं दी जाती है उससे बच्चे दब्बू और डरपोक बन कर अन्याय के खिलाफ लड़ने लायक ही नहीं रहेगा, एक पीढी तो ऐसी तैयार हो चुकी है जो कहने को तो मर्द है परन्तु इन मर्दो में मर्दांगी नहीं है।
अन्याय के खिलाफ लड़ने में सबसे आगे रहने वाले भारत के सपुत आज ढूढने पर भी दिखाई नहीं देता ,भारत में खुलेआम जो अन्याय का खेल चल रहा है ,जिसमें कार्यपालिका ,व्यावस्थापिका ,न्यायपालिका ,की भागिदरी उल्लेखनिय है। तीनों अंग आज पंगु हो चुकी है ,अन्याय और भष्ट्राचार चरम सीमा पर है। देशी हो या विदेशी जो जहॉं से हो सके देश को लुटने में लगी हुई है , फिर भी देश मौन ,शान्त !!
सभी स्थितियों को देखते हुए , डाक्टर के बातों पर अत्यन्त दू:ख के साथ विस्वास करना पड़ रहा है ,क्या यह मानने योग्य बात हो सकती है कि इस देश में अब मर्दो की कमी हो गई है ?
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
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