गुरुवार, 6 अगस्त 2009

भाई के लिए दुआ मांगने आई थी मन्दिर में, युवती को नंगी कर पुजारिओं ने पीटा

दलित जीवन हाय तेरी यही कहानी ,मंदिरों में लुटती आस्मत ,नंगी तेरी जवानी । आए दिन दलितों पर अमानुषिक अत्याचार का सिलसिला रूकने का नाम ही नहीं ले रहा हैं ,इस आवाज को उठाते हुए दक्षीण के प्रेरियर रामास्वामी नायकर ,महाराष्ट्र के ज्योतिबा फुले ,छत्तिसगढ से गुरू घासीदास,कबीर दास ,बंगाल के महाप्रभु चैतन्य,हरिचॉंद गुरूचॉद ,आधुनिक समय के बाबा साहेब अम्बेडकर के साथ ही साथ न जाने कितने महापुरुषों ने छुआछुत ,जाति-पाति पर आन्दोलन और इस पर आवाज उठाते रहे है ,आज भी जाति-पाति, छुआ छुत मिटने का नाम नहीं ले रहा हैं । पिछले समय एक दलित शिक्षिका को होली के दिन अपने बच्चे और पिता के साथ ही साथ गॉंव वालों के सामने कुछ नरपिशाच के द्वारा नंगी कर सारे शरीर में रंग मला गया ,और इसके बाद भी कई घटना घट चुकी हैं अभी रक्षा बन्धन के दिन उत्तराखंड के राजधानी देहरादून के नजदीक स्थित प्रसिद्ध हनोल मंदिर में राखी पूजा कर भाई के कलाई में उस राखी को बॉध कर प्रेम और रक्षा का वचन जैसे अटूट बन्धन के लिए ईश्वर से मंदिर में आशिर्वाद मांगने गई थी ,ऐसी पवीत्र भावना के आगे जालिम से जालिम भी पिधल जाते हैं ,किन्तु इस युवती को मंदिर के पूजारीयों ने निर्वत्र कर मारा -पिटा ,मात्र इसलिए कि वह दलित हैं । लोग तमाशा देखते रहे ,भगवान के मंदिर में इस कु कृत के लिए आग क्यों नहीं लग गई ? बज्र क्यों नहीं गिरा ? भगवान के सामने एक पवीत्र युवती का अपमान भगवान कैसे सहन करती है ? क्या भगवान नाम के व्यापार के आगे भगवान भी आज लचार हो चुके हैं ? ऐसी ओछे मानसीकता के पूजारीओं को पूजा अर्चना करने का हक किसने दिया ? अविलम्ब पूजारी के पद से हटाकर उसे दंडित करना अति आवश्यक हैं । देश के लोग आज भी उंच -नीच की भावना से हटने को तैयार नहीं है । मानव-मानव में इस तरह की नफरत !!!!!!!!!! कदापी सहन नहीं हो सकता । यदि वक्त रहते समाज देश के लोग न जागे तो यह एक महामारी के रूप में सामने आ रहा हैं इसका परिणाम भी भयावह होगा । यदि दलित लोग एक अलग राज्य की कल्पना करने लगे तो क्या स्थिति होगी कल्पना करने पर भी रोंगटें खडी हो जाती हैं । बाबा साहेब अम्बेडकर ने तो दलितों के लिए अलग राज्य की मांग की थी । यदि दलितों पर हो रहे अत्याचार से आक्रोशित समाज भी बाबा साहेब जैसे मांग करने लगे तो आज हम क्या जवाब देंगे ? मुझे तो लगता हैं कि इस देश से हजारों साल तक अब आरक्षण की समस्या का समाधान नहीं हो सकता । जब कुछ ओछे मानसीक सम्पन्न लोग अपने को ऊँचा समझने को मान सम्मान समझते है और जन्मजात ऊँचा समझने में उन्हें सन्तोस मिलता हैं तो दलित समाज चाहे करोड़पति हो जाए फिर भी आरक्षण को खत्म करना कयों चाहेगा ? जब तक ऊँच नीच की भावना इस समाज में रहेगा तब तक आरक्षण भी खत्म नहीं हो सकता ,चाहे हम चित्कार करते रहे,माथा फोंड़ डाले ,मानव समाज यदि सम्मान से जीने लायक न रहे तो इस देश में प्रजातंत्र भी आगे चल कर एक सपना ही बन कर रह जाएगा ।

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