जीवन में अपने लिए संघर्ष करना और दूसरों के लिए संघर्ष करने में अन्तर हैं ,जब विचार भिन्नता के कारण शोषक यह सोचने लगे कि अपने लिए खतरा है तो उसे रास्ते से हटाने का कई षड़यंत्र रचा जाता हैं ,मुझे लगता है कि छत्तीसगढ के शासक को डा .सेन से खतरा दिखा होगा , तभी डा. सेन को षड़यंत्र का शिकार बनाया गया ।
मैं हिंसा में विस्वास नहीं करता, परन्तु जिस कारण से हिंसा होता है ,उस कारण पर मुझे अधिक रूचि रहती हैं यदि कारण को समाप्त कर दिया जाए तो हिंसा क्यों होगा ।आजादी के बाद से ही इस देश में जो लूट खसौट शुरू होकर वह आज जानलेवा साबित हो रहा हैं । अंग्रेजों से अधिक शोषण इस देश में देशी शोषक कर रहा है ,मुठ्ठीभर लोगों ने देश की अधिकांश सम्पत्ति हड़प कर आराम की जीवन जीकर साधारण लोगों को दिखावे की खेल से उनके जले में नमक छिडकाने का काम कर रहा हैं ,हद तो अब मुकेश अम्बानी ने कर दी मात्र बीबी बच्चों के रहने के लिए 27 मंजीला मकान, अभी एक माह में 70 लाख रूपए केवल बिजली का बिल आया है।
सरकार बिजली उत्पादन के लिए देश के किसानों का जमीन अधिग्रहण कर रही है और किसान अपनी पूर्वजों की जमीन बचाने के लिए संघर्षरत है, यदि इस संघर्ष में किसी ने हथियार उठा लिया तो वे आतंकवादी और नक्शली कहलाता है ,संघर्ष में साथ देने वाले देशद्रोही हो जाता है ।भारत में आज अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों और निहत्थे लोगों को,कानून के नाम पर हत्या कर दिया जाता है 1
पुलिस और सैनिकों द्वारा जब जनता पर गोलियॉं दागी जाती है, लोग मारे जाते है ,तो कितनों पर देशद्रोही का अपराध दर्ज किया जाता है ? प्रजातंत्र में जनता ही शासन और जनता ही मालिक होता हैं ,यदि मालिक पर गोली दागी जाती है तो क्या वह देशद्रोह नहीं हैं ? प्रजा पर गोली चलाने का अर्थ देश पर हमला करने के समान अपराध है।
तालियॉं दोनों हाथों से बजती है ,जब सरकार अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों को गोलियों का शिकार बनाती है, तो गोलियों का जवाब गोलियों से देना आवश्यक है । अंग्रेजों ने भारतीय जनता को जीवन सुरक्षा केलिए हथियार उठाना कानूनन अपराध माना था वह भी गुलामी के दिनों में ऐसा किया गया ,आज देश आजाद है ,तो अंग्रेजों का काला कानून बदलना ही चाहिए ।
मै मानता हूँ कि यदि मुझे कोई जान से मार डालने का हिम्मत करें तो मै आत्मरक्षा के लिए कुछ भी करूँ यहॉं तक की हाथियार का भी इस्तेमाल कर सकता हूँ ,इस हेतु मुझे कोई कानून से आदेश लेने की आवश्कता नहीं होनी चाहिए, यही मौलिक अधिकार है ,यही प्राकृतिक अधिकार हैं ।
नक्शलबाड़ी से जमिंदारों के खिलाफ जो हिंसक आन्दोलन आगे चलकर राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप ले रहा है ,चाहे मैं पक्ष में रहूँ या विपक्ष में , इस देश में यह भयावह रूप लेकर रहेगा,इमानदारी पूर्वक देश सेवा में लगे लोग खतरनाक गृहयुद्ध से देश को बचा सकते हैं ,नक्शलबाड़ी का आन्दोलन एका एक नहीं भड़का , उसके पीछे शोषण का घिनौना रूप उत्तरदाई है।
आज नक्शली का रूप कुरूप हो चुका है ,उनके नेता भी सुविधाभोगी हो चुके हैं, परन्तु कुछ नक्शली आज भी एक सिद्धान्त पर जीते हुए आन्दोलन को जीवित रखे हुए है ,वे आज बौखलाहट का शिकार होकर कुछ भी करने में उतारू है, मुझे लगता है कि जब वे आम जनता को यह समझाने मे असफल हो रहे है कि जो भी संघर्ष किया जा रहा वह उनके हित में ही हैं, इस कारण जनता उनके साथ न देकर मुखबिरी करने और असहयोग करने के कारण भय से ग्रसित होकर शंका के आधार पर हत्या जैसे कारनाम को अन्जाम दे रही है ,हालाकि यह किसी भी रूप में सहमत योग्य नहीं हैं ।
घोर शोषण तंत्र जब तक खत्म नहीं हो जाता हैं ,तब तक किसी न किसी रूप में या नाम से हिंसक बारदाते होती रहेंगी ,इस संघर्ष को कुछ लोग पवित्र कार्य के रूप में महिमा मंडित भी करते है। इस संघर्ष को कुरूक्षेत्र के साथ जोड़कर न्याय और अन्याय की धर्मयुद्ध के रूप में भी कुछ लोग भाग ले रहे हैं , चाहे कुछ भी हो पर शोषण तंत्र से उपजी यह लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रहा हैं ।
डा.सेन जैसे अनेक सेन इस संघर्ष में भाग लेने आगे आते रहेंगे और अनेक शहीद भी होंगे ,कुछ लोगों का नाम इतिहास में आ भी नहीं पाएगा कुछ अमर भी हो जाऐंगे ,एक समय आर एस एस को कुछ लोग अच्छी नजर से नहीं देख पाते थे,
आपातकाल में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के अधिकंश नेताओं और जयप्रकाश नारायण जैसे राष्ट्रवादी और संघर्शशील लोगों को जेल में भर दिया गया था, परन्तु आगे चल कर लोगों ने इन्हें भारी बहुमतों से देश का बागडोर सोप दिया , मुझे लगता है कि देश के लोग यदि आगे चल कर डा.सेन जैसे लोगों के साथ मिलते हुए एक नई विकल्प की कल्पना कर रहे हैं तो अतिशयोक्ति न होगा । इस लेख के आलोक में यह भी लिखना चाहता हूँ कि दुनियॉं की सबसे अच्छी व्यावस्था प्रजातंत्र ही हैं ,पर आज प्रजातंत्र के नाम पर जो लूटतंत्र चल रही है वह सहन योग्य भी नहीं है । तंत्र बदलना आवश्यक हैं ......डा.बिनायक सेन को मैं देशद्रोही नहीं मानता ,न्यायालय को ससम्मान डा.सेन को रिहा कर सुरक्षा प्रदान करना चाहिए
मत भिन्नता के कारण किसी संघर्शशील व्यक्ति को देशद्रोह जैसे अपराध में दंडितकर विचारों का हनन वर्तमान समय में असहनिय है ।
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