बुधवार, 10 जून 2009

जब अमेरिका दुनियाँ के सामने भीख मांगेगी

लूट ले गए हजारों करोड़ रूपये ,लूटने वाले अब कोई देशी कंपनी नहीं बल्की विदेशी संस्थागत निवेशक हैं । देश के बड़े -बड़े दिग्गज देखते रहे गए ,कुछ कंपनी तो मात्र विचार करते रहे कि अब निवेश का समय आ गया हैं ,आज -कल करते करते समय निकल गया, और विदेशी निवेशक मौका का फैदा उठाकर चम्पत हो गए निवेशक रातों -रातों कहॉं से पैदा हो जाते हैं और छापामार कार्यवाही करते कहॉं गायब हो जाते हैं, ये सब बाद में चर्चा का विषय बनकर रह जाता हैं ।वास्तव में शेयर बाजार का लाभ तो आज विदेशी ही अधिक उठा लेते है । आर्थिक विकास के नाम से जो ढॉंचा आज भारत में देखने को मिल रहा है उस ढॉंचे से देश को कैसे बरबाद किया जाए, उसका प्रशिक्षण तो अमेरिका में पूर्व में ही मिल चूका हैं ,अमेरिका में बैंक ,बीमा ,अब जनरल मोटर जैसे भीमकाय कार्पोरेट जगत के कंपनी दिवालिया होने के बाद भी अमेरिका जीवित हैं ,ऐसा कयों ?अब तक अमेरिका को दुनियॉ के सामने कटोरा लेकर भीख मांगना चाहिए था ,परन्तु वह आज भी दुनियॉ के सीरमौर बन बैठा हैं ऐसा क्यों ? इसका एक मात्र कारण जो मुझे समझ में आ रहा वह यह कि अमेरिकी कंपनीयॉं आज जो दूसरे देश में काम कर रहा हैं उसका मुनाफा वास्तविक से सैकडों -हजारों गुणा अधिक होने के कारण मंदी के समय मुनाफे के रकम से दुनियॉं में राज करने का एक नियम सा बना लिया हैं ,अन्यथा पेप्सी -कोकाकोला जैसे जहर बेचने वाली कंपनी को वह कभी सहयोग नहीं करते । एक ओर भारत के उम्दा किस्म के कालिन का आयात मात्र इसलिए लिए बंद कर दिया कि इस प्रकार के कारखाने में बाल मजदूर कार्यरत हैं । अगर भारत में आज भी भीषण गरिबी के कारण बाल कलाकार बनकर रोजगार कर रहा हैं तो अमेरिका के ऑंखों में क्यों खटकती हैं ? क्या पेप्सी -कोका कंपनी के कारण, जहर से देश के तमाम जन स्वास्थ्य पर बूरी असर नहीं पड़ता ? अमेरिका अपनी कंपनी को गलत कार्य करने से क्यों नहीं रोकती?भारत के बिकाउ नेताओं के आड़ में इस देश को लूटने में आज भी अमेरिका एक कदम आगे हैं। एक ओर दुनियॉं को वैश्वीकरण और निजीकरण के मंत्र में उलझा कर आज अपने ही देश में संरक्षण वाद और राष्ट्रीयकरण को खूले आम प्रश्रय दे रहा हैं जिससे भारत को ही अधिक नुकसान होने के साथ -साथ बेरोजगारी की समस्या पैदा होने कारण आगे अर्थव्यावस्था पर बूरी असर पड़ने का बहुत बड़ा कारक बन कर खड़ा हो सकता हैं । आउट सोंर्सिंग के नाम से तो अमेरिका में हायतौबा मच गया हैं जिससे भारत को काफी नुकसान उठाना पर रहा हैं ,हम है कि आज भी अमेरिका के पिछलग्गु बने हुए हैं । हम एक भी अमेरिकी कंपनीयों को बाल तक बॉंका नहीं कर सकते । यदि भारत से अमेरिकी कंपनीयों को खदेड़ने का सिलसिला शुरू हो जाए तो इस देश के सभी लोग एक वर्ष के भितर करोड़पति जरूर बन जाएगा । कयोंकि अमेरिकी कंपनीयों के लूट से हमें छुटकारा मिलने के साथ ही साथ छोटी -छोटी उद्योग धन्धों से भी हमे लाभ मिलने लगेगा । आज शून्य तकनीकि क्षेत्र में कार्पोरेट जगत अपनी वर्चस्व बना बैठी हैंयदि शून्य तकनीकि क्षेत्र से ही अमेरिकी कंपनीयां हट जाए तो देश के बेरोजगार उस तरह के उद्योग खोलकर अपनी जीविका अच्छी तरह से निर्वाहन कर सकेगा ।मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि ऐसा हो तो अमेरिका दुनियॉं के सामने भीख मांगने लगेगा ।

सोमवार, 8 जून 2009

मेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना करना

पर्यावरण पर लिखते हुए मुझे कुछ बातें एकाएक याद आ गई , मेरे कुछ मित्रों ने मुझे यह तक पूछने लगे कि मैं घर का कचरा कहा फेंकता हूँ ? कुछ लोग जो मुझे पहचानते हैं मुझे फोन से पूछने लगे कि पर्यावरण जैसे विषय पर लिखकर अपना समय क्यों गंवा रहे हो ,कुछ लोगों ने तो विश्वास ही नहीं कर सके कि मैं इस विषय पर इतनी उग्र और नंगे शब्द का इस्तेमाल कर सकता हूँ । मुझे कुछ मित्र कहने लगे कि कुछ नहीं से कुछ भली ,आदि -- आदि ,क्या मेरे घर से इतने कचरे निकलते हैं जिससे की पर्यावरण दूषित हो रहा हैं ? भाई साहब! सैकडों वर्षों तक घर से जो कचरा निकलेगा उससे पर्यावरण को कोई क्षति नहीं होने वाली हैं ,यदि वन -जंगलों को स्वार्थी लोगों द्वारा नष्ट न किया जाए तो घर से निकलने वाली कार्बन डाई अक्साईड का कोई प्रभाव पर्यावरण पर नहीं पड़ सकता । प्रकृति ही दूनियां में सन्तुलन बना कर चलती हैं ,हम हैं कि जानबुझ कर प्राकृतिक सन्तुलन को असन्तुलित करते रहते हैं और बाद में हायतौवा मचाने में भी नहीं चुकते । जिस गति से पेड़ पौधे ,नदी नालों को हम बरबाद कर रहे हैं उसी गति से क्या हम उसका स्थानापन्न या क्षति पुर्ति करते हैं ? करे कोई और भुगते कोई, वाली कहावत यदि चरितार्थ होती रही , तो पर्यावरण के दुश्मनों को तो कभी सबक नहीं मिल सकता । उन्हें सबक सिखाने के लिए उनका वहिष्कार करना अतिआवश्यक हैं । वहिष्कार का अर्थ मात्र उनके द्वारा गलत कर्म का वहिष्कार होना चिहिए ,यदि ऐसे व्यक्ति जो हजारों एकड़ भूमि में अपना उद्योग लगाने के जीद और जुनून में छल -बल और कौशल का प्रयोग करते हुए जल जमीन की बरबादी करने में अडे हुए हैं ,तो क्या हमें क्या उसका साथ देना चाहिए ? क्या ऊंट के मूंह में जीरा वाली कहावत से पर्यावरण को बचाया जा सकता हैं ? हम एक पेड़ लगाए और एक पेड़ के बदले सैकड़ों पेड़ काट डाला जाए ? हर वर्ष पेड़ काटने वालों से ही हमारा पाला पड़ता हैं । पेड़ काटने वाले ही हमें बताते हैं कि पेड़ नहीं काटना चाहिए । शराब पीने वाले ही शिक्षा देते हैं कि शराब पीना अच्छी बात नहीं हैं । सिगरेट की कश से अपने को बरबाद करने वाले ही यदि कहें कि सिगरेट पीना ठीक नहीं हैं, तो उसका असर कैसा पड़ सकता हैं ? जरा इस बात पर भी तो हमें गौर करना चाहिए कि हम उस घड़े में पानी डालते चले जाए जिस घड़े के नीचे छेद हो गया हो ,पानी तो घड़े में तभी रूक सकती हैं जब छेद को बंद कर दिया जाए ,अब हम पेड़ लगाते चले और दुश्मन उसे काट कर मौज करते रहे ,यह दुविधा की स्थिति कब तक चलेगी ?अत: हम अपनी उर्जा ऐसे लोगों को चिन्हित कर उसे पेड़ काटने से रोकने में लगाए । एक सत्य घटना लिख रहा हूँ - मैंने वर्षों पहले छोटे-बड़े सभी को बरसात में पेड़ लगाते देख कर बहुत खुश होकर स्वयं भी कुछ पौधे लगाने गया था ,उसी स्थान से जब -जब मैं गुजरता था मेरी खूशी का ठिकाना न रहता ,मैं ऑंखों के सामने उन पौधों को पेड़ होता देखता था और ईश्वर से प्रार्थना करता कि भगवान इनमें से एक भी पेड़ न मर पाए ।कुछ समय पश्चात् चारों और हरियाली छा गई , हरियाली किसे पसन्द नहीं आता हैं ?एक दिन मैं उसी स्थान से गुजर रहा था जहॉं वर्षों पहले छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढे भी बरसात में पेड़ लगाने में मस्त थे और उसका उद्देश्य भी पूरा हो चुका था, अचानक एक दिन एका-एक विश्वास नहीं हुआ कि जहां हजारों पौधे बृक्ष बन कर लोगों को लूभा रहे थे वहॉं आज एक भी बृक्ष शेष नहीं है,बड़े -बड़े डोजर लाकर सभी बृक्षों को बेरहमी से जड़ से उखाड़ दिया गया ,मैं कहुं तो हत्या कर दिया गया ,हरियाली का नामोनिशान मिट चुका था,मुझे यह देख कर अधिक आश्चर्य हुआ कि जो बच्चे वर्षों पहले उन पौधों को लगाये थे , जो आज बृक्ष का रूप लिया था, वे ही उनको काटने में मद्द कर रहे हैं ,यह कैसी विडम्बना हैं? मेरा मन हाहकार कर उठा, आज भी उन स्थानों से मैं कभी -कभी गूजरता हूँ क्योंकि आने जाने के लिए दूसरा कोई रास्ता भी नहीं हैं, वहां आज कंक्रीट के जंगल उंग आए हैं, मैं रास्ते में जाते हुए आज भी अतीत में खो जाता हूँ । जीवन में अनेक सत्य घटनाओं से सामना होता हैं किसी मित्र ने मुझे लिखा कि आप थक गए हैं कुछ समय तक सुस्ताने के बाद फिर आगे बढना अच्छा रहेगा । उस मित्र को मैं जवाब नहीं दे पाया था ,भाई तुमने सच कहा ,मैं आज अपने ही शव को हर रोज देख -देख कर थक चूका हूँ पता नहीं कब इस दूनियॉं से चला जाऊं ,परन्तु जाने के पहले जीवन में जो भी अनुभव किया हैं उसे कुछ लोगों में मैं बॉंट सकूं, ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ; तुम भी मेरे लिए प्रार्थना करना ।

रविवार, 7 जून 2009

पर्यावरण दिवस बनाम नौटंकी दिवस

पर्यावरण दिवस अर्थात पर्यावरण नौटंकी दिवस ,हर वर्ष 6 जून को दूनियॉं में मनाई जाती हैं । चूँकि दूनियॉं इस दिवस को मनाती हैं अत: हम भारतवासिओं को भी दूनियॉं की नकल करनी चाहिए अन्यथा हम विकास के दौर में पिछड जाएगें ,किसी जमाने में हमारे ऋषी मुनिओं ने पिपल ,बट बृक्ष ,तुलसी ,और अनेक प्रकार के पेड़ पौधों की पूजा करने का नियम बना कर समाज में लागू किए थे ,ओर जिसे पूजा जाता हैं उसे काटा नहीं जाता ,उसे जतन किया जाता हैं ,इज्ज्त के साथ व्यावहार किया जाता हैं , आधुनिक भारतीय वैज्ञानिक मेघनाथ साहा ने तो दूनियॉं को प्रमाण के साथ बता दिया कि पेड़ पौधों में जीवन होता हैं ,पेड़ हंस सकते हैं ,पेड दू:खी होकर रोते हैं । चूकि ये सब बताने वाले देशी लोग हैं और देशी लोगों का अर्थ हैं गंवार, इसलिए देश के मुनीऋषीओं का बात मानना हम तौहिन समझते हैं। अमेरिका में औद्योगिक क्रांति शुरू होते ही जंगलों का विनाश शुरू हो गया था ,पर्यवरण को ताक में रख कर जिस विकास की रूपरेखा अमेरिका ने दुनियॉ के सामने रखा, वह इतना खतरनाक और जानलेवा होगा, उस समय तात्कालिक रूप से किसी ने सोचा भी नहीं होगा , परन्तु कुछ ही समय पश्चात अमेरिका के सुलझे हुए पर्यावरणविदों ने विकास के नाम पर विनाश के विरोध में लाम बन्ध होने लगे थे, विरोध के स्वर दुनियॉं में भी सुनने लग गया ,अब अमेरिका के पर्यावरण विरोधी लोगों ने बड़े -बड़े ओद्योगों के लिए जानबुझ कर जंगलो में आग लगा कर जमीन हथियाने के हथकण्डे अपनाने लगे हैं ,हजारों एकड़ वन क्षेत्रों को मात्र जानलेवा उद्योग लगाने के नाम से आग लगा दिया जाता था ।जब ग्लोबल वार्मिंग की समस्या शुरू हो गई और ओजन परत पर बड़े -बड़े छिद्र होने लगे तो कुछ लोगों ने जनता के विरोध को दबाने के लिए बृक्षारोपण ,पर्यारण दिवस ,ओजन सुरक्षा दिवस और आगे अनेक इस तरह की दिवस मनाने का नाटक जानबुझ कर किया जाता रहेगा , बाबा आम्टे ने पर्यावरण सुरक्षा के लिए चिपको आन्दोलन शुरू किया था परन्तु ,क्या हम आज भी उनके आवाज को सुन सकते हैं ? आए दिन देश के किसी न किसी स्थान पर मात्र इसलिए गोलीयॉं चलाई जाती हैं कि उद्योगों के लिए जनता अपनी जमीन और जंगल छोड़ने को राजी नहीं होते और सरकार उद्योगपतियों के साथ सॉंठ-गाँठ करके साधारण जनता को गोलियों से छलनी करके उनको अपनी रोजी -रोटियों से ,संस्कृति से बेदखल करके उद्योगपतियों को जमीन सौप देती हैं । देश की जनता के लाश पर विकास की बुनियाद खड़ी की जाती हैं और फिर शुरू होता हैं पर्यावरण के साथ बलात्कार को दौर ,लाखों पेड पोधौ को नष्ट करने का नंगा नाच,यही पर्यावरण के दुश्मन आगे चल कर लाखों बृक्ष लगाने का नाटक करते हैं, और एक साल बाद लाखों बृक्षों में सैकडों भी नजर नहीं आते । बृक्ष लगाने के इस गोरख धंधे में सरकार की भी बराबर में भागीदारी रहती हैं ,करोड़ों रूपये की बरबादी का नंगा त्यौहार हर वर्ष चलता हैं, केवल भारत में ही नहीं दुनियॉ के कोने-कोने में यही खेल जारी हैं । लेकिन अधिक दिनों तक यह खेल नहीं चल सकती , दुनियॉ के सारे ग्लेशियार पिधलने लगी हैं और बारह मासी नदियॉं सुखने के कगार पर खड़ी हैं ,वायू प्रदुषण की बात यदि एक ओर रख दे क्योंकि धन पिशाच महलों में सड़-सड़ कर भी जिन्दा रहना पसन्द करते हैं, लेकिन जब पानी ही दूनियॉं से खत्म हो रही हैं तो जिन्दा रहना भी एक पहेली बन जाएगी ,आज इसीलिए अमेरिका के कंपनी हमारी जल स्रोतों पर गिद्ध नजर रखे हुए है ,विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ जो खिलवाड करते हुए विनाश का शडयन्त्र रचने वालों को भी यही रहना हैं यदि दुनियॉ की प्राणी जगत ही नष्ट हो जाएगी तो पर्यावरण के दुश्मन किस दुनियॉं मे जीवित रहेगे ?

बुधवार, 3 जून 2009

माँ की दूध में जहर

दुध व्यापारीयों के धंधे में कुछ न कुछ विपत्तियॉं हमेशा मंडारता रहता हैं ,अभी हाल में ही जयपुर के आसपास खाद्य विभाग द्वारा छापामारी की कार्यवाही की गई ,बाताया जाता हैं कि लगभम 70 प्रतिशत दुध नकली पाया गया । दुध में कई तरह की जहरिला रसायनिक पदार्थ मिला हुआ पाया गया , दुध में पानी मिला कर बेचना तो आम बात हैं परन्तु पानी में दुध मिलाकर बेचना भी आम होने के साथ साथ गन्दी पानी मिलाना भी एक रीवाज बन चुका हैं । एक समाचार पढते हुए मैं अवाक रह गया था , समाचार में दुध में छोटी -छोटी मछलियॉं तैरते पाया गया । जब दुधवाले से पूछा गया तो उसने बताया कि जिस तलाब से पानी निकालकर दुध में मिलाया गया था उसमें मछलियॉं बहुत होने के कारण यह स्थिति निर्मित हो गई । परन्तु बाद में दुधवाले का क्या हुआ पता नहीं । दुध की शिकायत तो प्राय: सभी को होता हैं यदि दुध सही और गाढा भी मिल जाए तो मन में शंका होने लगता हैं कि जरूर दुध में मिलावट हैं नही तो दुध इतने गाढा क्यों हैं ? दुध एक शक की पदार्थ बन कर रह गया हैं । दुध मिलावट की बात तो कुछ हजम भी हो जाए तो कृत्रिम दुध के बारे में सुन कर भी रोंगटे खड़ी हो जाती हैं ,साबुन ,युरिया ,कास्टिक सोडा ,सफेद मिट्टि ,और न जाने क्या क्या मिलाकर दुध बेचा जाता हैं यही दुध बड़े चाव से हम बच्चों को पिलाते हैं रोगीयों को ,बुजूर्गो को और परिवार के सभी सदस्य दुध पीने में बहुत गर्व महशूस करते हैं । एक खबरऔर हैं -मॉं के दुध में भी आज जहर मिला हुआ पाया गया । प्रश्न यह हैं कि मॉं के दुध में जहर कहॉं से आ गया ? उत्तर भी खबर में ही था कि हम जो खाना खाते हैं उसमें भी अनेक रसायनिक पदार्थ मिला हुआ होने के कारण खाने के साथ वह जहर हमारे शरीर में चले जाने से माता पर भी उसका प्रभाव पड़ता हैं । उपज बढाने के नाम से खेत में रसायनिक खाद का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता हैं जिससे उपज तो कुछ समय तक बढ सकता हैं परन्तु आगे जाकर खेत बेकार और अनुपजाउ हो कर पड़ती भुमि में परिवर्त्तित होकर किसानों के लिए आत्महत्या का भी एक कारण बन जाता हैं । शिशु काल से ही बच्चे यदि जहर पीकर इस दुनियॉं में आता हो ,तो आगे चलकर वे बच्चे दुनियॉं को क्या अमृत पीलाएगा ? आज देश में जहरीला इंसान ही अधिक देखने को मिलेगा ,haad मॉंस के, दो पैर के मनुष्य ,इन्सान न बनकर जहरीला हैवान बन जाता हैं ।कहा जाता हैंकि जैसे खावे अन्न वैसे उपजे मन , भारत वर्ष में तो खाने का स्तर भी स्पस्ट हैं सात्विक , राजसिक,तामसिक ,आदी भोजन का प्रभाव भी मानव ‘शरीर में अलग -अलग पड़ता ही हैं । आज प्रत्येक दिशाओं में जहर ही जहर का खेल खेला जा रहा हैं ओर हम चुप चाप साक्षी बनकर देख रहे हैं , शासन प्रशासन भी जहर बेचने और बिचवाने में लगा रहता हैं । कुछ समय पूर्व शीतल पेय पदार्थ के नाम से देश में बेचने वाली पेप्सी कोका कोला कंपनी पर प्रश्न चिन्ह लग गया था , यह भी अनेक जॉंच के पश्चात सामने आया कि अमेरिकी कंपनी ने देश में जो शीतल पेय के नाम से बेचती हैं उसमें भी यूरिया, डी,डी।टी ,अफीम ,कार्बनडाई अक्साईडऔर अनेक प्रकार के कीट नाशक मिलाया जाता हैं ,देश में हल्ला हुआ ,बात संसद तक पहूंची एक कमिटी बैठी ,रिपोर्ट संसद में पेश हुआ ,गर्मागर्म बहस भी चली परन्तु देश में जहर बेचने वाली कंपनी का बाल भी बॉंका नहीं हो सका ,आज भी डंके के चोट में पेप्सी और कोकाकोला कंपनी अपनी जहरीलि पदार्थ को बेचकर देश को जहर मय बनाने में लगी हुई हैं । कह तो यहॉं हैं कि जो इसे पीता वह अच्छा और बूरा सोचने का ‘शक्ति भी खो देता हैं ।देश के नेता भी तो यही चाहते हैं कि जनता जहर पी पी कर मस्त रहे और वे मूर्दो पर राज करें । जहरीला दुध बेचने में कहीं पेप्सी कोका जैसे बदनाम कंपनीयों का हाथ तो नहीं हैं ?

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