मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
अमेरिका की दादागिरी मनमोहन को जुता अब देखे आगे होता हैं क्या
भारतीय लोकतंत्र आज शोषण तंत्र बनकर रह गया हैं ,कहने को तो दुनियॉं के विशालतम् लोकतंत्र के रूप में हम गर्व कर सकते हैं ,परन्तु वास्तविकता से यह बहुत दूर हैं ,एक देश जो आदर्श का मिशाल बन सकता था ,त्याग तपस्या के बल पर दुनियॉं को राह दिखा सकता था ,आज दिशा हीन होकर दुनियॉ के सामने मजाक बनकर रह गया हैं । अमेरिका लुट गया, अमेरिका दिवालीया हो गया ,फिर भी आज अमेरिका ही दुनियॉं के सीरमौर हैं ,डालर का किंमत कम नहीं हुआ बल्कि बढ गया ,यदि भारत में यही स्थिति बन जाती तो रूपया का किंमत कहने के लायक भी नहीं बचता ,इसके पीछे क्या कारण हो सकता हैं गंभीरता से विचार करना आवश्यक हैं ,अमेरिका के लोगों ने जब देखा जार्ज बूश दुनियॉं में बहूत बदनाम हो चुका हैं तो तत्काल गद्दी से उसे हटा कर बहुमत की सशक्त शक्ति द्वारा बराक ओबामा जैसे नेता को दुनियॉ के सामने लाया गया ,जरा बराक ओबामा पर ध्यान दे तो वे सत्ता में आने के पश्चात सबसे पहले रोजगार पर ध्यान दिया ,देश की रोजगार और धन किसी भी किंमत पर बाहर न जाए इस पर जो भी कानून आदे आया उसे बदल दिया गया ,विदेशी डाक्टर ,इंजिनीयरों को अमेरिका छोडने पर मजबूर कर दिया ,जो अमेरिका संरक्षणवाद का विरोधी था ,खुली अर्थनीति का गुणगान करता था ,वैश्विक व्यावस्था के द्वारा दुनियॉं में राज करने का सपना देखता था ,वही अमेरिका जब देखा कि इससे तो उनके देश को ही नुकसान हो रहा हैं तो तुरंत नीति में बदलाव लाते हुए अमेरिकन कानुन पास कर दिया ,उनके सारे उद्योग धन्धों पर संरक्षण का हाथ रख कर अभय दान दिया ,वहॉं के तमाम व्यापारीयों को कहा गया कि वे अमेरिका में निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग करें और अमेरिकन को ही रोजगार मुहैया करें अन्यथा उसे किसी भी तरह की सुविधा सरकार द्वारा उपलब्ध न हो पाएगा ,दुनियॉ के अन्य देश चिल्हाते रहे और चिल्हा-चिल्हा कर गला फाड डाले कि संरक्षण वाद से दुनियॉं में वैश्वीकरण की माहौल और नीति में असर पडेगा अत: अमेरिका इस नीति से बाहर आ जाए ,परन्तु अमेरिका में इसका कोई असर नहीं हुआ ,दादागिरी का भी हद होता हैं, पर इस दादागिरी को क्या कहा जाए कि अमेरिका ने अब संरक्षण की नीति को ही दुनियॉं पर थोपने जा रही हैं ,अभी जी-20 देशो के अधिवेशन में इस पर चर्चा भी हुई कि संरक्षण और कानूनी पकड बनाए रखने के लिए कौन कौन सी कानून आडे आ रही हैं उस पर एक समिति ही बन गई, जो यह पता लगायेगी कि अब औद्योगों और धन्धों में शिकंजा कैसे कसा जाए ? जब भारत में अमेरिका प्रायोजित वैश्वीकरण की नीति थौपी जा रही थी और आज के प्रधान मंत्रि ने बिनासोचे समझे इस कानून का समर्थन ही नहीं किया वल्कि लागू करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखा ,देश के स्वदेशी समर्थकों और वाम मोर्चा भी खुल कर विरोध किया ,परन्तु सबको नजरअन्दाज करते हुए खुली नीति अपनाई गई और हजारों विदेशी कंपनीयों के लिए देश का बाजार खोल दिया गया और उन्हें भारत को लूटने की खुली छुट प्रदान कर दी गई ,देश के उद्योग धन्धे बरबाद होकर मुटि्ठ भर पुंजीपतियों के हाथ सीमित हो गई ,अर्थव्यावस्था छिन्न भीन्न हो गया और हम तमाशा देखते रह गए ,अमेरिका ने तो अपना स्वार्थ सिद्धि कर लिया और दुनियॉं को जता दिया की तुम कितनी ही पढेलिखे और होशियार बनने की कोशिस क्यों न करों, रहोगे अमेरिका के पैर के नीचे ही ,भारत को आज भी हिम्मत नहीं हुआ कि वह भी ऐसे कानुन बना ले जिसके अर्न्तगत देश का सामान देश में ही बीके और विदेशी कंपनीयों का वहिष्कार हो सके ,अपने देश हित के लिए अनेक प्रकार के तर्क वितर्क देकर इस प्रकार की कानून बनाने का हिम्मत किसी में भी नहीं रह गया हैं ,देश एक तमाशा और लोकतंत्र के नाम से प बन कर देश वासियों का खून चुसने का तंत्र बन कर रह गया हैं । वही मनमोहन सिंह को आज जुते भी पडने शुरू हो गया है,पता नहीं आगे और किसके किसके बारी हैं आदर्श और नैतिकता की दुहाई देकर इस तरह की करतुत की आलोचना तो हो सकती हैं ,परन्तु जुते मारने की सिलसिला शायद ही खत्म हो ।
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
आतंकवादिओं के साथ मेहमानबाजी बंद करो
मोहम्मद अजमल अमीर कसाब का नाम आज भारत के प्राय: सभी लोग जानते हैं ,26/11 के खौफनाक दिन, देश ही नहीं दूनियॉ के करोडों लोगों ने दिल थाम कर देखा हैं होटल ताज और मुम्बई के घटना को याद करके भी रोंगटे खडी हो जाती हैं ,सैकडों लोगों को निहत्ते गोलीयों से छलनी कर देने की खूनी खेल भला कोई भूल सकता हैं ? कसाब जैसे कुख्यात आतंकवादी आज भी पकड़े जाने के बाद जीवित हैं ,दूनियॉं के करोडों लोगों ने जिस कसाब को एके 47 लेकर निरीह लोगों को मारते हुए देखा हैं आज कल उसीके लिए विशेष न्यायालय में सुनवाई चल रहा हैं ,सुनवाई भी मेहमानों की तरह हो रहा हैं ,आपको खाने के लिए ,रहने के लिए,सोने के लिए,कोई तकलिफ तो नहीं हो रहा हैं ?आपका स्वास्थ्य तो ठीक हैं ? आप न्यायालय का भाषा तो समझ रहे हैं न ? आपको पढने का शौक हैं ? कसाब का वकील कहता हैं कि कसाब नाबालिग़ हैं उस पर बाल अदालत में मुकदमा चलना चाहिए ,कसाब को उर्दू पढना आता हैं उसे रोज आखबार देना चाहिए ,न्यायालय कहता हैं कसाब नाबालिक हैं तो जॉंच हो ,डी एन ए के तहत जॉंच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का फरमान जारी किया गया ,कसाब को नियमित आखबार के जगह पुस्तके दिया जाए ,आगे न जाने क्या क्या सुविधा प्रदान किया जाएगा ,यदि डी एन ए जॉंच के पश्चात यह साबित हो जाए कि कसाब नाबालिक हैं तो क्या उसका सुनवाई बाल अदालत में होने लगेगा ? यदि ऐसा हो तो बाल अदालत कभी फॉंसी की सजा नहीं दे सकती ,अपराध साबित हो जाने के पश्चात अपराधी को बाल संरक्षक गृह में सुधार हेतु भेज दिया जाता हैं ,क्या एक आतंकवादी के साथ इस तरह की दोस्ताना व्यावहार करना उचित हैं ?वर्तमान समय में एक वर्ग जो समय से पहले बालिग होने लगा हैं ,ऐसे समय पूर्व बालिगों को हम किसी भी तरह नाबालिग नहीं कह सकते हैं जब 14 वर्ष के सर्जन को हम मान्यता देने लगे है ,नाबालिग माता पिता को न्यायिक संरक्षण प्रदान कर रहे हैं ,और समाज व्यावस्था ही कुछ इस तरह की बनता जा रहा हैं कि प्री मैच्योर बच्चे तैयार हो रहे हैं एक बालिग बच्चे से भी अधिक ज्ञान इन बच्चों को हो रहा हैं तो आज हम किसे बालिग कहे या किसी नाबालिग कहें यह पहेली बन कर रह जाता हैं । क्या एक नाबालिग एके 47 लेकर पाकिस्थान से आकर होटल में योजना बद्ध तरिके से आतंक मचा सकता है ? इतनी बडी योजना को जिसने भी मुर्त रूप दिया हो वह किसी भी रूप से नाबालिग नहीं हो सकता ,यदि वर्ष की गिनती ही उम्र और आयु का मापदण्ड हो तो वक्त का तकाजा है कि आज और इसी समय आयु का मापदण्ड बदल देना होगा ,मैं तो यह भी सोचता हूँ कि किसी बालिग या नाबालिग को यह अधिकार नहीं हैं कि किसी को भी गोलीयों से भुन दे ,हत्या कर दे ,और बाद में नाबालिग होने का रोना रोने लगे ।आतंक वादी के साथ यह मेहमान बाजी तुरन्त बन्द करों अन्यथा इस तरह की मेहमान बाजी देखकर आतंक वादीयों को प्रोत्साहन देने के लिए एक अस्त्र हाथ लग जाएगी ।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
स्विस बैंक में जमा रकम वापस लाना ही हैं
कुछ लोग कहते हैं कि इस देश के धन सम्पत्ति को देशद्रोहीयों ने स्विस बैंक में रख दिया हैं ,देश से लूट -लूट कर चोरी छिपे देश का धन बाहर ले जाने वाले लोग कहीं विदेश से नहीं आए हैं ये लूटेरे यही के हैं और देशी चोला पहनकर अंग्रेज और अन्य विदेशी लूटेरे से अधिक खतरनाक तरीके से इस देश को लूटने मे मग्न हैं ,कुछ वर्ष पूर्व एक समाचार पत्र में छपा था कि यह धन लगभग 200 लाख करोड़ से भी अधिक का हैं । वर्तमान में देश के एक बड़ा दल भापजा कह रही हैं कि यह रकम 72.80 लाख करोड़ से अधिक हैं ,चाहे 200 लाख करोड़ हो या 72.80 लाख करोड़ यह रकम यदि किसी रूप में भारत आ जाए तो निश्चित रूप से भारत का काया कल्प हो जाएगा ,यदि धन भारत लाया जाए तो धन जमा करने वालों का नाम भी उजागार होना स्वाभाविक हैं ,नाम उजागार होने पर क्या इस देश में ऐसे कोई कानून बना हैं जिसके तहत यह साबित किया जा सके कि देश का धन किसी विदेशी बैंक में रखने से देशद्रोही का कार्य प्रमाणित हो सकें ? आज तो हालात यह बन गया कि अफजल गुरू जैसे देशद्रोही को फांशी का सजा मिलने के पश्चात भी उसे फॉसी नहीं दिया जा सका हैं ,तब क्या धन सम्पत्ति के लूटेरों को कठोर सजा की आशा जनता कर सकती हैं ? क्या कठोर सजा समय पर उपलब्ध हो सकेगा ? दिवानी मामले तो यहा मृत्यु के पश्चात भी चलती है। यदि सजा बुढापे के अन्तिम क्षण में जब अपराधी कई तरह के बिमारी से ग्रसित हो चुका होता हैं और उसे एक अच्छा देख -रेख करने वाले की आवश्यकता होती है तब यदि उसे सजा मिल जाए और सरकारी मेहमान बनकर चिकित्सालय में सारी सुख सुविधा उपलब्ध हो जाए तब तो सोने मे सुहागा वाली बात किस्मत वालों को प्राप्त होता है यह सुख किसी स्वर्ग के सुख से कम नहीं होता ,क्या इस तरह की सजा से लोगों को अपराध करने को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा ? जन चेतना द्वारा ऐसे देशद्रोहीयों को मौत का सजा अविलम्ब मिलना चाहिएतभी लोग गद्दारी करने में डरेंगे ,अन्यथा घपले बाज ,घपले करते रहेंगे और पकडा गया तो चोर नहींतो साधु की भॉंती देश के भाग्यविधाता बने रहेंगे !
जुता खाओ और बाहर निकलो
जुता खाओ और बाहर निकलो ,हो सकता हैं हीरो बनने का सपना भी सफल हो जाए ,पर हीरो तो नसीब नहीं हो रहा है ,जीरो जरूर हसिला आ जाता हैं ,अमेरिका के राष्टपति को इराक में जुता पड़ा और जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया ,जुता मारने वाले पत्रकार जनरैल सिंह जैसे किस्मत वाले नहीं थे ,राष्ट्रपति जार्ज बुश ने जुता मारने वाले को क्षमा नहीं किया ,उन्हें सुरक्षा कर्मियों ने धरदबोचा और अभी उसका अता पता भी नहीं हैं ,एक दिन खबर आएगा कि उसे फॉसी की सजा हो गई । जनरैल सिंह तो नसीब वाले निकले जुते भी मारे और उसका बाल भी बॉका नहीं हुआ ,ऊपर से लोखों का ईनाम भी ठुकरा कर सिक्खों का चहेता बन गया ,चिदम्बरन साहब करें तो क्या करें बेचारा समय का मारा ,हर जुता खाने वाले को जनता नकार देती हैं लगता हैं अब चिदम्बरन की बारी हैं ।उन्हें पूर्वाभाष हो गया होगा कि अब वे अधिक दिनों के मेहमान नहीं हैं ,मनमोहन सिंह और चिदम्बरम के दुकडि ने देश को बहुत रूलाया है ,विदेशी कंपनीयों को देश में घुसपैठ करवा कर अंग्रेजों से ज्यादा देश में लूटने की छुट देकर देश को भिखारी बना दिया और मात्र एक पर जुता पड़ा ,पता नहीं कोई लाल दुसरे पर भी योजना बना रहा कि नहीं ,हालाकि गाली देना ,जुता मारना अच्छी बात नहीं हैं पर आज जनता करे तो क्या करें ,चोरी फिर सीना जोरी की जमाने में जनता भी जैसे राजा वैसा प्रजा की तर्ज पर चलने को मजबूर है ,दोश मात्र जनता का नहीं हैं इस दोश के पीछे एक ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि है ,जिसे अनदेखा करना वस्तुस्थिति से मूहमोढना होगा । 1984 को याद करके भी हमारी रोंगटे खडी हो जाती हैं । एक सिक्ख ने उस समय श्री मती इंदिरा गान्धी को जो प्रधान मंत्री थे गोलीयों से छलनी कर दिया था ,एक सिक्ख ने गलती किया तो सारी सिक्ख कौम को सरेआम मारडालना कहॉं की कानून हैं ?उस समय की कल्पना करने से भी डर लगता हैं इस डर के पीछे एक राजनैतिक दल का हाथ था और इस दल के नेताओ को कुकर्म का फल मिलना चाहिए था ,परन्तु आज जब उल्टी गंगा बहरही हैं तब किसी न किसी को आक्रोश का सामना करना ही पडेगा ,बोया पेड बबुल का आम कहा से होय वाली कहावत हमेशा चरितार्थ होता हैं ।
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