सोमवार, 27 अप्रैल 2009
आतंकवादिओं के साथ मेहमानबाजी बंद करो
मोहम्मद अजमल अमीर कसाब का नाम आज भारत के प्राय: सभी लोग जानते हैं ,26/11 के खौफनाक दिन, देश ही नहीं दूनियॉ के करोडों लोगों ने दिल थाम कर देखा हैं होटल ताज और मुम्बई के घटना को याद करके भी रोंगटे खडी हो जाती हैं ,सैकडों लोगों को निहत्ते गोलीयों से छलनी कर देने की खूनी खेल भला कोई भूल सकता हैं ? कसाब जैसे कुख्यात आतंकवादी आज भी पकड़े जाने के बाद जीवित हैं ,दूनियॉं के करोडों लोगों ने जिस कसाब को एके 47 लेकर निरीह लोगों को मारते हुए देखा हैं आज कल उसीके लिए विशेष न्यायालय में सुनवाई चल रहा हैं ,सुनवाई भी मेहमानों की तरह हो रहा हैं ,आपको खाने के लिए ,रहने के लिए,सोने के लिए,कोई तकलिफ तो नहीं हो रहा हैं ?आपका स्वास्थ्य तो ठीक हैं ? आप न्यायालय का भाषा तो समझ रहे हैं न ? आपको पढने का शौक हैं ? कसाब का वकील कहता हैं कि कसाब नाबालिग़ हैं उस पर बाल अदालत में मुकदमा चलना चाहिए ,कसाब को उर्दू पढना आता हैं उसे रोज आखबार देना चाहिए ,न्यायालय कहता हैं कसाब नाबालिक हैं तो जॉंच हो ,डी एन ए के तहत जॉंच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का फरमान जारी किया गया ,कसाब को नियमित आखबार के जगह पुस्तके दिया जाए ,आगे न जाने क्या क्या सुविधा प्रदान किया जाएगा ,यदि डी एन ए जॉंच के पश्चात यह साबित हो जाए कि कसाब नाबालिक हैं तो क्या उसका सुनवाई बाल अदालत में होने लगेगा ? यदि ऐसा हो तो बाल अदालत कभी फॉंसी की सजा नहीं दे सकती ,अपराध साबित हो जाने के पश्चात अपराधी को बाल संरक्षक गृह में सुधार हेतु भेज दिया जाता हैं ,क्या एक आतंकवादी के साथ इस तरह की दोस्ताना व्यावहार करना उचित हैं ?वर्तमान समय में एक वर्ग जो समय से पहले बालिग होने लगा हैं ,ऐसे समय पूर्व बालिगों को हम किसी भी तरह नाबालिग नहीं कह सकते हैं जब 14 वर्ष के सर्जन को हम मान्यता देने लगे है ,नाबालिग माता पिता को न्यायिक संरक्षण प्रदान कर रहे हैं ,और समाज व्यावस्था ही कुछ इस तरह की बनता जा रहा हैं कि प्री मैच्योर बच्चे तैयार हो रहे हैं एक बालिग बच्चे से भी अधिक ज्ञान इन बच्चों को हो रहा हैं तो आज हम किसे बालिग कहे या किसी नाबालिग कहें यह पहेली बन कर रह जाता हैं । क्या एक नाबालिग एके 47 लेकर पाकिस्थान से आकर होटल में योजना बद्ध तरिके से आतंक मचा सकता है ? इतनी बडी योजना को जिसने भी मुर्त रूप दिया हो वह किसी भी रूप से नाबालिग नहीं हो सकता ,यदि वर्ष की गिनती ही उम्र और आयु का मापदण्ड हो तो वक्त का तकाजा है कि आज और इसी समय आयु का मापदण्ड बदल देना होगा ,मैं तो यह भी सोचता हूँ कि किसी बालिग या नाबालिग को यह अधिकार नहीं हैं कि किसी को भी गोलीयों से भुन दे ,हत्या कर दे ,और बाद में नाबालिग होने का रोना रोने लगे ।आतंक वादी के साथ यह मेहमान बाजी तुरन्त बन्द करों अन्यथा इस तरह की मेहमान बाजी देखकर आतंक वादीयों को प्रोत्साहन देने के लिए एक अस्त्र हाथ लग जाएगी ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें