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जब से डा. बिनायक सेन के नाम सुर्खिओं में आने लगा तब से मुझे उन पर रूची होने के कारण समाचारों को विशेष रूप से चिन्तन मनन करता रहा हूँ , नक्शली के आरोप में ग्रिफ्तार होना और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा होने की सारी चर्चाओ पर मेरी नजर लगी रहती थी ,इस मुहिम में मुझे कई स्थानों से ई मेल प्राप्त हुआ ,आज कल दुनियॉं इतनी छोटी हो चुकी है कि पलक झपकते ही खबरों का साम्राज्य ऑंखों के सामने आ ही जाती है । मैं कई बार छत्तीसगढ राज्य के रायपुर और बिलासपुर आता जाता रहा हूँ परन्तु कभी ऐसा मौका नहीं मिला जिससे बिनायक जी से मुलाकात का मौका मिलता ।
जीवन में अपने लिए संघर्ष करना और दूसरों के लिए संघर्ष करने में अन्तर हैं ,जब विचार भिन्नता के कारण शोषक यह सोचने लगे कि अपने लिए खतरा है तो उसे रास्ते से हटाने का कई षड़यंत्र रचा जाता हैं ,मुझे लगता है कि छत्तीसगढ के शासक को डा .सेन से खतरा दिखा होगा , तभी डा. सेन को षड़यंत्र का शिकार बनाया गया ।
मैं हिंसा में विस्वास नहीं करता, परन्तु जिस कारण से हिंसा होता है ,उस कारण पर मुझे अधिक रूचि रहती हैं यदि कारण को समाप्त कर दिया जाए तो हिंसा क्यों होगा ।आजादी के बाद से ही इस देश में जो लूट खसौट शुरू होकर वह आज जानलेवा साबित हो रहा हैं । अंग्रेजों से अधिक शोषण इस देश में देशी शोषक कर रहा है ,मुठ्ठीभर लोगों ने देश की अधिकांश सम्पत्ति हड़प कर आराम की जीवन जीकर साधारण लोगों को दिखावे की खेल से उनके जले में नमक छिडकाने का काम कर रहा हैं ,हद तो अब मुकेश अम्बानी ने कर दी मात्र बीबी बच्चों के रहने के लिए 27 मंजीला मकान, अभी एक माह में 70 लाख रूपए केवल बिजली का बिल आया है।
सरकार बिजली उत्पादन के लिए देश के किसानों का जमीन अधिग्रहण कर रही है और किसान अपनी पूर्वजों की जमीन बचाने के लिए संघर्षरत है, यदि इस संघर्ष में किसी ने हथियार उठा लिया तो वे आतंकवादी और नक्शली कहलाता है ,संघर्ष में साथ देने वाले देशद्रोही हो जाता है ।भारत में आज अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों और निहत्थे लोगों को,कानून के नाम पर हत्या कर दिया जाता है 1
पुलिस और सैनिकों द्वारा जब जनता पर गोलियॉं दागी जाती है, लोग मारे जाते है ,तो कितनों पर देशद्रोही का अपराध दर्ज किया जाता है ? प्रजातंत्र में जनता ही शासन और जनता ही मालिक होता हैं ,यदि मालिक पर गोली दागी जाती है तो क्या वह देशद्रोह नहीं हैं ? प्रजा पर गोली चलाने का अर्थ देश पर हमला करने के समान अपराध है।
तालियॉं दोनों हाथों से बजती है ,जब सरकार अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों को गोलियों का शिकार बनाती है, तो गोलियों का जवाब गोलियों से देना आवश्यक है । अंग्रेजों ने भारतीय जनता को जीवन सुरक्षा केलिए हथियार उठाना कानूनन अपराध माना था वह भी गुलामी के दिनों में ऐसा किया गया ,आज देश आजाद है ,तो अंग्रेजों का काला कानून बदलना ही चाहिए ।
मै मानता हूँ कि यदि मुझे कोई जान से मार डालने का हिम्मत करें तो मै आत्मरक्षा के लिए कुछ भी करूँ यहॉं तक की हाथियार का भी इस्तेमाल कर सकता हूँ ,इस हेतु मुझे कोई कानून से आदेश लेने की आवश्कता नहीं होनी चाहिए, यही मौलिक अधिकार है ,यही प्राकृतिक अधिकार हैं ।
नक्शलबाड़ी से जमिंदारों के खिलाफ जो हिंसक आन्दोलन आगे चलकर राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप ले रहा है ,चाहे मैं पक्ष में रहूँ या विपक्ष में , इस देश में यह भयावह रूप लेकर रहेगा,इमानदारी पूर्वक देश सेवा में लगे लोग खतरनाक गृहयुद्ध से देश को बचा सकते हैं ,नक्शलबाड़ी का आन्दोलन एका एक नहीं भड़का , उसके पीछे शोषण का घिनौना रूप उत्तरदाई है।
आज नक्शली का रूप कुरूप हो चुका है ,उनके नेता भी सुविधाभोगी हो चुके हैं, परन्तु कुछ नक्शली आज भी एक सिद्धान्त पर जीते हुए आन्दोलन को जीवित रखे हुए है ,वे आज बौखलाहट का शिकार होकर कुछ भी करने में उतारू है, मुझे लगता है कि जब वे आम जनता को यह समझाने मे असफल हो रहे है कि जो भी संघर्ष किया जा रहा वह उनके हित में ही हैं, इस कारण जनता उनके साथ न देकर मुखबिरी करने और असहयोग करने के कारण भय से ग्रसित होकर शंका के आधार पर हत्या जैसे कारनाम को अन्जाम दे रही है ,हालाकि यह किसी भी रूप में सहमत योग्य नहीं हैं ।
घोर शोषण तंत्र जब तक खत्म नहीं हो जाता हैं ,तब तक किसी न किसी रूप में या नाम से हिंसक बारदाते होती रहेंगी ,इस संघर्ष को कुछ लोग पवित्र कार्य के रूप में महिमा मंडित भी करते है। इस संघर्ष को कुरूक्षेत्र के साथ जोड़कर न्याय और अन्याय की धर्मयुद्ध के रूप में भी कुछ लोग भाग ले रहे हैं , चाहे कुछ भी हो पर शोषण तंत्र से उपजी यह लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रहा हैं ।
डा.सेन जैसे अनेक सेन इस संघर्ष में भाग लेने आगे आते रहेंगे और अनेक शहीद भी होंगे ,कुछ लोगों का नाम इतिहास में आ भी नहीं पाएगा कुछ अमर भी हो जाऐंगे ,एक समय आर एस एस को कुछ लोग अच्छी नजर से नहीं देख पाते थे,
आपातकाल में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के अधिकंश नेताओं और जयप्रकाश नारायण जैसे राष्ट्रवादी और संघर्शशील लोगों को जेल में भर दिया गया था, परन्तु आगे चल कर लोगों ने इन्हें भारी बहुमतों से देश का बागडोर सोप दिया , मुझे लगता है कि देश के लोग यदि आगे चल कर डा.सेन जैसे लोगों के साथ मिलते हुए एक नई विकल्प की कल्पना कर रहे हैं तो अतिशयोक्ति न होगा । इस लेख के आलोक में यह भी लिखना चाहता हूँ कि दुनियॉं की सबसे अच्छी व्यावस्था प्रजातंत्र ही हैं ,पर आज प्रजातंत्र के नाम पर जो लूटतंत्र चल रही है वह सहन योग्य भी नहीं है । तंत्र बदलना आवश्यक हैं ......डा.बिनायक सेन को मैं देशद्रोही नहीं मानता ,न्यायालय को ससम्मान डा.सेन को रिहा कर सुरक्षा प्रदान करना चाहिए
मत भिन्नता के कारण किसी संघर्शशील व्यक्ति को देशद्रोह जैसे अपराध में दंडितकर विचारों का हनन वर्तमान समय में असहनिय है ।
क्या इस देश में मर्दों की कमी हो गई है? इस सवाल करने के पीछे मेरा एक विशेष उददे्श्य भी है । उदेद्श्य पर सीधा न आकर मैं एक डाक्टर मित्र के बारे में लिखना चाहता हूँ , पेशे में डाक्टर होने के बाद भी सामाजिक और राजनैतिक घटनाओं पर उनके नज़र पैनी रहती हैं ,एक दिन वे मुझसे कहने लगे कि -एस . के ! तुम जानते हो कि इस देश में हेपिटाइसिस बी के बाद सी डी ई भी बच्चों को लगाना शुरू हो गया है ? और इस काम के लिए विदेशी दवाई कंपनीयॉं अंतर्राष्ट्रीय क्लबों का सहारा ले रहा है। आजकल लॉयन और रोटरी क्लब जैसे अनेक क्लब भी दवाई कम्पनीयों के विक्रय प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए दवाई बेचने में लगी हुई हैं, यह सबको दिखाई दे रही है। कहने को तो वे इसे सेवा का नाम दे देती है पर वास्वतिकता इसके ठीक विपरीत है।
मेरे मित्र ने आगे कहने लगे कि राय ! `इस देश में विदेश से जो भी दवाई आती है उसका विशेष जॉच पडताल न करते हुए प्रोयोग में लाया जाता है , मैंने बच्चों को हेपेटाइसिस की दवाई लगाने के पश्चात भी पीलिया जैसे खतरनाक बिमारी से बच्चों को मरते हु, देखा है। यदि दवाई में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती तो बच्चे मरते ही क्यों ?
डाक्टर ने एक ओर रहस्य बताया, जिसे सुन कर किसी को विश्वास ही नहीं होगा उन्होंने कहा कि अमेरिका हमारा न कभी दोस्त था और न है, आगे भी दोस्त होने की संभावना नहीं है। जनसंख्या पर हाय तौबा मचाने वाला अमेरिका हमारे देश के आने वाली पीढी को पंगू बनाने की षड़यंत्र पर कानूनी मुहर लगा दिया और बच्चों को जो दवाईयॉं दी जाती है उससे बच्चे दब्बू और डरपोक बन कर अन्याय के खिलाफ लड़ने लायक ही नहीं रहेगा, एक पीढी तो ऐसी तैयार हो चुकी है जो कहने को तो मर्द है परन्तु इन मर्दो में मर्दांगी नहीं है।
अन्याय के खिलाफ लड़ने में सबसे आगे रहने वाले भारत के सपुत आज ढूढने पर भी दिखाई नहीं देता ,भारत में खुलेआम जो अन्याय का खेल चल रहा है ,जिसमें कार्यपालिका ,व्यावस्थापिका ,न्यायपालिका ,की भागिदरी उल्लेखनिय है। तीनों अंग आज पंगु हो चुकी है ,अन्याय और भष्ट्राचार चरम सीमा पर है। देशी हो या विदेशी जो जहॉं से हो सके देश को लुटने में लगी हुई है , फिर भी देश मौन ,शान्त !!
सभी स्थितियों को देखते हुए , डाक्टर के बातों पर अत्यन्त दू:ख के साथ विस्वास करना पड़ रहा है ,क्या यह मानने योग्य बात हो सकती है कि इस देश में अब मर्दो की कमी हो गई है ?
बडे बॉंधों का विरोध करो ,पर्यावरण बचाने की बातें या भष्ट्राचारों का नाश सम्बन्धी कई कदम ,ये सभी आज फालतू या विकास विरोधी समझा जाता है। बडे बाधों के कारण भूकम्प और बाढ , पर्यावरण के कारण अतिबृष्टि - अनाबृष्टि और मानव निर्मित अन्य बिमारीयों से मनुष्यों का अकाल मृत्यु ,यदि अभी इस विषयों पर चर्चा नहीं होता तो अधिकांश लोग शायद दिल्ली और उत्तराखण्ड के भयानक बाढ के सम्बन्ध में सोचना भी उचित न समझते । इस देश में आग लगने पर कुंए खोदने की बातें याद आती है।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन को देश के गद्दार नेताओ ,शासन प्रशासन ने हल्के रूप से लिया जिसके चलते भयानक बाढ और भुकंप से लोगों को बर्वाद करते हुए आज भी प्रभावित लोग नारकिय जीवन जीने को बाध्य है। नदी नालों को बाध कर अचानक अधिक पानी भर जाने के कारण अधिकाधिक पानी छोड़ने की मजबूरी के चलते निचले हिस्सों में देश के किसी न किसी स्थान में हर वर्ष भयानक बाढ से लोग बर्बाद हो जाते है । हजारों एकड़ भूमि नष्ट होने के साथ ही साथ अमूल्य जीवन की बलि देना आम होता जा रहा है।
देश के स्वार्थी , विवकेहीन नेताओं , प्रशासन और व्यापारीयों का गठबंधन ने देश में जो नंगा नाच शुरू कर दिया है उसका जिता जगता उदाहारण देश के राजधानी दिल्ली में दुनियॉ के सामने प्रमाणित हो चुकी है। खेल गॉंव और राश्ट्मण्डल खेल, फूट ब्रिज आदी चिल्हा- चिल्हा कर देश के चरित्र को उजागार करके दूंनिया को बता दिया कि हम कितने विकसित और सभ्य है।
टीव्ही में आज ही श्री कृष्ण सिरियल देख रहा था, इसमें नकूल द्वारा मामा शकूनी को कूरूक्षेत्र में तीर से पैर ,हाथ ,और अन्त में मस्तक को धड़ से अगल करते हुए कहता है कि तम्हारे जैसे मामा को जीने का कोई अधिकार ही नहीं हैं । मै सोच रहा था कि- इस देश के शकूनी जैसे कितने ही गद्दार खूले आम घूम रहे है-
इसी कडी में द्रौपदी ने खूली बालों और कंगी को देखते हुए कहती है कि युद्ध के अन्त में आगे कोई भी दु:शासन नारीयों पर अत्याचार करने का हिम्मत भी नहीं कर पाएगा , काश ऐसा होता -----
लगता है कुरूक्षेत्र का अधूरा कार्य करना अभी बाकी है !!!!!