कल ही मोहन लाल गुप्ता जी के आलेख पढने का मौका मिला ,मुझे बहुत अच्छा लगने के साथ ही साथ यह भी सोचने के लीए मजबूर कर दिया हैं कि क्या वास्तव में हम एक अराजकता की और एक दो कदम नहीं, परन्तु अनेक कदम बढा लिए हैं ? और उस कदम को आज पिछे लाने का कोई उपाय शेष नहीं रह गया है ..?
मैंने भी मेरे अनेक आलेखों के माध्यम से यही बात समाज के सामने रखने का प्रयत्न किया कि प्रतिभा ..सम्मान आदी मेरे देश की किस काम की है ....यदि उस प्रतिभा का लाभ मेरे देश को न मिले ! बड़े -बड़े धनवान लोगों से मेरे देश का क्या भला होने को हैं ...... शासन को उनके द्वारा कमाया हुआ रकम का कुछ हिस्सा जरूर मिल जाता है ,चुनाव के समय उन्हें चंदा मिल जाती हैं ,नाम मात्र के कुछ कर लाभ भी हो जाता है। बच्चों को उंची बेतन में नौकरी का लाभ प्राप्त होने के अलावा भी एक लाभ जो सुरा और सुन्दरियों पर समाप्त होकर आगे गुलामी सा नारकिया जीवन ....................
मोहन लाल गुप्ता ने इतिहास से अनेक उदारण देकर यह समझाने का प्रयत्न किया कि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति देशभक्त होगा यह जरूरी नहीं हैं और कम प्रतिभाशाली व्यक्ति यदि देशभक्त हैं तो देश के लिए अधिक उपयोगी हो सकता हैं ।
गुप्ता जी ! एक कदम आगे बढते हुए मैं तो यह कहना ज्यादा उपयुक्त समझता हूँ कि प्रतिभावान व्यक्ति ही इस देश के लिए अधिक खतरनाक है । अपवाद शब्द का उपयोग इसलिए कर रहा हूँ ताकि कोई दावा करें कि मुझमें प्रतिभा हैं परन्तु मैं देशभक्त हूँ ,ऐसे लोगों के लिए यह शब्द रखना जरूरी है ।
हमें आज अधिक प्रतिभावानों की आवश्यकता नहीं है ,कलेक्टर बनने के लिए आई ए एस जैसे प्रतियोगिता से अच्छा हैं कि गुप्त रूप से पता लगाना ज्यादा उपयुक्त होगा कि कौन इमानदार और देशभक्त है , हर शहर और गॉव में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो जनसेवा में इमानदारी से हमेशा सक्रिय रहते हैं ऐसे लोगा भले कम पढा लिखा हो उन्हें प्रशिक्षण देकर जिम्मेदारी दिया जा सकता हैं आज के सफेद हाथी पालने की अपेक्षा यह रास्ता मुझे अच्छा लगता है ।
अब यह बात तो स्पष्ट हैं कि हमारे व्यवस्था में ही कहीं खामियॉं आ गई हैं, जिसके चलते समाज में जिसे सम्मान मिलना चाहिए उन्हें सम्मान नहीं मिलता और जिन्हें बहिष्कार करना चाहिए उन्हें सम्मान दिया जा रहा हैं । सबसे पहले तो मानसीक रूप से हमें तैयारी करनी हैं कि हम लेखनी द्वारा समाज को अब जगाने का काम करने के साथ ही साथ इमानदार लोगों को एकत्रित करने के लिए एक मुहिम छेड़ा जाए ,यह आज वर्तमान समय के लिए एक पवीत्र कार्य होगा ................... मैं इस प्रकार के मुहिम में तन -मन -धन से सहयोग करूंगा । देश के नैतिकवानों ------------------
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
सोमवार, 12 अक्टूबर 2009
प्राकृतिक संशाधनों की लुट में सबको हिस्सा चाहिए ---
नियम-कानूनों का हवाला देकर प्राकृतिक संशाधनों को लूटने की छुट सरकार दे रही हैं । इस लूट में क्या सरकार भी भागीदार नहीं है.....? हजारों एकड़ों में सेज के नाम पर जल... जमिन और जंगलों का सफाया कर अमीरों को लूटने की खूली छुट दिया जा रहा हैं । एक पेड़ काटने पर वन विभाग जुमार्ना करती हैं ,गरिबों पर मामला दर्ज कर जेल में ढूंस देती हैं और कानूनी रूप से जनसुनवाई और अन्य बहाने हजारों एकड़ भूमि को बंजर बनने का कोई दोषी नहीं है ।
प्राकृतिक संशाधनों का लाभ सभी को मिलना चाहिए , मैं नहीं कहता कि समान रूप से सभी को लाभ दिया जाय ,पर लाभ का हिस्सा तो सबको मिलना ही चाहिए ,यदि प्राकृतिक संशाधनों को सरकार नाश करने को तुली हुई हैं तो उस नाश का तात्कालिक लाभ से गरिबों को क्यों अलग रखा जा रहा हैं ?
जंगलों को काटने की खूली छुट गरिबों को मिलना चाहिए ...कोयले खदानों से कोयला निकालने की भी छुट सबको होना चाहिए , मात्र मुठि्ठ भर लोग लाभ ले और अन्य लोग ताकते रहे-- यह कैसे सम्भव हैं ....? वन विभाग का काम मात्र यह हो कि नए नए स्थान में जंगल विकसित करें और आगे बढते जाए ...उसका उपयोग जो जैसे चाहे वैसे करते रहे इस पर कोई रोक टोक नहीं होना चहिए ।
देश के सभी खनिज सम्पदाओं को यदि निजी हाथों में दे कर कुछ लोगों के आड़ में जब सरकार में बैठे लोग उसका उपयोग कर धनी बन रहे हैं ,तो गरिब को भी धनी बनने का हक तो हैं ........1 रूपया या 2 रूपये किलो चावल और नमक मुफत में बॉट कर इस देश की गरिबी नहीं हट सकती ,इससे तो लोग अलाल और नपुंशक होते जा रहे हैं ,देश के कुछ धन पिशाचों को तो इस तरह की स्थिति वरदान साबित हो रहा हैं ।
जब लूट लगी हैं तो सबको लूटने दो ........... लूटने के लिए कोई कानुन नहीं होना चाहिए ,जिसकी लाठी उसकी भैस वाली बात जब फिर वापस आने को हैं तो आने दो .........बंद कर दो सारी व्यवस्था ..... कानुन ..नियम ..... अराजक राज जब शुरू हो चुकी हैं तो कब तक आग को कागज से ढंक कर रखने का नाटक किया जाएगा ...? असफल सरकार ..... नपुंशक समाज ............ अनैतिक नेताओं से अब किसको क्या उम्मिद बची हैं ...............?
प्राकृतिक संशाधनों का लाभ सभी को मिलना चाहिए , मैं नहीं कहता कि समान रूप से सभी को लाभ दिया जाय ,पर लाभ का हिस्सा तो सबको मिलना ही चाहिए ,यदि प्राकृतिक संशाधनों को सरकार नाश करने को तुली हुई हैं तो उस नाश का तात्कालिक लाभ से गरिबों को क्यों अलग रखा जा रहा हैं ?
जंगलों को काटने की खूली छुट गरिबों को मिलना चाहिए ...कोयले खदानों से कोयला निकालने की भी छुट सबको होना चाहिए , मात्र मुठि्ठ भर लोग लाभ ले और अन्य लोग ताकते रहे-- यह कैसे सम्भव हैं ....? वन विभाग का काम मात्र यह हो कि नए नए स्थान में जंगल विकसित करें और आगे बढते जाए ...उसका उपयोग जो जैसे चाहे वैसे करते रहे इस पर कोई रोक टोक नहीं होना चहिए ।
देश के सभी खनिज सम्पदाओं को यदि निजी हाथों में दे कर कुछ लोगों के आड़ में जब सरकार में बैठे लोग उसका उपयोग कर धनी बन रहे हैं ,तो गरिब को भी धनी बनने का हक तो हैं ........1 रूपया या 2 रूपये किलो चावल और नमक मुफत में बॉट कर इस देश की गरिबी नहीं हट सकती ,इससे तो लोग अलाल और नपुंशक होते जा रहे हैं ,देश के कुछ धन पिशाचों को तो इस तरह की स्थिति वरदान साबित हो रहा हैं ।
जब लूट लगी हैं तो सबको लूटने दो ........... लूटने के लिए कोई कानुन नहीं होना चाहिए ,जिसकी लाठी उसकी भैस वाली बात जब फिर वापस आने को हैं तो आने दो .........बंद कर दो सारी व्यवस्था ..... कानुन ..नियम ..... अराजक राज जब शुरू हो चुकी हैं तो कब तक आग को कागज से ढंक कर रखने का नाटक किया जाएगा ...? असफल सरकार ..... नपुंशक समाज ............ अनैतिक नेताओं से अब किसको क्या उम्मिद बची हैं ...............?
मैं घोर राष्ट्रवादी हूँ विश्वबन्धुत्व का दुश्मन --कुपमन्दुक---
मैं एक घोर राष्ट्रवादी हूँ .... मुझे दुनियॉ के हर चीज वैसा नहीं दिखता जैसा वह हैं ,दिखने की.. और होने के बीच में एक सरल रेखा न चाहते हुए भी बार -बार खींचता चला जाता हूँ , आज तो मुझे मेरे देश के सिवाय कुछ दिखता ही नहीं है।
मैं अप्रवासी भारतीयों को मिलने वाली सम्मान भी कोई अच्छी नजर से नहीं देख पाता .........पिछले समय दुनियॉं में तहलका मचाने वाले भारतीय मूल के अमर्त सेन जी को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ, अर्थशास्त्र के महान विद्वान .... कल्याण कारी अर्थशास्त्र के चिन्तक ....जरा सोचने की बात हैं कि इस प्रकार के पुरस्कार से मेरे देश को क्या मिला ? यही न कि सेन जी कभी भारतीय थे ..... और भारत में उनके जैसे विद्वानों का सम्मान न मिलने के कारण देश छोडकर विदेश चले गए...?
भु पू राष्ट्रपति कलाम जी को भी अनेक बार विदेश जाने और डालरों का लोभ दिया गया, विशेष कर अमेरिका से ............ परन्तु कलाम जी ने देश प्रेम और कर्तव्य बोध से प्रेरीत होकर देश सेवा को सर्वोपरि मानते हुए डालरों का लोभ त्याग कर ,भारत वर्ष में ही रहना पसन्द किया ,
श्री स्वराज पाल को इंग्लैण्ड में लार्ड पाल कहते हैं ..... उससे मुझे और मेरे देश को क्या फायदा ...? आप बड़े तोप खान है ,आरबों से खेलते हैं ....बड़े -बड़े महलों में रात गुजारते हैं, और वहॉं से देश के लिए घडियाली ऑंसू बहाते हैं ........... यह हैं प्रवासी भारतीय ।
जरा लक्ष्मी मित्तल जी पर नजर डालना आवश्यक हैं ॥ एक पत्रकार ने पुछा कि- वीलगेट ने अपना सारा सम्पत्ति गरीब दु:खियों में बॉंटकर समाज सेवा में व्यास्त हो गये हैं ,क्या आप भी वैसा करना चाहते हैं ? जवाब मिला कि अभी तो मुझे बहुत आगे बढना हैं ...बहुत कमाना है ....आगे सुनिए ......जब पूछा गया कि आप भारत में रहना पसन्द करेंगे ? उन्होंने जबाव दिया कि भारत के लोग अमीर लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं अत: यहॉं आना पसन्द नहीं ।
हम हैं कि ऐसे लोगों को देख कर अपने आप को गर्व महशुस करते हैं ......... धन पिशाचों पर गर्व करना छोडकर हमें अपने आप को इमानदारी पूर्वक भारतीयता के आधार पर देश को स्थापित करना होगा ,तभी हम जीने और गर्व करने लायक बन सकेंगे ............
मुझे अपने आप को राष्ट्रवादी कहने में कोई झिझक नहीं है ............ लोग विश्ववादी कहते हुए गर्व करते हैं और आज मेरे जैसे लोग आपने आप को राष्ट्रवादी कह कर अधिकांश लोगों को आलोचना करने की खुली छुट देने को तैयार हैं ........... कहिए मैं कुपमण्डुक हूँ ........ संकुचित विचार का हूँ ..... विश्वबन्धुत्व का दुश्मन हूँ ..............गाली भी दिजीए ..................... पर एक बात याद रखिए कि- इस देश को यदि आगे ले जाना हैं तो घोर राष्ट्रवाद के रास्ते से ही जाना होगा ........
मैं अप्रवासी भारतीयों को मिलने वाली सम्मान भी कोई अच्छी नजर से नहीं देख पाता .........पिछले समय दुनियॉं में तहलका मचाने वाले भारतीय मूल के अमर्त सेन जी को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ, अर्थशास्त्र के महान विद्वान .... कल्याण कारी अर्थशास्त्र के चिन्तक ....जरा सोचने की बात हैं कि इस प्रकार के पुरस्कार से मेरे देश को क्या मिला ? यही न कि सेन जी कभी भारतीय थे ..... और भारत में उनके जैसे विद्वानों का सम्मान न मिलने के कारण देश छोडकर विदेश चले गए...?
भु पू राष्ट्रपति कलाम जी को भी अनेक बार विदेश जाने और डालरों का लोभ दिया गया, विशेष कर अमेरिका से ............ परन्तु कलाम जी ने देश प्रेम और कर्तव्य बोध से प्रेरीत होकर देश सेवा को सर्वोपरि मानते हुए डालरों का लोभ त्याग कर ,भारत वर्ष में ही रहना पसन्द किया ,
श्री स्वराज पाल को इंग्लैण्ड में लार्ड पाल कहते हैं ..... उससे मुझे और मेरे देश को क्या फायदा ...? आप बड़े तोप खान है ,आरबों से खेलते हैं ....बड़े -बड़े महलों में रात गुजारते हैं, और वहॉं से देश के लिए घडियाली ऑंसू बहाते हैं ........... यह हैं प्रवासी भारतीय ।
जरा लक्ष्मी मित्तल जी पर नजर डालना आवश्यक हैं ॥ एक पत्रकार ने पुछा कि- वीलगेट ने अपना सारा सम्पत्ति गरीब दु:खियों में बॉंटकर समाज सेवा में व्यास्त हो गये हैं ,क्या आप भी वैसा करना चाहते हैं ? जवाब मिला कि अभी तो मुझे बहुत आगे बढना हैं ...बहुत कमाना है ....आगे सुनिए ......जब पूछा गया कि आप भारत में रहना पसन्द करेंगे ? उन्होंने जबाव दिया कि भारत के लोग अमीर लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं अत: यहॉं आना पसन्द नहीं ।
हम हैं कि ऐसे लोगों को देख कर अपने आप को गर्व महशुस करते हैं ......... धन पिशाचों पर गर्व करना छोडकर हमें अपने आप को इमानदारी पूर्वक भारतीयता के आधार पर देश को स्थापित करना होगा ,तभी हम जीने और गर्व करने लायक बन सकेंगे ............
मुझे अपने आप को राष्ट्रवादी कहने में कोई झिझक नहीं है ............ लोग विश्ववादी कहते हुए गर्व करते हैं और आज मेरे जैसे लोग आपने आप को राष्ट्रवादी कह कर अधिकांश लोगों को आलोचना करने की खुली छुट देने को तैयार हैं ........... कहिए मैं कुपमण्डुक हूँ ........ संकुचित विचार का हूँ ..... विश्वबन्धुत्व का दुश्मन हूँ ..............गाली भी दिजीए ..................... पर एक बात याद रखिए कि- इस देश को यदि आगे ले जाना हैं तो घोर राष्ट्रवाद के रास्ते से ही जाना होगा ........
रविवार, 11 अक्टूबर 2009
मत सम्प्रदाय हिंदू -मुस्लिम जी का जंजाल --धर्म कहाँ ---?
धर्म पर ब्लोगर बन्धुओं के बीच एक जोरदार बहस चल निकला हैं , बहुत दिनों से बड़े-छोटे सभी ब्लोगर इस बहस में भाग लेते देख मैंने भी सोचा कि इस विषय से स्वयं को अलग रखना कतई उचित नहीं है।
धर्म पर एक विस्तृत पोस्ट मेरे लेखों में पूर्व से सम्मिलित हैं ,इस पोस्ट के बाद यदि जिज्ञासु रूची लेकर पूर्व लेख पढ़ने में कुछ समय निकाले तो हो सकता हैं कुछ नई बात सामने आ सकें ।
इस विचार शुरू करने के पहले मैं विषयान्तर्गत कुछ बातें लिखना आवश्यक समझता हूँ कि- मैं एक ईश्वरीय सत्ता पर विस्वास करता हूँ ,परन्तु न मैं अपने आप को हिन्दु ,न मुस्लिम ,न इसाई ,न जैन ,और न ही अन्य कोई मतवादों से बॉंधना चाहता हूँ ,आज अपवाद को छोडकर एक भी मत मानवता के सिद्धान्त पर खरे नहीं उतरने के कारण मैं यह भी मानता हूं कि आज हिन्दु कहलाने वाले मात्र अपने आप को हिन्दु ही कहते है ,मुस्लिम भी कहने के लिए मुस्लिम है, इसाई भी नाम मात्र के इसाई है ,जैन भी वेसे ही और सिख भी वैसी ।
दुनियॉं में जितने भी मत हैं या सम्प्रदाय हैं जिसे मजहब भी कह सकते है ,किसी में भी कोई कमी मुझे नहीं दिखता है ,एक मुस्लिम मत कहता है कि यदि हाथ गलत कार्य में लिप्त हो तो उसे काट देना चाहिए ,यदि ऑख गलत चीजों पर आकृष्ट हो तो ऑंख फोड़ देना चाहिए ,मात्र दो पर ही विचार करें तो साफ हो जाता हैं कि मनुष्य जन्म अच्छाई के लिए मिला हैं ,गलत कार्य करने और करवाने के लिए नहीं ।
क्या मुस्लिम उक्त बातों को व्यवहारिक जीवन में लागू करते हैं ? मुस्लिम भाई यदि उक्त बातों को जीवन में नहीं उतार सके, तो वे किस बात के लिए दावा करते हैं कि मैं मुस्लिम हूं ?
कुरान में तो कमजोरों को मदद करने की बाते लिखी हैं , ज़कार्ता की बाते है ,अपनी आय के एक अंश जरूरत मंद लोगों को बॉटने की बाते साफ लिखा हुआ हैं ,कितने मुस्लिम भाई इमान पर कायम हैं ? दु:ख तो तब अधिक होता है जब जिस देश का खाया जाता हैं, उसी देश के खिलाफ षडयंत्र रचते हुए दुश्मनों को मदद करते हुए मुस्लिम भाई पकड़े जाते है ।
मैं नहीं कहता कि मुस्लिम देश भक्त नहीं होते ,मैं तो मात्र यह कहना चाहता हूँ कि ५ बार नमाज अदा करने मात्र से कोई मुस्लिम नहीं हो जाते है ।
अब जरा हिन्दुओं पर विचार किया जाए तो पता लगता हैं कि भारत वर्ष में मुझे खोजने पर भी हिन्दु नजर नहीं आते , मंदिरों में माथा टेकने से और पूजा पाठ में लिप्त रहकर, बड़ा सा टिका माथे में लगा लेने से कोई हिन्दु नहीं हो जाता हैं ।
हिन्दुओं में जाति व्यवस्था तो एक नासूर बन चुका हैं ,देश के धर्म के नाम पर ठेकेदारी चलाने वाले इस प्रथा को जड़ से खत्म क्यों नहीं करते ? इस देश में तो स्वयभू भगवानों की कमी नहीं हैं ,ऐसे भगवान देश में हो रहे मानव-मानव का नफरत देख कर मात्र बयान बाजी करने के सिवाय अन्य कुछ भी करने में क्यों हिचकते हैं ?
मैं एक बहुत ही कटु उदाहरण देना चाहता हूँ ....महानायक अमिताभ बच्चन को दुनियॉं में अधिकांश लोग पहचानते हैं ,अभी ६७ वर्ष के उम्र में भी पर्दे पर कुछ भी करते हुए नजर आ जाते है , पैसे के लिए कुछ भी करेगा वाली बात तो बच्चन जी में आज एक दम सठीक बैठ रहा हैं ।
हिन्दु मत में एक आश्रम व्यावस्था की बात लिखी हुई है ,५ वर्ष से २५ वर्ष तक व्रह्मचार्य,२६ से ५० वर्ष की उम्र तक गृहस्थाश्रम ,५१ से ७५ तक वाणप्रस्थाश्रम ,और ७६ से सन्यास आश्रम की प्रावधान हैं ,क्या बच्चन ही वाणप्रस्थ आश्रम के नियम को पालन कर रहे है ? यदि नही तो वे हिन्दु कैसे हो सकते हैं ? नियमों को पालन नहीं करेंगे ,लेकिन अपने आप को हिन्दु कहेंगें ,वाह भाई .....
मैने बच्चन जी का मात्र उदाहरण दिया हैं ,ऐसे तो एक ढुढों तो सौ मिल जाऐंगे ,किसका किसका नाम गिनाता रहूँ ? राजनीति में तो भरमार है ............
जैन मत में अपरिग्रह की नीति तो मुझे बहुत अच्छी लगती है ,छात्र जीवन में जैन दर्शन से मै प्रभावित भी था, लेकिन आगे चल कर जैनियों का हालत देख कर मुझे तो रोना आता हैं ....... अहिंसा ,सत्य,आस्तेय ,ब्रम्हचार्य ,अपरिग्रह नीति, मन-कर्म और वाचा से पालन करने की बातें लिखी हुई हैं ,किन्तु कितने लोग इसे पालन करते है ? जो पालन करते हैं वे जैनि हैं, जो जितेन्द्रिय हैं, वे जैनि और जो नहीं हैं वे कैसे जैनी हो सकते हैं ?
इसाईयों की नीति जरा सुनिये ...प्रेम से दुनियॉं जितने की बाते किया गया हैं ,प्रेम करने वालों को स्वर्ग मिलेगा ,ईसामसिह को सूली पर चढाने के बाद भी वे कहते रहे कि- हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना ,ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं ...
लेकिन आज बाईबिल को कितने लोग मानते है ? दुनियॉं में जहॉं -जहॉं भूखमरी ,गरिबी हैं वहॉं जाकर ये लोग सेवा के नाम पर ईसाइ बनाने में अपना प्रधान फर्ज समझते है। भारत वर्ष में तो आए दिन आदिवासी और चर्च के बीच में लड़ाई की खबरे आम बात हो गई है।
अब सोचने वाली बात यह है कि क्या बाईबिल में जरूरत मंद लोगों को ईसाइ बनाने की बाते लिखी हुई हैं ? मैंने जहॉं तक समझा और पढा हैं ...ऐसा कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा , फिर चर्च में जाकर प्रार्थना करने मात्र से मैं ऐसे लोगों को ईसाइ कैसे मान लूँ ?
सिक्ख भाईयों को पंच "क" कार धारण करने की इजाजत हैं , इसका अर्थ यह हुआ कि सनातन धर्म पर यदि विपत्ति आती है , तो हमेशा रक्षा करने को तैयार रहना । कितने सिक्ख इस बात से इन्कार कर सकते है ? मैं समझता हूँ कि एक भी शायद ही मिलेगें ,क्या आज सनातन धर्म पर विपत्ति की स्थिति नहीं हैं ? चारों ओर हाहाकर मची हुई नहीं हैं ? जाति के नाम पर यहॉं मार काट होती हैं ,हरिजन स्त्रीयों की ईज्जत तो मानों खिलौना है ,गरिबी ,भूखमरी ,बेरोजगारी आदी क्या सनातन धर्म को रसातल नहीं ले जा रही है ?
उक्त स्थितियों को देखते हुए भी अत्याचारियों के खिलाफ म्यान से तलवार कयों नहीं निकलती ? क्या सामने विपत्ति देखकर भी चुपचाप सहने वालों को सिक्ख कहा जा सकता है ?
तमाम मत साम्प्रदाय कभी धर्म नहीं हो सकता है । धर्म मात्र एक है ,मानवता के नाते जो भी गुण लोगों में होना चाहिए वे सभी गुण ही धर्म है । और सभी गुणी जनों को ही धार्मिक कहलाने योग्य हैं ।
दया ,माया,क्षमा ,अपरिग्रह ,सत्य, सेवा ,त्याग ,आदी मानवोचित गुणों को धारण करते हुए ईश्वर की समर्पित भाव से आराधना और आडम्बर रहित प्रार्थना द्वारा उन्हें अनुभव करने का ही नाम धर्म कहा जा सकता है।
उक्त गुणों को सिखने के लिए किसी दलाल की आवश्यकता नहीं हैं , हॉं यदि उच्च ज्ञानी और गुणी से कभी दर्शन हो जाए तो उपदेशों का पालन करने में कोई हर्ज भी नहीं है ,परन्तु आज तो विरले ही मिलेंगें ...........मत -संप्रदाय जी का जंजाल --धर्म कहाँ --?
धर्म पर एक विस्तृत पोस्ट मेरे लेखों में पूर्व से सम्मिलित हैं ,इस पोस्ट के बाद यदि जिज्ञासु रूची लेकर पूर्व लेख पढ़ने में कुछ समय निकाले तो हो सकता हैं कुछ नई बात सामने आ सकें ।
इस विचार शुरू करने के पहले मैं विषयान्तर्गत कुछ बातें लिखना आवश्यक समझता हूँ कि- मैं एक ईश्वरीय सत्ता पर विस्वास करता हूँ ,परन्तु न मैं अपने आप को हिन्दु ,न मुस्लिम ,न इसाई ,न जैन ,और न ही अन्य कोई मतवादों से बॉंधना चाहता हूँ ,आज अपवाद को छोडकर एक भी मत मानवता के सिद्धान्त पर खरे नहीं उतरने के कारण मैं यह भी मानता हूं कि आज हिन्दु कहलाने वाले मात्र अपने आप को हिन्दु ही कहते है ,मुस्लिम भी कहने के लिए मुस्लिम है, इसाई भी नाम मात्र के इसाई है ,जैन भी वेसे ही और सिख भी वैसी ।
दुनियॉं में जितने भी मत हैं या सम्प्रदाय हैं जिसे मजहब भी कह सकते है ,किसी में भी कोई कमी मुझे नहीं दिखता है ,एक मुस्लिम मत कहता है कि यदि हाथ गलत कार्य में लिप्त हो तो उसे काट देना चाहिए ,यदि ऑख गलत चीजों पर आकृष्ट हो तो ऑंख फोड़ देना चाहिए ,मात्र दो पर ही विचार करें तो साफ हो जाता हैं कि मनुष्य जन्म अच्छाई के लिए मिला हैं ,गलत कार्य करने और करवाने के लिए नहीं ।
क्या मुस्लिम उक्त बातों को व्यवहारिक जीवन में लागू करते हैं ? मुस्लिम भाई यदि उक्त बातों को जीवन में नहीं उतार सके, तो वे किस बात के लिए दावा करते हैं कि मैं मुस्लिम हूं ?
कुरान में तो कमजोरों को मदद करने की बाते लिखी हैं , ज़कार्ता की बाते है ,अपनी आय के एक अंश जरूरत मंद लोगों को बॉटने की बाते साफ लिखा हुआ हैं ,कितने मुस्लिम भाई इमान पर कायम हैं ? दु:ख तो तब अधिक होता है जब जिस देश का खाया जाता हैं, उसी देश के खिलाफ षडयंत्र रचते हुए दुश्मनों को मदद करते हुए मुस्लिम भाई पकड़े जाते है ।
मैं नहीं कहता कि मुस्लिम देश भक्त नहीं होते ,मैं तो मात्र यह कहना चाहता हूँ कि ५ बार नमाज अदा करने मात्र से कोई मुस्लिम नहीं हो जाते है ।
अब जरा हिन्दुओं पर विचार किया जाए तो पता लगता हैं कि भारत वर्ष में मुझे खोजने पर भी हिन्दु नजर नहीं आते , मंदिरों में माथा टेकने से और पूजा पाठ में लिप्त रहकर, बड़ा सा टिका माथे में लगा लेने से कोई हिन्दु नहीं हो जाता हैं ।
हिन्दुओं में जाति व्यवस्था तो एक नासूर बन चुका हैं ,देश के धर्म के नाम पर ठेकेदारी चलाने वाले इस प्रथा को जड़ से खत्म क्यों नहीं करते ? इस देश में तो स्वयभू भगवानों की कमी नहीं हैं ,ऐसे भगवान देश में हो रहे मानव-मानव का नफरत देख कर मात्र बयान बाजी करने के सिवाय अन्य कुछ भी करने में क्यों हिचकते हैं ?
मैं एक बहुत ही कटु उदाहरण देना चाहता हूँ ....महानायक अमिताभ बच्चन को दुनियॉं में अधिकांश लोग पहचानते हैं ,अभी ६७ वर्ष के उम्र में भी पर्दे पर कुछ भी करते हुए नजर आ जाते है , पैसे के लिए कुछ भी करेगा वाली बात तो बच्चन जी में आज एक दम सठीक बैठ रहा हैं ।
हिन्दु मत में एक आश्रम व्यावस्था की बात लिखी हुई है ,५ वर्ष से २५ वर्ष तक व्रह्मचार्य,२६ से ५० वर्ष की उम्र तक गृहस्थाश्रम ,५१ से ७५ तक वाणप्रस्थाश्रम ,और ७६ से सन्यास आश्रम की प्रावधान हैं ,क्या बच्चन ही वाणप्रस्थ आश्रम के नियम को पालन कर रहे है ? यदि नही तो वे हिन्दु कैसे हो सकते हैं ? नियमों को पालन नहीं करेंगे ,लेकिन अपने आप को हिन्दु कहेंगें ,वाह भाई .....
मैने बच्चन जी का मात्र उदाहरण दिया हैं ,ऐसे तो एक ढुढों तो सौ मिल जाऐंगे ,किसका किसका नाम गिनाता रहूँ ? राजनीति में तो भरमार है ............
जैन मत में अपरिग्रह की नीति तो मुझे बहुत अच्छी लगती है ,छात्र जीवन में जैन दर्शन से मै प्रभावित भी था, लेकिन आगे चल कर जैनियों का हालत देख कर मुझे तो रोना आता हैं ....... अहिंसा ,सत्य,आस्तेय ,ब्रम्हचार्य ,अपरिग्रह नीति, मन-कर्म और वाचा से पालन करने की बातें लिखी हुई हैं ,किन्तु कितने लोग इसे पालन करते है ? जो पालन करते हैं वे जैनि हैं, जो जितेन्द्रिय हैं, वे जैनि और जो नहीं हैं वे कैसे जैनी हो सकते हैं ?
इसाईयों की नीति जरा सुनिये ...प्रेम से दुनियॉं जितने की बाते किया गया हैं ,प्रेम करने वालों को स्वर्ग मिलेगा ,ईसामसिह को सूली पर चढाने के बाद भी वे कहते रहे कि- हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना ,ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं ...
लेकिन आज बाईबिल को कितने लोग मानते है ? दुनियॉं में जहॉं -जहॉं भूखमरी ,गरिबी हैं वहॉं जाकर ये लोग सेवा के नाम पर ईसाइ बनाने में अपना प्रधान फर्ज समझते है। भारत वर्ष में तो आए दिन आदिवासी और चर्च के बीच में लड़ाई की खबरे आम बात हो गई है।
अब सोचने वाली बात यह है कि क्या बाईबिल में जरूरत मंद लोगों को ईसाइ बनाने की बाते लिखी हुई हैं ? मैंने जहॉं तक समझा और पढा हैं ...ऐसा कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा , फिर चर्च में जाकर प्रार्थना करने मात्र से मैं ऐसे लोगों को ईसाइ कैसे मान लूँ ?
सिक्ख भाईयों को पंच "क" कार धारण करने की इजाजत हैं , इसका अर्थ यह हुआ कि सनातन धर्म पर यदि विपत्ति आती है , तो हमेशा रक्षा करने को तैयार रहना । कितने सिक्ख इस बात से इन्कार कर सकते है ? मैं समझता हूँ कि एक भी शायद ही मिलेगें ,क्या आज सनातन धर्म पर विपत्ति की स्थिति नहीं हैं ? चारों ओर हाहाकर मची हुई नहीं हैं ? जाति के नाम पर यहॉं मार काट होती हैं ,हरिजन स्त्रीयों की ईज्जत तो मानों खिलौना है ,गरिबी ,भूखमरी ,बेरोजगारी आदी क्या सनातन धर्म को रसातल नहीं ले जा रही है ?
उक्त स्थितियों को देखते हुए भी अत्याचारियों के खिलाफ म्यान से तलवार कयों नहीं निकलती ? क्या सामने विपत्ति देखकर भी चुपचाप सहने वालों को सिक्ख कहा जा सकता है ?
तमाम मत साम्प्रदाय कभी धर्म नहीं हो सकता है । धर्म मात्र एक है ,मानवता के नाते जो भी गुण लोगों में होना चाहिए वे सभी गुण ही धर्म है । और सभी गुणी जनों को ही धार्मिक कहलाने योग्य हैं ।
दया ,माया,क्षमा ,अपरिग्रह ,सत्य, सेवा ,त्याग ,आदी मानवोचित गुणों को धारण करते हुए ईश्वर की समर्पित भाव से आराधना और आडम्बर रहित प्रार्थना द्वारा उन्हें अनुभव करने का ही नाम धर्म कहा जा सकता है।
उक्त गुणों को सिखने के लिए किसी दलाल की आवश्यकता नहीं हैं , हॉं यदि उच्च ज्ञानी और गुणी से कभी दर्शन हो जाए तो उपदेशों का पालन करने में कोई हर्ज भी नहीं है ,परन्तु आज तो विरले ही मिलेंगें ...........मत -संप्रदाय जी का जंजाल --धर्म कहाँ --?
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