सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

प्राकृतिक संशाधनों की लुट में सबको हिस्सा चाहिए ---

नियम-कानूनों का हवाला देकर प्राकृतिक संशाधनों को लूटने की छुट सरकार दे रही हैं । इस लूट में क्या सरकार भी भागीदार नहीं है.....? हजारों एकड़ों में सेज के नाम पर जल... जमिन और जंगलों का सफाया कर अमीरों को लूटने की खूली छुट दिया जा रहा हैं । एक पेड़ काटने पर वन विभाग जुमार्ना करती हैं ,गरिबों पर मामला दर्ज कर जेल में ढूंस देती हैं और कानूनी रूप से जनसुनवाई और अन्य बहाने हजारों एकड़ भूमि को बंजर बनने का कोई दोषी नहीं है ।

प्राकृतिक संशाधनों का लाभ सभी को मिलना चाहिए , मैं नहीं कहता कि समान रूप से सभी को लाभ दिया जाय ,पर लाभ का हिस्सा तो सबको मिलना ही चाहिए ,यदि प्राकृतिक संशाधनों को सरकार नाश करने को तुली हुई हैं तो उस नाश का तात्कालिक लाभ से गरिबों को क्यों अलग रखा जा रहा हैं ?

जंगलों को काटने की खूली छुट गरिबों को मिलना चाहिए ...कोयले खदानों से कोयला निकालने की भी छुट सबको होना चाहिए , मात्र मुठि्ठ भर लोग लाभ ले और अन्य लोग ताकते रहे-- यह कैसे सम्भव हैं ....? वन विभाग का काम मात्र यह हो कि नए नए स्थान में जंगल विकसित करें और आगे बढते जाए ...उसका उपयोग जो जैसे चाहे वैसे करते रहे इस पर कोई रोक टोक नहीं होना चहिए ।

देश के सभी खनिज सम्पदाओं को यदि निजी हाथों में दे कर कुछ लोगों के आड़ में जब सरकार में बैठे लोग उसका उपयोग कर धनी बन रहे हैं ,तो गरिब को भी धनी बनने का हक तो हैं ........1 रूपया या 2 रूपये किलो चावल और नमक मुफत में बॉट कर इस देश की गरिबी नहीं हट सकती ,इससे तो लोग अलाल और नपुंशक होते जा रहे हैं ,देश के कुछ धन पिशाचों को तो इस तरह की स्थिति वरदान साबित हो रहा हैं ।

जब लूट लगी हैं तो सबको लूटने दो ........... लूटने के लिए कोई कानुन नहीं होना चाहिए ,जिसकी लाठी उसकी भैस वाली बात जब फिर वापस आने को हैं तो आने दो .........बंद कर दो सारी व्यवस्था ..... कानुन ..नियम ..... अराजक राज जब शुरू हो चुकी हैं तो कब तक आग को कागज से ढंक कर रखने का नाटक किया जाएगा ...? असफल सरकार ..... नपुंशक समाज ............ अनैतिक नेताओं से अब किसको क्या उम्मिद बची हैं ...............?

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