जिस देश में 80 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो ,84 करोड़ लोग मात्र 20 रूपये में जीवन चलाता हो ,52 करोड़ लोग 12 रूपये में ही प्रतिदिन जीवन की गाड़ी चला रहा हो ,उस देश में आदर्श ,न्याय , नैतिकता ,आदी सुनने और देखने को मिलना अपने आप में महान आश्चर्य हैं ,दूसरी और प्रतिदिन एक लाख रूपये की होटल में जनप्रतिनिधि रात गुजारने में खर्च डालते है । देश की राष्ट्रपति 474 से भी अधिक कमरों की महलों में रहना ,सुनने में विश्वास नहीं होता .
लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो भी खर्च किए जाते हैं उसका 90 प्रतिशत लगभग बिचौलिओं के जेब में चला जाता है। गैर बराबरी समाज व्यवस्था कब तक चलेगी ... हालत इतनी बिगड़ चूकी हैं कि घर से बाहर निकलने के बाद लौटकर आने की कोई उम्मिद नहीं रहती .......... कौन कहॉ और कैसे लोगों को मौत के घाट उतार दें उसे कोई बता नहीं सकता , कुछ हजार रूपये की सुपाड़ी देकर किसी का भी कत्ल कर देना बहुत आसान हो गया हैं , बच्चों को सुबह पढने के लिए विद्यालय भेजो ..... थोड़ी देर में फोन आता हैं ...... रूपये दो नही तो बच्चे की लाश मिलेगी .............. जीवन भर की कमाई को चुपचाप अपहरण कर्ता को देकर बच्चे को वापस लाना होता है। कभी -कभी तो रूपये देने के बाद भी बच्चे नहीं .... लाश भी नहीं ......
आतंकवाद ,नक्सलवाद ,आदी से आए दिन सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं ,जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा घेरे में ही कत्लेआम कर दिया जाता है । जो जैसे पाए इस देश को लूटने में ही अपना धर्म समझने लगे हैं , कोई रोक टोक नहीं हैं , न्याय , नियम ,कानूनों से जनता का मोह भंग हो चूका है। ये सब केवल गरीब और कमजोरों को दबाने का काम आता हैं । आज दिन प्रतिदिन हालात बिगड़ना ,महंगाई ,कालाबाजारी ,जहर बेचने का धन्धा ,मिलावट खोरी आदी अबाध गति से चल रही हैं ।
अगर गलत परम्पराओं का नाम गिनाने जाउं तो पन्ने भी कम पड़ जाए ..... चंद नर पिशाचों के कारण देश प्रतिदिन गर्त की और अग्रसर हैं ,ऐसे पिशाच मात्र भौतिक संशाधनों पर एकाधिकार जमाने में ही कर्म समझता हैं । इन्हें देश के कानून ,न्याय ,नियमों का काई भय नहीं लगता ,चंद रूपये के लिए अब सब कुछ बिकाऊ हो गया हैं ।
मैं कभी -कभी सोचता हूँ कि आतंकवादी ,नक्सलवादीयों को ये धन पिशाचों को क्या नजर नहीं आता हैं ...?
लेकिन इनके कुछ करतूतों से विचार बदल गया है ... खबर तो यहॉं तक हैं कि नक्सली और आतंकवाद को ये धन पिशाच ही पाल पोशकर बढा किया है ,जरूरत के समय वे अपने ही स्वार्थ में इन्हें उपयोग भी करते है।
शहर में रह कर गठबंधन से धंधा भी चलता है ,शासन भी मौन ..... क्यूँ ! ...........क्योंकि हिस्सा जो मिलता है । जब चारों ओर से दबाव आ रहा है तो सेना के शरण में पहुँचने की मजबूरी से विदेशी दुश्मनों के लिए खड़े किए गए फौज का उपयोग कर सैकडों बहादूर फौजियों को जानबुझ कर शहीद होने को महबूर करना...
हम खून की ऑशू बहाकर जी रहे है , पता नहीं ... किसके हाथ ... हमारी भी बारी लिखा हैं ...........
कहते है कलम में बहुत ताकत है ..... क्या यह सच हैं --? यदि सच हैं तो हजारों कलमकारों के लिए देश में एक नई दिशा दिलाने में विलम्ब क्यों हो रहा है ----? और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..? क्रमश:..
गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009
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ये आग बड़े काम की है गुरु !
जवाब देंहटाएंइसे मद्धम न होने देना.............
बाकी सब हो जाएगा,,,,,,,,
समय बदल रहा है
और तेज़ी से बदल रहा है...................
तलवारों की ताकत तुरंत दिखाई जार सकती है .. कलम की ताकत दिखाने में कुछ समय का इंतजार तो करना ही पडता है .. धैर्य रखें !!
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