मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

इलाहाबाद ब्लोगार सम्मेलन पर एक सशक्त टिप्पनी - हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।

नामवार सिंह जी के मुख्य आतिथ्य में ,राष्ट्रिय  ब्लोगर सम्मेलन ,श्री प्रमोद प्रताप सिंह जी जो कि सम्मेलन स्थल इलाहाबाद के ही रहनेवाले होने के पश्चात भी उन्हें न बुलाने  की बाते ,सुरेश चिपलुनकर जी के आरोपों का क्रमवार जवाब ..विशेष  करके गुजरात के संजय बेगाणी जी और केरल के शास्त्री जी को सम्मेलन में न बुलाने और देश के अन्य ब्लोगारों की उपेक्षा से उपजी एक आक्रोश पर ज्वलन्त बहसों का सिलसिला .........


मैं कल और आज अनेक ब्लागों पर भ्रमण किया ,,तथ्यों की तह में जाने का भी प्रयत्न करने के पश्चात एक बात जो मुझे समझमें आया कि ब्लोगरों को भी कुछ लोगों के द्वारा गुटबाजी में बदलने की षडयंत्र  रची  जा रही  हैं ,एक वर्ग जो इसे हिन्दुत्व वादी गुट में परिवर्तण करना चाहते थे ,जोकि चुक जाने के कारण अन्य एक वर्ग अपनी करनी से सफल हो गए , कौन अच्छा है या कौन बूरा है ,इस पर अभी मैं नहीं जाना  चाहता हूँ  ,परन्तु नामवार सिंह जी अपनी मंशा में  कामयाब हो गए यह तो साफ दिख रहा है ... जिस व्यक्ति को जो नहीं जानते थे, इस बहस में उन्हें लोग जानने लग गए है ,कामयाबी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है ।

यदि तमाम बातों को छोड़कर  हम सुरेश जी के आरोप पर जाए कि हिन्दुवादियों का उपेक्षा किया गया है ,इसका अर्थ यह हुआ कि नामवार जी और उनके भक्त हिन्दुवादी नहीं है ,इसका अर्थ और स्पष्ट  किया जाए कि वे अहिन्दुवादी विचार धारा के है । यदि अहिन्दुवादी विचारधारा के लोग हिन्दुवादी विचार धारा के लोगों के साथ बैठे तो निश्चित  रूप से खिंचातानी शुरू हो जाने के डर से यदि उन्हें न बुलाया गया हो तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।

एक हिन्दु होकर दूसरों की बुराई पर बोलने का कोई हक नहीं है, उसी तरह एक बामपंथी होकर एक दक्षीण पंथी पर कटाक्ष करने का भी उन्हे अधिकार नहीं है ,दोनों मतवादों में जो बूराई है उस पर कबीर दास जी जैसे भक्त ही अपनी  मजबूत पक्ष द्वारा समाधान दे सकते है अन्य कदापी नहीं ।

एक बात जो मुझे भी अच्छी नहीं लगी वह यह कि राष्ट्रिय  सम्मेलन हो रहा हो और देश के अन्य ब्लोगरों को खबर तक नहीं...... इस पर विचार करना आवश्यक हैं ,ताकि इस प्रकार की चूक फिर न हो जाए ।

गुटबाजी से परे हटकर स्वतंत्र लेखन और चिन्तन द्वारा देश सेवा में अपने आप को समर्पित कर देना हमारा लक्ष्य होना चहिए ,लिखने के लिए लिखना ही हमारा उद्देश्य  न हो ,आज देश पतन की और लगातार अग्रसर है अत: लेखनी द्वारा ,विचार द्वारा , अन्य माध्यम द्वारा यदि छोटी से छोटी सेवा भी हम कर सकें तो इससे बढकर इस नश्वर जीवन में और क्या  उपलब्धी हो सकती हैं ?

हम अपनी जिम्मेदारी को समझे ,कुछ प्रतिक्रियावादी लोग हमेशा लाभ लेने के लिए सदा सक्रिय रहते हैं ,आगे भी इस तरह के लोग रहेंगे ,हमें ही सजग रहना होगा यदि हम ही सजग न रह सकें, तो इस देश को हम कैसे दिशा दिखायेगें ?

हमें किसी की प्रमाण पत्र की आवश्यकता क्यों हैं ? हम लिखेंगे और लिखते रहेंगे ,मैंने हिन्दी में जब लिखना शुरू किया तो बहुत अशुद्धियॉं होती थी , ,वर्तनी ,व्यकारण आदी दोष  आज भी हैं ,मैंने लिखना बंद नहीं किया, जिन लोगो ने भारत में रहकर भी अंग्रेजीयत पाल रखें है उनसे तो हम लाख गुने  अच्छे हैं । एक बहुत अच्छे अहंकार सम्पन्न साहित्यकार से एक कम साहित्यिक जानकार देश सेवक कई गुणा अधिक लाभदायक हैं ।

अन्तिम बातें जो मैं बताना उचित समझता हूँ  यह कि हमें हिन्दुवाद ,मुस्लिमवाद ,वामपंथी ,दक्षीण पंथी आदी से परे हटकर आज मानववाद पर ध्यान केन्द्रित  करना चाहिए और जो देश रसातल की और जा रही है उसे प्रगति की चरम शिखर पर उठाने का सभी को संकल्प लेकर आगे बढना चाहिए ,हजार पग उद्देश्य  विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य  के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस आलेख में एक भी टिप्पनी न आना---आपने आप में आश्चर्य हैं ,क्या ब्लॉग में कुछ ख़राबी ? यदि कुछ असुविधा हो रही हैं तो कृपया मुझे सूचित करने का कष्ट करें .

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  2. "हिन्दुवाद ,मुस्लिमवाद ,वामपंथी ,दक्षीण पंथी आदी से परे हटकर आज मानववाद पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए"
    हा हा हा. इसी लाइन से पता चलता है कि आपको कोई टिप्पणी नही आई. भई आपने सभी संप्रदाय के लोगों को गरिया दिया. अब टिप्पणी कौन करे? किसी कांग्रेस विरोधी लेख अथवा नवभारत टाइम्स की भड़काऊ खबरों में मिली टिप्पणियां इतनी खतरनाक होती हैं कि क्या बताऊं. लोग सभी स्वतंत्रता सेनानियों की बैंड बजाए रहते हैं. ऐसा लगता है कि बस देश को आजादी इन्ही लोगों ने दिलाई है. स्वतंत्रता सेनानी तो बस राष्ट्रविरोधी कार्यों में लिप्त थे. कहीं पढ़ने को मिलेगा कि महात्मा गांधी की हत्या के पीछे सावरकर का हाथ था. तो कहीं पता चलेगा कि गांधी जी का अहिंसा का रास्ता कायराना कार्य है. और कहीं रवीन्द्रनाथ टैगोर को अंग्रेज भक्त बता दिया जाएगा.

    यहां कांग्रेस के ऊपर एक लाइन लिखी है लोग मुझे कांग्रेसी या भाजपाई न समझे.मैं किसी भी संगठन अथवा पार्टी का अंधभक्त(अंधा समर्थक) नही हूं जो उसके हर कार्य को सही ठहराते रहे. मुझे जो सही लगता है उसे मैं मानता हूं.और जो गलत लगता है उसे नही मानता. बेनामी के रूप में इसलिए टिप्पणी दे रहा हूं क्योंकि मैं इस कीचड़ में पैर नही डालना चाहता हूं.

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