यदि लोग अकाल मृत्यु में चल बसे और हम विज्ञान की दम्भ में, समय गूजारते चले जाए तो , आगे चलकर विज्ञान को नकारने का एक बहाना तो लोगों को मिल ही जाएगा ,हम चॉंद में पानी होने की बाते करते है, वहॉं मनुष्य के बसने लायक स्थिति पैदा करने लगे हैं ,लेकिन जहॉं मनुष्य के लिए प्रकृति ने सब कुछ अनुकूल वातावरण बनाकर वरदान स्वरूप हमें प्रदान किया है ,उसी वरदान को हम नकारते हुए, दूर का ढोल सुहावना लगता हैं वाली कहावत चरितार्थ करने लगे हुए है ।
आज भी हम लोगों को भर पेट भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाए है ,उचित शिक्षा की बात तो दूर हम अक्षर ज्ञान तक बच्चों को उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं ,रास्ते में कैसे चलना चाहिए यह भी सिखाने में हम असमर्थ हैं । लोग जल के बीना बेमौत मारे जाते हैं ,पिलिया तो जल के कारण ही होता हैं , गन्दगी के कारण लाखों लोग प्रत्येक वर्ष मारे जाते हैं । मलेरिया ,हैजा ,डेंगू आदी तो गंदगी के कारण ही पैदा होता है ,हम आजादी के बाद बाते तो बहुत करते है ,साधनों की भी कमी नहीं है.... पर लोग साधन के अभाव में मर रहे हैं ।
जानबूझ कर लोगों को काल की मूंह में पहुंचाना एक परम्परा सी इस देश में बन गई हैं । भूखमरी से लोगों को अनेक प्रकार की बिमरी आ घेरती हैं ,खून की कमी से बच्चे ग्रसीत हैं ,किशोरावस्था में गरीब घर की लड़किओं की जो दूर्गती होती हैं उसे लिखना भी कष्ट साध्य हैं ,जिस समय लड़कियों को पौष्टिक आहार की आवश्यकता हैं ,उसी समय यदि उसे भूखमरी की सामना करना पड़ें ,तो आगे जाकर देश के लिए माता बन कर वे कैसी सन्तान उत्पत्ति करेंगी यह तो सोचने की बात हैं ।
शासन सब कुछ जानती हैं , माताओं के लिए अनेक प्रकार की योजनायें भी प्रारंभ किया गया हैं पर उसका लाभ उसे कितना मिल पाता है ,यह तो परिस्थिति पर निर्भर करता है ।
गरिबी की बात तो एक और छोड़ दे, तो अमीर लोग भी आज सुरक्षित नहीं है । गुंडों के कारण रास्ते में चलना आज बहुत मुस्किल हो चुका हैं ,यदि गुंडों से बच भी गए तो भी सुरक्षित नहीं हैं ।
कब किस गाड़ी के नीचे कौन आ जाए, उसका कोई भरोसा भी नहीं ,रास्ते में तो अमीर -गरीब -नेता -कर्मचारि..अधिकारी सभी कीड़े मकदों की तरह पीसे जाते है। फिर हम किस विकास और उन्नती की बाते करते हैं ,समझ से परे है ।
बाजार से जो भी खाने पीने के लिए हम खरिदते हैं ,घर में यदि साफाई करके और उत्तम तरिके से उपयोग में लाया जाए ,तो भी हम नहीं कह सकते कि हमने सही आहार का सेवन किया है ,वह शरीर लिए दायक ही होगा ... हो सकता हैं कि हम घर की बनी हुई भोजन से ही अन्तिम श्वाश लेने लगे ,हम
बाहर सुरक्षित नहीं हैं ,जंगल में चले जाए तो वहॉं भी औद्योगिकरण का जो वातावरण तैयार हो चूका है जिसके चलते जंगल भी सुरक्षित नहीं रह गया हैं ,जंगली जानवर आज इस हद तक हिंसक बन चुका कि शहरों में आकर हाथी ,भालू ,शेर आदी हमला शुरू कर दिया हैं 1
बिहार के खगड़िया और दरभंगा जिले में नौका डुबने से 60 लोगों की मौत हो सकता हैं,और सरकार हर एक परिवार को 1लाख 50 हजार रूपये मुआवजा देती हैं तो 90 लाख रूपये तो एक झटके में जनता का ही चला गया ना ? आदमी का जान 1.5 लाख में सौदा हो गया ,कितनी सस्ती हैं आदमी का जान ! जबकि 100 जैकेट का किमत यदि 500 रूपये भी प्रति नग हो तो पचास हजार ही होती हैं ।
जहॉं नाव चलती है यदि पहले से ही सुरक्षा की व्यवस्था की जाती तो क्या 60 लोग डुबने नहीं बच सकते थें , नाव में प्रत्येक को सुरक्षित जैकेट पहनना आवश्यक होता हैं ,पर भारत में मनुष्य थोडे ही रहते हैं ,यहॉं तो प्राय: भेड़ बकरी ही नजर आने के कारण उनके किस्मत में हलाल या बली ही
लिखा है ।
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
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