गुरुवार, 25 नवंबर 2010

क्या इस देश में मर्दों की कमी हो गई है?

क्या इस देश में मर्दों की कमी हो गई है? इस सवाल करने के पीछे मेरा एक विशेष  उददे्श्य भी है । उदेद्श्य पर सीधा  न आकर मैं एक  डाक्टर मित्र के बारे में लिखना चाहता हूँ , पेशे में डाक्टर होने के बाद भी सामाजिक और राजनैतिक घटनाओं पर उनके नज़र पैनी रहती हैं ,एक  दिन वे मुझसे कहने लगे कि -एस . के  ! तुम जानते हो कि इस देश में हेपिटाइसिस बी के बाद सी डी ई भी बच्चों को लगाना शुरू  हो गया है ?  और  इस काम के लिए विदेशी दवाई कंपनीयॉं अंतर्राष्ट्रीय क्लबों का सहारा ले रहा है। आजकल लॉयन और रोटरी क्लब जैसे अनेक क्लब भी दवाई कम्पनीयों के विक्रय प्रतिनिधि  के रूप  में कार्य करते हुए  दवाई बेचने में लगी हुई हैं, यह सबको दिखाई दे रही है। कहने को तो वे इसे  सेवा का नाम दे देती है पर वास्वतिकता इसके ठीक विपरीत है। 

मेरे मित्र ने आगे कहने लगे कि राय ! `इस देश में  विदेश से जो भी दवाई आती है उसका विशेष  जॉच पडताल न करते हुए प्रोयोग में  लाया जाता है , मैंने बच्चों को हेपेटाइसिस की दवाई  लगाने के पश्चात भी पीलिया जैसे खतरनाक बिमारी से बच्चों को मरते हु, देखा है। यदि दवाई में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती तो बच्चे मरते ही क्यों ?

डाक्टर ने एक  ओर रहस्य बताया, जिसे सुन कर किसी को विश्वास ही नहीं होगा उन्होंने कहा कि अमेरिका हमारा न कभी दोस्त था और न है, आगे भी दोस्त होने की संभावना  नहीं है। जनसंख्या पर हाय तौबा मचाने वाला अमेरिका हमारे देश के आने वाली पीढी को पंगू बनाने की षड़यंत्र  पर कानूनी मुहर लगा दिया और बच्चों को जो दवाईयॉं दी जाती है उससे बच्चे दब्बू और डरपोक बन कर अन्याय के खिलाफ लड़ने  लायक ही नहीं रहेगा, एक  पीढी तो ऐसी   तैयार हो चुकी है जो कहने को तो मर्द है  परन्तु इन मर्दो में मर्दांगी  नहीं है। 

अन्याय के खिलाफ लड़ने  में सबसे आगे रहने वाले भारत के सपुत आज ढूढने पर भी दिखाई नहीं देता ,भारत में खुलेआम जो अन्याय का  खेल चल रहा है ,जिसमें कार्यपालिका ,व्यावस्थापिका ,न्यायपालिका ,की भागिदरी उल्लेखनिय है। तीनों अंग आज पंगु हो चुकी  है ,अन्याय और भष्ट्राचार  चरम सीमा पर है। देशी हो या विदेशी जो जहॉं से हो सके देश को लुटने में लगी हुई है , फिर भी देश मौन ,शान्त !! 

सभी स्थितियों को देखते हुए , डाक्टर के बातों पर अत्यन्त दू:ख के साथ  विस्वास करना पड़  रहा है ,क्या यह मानने योग्य बात हो सकती है कि इस देश में अब मर्दो की कमी हो गई है ?                                                                    

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

कुरूक्षेत्र का अधूरा कार्य करना अभी बाकी है

बडे बॉंधों का विरोध करो ,पर्यावरण बचाने की बातें या भष्ट्राचारों का  नाश सम्बन्धी कई कदम ,ये सभी आज फालतू या विकास विरोधी समझा जाता है। बडे बाधों के कारण भूकम्प और बाढ , पर्यावरण के कारण अतिबृष्टि  - अनाबृष्टि और मानव निर्मित अन्य बिमारीयों से मनुष्यों  का अकाल मृत्यु ,यदि अभी इस विषयों  पर चर्चा  नहीं होता  तो अधिकांश लोग शायद दिल्ली और उत्तराखण्ड के भयानक बाढ के सम्बन्ध में सोचना भी उचित न समझते । इस देश में आग लगने पर कुंए खोदने की बातें याद आती है।

नर्मदा बचाओ आन्दोलन को देश के गद्दार नेताओ ,शासन प्रशासन ने हल्के रूप से लिया जिसके चलते भयानक बाढ और भुकंप से लोगों को बर्वाद करते हुए आज भी प्रभावित लोग नारकिय जीवन जीने को बाध्य है। नदी नालों को बाध कर अचानक अधिक पानी भर जाने के कारण अधिकाधिक पानी छोड़ने  की मजबूरी के चलते निचले हिस्सों में देश के किसी न किसी स्थान में हर वर्ष  भयानक बाढ से लोग बर्बाद हो जाते है । हजारों एकड़ भूमि  नष्ट  होने के साथ ही साथ अमूल्य जीवन की बलि देना आम होता जा रहा है। 

देश के स्वार्थी , विवकेहीन नेताओं , प्रशासन और व्यापारीयों का गठबंधन ने देश में जो नंगा नाच शुरू  कर दिया है उसका जिता जगता उदाहारण देश के राजधानी दिल्ली में दुनियॉ के सामने प्रमाणित हो चुकी  है। खेल गॉंव और राश्ट्मण्डल खेल, फूट ब्रिज  आदी चिल्हा- चिल्हा कर देश के चरित्र को उजागार करके दूंनिया को बता दिया कि हम कितने विकसित और सभ्य है। 

टीव्ही में आज ही श्री कृष्ण  सिरियल देख रहा था, इसमें नकूल द्वारा मामा शकूनी को कूरूक्षेत्र में तीर से पैर ,हाथ ,और अन्त में मस्तक को धड़ से अगल करते हुए कहता है कि तम्हारे जैसे मामा को जीने का कोई अधिकार ही नहीं हैं । मै सोच रहा था कि- इस देश के शकूनी जैसे कितने ही गद्दार खूले आम घूम  रहे है-
इसी कडी में द्रौपदी ने खूली बालों और कंगी को देखते हुए कहती है कि युद्ध के अन्त में आगे कोई भी दु:शासन नारीयों पर अत्याचार करने का हिम्मत भी नहीं कर पाएगा , काश ऐसा होता -----
लगता है कुरूक्षेत्र का अधूरा कार्य करना अभी बाकी है  !!!!!

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

जनता किस लिए कर देती हैं ? पुछा उच्च न्यायालय ने

उच्च न्यायालय ने प्रत्यक्ष देखा भ्रष्टाचार का नंगा नाच ,न्यायालय मजबूर होकर प्रशासन को अपनी औकात बताई ,क्या उसे ऐसा करना चाहिए था ? क्या न्यायालय ने भ्रष्टाचार रोकने में असफल होने के कारण ऐसा किया ? जब देश में संविधान के अनुसार कुछ भी नहीं चल रहा है दूसरी ओर संशोधन द्वारा संविधान की आत्मा तो कब की मर चुकी है ।

मुझे याद है जब छत्तीसगढ में प्रथम उच्च न्यायालय का उद्घाटन हुआ था ,बिलासपुर शहर को तब कबाड़ खाना के अतिरिक्त कुछ कहना प्रतीत नहीं होता ,सड़कों का हाल तो देखकर रोना आता था ,नाली ,पानी की व्यवस्था ,साफ -सफाई केवल खाना पूर्ति के लिए होता था ,शहर के जागरूक नागरिकों ने तब उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर शासन - प्रशासन के खिलाफ कार्यावाही करने का निवेदन किया था ।

उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका पर अविलम्ब सुनवाई करते हुए कहा कि- जनता किस बात के लिए कर देती हैं ? यदि नागरिकों को मुलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति न हो सकें ,तो क्या सरकार को कर देना उचित है ?

मैंने न्यायालय द्वारा इस तरह की टिप्पणी की कल्पना ही नहीं कर सकता था ,अब प्रश्न यह उठता है कि जब देश में चारों और अराजकता हैं ,शासन प्रशासन जनता द्वारा दिया गया, कर के रूप में प्राप्त राजस्व को सही इस्तेमाल नहीं करके ,इस राजस्व से नेताओं और आफसर को ता-ता,धि न्ना ,करने की आदत पड़ गई हैं ,अत: क्यों न हम कर देना ही बन्द कर दें ?

कर न देना अपने आप में अपराध हैं ,लेकिन जब कर का इस्तेमाल गलत लोग करने लगे हैं तो ऐसा करना कोई अपराध नहीं है ... क्या सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर इस पर बहस का सिलसिला जारी रखना चाहिए ? जो सक्षम ब्लोगर बन्धु कुछ आर्थिक सहयोग याचिका हेतु देना चाहे तो आगे आकर इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए एक पहल करने में क्या हम सक्षम हैं ?
यदि हॉं तो कैसे ?

मैं आशा करता हूँ कि सभी जागरूक ब्लोगर बन्धु एवं पाठकगण इस सामाजिक कठोर निर्णय पर अपना मत और टिप्पणी अवश्य दें ।

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..?

जिस देश में 80 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो ,84 करोड़  लोग मात्र 20 रूपये में जीवन चलाता हो ,52 करोड़  लोग 12 रूपये में ही प्रतिदिन जीवन की गाड़ी चला रहा हो ,उस देश में आदर्श ,न्याय , नैतिकता ,आदी सुनने और देखने को मिलना अपने आप में महान आश्चर्य हैं ,दूसरी और प्रतिदिन एक लाख रूपये की होटल में जनप्रतिनिधि रात गुजारने में खर्च डालते है । देश की राष्ट्रपति  474 से भी अधिक कमरों की महलों में रहना ,सुनने में विश्वास नहीं होता .

लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो भी खर्च किए जाते हैं उसका 90 प्रतिशत लगभग बिचौलिओं के जेब में चला जाता है। गैर बराबरी समाज व्यवस्था कब तक चलेगी ... हालत इतनी बिगड़  चूकी हैं कि घर से बाहर निकलने के बाद लौटकर आने की कोई उम्मिद नहीं रहती .......... कौन कहॉ और कैसे लोगों को मौत के घाट उतार दें उसे कोई बता नहीं सकता , कुछ हजार रूपये की सुपाड़ी  देकर किसी का भी कत्ल कर देना बहुत आसान हो गया हैं , बच्चों को सुबह पढने के लिए विद्यालय भेजो ..... थोड़ी  देर में फोन आता हैं ...... रूपये दो नही तो बच्चे की लाश मिलेगी .............. जीवन भर की कमाई को चुपचाप अपहरण कर्ता को देकर बच्चे को वापस लाना होता है। कभी -कभी तो रूपये देने के बाद भी बच्चे नहीं .... लाश भी नहीं ......

आतंकवाद ,नक्सलवाद ,आदी से आए दिन सैकड़ों  लोग मारे जा रहे हैं ,जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा घेरे में ही कत्लेआम कर दिया जाता है । जो जैसे पाए इस देश को लूटने में ही अपना धर्म समझने लगे हैं , कोई रोक टोक नहीं हैं , न्याय , नियम ,कानूनों से जनता का मोह भंग हो चूका है। ये सब केवल गरीब और कमजोरों को दबाने का काम आता हैं । आज दिन प्रतिदिन हालात बिगड़ना  ,महंगाई ,कालाबाजारी ,जहर बेचने का धन्धा ,मिलावट खोरी आदी अबाध गति से चल रही हैं ।

अगर गलत परम्पराओं का नाम गिनाने जाउं तो पन्ने भी कम पड़  जाए ..... चंद नर पिशाचों के कारण देश प्रतिदिन गर्त की और अग्रसर हैं ,ऐसे पिशाच मात्र भौतिक संशाधनों पर एकाधिकार जमाने में ही कर्म समझता हैं । इन्हें देश के कानून ,न्याय ,नियमों का काई भय नहीं लगता ,चंद रूपये के लिए अब सब कुछ बिकाऊ  हो गया हैं ।

मैं कभी -कभी सोचता हूँ  कि आतंकवादी ,नक्सलवादीयों को ये धन पिशाचों को क्या नजर नहीं आता हैं ...?
लेकिन इनके कुछ करतूतों से विचार बदल गया है ... खबर तो यहॉं तक हैं कि नक्सली और आतंकवाद को ये धन पिशाच ही पाल पोशकर बढा किया है ,जरूरत के समय वे अपने ही स्वार्थ में इन्हें उपयोग भी करते है।

शहर में रह कर गठबंधन से धंधा भी चलता है ,शासन भी मौन ..... क्यूँ  ! ...........क्योंकि हिस्सा जो मिलता है । जब चारों ओर से दबाव आ रहा है तो सेना के शरण में पहुँचने  की मजबूरी से विदेशी दुश्मनों के लिए खड़े  किए गए फौज का उपयोग कर सैकडों बहादूर फौजियों को जानबुझ कर शहीद होने को महबूर करना...
हम खून की ऑशू बहाकर जी रहे है , पता नहीं ... किसके हाथ ... हमारी भी बारी लिखा हैं ...........

कहते है कलम में बहुत ताकत है ..... क्या यह सच हैं --?  यदि सच हैं तो हजारों कलमकारों के लिए देश में एक नई दिशा दिलाने में विलम्ब क्यों हो रहा है ----?  और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..?  क्रमश:..

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