सोमवार, 25 मई 2009

बियाना के हिंसा से पंजाब में आग- आज और अभी रोको

आस्टि्या के बियाना स्थित गुरूद्वारे जैसे पवित्र धार्मिक स्थान में हमला बोलकर गुरू रामानंद पर गोली मारना और कायराना हमले में निरीह लोगों को आहत करने की घटना को जितनी निन्दा की जाए कम हैं ,सभ्य कहलाने वाले लोगों के देश में ऐसी घिनौना हरकते ! सोचने पर भी मानव मस्तिष्क हाहाकार कर उठता हैं । यदि किसी के आस्था पर हमला किया जाए तो प्रतिक्रिया होना स्वभाविक ही हैं । दुनियॉं को 1984 का घटना याद होगा जब विश्व की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गान्धी पर हमला हुआ था और आक्रोश के कारण देश में निरीह सिक्ख कौम को किस तरह की दहशत भरी जीवन बिताने को मजबूर होना पडा था ,सिक्खों को तो अनेक स्थानों मे जिन्दा तक जला दिया गया था ,जिसे किसी भी तर्क द्वारा सही नहीं ठहराया जा सकता हैं । सारे देश सिक्खों के पक्ष में खडें हो गए थे क्योंकि यदि एक सिक्ख इंदिरा गान्धी पर गोली चलाइ, तो सारे सिक्ख कौम अपराधी नहीं हो जाते । देश में एक तरह की पागलपन आज भी व्याप्त हैं ।अभी बियाना में संत रामानंद पर हमला बोलकर मार डालने का जो भी अपराध किया हैं उन्हें पकड़ कर दण्ड देना चाहिए था ,नकि निरीह लोगों के ठेले ,दुकाने ,यात्री बस,रेल आदी बंद कर सभी को परेशान करना । एक दहशत भरी जीवन ,लोगों मे थौपन का प्रयास भी संत जी के मौत से कम नहीं हैं । जो खडी रेल को जला दे , लोगों के रोजी रोटी पर कुठाराघात करें ,हिंसा पर उतारू लोग कभी सहानुभूति के पात्र नहीं हो सकते ,ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जा सकता । यदि अपनी संत पर इतनी भक्ति हैं तो उन्हें एक साथ मिलकर बियाना चले जाना चहिए था । भारत के लोगों पर बियाना मे मारे गए सन्त के लिए आक्रोश में अत्याचार करना ,दहशत फैलाना ,कहॉं तक लोग सहन कर सकते हैं ? आक्रोश दिखाना है तो बियाना में दिखाना चाहिए ,यहॉं के लोगों ने कौन सा गुनाह किया हैं ? ऐसे सिरेफिरे लोग देश के हितचिन्तक नहीं हो सकते ,ऐसे नर पशुओं के लिए देश आगे जाते जाते पीछे की और मुढजाता हैं । पंजाब के संत ,पंजाब के सिक्ख, पंजाब के नेताओं के साथ सभी समाज सेवी और देश के हित चिन्तकों को तुरंन्त सड़क में उतरना चाहिए ,ताकि बहुत बिगड़ने से पहले स्थिति पर नियंत्रण किया जा सकें । अन्यथा पंच क कार के राज्य में कडा ,केश , कृपाण ,कच्छा ,कंगी का कोई मायने नहीं रह जाएगा । पंच क कार का इज्जत बचा लो नहीं तो याद रखों तुम्हें भी कोई इज्जत करने वाला नहीं रहेगा । बियाना के हिंसा से पंजाब में आग- आज और अभी रोको ।

शुक्रवार, 22 मई 2009

जय हो पान और पानवाले

पान डब्बे ! नाम से ही काम समझने में कोई कठिनाई नहीं होती ,जैसा नाम वैसा ही काम । मै इसे पी।आर.ओ अर्थात जन सम्पर्क आफिसर के नाम से ज्यादा पुकारता हूँ ,आपको किसी भी तरह की जानकारी चाहिए तो पान डब्बे में पहुँचिये बस आपका समस्या का समाधान हो गया । यदि किसी कारण से समाधान नहीं हो सका तो वही से कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा ,पान वाले आपको खाली हाथ नहीं भेजेगा ,यह नुक्शा अजमाया हुआ हैं ,शत प्रतिशत गारंटी के साथ । फला आदमी को जानते हैं ?जवाब मिलेगा हॉं साब ,कभी कभी मेरे यहॉं पान खाने चले आते हैं, सामने की गली से तीसरे मोढ में उनके घर हैं । भाई साब आज कल सुना हैं पान डब्बे में भांग की गोली मिल जाती है ,भंग नहीं साब -मदुर मुनक्का एक दम खाटी ,खाने से मजा आ जाता हैं । अच्छा भाई ये बताओं यहॉं कहीं ओ मिलना हैं क्या ?सिगरेट के साथ मिला कर पीना हैं । थोडा इधर उधर झाकने के पश्चात साब से यदि जंच गई तो साब मैं तो नहीं रखता पर मंगा दंगा -जरा रूक जाइए ,बस आपका माल हाजीर । किसी के लिए किसी को सुपाडी देना हैं तो पुछिए भाई एक दादा बताओ जो मेरा ये काम कर सकें ,कुछ न कुछ जवाब जरूर मिलेगा रास्ता बता देगा ,जरूरी हो तो किसी को साथ भी भेज देगा , आज कल सुना इस काम के लिए कुछ परसेंन्टेज तय हैं इसलिए आपका काम कुछ ज्यादा रूची से किया जाएगा । अरे भाई फलां कवि जी यही रहते हैं ? आपको इसका भी उत्तर मिल मिलेगा ,यदि आपको समय बिताना हैं तो खड़े रहिए और राजनैतिक , सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक , छिटाकसी , रंगदारी जो भी इच्छा हो यहॉं सबके लिए बराबर का दर्जा प्राप्त हैं कोई न कोई आपके रूची का मिल ही जाएगा ,हॉं एक पान या गुटका या सिगरेट और कुछ भी नहीं तो एक चाकलेट ही सही खरीदना अच्छा रहेगा । आप डब्बे में घन्टों खड़े रहिए ,वह कभी नहीं बोलेगा कि भाई साहब पान बना दूँ ?आपके मांगने पर ही सब कुछ मिलेगा ,यहॉं बिन मांगे माती मिले वाली कहावत सच नहीं हो सकता हैं । खाय के पान बनारस वाला ,खुल जाय बंद अक्ल का ताला ,यह भी खुब मजे की बात हैं पान पॉंच रूपये से लेकर 50 रूपये तक मिलना आमबात हो चुका हैं ,बीबी को खुश करना हैं तो पान वाले को बता दो कि घर के लिए हैं फिर देखिए कितनी जतन से पान सज जाती हैं और सही मायने में घरवाली के साथ साथ आप भी खुश हो जायेंगे । अब यह तो राम कथा अनन्त वाली बात है पान भी कई तरह की और गुण भी अनेक प्रकार का ,एक बात आज लिखना गुनाह न होगा ,पढने पर कहानी जैसा लगेगा पर हैं 100 प्रतिशत सच । एक राजा के घर महाशय पान पहुंचाने जाते थे ,रानी साहिबा पान के शौकिन थी , एक समय राजा को भारत सरकार के मौखिक आदेश से स्थानीय शासन ने राजा को गोली का शिकार बनाया ,राजा मारा गया ,कुछ समय पश्चात रानी साहिबा पान वाले के घर रहने लगी ,पान का माया अपरम्पार हैं और पान वाले ! मुझे और आपको इस रहस्य को जानने के लिए शायद दूसरी जन्म लेना पडें । जय हो पान और पान वाले ।

गुरुवार, 21 मई 2009

धर्म आत्म ज्ञान हैं- मजहब नहीं

अध्यात्मिक ज्ञान के लिए भारत वर्ष का नाम अग्रणी माना जाता हैं,एक ओर इस ज्ञान द्वारा हमें प्रसिद्धी मिलती हैं दूसरी ओर हम पाखण्डपन में भी आगे हैं । पाखण्ड के नाम से हमारी अध्यात्मिक ज्ञान का पूर्ण दोहन नहीं हो पाता ,जिसके कारण हम देश और दूनियॉं में अपमानित होते रहते है ,भूत-प्रेतों का देश डाईन-चुडैल ,तंत्र-मंत्र,जादू-टोना-टोटका ,और अगिनत बीना हाथ पैर के परम्पराओं के नाम से हम आज भी जाने जाते हैं , जिन्हें देखने से तो ऐसा लगता हैं कि वास्तव में इस तरह की परम्परओं को सति प्रथा जैसे कुचल दिया जाना चाहिए ,परन्तु कुछ परम्परा तो सभ्य कहलाने वालों से दो कदम आगे की हैं । बस्तर के आदिवासीयों में विशेश करके गोंड जनजातिओं में घोटूल प्रथा का प्रचलन हैं, भले ही आज उसका स्वरूप कुछ बदला बदला सा दिखेगा ,परन्तु विशुद्ध रूप से यह प्रथा नर नारी भेद भाव से कोषों दूर मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत , बचपन के खेल खेल में कब एक दूसरे के प्रति आकर्षण भाव से जीवन साथी के रूप में परिविर्रत हो जाता हैं और पता भी नहीं लगता , पवित्र भाव से जीवन चलाने की नई जिम्मेदारी खुशी खुशी से उठा कर सफल सामाजिक और पारिवारिक बन्धन में बन्ध जाने की ऐसी प्रथा दुनियॉं में विरले ही कही देखने सुनने को मिलेगा । आज भी अनेक प्रथा- परम्पराओं से हम अपने ही देश में अनभिज्ञ हैं । कुछ गलत परम्पराएं और प्रथा देश में विद्यमान हैं उसे तो तत्काल अन्त कर देना चाहिए ,गलत प्रथा को इसलिए बंद नहीं किया जाता क्योंकि यदि सम्बंधित
समाज के लोग नराज न हो जाए और व्होट के समय सुधार वादी दल को व्होट न दे , इस भय से सुधार का काम देश मे नही के बराबर हो रहा हैं । हर प्रथा अच्छा और हर प्रथा खराब दोनों नहीं हैं । जनजातियों में जडीबुटियों द्वारा ईलाज करने का जो परम्परा जारी हैं वर्तमान में इसमें भी कुछ कमी आई हैं फिर भी जडीबुटियों की खोज होना आवश्यक हैं ,इन जडिबुटियों में रोग नाशक का कमाल की गुण विद्यमान हैं।अब प्रश्न उठता हैं कि क्या वास्तव में हम अजीब देश में निवास करते हैं ? मुझे तो लगता हैं कि यही अजुबा ही हमारी धरोहर हैं ।अध्यात्मिक ज्ञान मजहबी ज्ञान नहीं,साम्प्रदायिकता और धर्म में कोई मेल नहीं हो सकता हैं ,एक गीत में यह गाया गया कि `मजहब नहीं सिखाता हमें, आपस मे बैर करना´ पर यह गीत किस भाव से गाया गया इस पर चर्चा करने से अधिक महत्वपुर्ण बात यह होगी कि हम धर्म के बार मे ज्ञान ले । धर्म एक आग के समान हैं दूनियॉ के कहीं भी आग का धर्म जलाना ही हो सकता हैं ,भले ही आग का नाम अलग -अलग हो ,आग का धर्म एक ही होता हैं वह हैं जलाना और धर्म के मार्ग में आगे बढने का रास्ता भी एक ही हैं यदि साधु संतों ने रास्ता अलग अलग कहते हैं तो यह सत्य प्रतीत नहीं होता । धर्म का मार्ग तो एक ही हैं कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि धर्म के मार्ग में द्वेतवाद और अद्वेतवाद दोनों मागों से धर्म के मार्ग तय किया जा सकता हैं ।प्रश्न यह है कि आखिर धर्म क्या हैं ? हजारों वर्षों से आत्मा और परमात्मा पर अनेक विचार विमर्श किये गए हैं और यह मान लिया गया हैं कि हर जीव में आत्मा का वास होता है,ओर उस आत्मा को यदि प्राणी जान जाय तो परमात्मा को जानने मे कोई कठिनाई नहीं होती है । मानव में यह आत्मा कहा निवास करता है यह एक कठीन सवाल भले ही हो, पर शरीर में कहीं न कहीं आत्मा का वास हैं । एक मनुष्य जब जीवित रहता हैं तो वह कहता हैं कि यह शरीर मेरा हैं ,यह हाथ भी मेरी हैं यह धन सम्पत्ति पर भी मेरा ही अधिकार है । अब यदि उस मनुष्य का मृत्यु हो जाए तो शरीर पर दावा करने वाले कोई नहीं होता ,वह शव बोलता नहीं कि यह हाथ मेरा हैं, यह सम्पत्ति मेरा हैं, यह मेरी पत्नी है, यह बच्चे मेरे हैं आदी ,अब कौन शरीर के भितर अधिकार जता रहा था ,और मृत्यु के पश्चात अधिकार जताने वाला कहॉं चला गया ? यही विचार ही आध्यात्मिकता का मूल हैं इसे जानने के लिए मात्र एक ही रास्ता हैं कि आत्मारूपी उस अधिकारी को जाना जाय । पूजा-पाठ ,मन्दिर -मस्जिद ,आदी में चिन्तन तो किया जा सकता हैं पर यदि वास्वत में आत्मा परमात्मा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करना हैं तो शरीर के अधिकारी को शरीर के भितर ही खोजना होगा, सब कुछ जानने के पश्चात भी हम बहारी दूनियॉं में ईश्वर,भगवान अल्लाह ,यशु,आदी को ढुढते फिरते हैं यदि मात्र शरीर रहस्य को ही लोग जानने का प्रयत्न करें तो देश में मजहबी जूनुन एवं साम्प्रदायिकता की भावना का अन्त हो जाय ।जब शरीर में ही आत्मा का वास हैं और आत्मा को जानने का शरीर ही एक मात्र रास्ता हैं एवं आत्मारूपी परमात्मा ही इस दुनियॉं का संचालन कर्ता हैं जिसे कुछ भी नाम दे दें पर हम एक ही स्थान में पहूंचेंगें वह हैं आत्मज्ञान ।आत्मज्ञानी हमेशा स्वर्ग में ही विचरण करता हैं, उसे बाहरी दूनियॉ के स्वर्ग से कोई मतलब नहीं होता, वह तो मुक्त होकर इस दुनियॉं में विचरण करता हैं ।अत: भ्रम में जीनेवाले नरक और चेतनशील प्राणी हमेशा स्वर्ग में ही वास करता हैं ।स्वर्ग और नरक सब कुछ यही हैं हम बाहरी दुनिया के भ्रम में इस अमूल्य जीवन को व्यार्थ ही गवां देते हैं और झुठी आडम्बर और छलवा में फंस कर आत्मज्ञान के लिए यहॉं -वहॉं मारे मारे फिरते हैं , अन्त में ``अब पछतावे क्या होत, जब चिडियॉं चुग गई खेत´´ वाली कहावत चरितार्थ होता हैं ।

मंगलवार, 19 मई 2009

यह देश किसी का जागीर नहीं

एक मित्र ने फोन पर बार बार मुझसे कहने लगे कि वर्तमान चुनाव और आगे परिणाम पर विचार लिखूं ,मैंने मित्र से निवेदन किया कि वर्तमान राजनीति पर मैंने पूर्व में अनेक बार लिख चुका हैं और उन विचारों के अलावा आज लिखने के लिए मेरे पास कुछ भी नई नहीं हैं ,भाव वही रहेगा मात्र शब्द ही बदल सकता हैं ,मुझे शब्दों का खेल खेलना होता तो कवि बन जाता, जो मुझे आता ही नहीं । फिर भी यह बात सच हैं कि समयानुकूल शब्द को हेर -फेर करते हुए एक ही बात को या भाव को प्रकट किया जाए तो उसका प्रभाव मानव मन में पड़ता ही हैं और प्रभाव दो प्रकार से पड़ सकता है। यह साकारात्मक और नकारात्मक,दोनों हो सकता हैं ।किसी से प्यार करने की बात को गहराई तक पहूंचाने के लिए अनेक तरिकों का इस्तेमाल किया जाता है। और सभी तरिकों का एक ही अर्थ होता कि मैं तुमसे या आपसे प्यार करता हूँ । मैंने भी यही सब सोचा कि राजनीति को समझने और समझाने के लिए शब्दों का ही नवीनिकरण करते हुए कुछ तो विचार किया जाए ।क्या आम के पेड़ में अमरूद फल सकता हैं? मैंने फलते देखा हैं और मुझे आज तक आश्चर्य होता हैं जब -जब उस घटना के बारे में याद करता हूँ तो मुझे विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता हैं, पर जादूगरी की दुनियॉं में सब कुछ सम्भव हैं ।मैंने भी एक जादू में आम के पेड़ मेंअमरूद फलते देखा हैं ,जादू तो जादू होता हैं जीवन के वास्तविक धरातल पर जादू सा चमत्कार नहीं होता यदि होता भी हैं, तो अपवाद ही कहना अधिक उपयूक्त होगा । भारत जैसे देश में अभी चुनाव हुआ ,नतिजा निकला ,कहीं खुशी कहीं गम की हालत हम सब कोई देख भी रहे हैं एक पार्टी को अधिक व्होट मिल गया,देश में उसका मर्जी चलेगा ,करोड़पति सांसदों को चॉंदी हो गया ,उसके धन्धे में चार चॉंद लग जायगा ,उन्हें ठेका मिलेगा,नए धन्धे खोलने का लाईशेंस मिलने में को दिक्कत नहीं होगा ,किसी भी विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए अब उन्हें दौडधुप करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगा ,वर्तमान समय में प्रदुषण विभाग ,वन विभाग की आनापत्ति उद्योग लगाने के लिए बहुत ही अहम बात हैं, अब करोड़पति सांसदों के लिए ये सब करना चुटकि की बात हो जाएगी । अब जिन्हें इस तरह की मौका नहीं मिलेगा उन्हें तो गम पीना ही पड़ेगा ,जीतने की खुशी इसलिए कि उन्हें देश की सम्पूर्ण संशाधनों पर हक जताने और उपयोग करने की खुली छुट मिल जायेगी ,हारने वालों को पॉंच साल तक इस छुट के लिए फिर इन्तेजार करना होगा जो बहुत ही कष्ट साध्य काम है। जरा अनुभव करने की बात हैं जिसने यह तपस्या किया कि इस बार मेरा प्रधान मत्री बनना पक्का, ऐन वक्त पर धोखा हो जाए तो उसका हालत क्या हो रहा होगा ? सभी को इस देश के संशाधनों पर नजर हैं ,देश सेवा,समाज सेवा,देशप्रेम यह सब तो आज नारे बनकर रह गया हैं ,विकास के नाम पर लोगों को छलने का जो सिलसिला जारी हैं आगे भी यही जारी रहना हैं देश के गरीब जनता,किसान, बेरोजगार, गरीबों के माता बहने करोड़पतियो ,अरबपतियों के लिए एक साधन मात्र हैं इन साधनों का वे जैसे चाहे इस्तेमाल करे,इसे पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक सा इस्तेमाल करेगा. हॉं नाम अलग- अलग हो सकता है। वर्तमान बनने वाली सरकार से मेरे जैसे लोगों को बहुत ज्यादा उम्मिद नहीं करना चाहिए और हारे हुए से भी आगे जितने पर उससे भी अधिक उम्मिद करना व्यार्थ है। हमने तो दोनों पक्षों को लम्बे समय से देखते हुए आ रहे हैं ,गिरगिट की तरह रंग बदलना ही इन्हें आती हैं ,गिरगिटों से हमें क्या को उम्मिद करनी चाहिए ? अब प्रश्न उठता हैं कि इस देश को अब बचायेगा कौन ?मुझे देश के युवा शक्ति पर आज भी विश्वास हैं ,देश के गद्दारों के कारण युवा शक्ति आज खण्डित जरूर दिखरहा हैं ,युवा शक्ति को नशिली पदार्थो का गुलाम बना कर देश के मुठि्ठ भर स्वार्थी तत्वों ने आज भारत पर नंगे नाचने की खुशी में मस्त हैं ,लेकिन भारत के युवा जागेगी ,जरूर जागेगी ,याद रखो यह देश किसी का जागीर नहीं ----

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