जिस देश में 80 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो ,84 करोड़ लोग मात्र 20 रूपये में जीवन चलाता हो ,52 करोड़ लोग 12 रूपये में ही प्रतिदिन जीवन की गाड़ी चला रहा हो ,उस देश में आदर्श ,न्याय , नैतिकता ,आदी सुनने और देखने को मिलना अपने आप में महान आश्चर्य हैं ,दूसरी और प्रतिदिन एक लाख रूपये की होटल में जनप्रतिनिधि रात गुजारने में खर्च डालते है । देश की राष्ट्रपति 474 से भी अधिक कमरों की महलों में रहना ,सुनने में विश्वास नहीं होता .
लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो भी खर्च किए जाते हैं उसका 90 प्रतिशत लगभग बिचौलिओं के जेब में चला जाता है। गैर बराबरी समाज व्यवस्था कब तक चलेगी ... हालत इतनी बिगड़ चूकी हैं कि घर से बाहर निकलने के बाद लौटकर आने की कोई उम्मिद नहीं रहती .......... कौन कहॉ और कैसे लोगों को मौत के घाट उतार दें उसे कोई बता नहीं सकता , कुछ हजार रूपये की सुपाड़ी देकर किसी का भी कत्ल कर देना बहुत आसान हो गया हैं , बच्चों को सुबह पढने के लिए विद्यालय भेजो ..... थोड़ी देर में फोन आता हैं ...... रूपये दो नही तो बच्चे की लाश मिलेगी .............. जीवन भर की कमाई को चुपचाप अपहरण कर्ता को देकर बच्चे को वापस लाना होता है। कभी -कभी तो रूपये देने के बाद भी बच्चे नहीं .... लाश भी नहीं ......
आतंकवाद ,नक्सलवाद ,आदी से आए दिन सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं ,जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा घेरे में ही कत्लेआम कर दिया जाता है । जो जैसे पाए इस देश को लूटने में ही अपना धर्म समझने लगे हैं , कोई रोक टोक नहीं हैं , न्याय , नियम ,कानूनों से जनता का मोह भंग हो चूका है। ये सब केवल गरीब और कमजोरों को दबाने का काम आता हैं । आज दिन प्रतिदिन हालात बिगड़ना ,महंगाई ,कालाबाजारी ,जहर बेचने का धन्धा ,मिलावट खोरी आदी अबाध गति से चल रही हैं ।
अगर गलत परम्पराओं का नाम गिनाने जाउं तो पन्ने भी कम पड़ जाए ..... चंद नर पिशाचों के कारण देश प्रतिदिन गर्त की और अग्रसर हैं ,ऐसे पिशाच मात्र भौतिक संशाधनों पर एकाधिकार जमाने में ही कर्म समझता हैं । इन्हें देश के कानून ,न्याय ,नियमों का काई भय नहीं लगता ,चंद रूपये के लिए अब सब कुछ बिकाऊ हो गया हैं ।
मैं कभी -कभी सोचता हूँ कि आतंकवादी ,नक्सलवादीयों को ये धन पिशाचों को क्या नजर नहीं आता हैं ...?
लेकिन इनके कुछ करतूतों से विचार बदल गया है ... खबर तो यहॉं तक हैं कि नक्सली और आतंकवाद को ये धन पिशाच ही पाल पोशकर बढा किया है ,जरूरत के समय वे अपने ही स्वार्थ में इन्हें उपयोग भी करते है।
शहर में रह कर गठबंधन से धंधा भी चलता है ,शासन भी मौन ..... क्यूँ ! ...........क्योंकि हिस्सा जो मिलता है । जब चारों ओर से दबाव आ रहा है तो सेना के शरण में पहुँचने की मजबूरी से विदेशी दुश्मनों के लिए खड़े किए गए फौज का उपयोग कर सैकडों बहादूर फौजियों को जानबुझ कर शहीद होने को महबूर करना...
हम खून की ऑशू बहाकर जी रहे है , पता नहीं ... किसके हाथ ... हमारी भी बारी लिखा हैं ...........
कहते है कलम में बहुत ताकत है ..... क्या यह सच हैं --? यदि सच हैं तो हजारों कलमकारों के लिए देश में एक नई दिशा दिलाने में विलम्ब क्यों हो रहा है ----? और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..? क्रमश:..
गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
इलाहाबाद ब्लोगार सम्मेलन पर एक सशक्त टिप्पनी - हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।
नामवार सिंह जी के मुख्य आतिथ्य में ,राष्ट्रिय ब्लोगर सम्मेलन ,श्री प्रमोद प्रताप सिंह जी जो कि सम्मेलन स्थल इलाहाबाद के ही रहनेवाले होने के पश्चात भी उन्हें न बुलाने की बाते ,सुरेश चिपलुनकर जी के आरोपों का क्रमवार जवाब ..विशेष करके गुजरात के संजय बेगाणी जी और केरल के शास्त्री जी को सम्मेलन में न बुलाने और देश के अन्य ब्लोगारों की उपेक्षा से उपजी एक आक्रोश पर ज्वलन्त बहसों का सिलसिला .........
मैं कल और आज अनेक ब्लागों पर भ्रमण किया ,,तथ्यों की तह में जाने का भी प्रयत्न करने के पश्चात एक बात जो मुझे समझमें आया कि ब्लोगरों को भी कुछ लोगों के द्वारा गुटबाजी में बदलने की षडयंत्र रची जा रही हैं ,एक वर्ग जो इसे हिन्दुत्व वादी गुट में परिवर्तण करना चाहते थे ,जोकि चुक जाने के कारण अन्य एक वर्ग अपनी करनी से सफल हो गए , कौन अच्छा है या कौन बूरा है ,इस पर अभी मैं नहीं जाना चाहता हूँ ,परन्तु नामवार सिंह जी अपनी मंशा में कामयाब हो गए यह तो साफ दिख रहा है ... जिस व्यक्ति को जो नहीं जानते थे, इस बहस में उन्हें लोग जानने लग गए है ,कामयाबी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
यदि तमाम बातों को छोड़कर हम सुरेश जी के आरोप पर जाए कि हिन्दुवादियों का उपेक्षा किया गया है ,इसका अर्थ यह हुआ कि नामवार जी और उनके भक्त हिन्दुवादी नहीं है ,इसका अर्थ और स्पष्ट किया जाए कि वे अहिन्दुवादी विचार धारा के है । यदि अहिन्दुवादी विचारधारा के लोग हिन्दुवादी विचार धारा के लोगों के साथ बैठे तो निश्चित रूप से खिंचातानी शुरू हो जाने के डर से यदि उन्हें न बुलाया गया हो तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।
एक हिन्दु होकर दूसरों की बुराई पर बोलने का कोई हक नहीं है, उसी तरह एक बामपंथी होकर एक दक्षीण पंथी पर कटाक्ष करने का भी उन्हे अधिकार नहीं है ,दोनों मतवादों में जो बूराई है उस पर कबीर दास जी जैसे भक्त ही अपनी मजबूत पक्ष द्वारा समाधान दे सकते है अन्य कदापी नहीं ।
एक बात जो मुझे भी अच्छी नहीं लगी वह यह कि राष्ट्रिय सम्मेलन हो रहा हो और देश के अन्य ब्लोगरों को खबर तक नहीं...... इस पर विचार करना आवश्यक हैं ,ताकि इस प्रकार की चूक फिर न हो जाए ।
गुटबाजी से परे हटकर स्वतंत्र लेखन और चिन्तन द्वारा देश सेवा में अपने आप को समर्पित कर देना हमारा लक्ष्य होना चहिए ,लिखने के लिए लिखना ही हमारा उद्देश्य न हो ,आज देश पतन की और लगातार अग्रसर है अत: लेखनी द्वारा ,विचार द्वारा , अन्य माध्यम द्वारा यदि छोटी से छोटी सेवा भी हम कर सकें तो इससे बढकर इस नश्वर जीवन में और क्या उपलब्धी हो सकती हैं ?
हम अपनी जिम्मेदारी को समझे ,कुछ प्रतिक्रियावादी लोग हमेशा लाभ लेने के लिए सदा सक्रिय रहते हैं ,आगे भी इस तरह के लोग रहेंगे ,हमें ही सजग रहना होगा यदि हम ही सजग न रह सकें, तो इस देश को हम कैसे दिशा दिखायेगें ?
हमें किसी की प्रमाण पत्र की आवश्यकता क्यों हैं ? हम लिखेंगे और लिखते रहेंगे ,मैंने हिन्दी में जब लिखना शुरू किया तो बहुत अशुद्धियॉं होती थी , ,वर्तनी ,व्यकारण आदी दोष आज भी हैं ,मैंने लिखना बंद नहीं किया, जिन लोगो ने भारत में रहकर भी अंग्रेजीयत पाल रखें है उनसे तो हम लाख गुने अच्छे हैं । एक बहुत अच्छे अहंकार सम्पन्न साहित्यकार से एक कम साहित्यिक जानकार देश सेवक कई गुणा अधिक लाभदायक हैं ।
अन्तिम बातें जो मैं बताना उचित समझता हूँ यह कि हमें हिन्दुवाद ,मुस्लिमवाद ,वामपंथी ,दक्षीण पंथी आदी से परे हटकर आज मानववाद पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और जो देश रसातल की और जा रही है उसे प्रगति की चरम शिखर पर उठाने का सभी को संकल्प लेकर आगे बढना चाहिए ,हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।
मैं कल और आज अनेक ब्लागों पर भ्रमण किया ,,तथ्यों की तह में जाने का भी प्रयत्न करने के पश्चात एक बात जो मुझे समझमें आया कि ब्लोगरों को भी कुछ लोगों के द्वारा गुटबाजी में बदलने की षडयंत्र रची जा रही हैं ,एक वर्ग जो इसे हिन्दुत्व वादी गुट में परिवर्तण करना चाहते थे ,जोकि चुक जाने के कारण अन्य एक वर्ग अपनी करनी से सफल हो गए , कौन अच्छा है या कौन बूरा है ,इस पर अभी मैं नहीं जाना चाहता हूँ ,परन्तु नामवार सिंह जी अपनी मंशा में कामयाब हो गए यह तो साफ दिख रहा है ... जिस व्यक्ति को जो नहीं जानते थे, इस बहस में उन्हें लोग जानने लग गए है ,कामयाबी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
यदि तमाम बातों को छोड़कर हम सुरेश जी के आरोप पर जाए कि हिन्दुवादियों का उपेक्षा किया गया है ,इसका अर्थ यह हुआ कि नामवार जी और उनके भक्त हिन्दुवादी नहीं है ,इसका अर्थ और स्पष्ट किया जाए कि वे अहिन्दुवादी विचार धारा के है । यदि अहिन्दुवादी विचारधारा के लोग हिन्दुवादी विचार धारा के लोगों के साथ बैठे तो निश्चित रूप से खिंचातानी शुरू हो जाने के डर से यदि उन्हें न बुलाया गया हो तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।
एक हिन्दु होकर दूसरों की बुराई पर बोलने का कोई हक नहीं है, उसी तरह एक बामपंथी होकर एक दक्षीण पंथी पर कटाक्ष करने का भी उन्हे अधिकार नहीं है ,दोनों मतवादों में जो बूराई है उस पर कबीर दास जी जैसे भक्त ही अपनी मजबूत पक्ष द्वारा समाधान दे सकते है अन्य कदापी नहीं ।
एक बात जो मुझे भी अच्छी नहीं लगी वह यह कि राष्ट्रिय सम्मेलन हो रहा हो और देश के अन्य ब्लोगरों को खबर तक नहीं...... इस पर विचार करना आवश्यक हैं ,ताकि इस प्रकार की चूक फिर न हो जाए ।
गुटबाजी से परे हटकर स्वतंत्र लेखन और चिन्तन द्वारा देश सेवा में अपने आप को समर्पित कर देना हमारा लक्ष्य होना चहिए ,लिखने के लिए लिखना ही हमारा उद्देश्य न हो ,आज देश पतन की और लगातार अग्रसर है अत: लेखनी द्वारा ,विचार द्वारा , अन्य माध्यम द्वारा यदि छोटी से छोटी सेवा भी हम कर सकें तो इससे बढकर इस नश्वर जीवन में और क्या उपलब्धी हो सकती हैं ?
हम अपनी जिम्मेदारी को समझे ,कुछ प्रतिक्रियावादी लोग हमेशा लाभ लेने के लिए सदा सक्रिय रहते हैं ,आगे भी इस तरह के लोग रहेंगे ,हमें ही सजग रहना होगा यदि हम ही सजग न रह सकें, तो इस देश को हम कैसे दिशा दिखायेगें ?
हमें किसी की प्रमाण पत्र की आवश्यकता क्यों हैं ? हम लिखेंगे और लिखते रहेंगे ,मैंने हिन्दी में जब लिखना शुरू किया तो बहुत अशुद्धियॉं होती थी , ,वर्तनी ,व्यकारण आदी दोष आज भी हैं ,मैंने लिखना बंद नहीं किया, जिन लोगो ने भारत में रहकर भी अंग्रेजीयत पाल रखें है उनसे तो हम लाख गुने अच्छे हैं । एक बहुत अच्छे अहंकार सम्पन्न साहित्यकार से एक कम साहित्यिक जानकार देश सेवक कई गुणा अधिक लाभदायक हैं ।
अन्तिम बातें जो मैं बताना उचित समझता हूँ यह कि हमें हिन्दुवाद ,मुस्लिमवाद ,वामपंथी ,दक्षीण पंथी आदी से परे हटकर आज मानववाद पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और जो देश रसातल की और जा रही है उसे प्रगति की चरम शिखर पर उठाने का सभी को संकल्प लेकर आगे बढना चाहिए ,हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।
सोमवार, 26 अक्टूबर 2009
क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....
वर्तमान परिस्थिति जन्य कारण से आज हम क्रान्ति शब्द से ही डरने लगे है , एक समय था जब क्रान्ति से लोग बहुत प्यार करते थे ,क्रान्तिकारि कहने मात्र से लोगों का मस्तक झुक जाया करता था ,आजादी के समय तो जान जोखिम में डालकर भी क्रांतिकारिओं को मदद के लिए जनता बढ-चढ कर आगे आते रहे है। लोग समझते थे कि क्रान्तिकाररियों का साथ देना एक पवीत्र कार्य हैं ।
बंकिमचन्द्र द्वारा लिखे गये क्रान्तिकारी साहित्य आनन्द मठ पढने से क्रान्तिकारिओं का चरित्र भी समाज में एक अलग ही प्रतिष्ठा -मान -सम्मान .स्थापित करने में सहयोग साबित हुए ,उच्च नैतिक और चारित्रिक बल से प्रतिष्ठित युवा वर्गों द्वारा परिवर्तणकारी विशेष करके भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने की संकल्प लेकर सर्वस्व न्योछावर कर देने का साहस ही क्रांतिकारिओं का पहचान हुआ करता था ।
एक भी उदाहरण इतिहास में नहीं मिल सकता ,जिससे यह साबित हो सके कि क्रान्तिकारियों ने साधारण जनता पर , नारियों पर , असहायों पर ,जोर जुल्म किया हो , लेकिन आजादी की लड़ाई में एक सक्षम हिस्सेदारी , कर्तब्य आदी का निर्वहन करने के पश्चात भी कुछ स्वार्थी लोगों ने क्रान्तिकारियों को बदनाम करने का षड़यंत्र रचने में कामयाब हो गए ,अहिंसा शब्द को ढाल जैसे प्रयोग करते हुए करोड़ों निर्दोष देशवासीयों का कत्ल हो जाना ,लाखों लडकियों ,महिलाओं पर अत्याचार ,जिस देश के लिए नौजवानों ने खून बहाया उस देश को दो टुकड़ों में बॉट देना आदी कोई सामान्य बात नहीं है , यदि प्रत्यक्ष हिंसक लड़ाई भी होती ,तो भी इतनी बड़ी संख्या में हिंसक घटनाओं का परिणाम करोड़ों का जान माल और अत्याचार नहीं हुआ होता ,आज तक इतिहास को तोड़ -मरोड़ कर सामने रखने का षड़यंत्र जारी है। ।
मैंने कई बार क्रान्ति शब्द का उपयोगा, कई स्थानों पर, गर्व के साथ किया हैं ,क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....आज इसे जिस रूप में ग्रहण किया जाता है या समझा जाता है उससे भिन्न रूप में हमें इस शब्द का भावार्थ समझना आवश्यक हैं । मै एक उदाहरण दे कर इसे बताने की कोशिस करना चाहता हूँ –
नदी यदि धारा बदलकर बहने लगी- तो धारा बदलना ओर फिर बहना-- क्रान्तिकारि कहा जा सकता हैं ,समाज आज जिस दिशा में जा रही है यदि उस दिशा से हटाकर अन्य दिशा की ओर मोढ दिया जाए तो समाज में क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ कहना उचित होगा ।
हर समय परिवर्तण की आवश्यकता होती है ,दुनियॉं में स्थिर कुछ भी नहीं है , सब कुछ चलायमान है ,आज जो कुछ सही लगता है ,कल वही गलत साबित हो सकता है ,विचार में भी परिवर्तण होता रहता है ,आज से वर्षों पूर्व घुसखोरी को कोई अच्छी नजर से नहीं देखते थे वैसे तो आज भी नहीं देखते है ,पूर्व में घुसखोरी भी होती थी ,तो छीपते और डरते हुए ,आज तो यह खुले आम होने लगी है, अत: घुस खोरी में भी क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ हैं ऐसा कहा जा सकता है ।
परिवर्तण का ही नाम क्रान्ति है, परिवर्तण कितनी गति से हो रही हैं , उस गति को ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि कुछ नये शब्द का उपयोग किया जाए , पर भावार्थ वही है जो परिवर्तण के लिए समझा जाता हैं ।
मार काट ,खून खराबा , ही क्रान्ति है इस तरह की विचार कतई उचित नहीं है ,जब समाज के किसी अंग में क्रान्तिकारि परिवर्तण होने लगती है ,तो तीन तरह के लोग उसमें भागिदारी निबहाते है प्रथमत: जो परिवर्तण में प्रत्यक्ष अंश ग्रहण करते है ,द्वितीय वे लोग है जो परिवर्तण का विरोध करते है ,विरोध करने का भी विभिन्न कारण हो सकता है ,कुछ लोग परिवर्तण के कारण प्रभावित होते है ,जैसे यदि अर्थनीति में परिवर्तण हो रहा हो तो अर्थप्रधान लोग उसका विरोध करेंगे ,इस तरह अन्य अनेक कारण हो सकता हैं ।
तिसरी तरह के लोग पक्ष और विपक्ष दोनों से भिन्न होते है उन्हें तो किसी से कोई दिलचस्पी ही नहीं रहता हैं ,ऐसे लोग समाज के लिए अधिक खतरनाक हो सकते हैं , क्योंकि ऐसे लोग जिधर दम, उधर हम की बातों पर अधिक विश्वास करते हुए सही गलत दोनों को सामान्य मान बैठने के कारण समाज में सन्देहास्पद स्थिति तैयार कर देता है। और सन्देह उत्पन्न होने के करण ऐसे लोग मारे भी जाते है।
परिवर्तण के लिए खून बहाना आवश्यक नहीं है ,विचार क्रान्ति से भी अनेक प्राकार के परिवर्तण सही दिशा में अग्रसर हो सकता हैं ,विचार क्रान्ति के आगे कोई भी शक्ति टिक नही सकती ,विचार शब्दों द्वारा उत्पन्न होता है। और शब्द का प्रचार लेखन से आगे बढने के कारण कलम में जो शक्ति है वह तोप तलवार में भी नहीं होने की बाते पूर्व के अनेक साहित्यकारों ने भी स्वीकार किया है ।
भारतवर्ष में क्रान्ति की आवश्यकता है या नहीं इस पर बहस हो सकती है ,विचार किया जा सकता है ,यदि विचार करने के पश्चात परिवर्तण आवश्यक हो जाए तो उस परिवर्तण की रूप कैसे हो ...किस दिशा मे परिवर्तण की रूख बदलने की आवश्यकता है ,परिवर्तन के समय यदि विरोध हुआ तो उस विरोध का किस तरह सामना किया जाए ,विरोध करने वालों को समझाया जाए या बल प्रयोग द्वारा दबा दिया जाए या उसे रास्ते से ही हटा दिया जाए ... इस तरह अनेक प्रश्न और उत्तर भी अनेक प्राप्त हो सकता है परन्तु एक बात साफ हैं कि परिवर्तण तो परिस्थिति का दास है परिस्थिति ही साधनों को प्रयोग करने का रास्ता बताता है।
कोई भी सभ्य समाज खून खराबी का समर्थन नहीं कर सकता ,परन्तु परिस्थिति जन्य अनेक अवसरों पर खून बहाना मजबूरी हो सकता है , यदि अधिकांश परिवर्तण शान्ति पूर्ण ढंग से हो जाए तो क्रान्ति शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ ऐसा समझना उचित होगा । क्रमश:...........
बंकिमचन्द्र द्वारा लिखे गये क्रान्तिकारी साहित्य आनन्द मठ पढने से क्रान्तिकारिओं का चरित्र भी समाज में एक अलग ही प्रतिष्ठा -मान -सम्मान .स्थापित करने में सहयोग साबित हुए ,उच्च नैतिक और चारित्रिक बल से प्रतिष्ठित युवा वर्गों द्वारा परिवर्तणकारी विशेष करके भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने की संकल्प लेकर सर्वस्व न्योछावर कर देने का साहस ही क्रांतिकारिओं का पहचान हुआ करता था ।
एक भी उदाहरण इतिहास में नहीं मिल सकता ,जिससे यह साबित हो सके कि क्रान्तिकारियों ने साधारण जनता पर , नारियों पर , असहायों पर ,जोर जुल्म किया हो , लेकिन आजादी की लड़ाई में एक सक्षम हिस्सेदारी , कर्तब्य आदी का निर्वहन करने के पश्चात भी कुछ स्वार्थी लोगों ने क्रान्तिकारियों को बदनाम करने का षड़यंत्र रचने में कामयाब हो गए ,अहिंसा शब्द को ढाल जैसे प्रयोग करते हुए करोड़ों निर्दोष देशवासीयों का कत्ल हो जाना ,लाखों लडकियों ,महिलाओं पर अत्याचार ,जिस देश के लिए नौजवानों ने खून बहाया उस देश को दो टुकड़ों में बॉट देना आदी कोई सामान्य बात नहीं है , यदि प्रत्यक्ष हिंसक लड़ाई भी होती ,तो भी इतनी बड़ी संख्या में हिंसक घटनाओं का परिणाम करोड़ों का जान माल और अत्याचार नहीं हुआ होता ,आज तक इतिहास को तोड़ -मरोड़ कर सामने रखने का षड़यंत्र जारी है। ।
मैंने कई बार क्रान्ति शब्द का उपयोगा, कई स्थानों पर, गर्व के साथ किया हैं ,क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....आज इसे जिस रूप में ग्रहण किया जाता है या समझा जाता है उससे भिन्न रूप में हमें इस शब्द का भावार्थ समझना आवश्यक हैं । मै एक उदाहरण दे कर इसे बताने की कोशिस करना चाहता हूँ –
नदी यदि धारा बदलकर बहने लगी- तो धारा बदलना ओर फिर बहना-- क्रान्तिकारि कहा जा सकता हैं ,समाज आज जिस दिशा में जा रही है यदि उस दिशा से हटाकर अन्य दिशा की ओर मोढ दिया जाए तो समाज में क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ कहना उचित होगा ।
हर समय परिवर्तण की आवश्यकता होती है ,दुनियॉं में स्थिर कुछ भी नहीं है , सब कुछ चलायमान है ,आज जो कुछ सही लगता है ,कल वही गलत साबित हो सकता है ,विचार में भी परिवर्तण होता रहता है ,आज से वर्षों पूर्व घुसखोरी को कोई अच्छी नजर से नहीं देखते थे वैसे तो आज भी नहीं देखते है ,पूर्व में घुसखोरी भी होती थी ,तो छीपते और डरते हुए ,आज तो यह खुले आम होने लगी है, अत: घुस खोरी में भी क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ हैं ऐसा कहा जा सकता है ।
परिवर्तण का ही नाम क्रान्ति है, परिवर्तण कितनी गति से हो रही हैं , उस गति को ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि कुछ नये शब्द का उपयोग किया जाए , पर भावार्थ वही है जो परिवर्तण के लिए समझा जाता हैं ।
मार काट ,खून खराबा , ही क्रान्ति है इस तरह की विचार कतई उचित नहीं है ,जब समाज के किसी अंग में क्रान्तिकारि परिवर्तण होने लगती है ,तो तीन तरह के लोग उसमें भागिदारी निबहाते है प्रथमत: जो परिवर्तण में प्रत्यक्ष अंश ग्रहण करते है ,द्वितीय वे लोग है जो परिवर्तण का विरोध करते है ,विरोध करने का भी विभिन्न कारण हो सकता है ,कुछ लोग परिवर्तण के कारण प्रभावित होते है ,जैसे यदि अर्थनीति में परिवर्तण हो रहा हो तो अर्थप्रधान लोग उसका विरोध करेंगे ,इस तरह अन्य अनेक कारण हो सकता हैं ।
तिसरी तरह के लोग पक्ष और विपक्ष दोनों से भिन्न होते है उन्हें तो किसी से कोई दिलचस्पी ही नहीं रहता हैं ,ऐसे लोग समाज के लिए अधिक खतरनाक हो सकते हैं , क्योंकि ऐसे लोग जिधर दम, उधर हम की बातों पर अधिक विश्वास करते हुए सही गलत दोनों को सामान्य मान बैठने के कारण समाज में सन्देहास्पद स्थिति तैयार कर देता है। और सन्देह उत्पन्न होने के करण ऐसे लोग मारे भी जाते है।
परिवर्तण के लिए खून बहाना आवश्यक नहीं है ,विचार क्रान्ति से भी अनेक प्राकार के परिवर्तण सही दिशा में अग्रसर हो सकता हैं ,विचार क्रान्ति के आगे कोई भी शक्ति टिक नही सकती ,विचार शब्दों द्वारा उत्पन्न होता है। और शब्द का प्रचार लेखन से आगे बढने के कारण कलम में जो शक्ति है वह तोप तलवार में भी नहीं होने की बाते पूर्व के अनेक साहित्यकारों ने भी स्वीकार किया है ।
भारतवर्ष में क्रान्ति की आवश्यकता है या नहीं इस पर बहस हो सकती है ,विचार किया जा सकता है ,यदि विचार करने के पश्चात परिवर्तण आवश्यक हो जाए तो उस परिवर्तण की रूप कैसे हो ...किस दिशा मे परिवर्तण की रूख बदलने की आवश्यकता है ,परिवर्तन के समय यदि विरोध हुआ तो उस विरोध का किस तरह सामना किया जाए ,विरोध करने वालों को समझाया जाए या बल प्रयोग द्वारा दबा दिया जाए या उसे रास्ते से ही हटा दिया जाए ... इस तरह अनेक प्रश्न और उत्तर भी अनेक प्राप्त हो सकता है परन्तु एक बात साफ हैं कि परिवर्तण तो परिस्थिति का दास है परिस्थिति ही साधनों को प्रयोग करने का रास्ता बताता है।
कोई भी सभ्य समाज खून खराबी का समर्थन नहीं कर सकता ,परन्तु परिस्थिति जन्य अनेक अवसरों पर खून बहाना मजबूरी हो सकता है , यदि अधिकांश परिवर्तण शान्ति पूर्ण ढंग से हो जाए तो क्रान्ति शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ ऐसा समझना उचित होगा । क्रमश:...........
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009
एक साथ इतनी समस्या ---साथी हाथ -----
दीपावली के बाद से लगातार मैं लैपटॉप से लड़ता रहा और आज भी लड़ रहा हूँ ,पहले तो बेचारा वायरस के चलते बीमार गया गया , पता नहीं एक साथ इतनी वायरस कहाँ से chali आई ,एन टी वायरस लैपटॉप में है, फिर भी काम नहीं आया, आज कल तो हर जगह एक ही बात लागू हो रहा हैं कि फैशन के जमाने में गारंटी की इच्छा न रखे ,अब मैं वायरस के लिए किसके साथ लड़ता ...?
एक साल तक वायरस से कुछ हानी हो तो कंपनी क्षतिपूर्ति करने की बाते लिखी है पर उसके लिए कंपनी पर दावा करो ,कितनी क्षती हुई हैं उसकी जॉच कराने से लेकर उपभोक्ता फोरम ,उससे बात न बने तो वर्षों अदालतों का चक्कर ......नुकसान जो हुआ वह कब मिलेगा उसका तो पता नहीं ----पर कानूनी दॉव पेंच के लिए वकील रखो ,दावा रकम का दस प्रतिशत फीस जमा करने के अलावा अपना खून भी जलाते रहो ............यही सब न्याय पाने का माध्यम हैं .............इससे अच्छा चुपचाप बैठे रहो ....रोते रहो ......और व्यवस्था को कोसते रहो ............ अधिक हुआ तो एक आध लेख के माध्यम से भड़ास निकाल कर चैन से बैठना ज्यादा अच्छा है ।
वायरस से कुछ फाईल नष्ट हो गयी , उसे फिर कब तक बना पाउंगा पता नहीं ,मेरे कष्ट देखकर लड़का भी दु:खी होकर कहने लगे कि क्या फालतू की चिजों से आप जुझ रहे है ,ब्लाग में लिख कर कभी देश में क्रान्ति आ सकती है क्या ....! ऑंखे खराब होना ,रात की नींद गायब.. न जाने कितनी बाते से मुझे समझाने की कोशिस करते हुए ,कुछ मद्द भी किया ।
नेट तो एक दम धीमी हो गई , गूगल का नया क्रोम लोड करने से सचमूच नेट में जान आ गया , नेट खोला ही था कि अचानक वर्चूल मेमोरी कम होने की सूचना से मैं परेशान हो गया , ये वर्चुल मेमोरी की बातें तो मेरे सर के उपर से चला गया ,पर लड़का को समझमें आने से मेमोरी बढाने का भी रास्ता निकालकर मुझे एक बड़ी समस्या से मुक्त कर दिया ....नही तो आज मै इस लेखनी को पूरा नहीं कर सकता था ।
मैने सोचा कि ब्लोग के हेडार में कुछ नए चित्र लगा दूं ,इस चक्कर में ब्लोग ही गायब हो गया ,दुबारा लोड किया तो नया सन्देश तो अंग्रेजी से हिन्दी में परिवर्तण हो जाता है पर शीर्षक का अनुवाद हिन्दी में आज भी नहीं हो पा रहा है ,जबकि सन्देश और शीर्षक पूर्व में हिन्दी अनुवाद सरलता से हो जाता था ।
टेम्ल्पेट नया लग जाने से हैडर पर मेर चित्र के माथे में मेरे विचार हटाकर कुछ सामने लाना चाहता था ,पर उसे आज तक नहीं कर पाया । हैडर में अन्य चित्र कैसे लगाया जाए और सरलता से चित्रों को कैसे पोस्ट में प्रयोग किया जाए यह बता कर मुझे मद्द करने का कष्ट करें ।
नेट पर अनेक टेम्प्लेट उपलब्ध हैं मुझे तीन भाग वाला टेम्प्लेट अधिक पसन्द हैं और हैडर कुछ चौड़ी हो तो बहुत ही अच्छा, कुछ मैंने चुना भी था पर उसे किसी भी हालत में ब्लोग में नहीं जोड सका .............मैंने एडसेन्स को भी ब्लोग में रखना उचित समझा ... पर ऐसा नहीं कर पाया ...
पिछले समय मैंने हिन्दी पर कुछ सुझाव मांगा था ,उस समय एक नहीं अनेक हाथ मद्द के लिए उठे थे ...आज भी साथी हाथ बढाना
एक साल तक वायरस से कुछ हानी हो तो कंपनी क्षतिपूर्ति करने की बाते लिखी है पर उसके लिए कंपनी पर दावा करो ,कितनी क्षती हुई हैं उसकी जॉच कराने से लेकर उपभोक्ता फोरम ,उससे बात न बने तो वर्षों अदालतों का चक्कर ......नुकसान जो हुआ वह कब मिलेगा उसका तो पता नहीं ----पर कानूनी दॉव पेंच के लिए वकील रखो ,दावा रकम का दस प्रतिशत फीस जमा करने के अलावा अपना खून भी जलाते रहो ............यही सब न्याय पाने का माध्यम हैं .............इससे अच्छा चुपचाप बैठे रहो ....रोते रहो ......और व्यवस्था को कोसते रहो ............ अधिक हुआ तो एक आध लेख के माध्यम से भड़ास निकाल कर चैन से बैठना ज्यादा अच्छा है ।
वायरस से कुछ फाईल नष्ट हो गयी , उसे फिर कब तक बना पाउंगा पता नहीं ,मेरे कष्ट देखकर लड़का भी दु:खी होकर कहने लगे कि क्या फालतू की चिजों से आप जुझ रहे है ,ब्लाग में लिख कर कभी देश में क्रान्ति आ सकती है क्या ....! ऑंखे खराब होना ,रात की नींद गायब.. न जाने कितनी बाते से मुझे समझाने की कोशिस करते हुए ,कुछ मद्द भी किया ।
नेट तो एक दम धीमी हो गई , गूगल का नया क्रोम लोड करने से सचमूच नेट में जान आ गया , नेट खोला ही था कि अचानक वर्चूल मेमोरी कम होने की सूचना से मैं परेशान हो गया , ये वर्चुल मेमोरी की बातें तो मेरे सर के उपर से चला गया ,पर लड़का को समझमें आने से मेमोरी बढाने का भी रास्ता निकालकर मुझे एक बड़ी समस्या से मुक्त कर दिया ....नही तो आज मै इस लेखनी को पूरा नहीं कर सकता था ।
मैने सोचा कि ब्लोग के हेडार में कुछ नए चित्र लगा दूं ,इस चक्कर में ब्लोग ही गायब हो गया ,दुबारा लोड किया तो नया सन्देश तो अंग्रेजी से हिन्दी में परिवर्तण हो जाता है पर शीर्षक का अनुवाद हिन्दी में आज भी नहीं हो पा रहा है ,जबकि सन्देश और शीर्षक पूर्व में हिन्दी अनुवाद सरलता से हो जाता था ।
टेम्ल्पेट नया लग जाने से हैडर पर मेर चित्र के माथे में मेरे विचार हटाकर कुछ सामने लाना चाहता था ,पर उसे आज तक नहीं कर पाया । हैडर में अन्य चित्र कैसे लगाया जाए और सरलता से चित्रों को कैसे पोस्ट में प्रयोग किया जाए यह बता कर मुझे मद्द करने का कष्ट करें ।
नेट पर अनेक टेम्प्लेट उपलब्ध हैं मुझे तीन भाग वाला टेम्प्लेट अधिक पसन्द हैं और हैडर कुछ चौड़ी हो तो बहुत ही अच्छा, कुछ मैंने चुना भी था पर उसे किसी भी हालत में ब्लोग में नहीं जोड सका .............मैंने एडसेन्स को भी ब्लोग में रखना उचित समझा ... पर ऐसा नहीं कर पाया ...
पिछले समय मैंने हिन्दी पर कुछ सुझाव मांगा था ,उस समय एक नहीं अनेक हाथ मद्द के लिए उठे थे ...आज भी साथी हाथ बढाना
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