शनिवार, 21 मार्च 2009

आदिवासी से वनवासी एक खतरनाक चाल

आदिवासीयों को वनवासी बनाने का एक प्रयास लगातार जारी हैं ,वनवासी कहने से जंगली होने का बोध होता है। जंगल के पशु-पक्षीयों को भी वनवासी कह सकते हैं,प्रचीन काल में ऋषि मुणी गहन अध्ययन के लिए वन जैसे एकान्त स्थानों का चयन करते थे ,आध्यात्मिक ज्ञान के लिए आज भी वन को शुभ माना जाता हैं ,शंकर जी का जीवन ही पहाड पर्वत ,वन-जंगलों में व्याथित होता था ,परन्तु शंकर जी को कोई वनवासी या जंगली नहीं कहते हैं और न ही ऋषि -मुणियों को इस उपमा अलंकार से अलंकृत किया गया हैं ,मुझे लगता हैं कि आदिवासी कहने से गौरव का बोध होता हैं और वनवासी शब्द अपमान का प्रतीक हैं ,आदिवासी एक अधिकार बोध जागृत करता हैं और वनवासी अधिकार से वंचित होने का बोध होता हैं ,आदिवासी यदि जंगलों में रहता हैं तो जंगलों में उनका अधिकार आदि काल से होने का आभास देते हैं और वनवासी कहने से वन में अनाधिकृत निवास करने से लिया जा सकता हैं । आदिवासी शौक से जंगलों में नहीं रहते ,प्राचीन सभ्यता पर गौर करने से यह बात साफ हो जाता हैं कि मानव सुलभ जीवन जीने में विश्वास करते हैं ,इसलिए वे नदियों के किनारे बसने लगे और कालान्तर में नदिघाटी के सभ्यता के नाम से प्रसिद्ध भी होता गया ,हरप्पा,मोहनजोदडो,मेसोपोटामिया,नीलघाटी की सभ्यता आदी सभी का विकास नदियों के किनारे ही हुआ हैं ,प्रश्न उठता हैं कि आदिवासी पहाडों और बिहडों में ही क्यों रहते हैं ,हिंसक पशुओं का भय ,सांप -बिच्छु, अन्य जंगली जानवारों से लडते हुए जीवन को जटिल बना कर जंगलों में रहने को मजबूर क्यों है ? कुछ लोग जरूर कह सकते हैं कि ये जंगलों में ही अधिक सुरक्षित और अधिक खुश हैं ,उनके यह तर्क आज के परिप्रेक्ष्य में सही हो सकता हैं क्योंकि जंगलों के बहार की दूनियॉं में आज चार पैर के हिंसक पशुओं से अधिक हिंसक दो पैर के पशुओं में हैं ,आज हिंसक पशुओं से अधिक भय दो पैर के हिंसक पशुओं द्वारा निर्मित हो गया है। किन्तु आदिवासीयों के सम्बन्ध में कहा जाए तो अर्थ में भिन्नता होना स्वाभाविक होजाएगा,आदिवासीयों को हम सभ्य कहलाने वाले लोगों ने ही उनके हाल में जीने के लिए मजबूर करते आ रहे हैं ,आज उन्हें जंगली तक बनाने में हम प्रयन्त कर रहे हैं क्यों ये आदिवासी समझ नहीं पाते कि उन्हें क्या बनना हैं ,हजारों सालों से जंगलों में रहने के कारण उनके प्राचीन गौरव,उनके इतिहास , सबकुछ मिटगया हैं आज भी ये लोग हम जैसे सभ्य कहलाने वाले लोगों से भयभीत हैं ,कुछ लोग पढ लिखकर नौकरी या अच्छे आहदे में पहुँच गए हैं फिर भी ऐसे लोग अपने भाईयों को आगे लाने के अपेक्षा उन्हीं लोगों का शोषण करने नहीं चुकते । कभी जाति प्रथा के नाम से प्रताडित,कभी राजाओं से लडते हुए हारने के कारण अत्याचार से बचने, विहडों में आश्रय लेने की मजबूरी आज भी उनका पीछा नहीं छोड रहा हैं ,ऐसी स्थिति में उन्हें आदिवासी से वनवासी बनाने का योजना तो बहुत ही खतरनाम चाल ही कहा जाएगा ।

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

भारत में परमाणु बम से हमला !!

पुरे देश में आज विनाशलीला का खेल खेला जारहा हैं ,इस खेल का नाम विकास हैं ,हजारों एकड में फैली जंगलों को काट कर खनीज निकालने का जो जूनुन व्यापारी और नेताओं में पैदा हो गई हैं इस जूनुन में देश के विनाश को कोई रोक नहीं सकता, यदि जनता आज सडक से संसद तक का लडाई न करें तो देश राजस्थान जैसे रेगिस्थान में परिवर्तित होने में अब देर नहीं लगेगी ,सैकडों साल पहले राजस्थान एक विकसित राज्य था, उस समय के राजस्थान को देश कहना ज्यादा उचित हैं ,विकास के नाम से देश के पेड-पौधों का विनाश कर दिया गया ,सरस्वती नदी राजस्थान से बहती थी ,रेगिस्थान के खुदाई में सरस्वती नदी का अवशेश प्राप्त हुआ हैं लोगों ने इस नदी का अस्तित्व ही समाप्त कर आज के पीढी को रेगिस्थान की त्रासदी में जीने को मजबूर कर दिया रेगिस्थान में ढंका हुआ अग्रसेन महाराज के राजधानी भी खुदाई से सामने आई हैं ,एक विकसित देश का अस्तित्व आज एक इतिहास बन कर लोगों के सामने आने को आतुर हैं दूसरी और हम इतिहास से थोडी सी सबक भी नहीं ले रहे हैं, हम आने वाली पीढी को क्या रेगिस्थान में जीने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं ? जंगलों से तो अरबों की आय के साथ -साथ जीवन रूपी ऑिक्सजन का जो प्राकृतिक उपहार हमें प्राप्त होता हैं उसका कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता ,जंगलों के नाश से पशु पक्षियों का जो हालात होता हैं उसे सोचकर ही रोंगटे खडी हो जाती हैं ,दिन में ही जंगली जानवर गांवों में घुस आती हैं ,हाथीयों के आतंक से लोग भयभीत हैं ,ऐशो आराम की जीवन जीने वाले लोग इस तरह की स्थिति के भयावह रूप से सरोकार नहीं रख सकते ,उन्हें तो समझ ही नहीं हैं कि जंगल से ही जीवन हैं ,जंगल न रहने से वर्षा भी नहीं होगी, प्रदुषण के कारण जीवन का अस्तित्व ही खत्म होने से वर्तमान समय के विकास का उपभोग कौन करेगा ? यह तो हिरोशिमा-नागाशाकि के परमाणु बम से भी खतरनाक स्थिति निर्मित हो रही हैं,विकास के नाम से अन्य देश को बरबाद करने का जो योजना अमेरिका जैसे देशों ने बनाई हैं इसके तहत अब युद्ध करने की जरूरत नहीं हैं ,बस देश क जल ,जमीन नदी नाले ,जंगल को विकास के नाम से बरबाद कर दो फिर तमाशा देखते रहो ,ड्रेकुला के बंशज अमेरिका के भाग्य विधाता जिन्होंने लाखों रेड इण्डियानों को कत्लेआम कर अमेरिका में आज भी बसे हुए हैं ,ये वेदना शून्य ,संवेदना रहित ,माया ममता ,दया -करूणाविहीन लोग किसी के नहीं हैं,अनेक उदाहरण दिया जा सकता हैं जिससे यह साबित हो गया कि अमेरिका,इंग्लैण्ड जैसे देश दूनियॉ का दुश्मन हैं ,दोस्त नहीं । हमें अविलम्ब देश को बचाना होगा ,बहुत देर हो चुकी है अब समय विल्कुल ही नहीं है ,इस विनाश को रोकना ही होगा ,किसी भी किंमत में हमें देश को जीवित रखना होगा ,जल- जमीन ,जंगल,विहीन देश का अस्तित्व ही खत्म होने को हैं ,क्या अब भी हम किसी भगवान के अवतार लेने का इन्तेजार करते रहेंगे ? जिसके पास जो भी साधन हो ,जो भी शक्ति हो ,जैसा भी समर्थ हो ,वर्तमान भयावह स्थिति का विरोध करें ,विरोध करने वालों का साथ दे ,आज और अभी से सशक्त आन्दोलन का रूपरेखा तैयार कर कार्य करें ,अन्यथा हम भी इस देश के गद्दार से सम्बोधित किए जाएगें,आज चुपताप घर में बैठे रहने का समय नहीं हैं ,जागने और जगाने का समय आ चुका हैं ,युवा शक्ति को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए आगे आना ही होग।

रविवार, 8 मार्च 2009

कोरबा जिले में तेजाब का वर्षा !!

अपने आप को कोसने के सिवाय मेरे पास कोई दूसरा विकल्प दिख भी नहीं रहा हैं ,खिसियानी बिल्ली खम्भा नोंचे की कहावत मेरे साथ चरितार्थ होने लगा ,मेरे सामने कोरबा जिला का विनाश हो रहा है ओर मै इसका साक्षी हूँ ,विनाश चुप -चाप देख रहा हूँ ,कुछ लोगों को इस विनाश से अवगत कराने पर आगे चल कर विनाश में वे भी भागिदारी निवाहने लग जाते हैं ,कोरबा के चारों ओर गगन चुम्बी चिमनियों का ,और विजली तारों का साम्राज्य है ,जहॉं तक नजर जाता है केवल चिमनि और तार ,एक समय था जब बाल्को में आने पर शुद्ध हवा से मन प्रफुल्लित हो उठता था ,आज मन खिन्न हो जाता है ,बाल्को का पहचान पहले एल्युमिनियम से होता था ,अब इसका पहचान बिजली उत्पादन से होने लगा हैं ,पूर्व से ही बाल्कों के पास एक केप्तिक प्लांट है,बिजली की आपूर्ति इस प्लांट से हो जाता हैं ,परन्तु आज दो प्लांट हो गया हैं तिसरा चालू होने को हैं ,इन प्लांटों के लिए हजारों पेडों का हत्या कर दिया गया ,शासन -प्रशासन मूक दर्शक बन तमाशा देखती रही ,उच्चतम न्यायालय का आदेश को धता बताते हुए वन भूमि पर कब्जा कर, दो -दो प्लांटों को लगाकर बाल्को प्रशासन ने देश के सरकार और न्यायालय को यह बता दिया कि विदेशी लोग भारतीयों से आज भी बहुत आगे हैं और भारतीय लोग मात्र गुलामी के ही लायक हैं ,स्टार लाईट नाम से जो वेदान्ता ग्रुप भारत में व्यपार कर रही हैं यह नाम से तो भारतीय लगता हैं पर है विदेशी ,पहले इंग्लैण्ड से इष्ट इण्डिया कंपनी भारत आकर देश को गुलाम बना लिया था,आज नाम और भेष बदल कर अपने ही आदमीयों के माध्यम से देश पर कहर ढाए जा रहा हैं ।एक ओर विदेशी कंपनीयॉं कोरबा में विनाश का खेल खेलने में मग्न हैं ,दूसरी और स्वदेशी बनाम विदेशी कंपनीयॉं भी उससे दो कदम आगे हैं ,विस्तार योजना के नाम से छत्तीसगढ विद्युत मंडल ने कोरबा शहर के मध्य ही बिजली सयंत्र शुरू कर दिया , लेंको नाम के एक कंपनी ने हजारों एकड उपजाउ भूमि में बिजली उत्पादन काकार्य शुरू करने जा रहा हैं , बन्दना नाम के कंपनी भी पीछे क्यों रहे ,कोरबा से थोडी दूरी पर अपना ईकाइ चालु करेगी ,धीरू भाई का भी एक बिजली प्ला।ट यही आरही हैं ,एक और कोयला खदानों के कारण लोगों का जीना हराम हो चुका हैं दूसरी और राखड डैमों से निकलने वाली राख से राह चलना भी सुरक्षित नहीं हैं ,राख चिमनियों से निकलती हैं ,धूंआ भी चिमनियों से निकालकर लोगों के फेफडों को छलनी करता चला जा रहा हैं , प्रदूशण का आलम यह हैं कि प्रदुषण विभाग के एक अधिकारी ने नाम न बताने का अनुरोध पर कहा कि यदि सही स्थिति लोगों के सामने रखे तो उसकी नौकरी चली जावेगी ,प्रदुषण की रिपोर्ट भी दबा कर दी जा रही हैं , सरकार का कोई नीति नहीं रह गई , जहॉं इच्छा बिजली प्लांट लगाओं ,सैकडों गॉंवों को उजाडकर जो विनाश लीला मिलीभगत से चल रही हैं उसे देख कर ,सहन शक्ति भी जबाव दे रहा हैं ,यहॉं के हरामखोर नेताओं का यह हालत हैं कि कुत्तों की भॉंती चंद टुकड़े फेंक दो बस ,सब कुछ सही ,एक आवाज तक नहीं करेगा । मैने पढा हैं कि हजारों वर्षों तक भूकम्पों के कारण जो पेड पौधे आदी जमीन के नीचे दबी रहती हैं कालान्तर में कोयले का रूप ले लेता हैं ,इसका अर्थ यह हुआ कि हजारों वर्षों पूर्व यहॉ भुकंप जरूर हुआ होगा,तभी तो इतनी मात्रा में कोयला यहॉं मिल रहा हैं ,आज जो स्थिति कोरबा का निर्मित हो रहा हैं उसे देखकर लगता हैं कि अति शिघ्र भूकंप से इस जिले को कोई बचा नहीं पाएगा । कार्बनडाईअक्साइड से जो स्थिति निर्मित हो रहा है,उससे भूकंप से पहले तेजाब का वर्षा होने को कोई भी रोक नहीं पाएगा ,उस दिन विकास बनाम विनाश का सारा खेल खत्म हो जाएगा ,आने वाली पिढी यहॉं के नेताओ और उद्योग पतियों का क्या हालत करेगा , यह सोच कर मैं डर जाता हूँ ,पर यह पूर्वानुमान गलत न होगा ।

होली की बधाई ! अब नहीं

मस्ति में मस्त दिल में होली का उजाला लिए निकल पडे उस रास्ते में जहॉं आज भी उजाले का इन्तेजार हैं ,इन्तेजार हैं बुराईयों पर अच्छाई की विजय का ,इन्तेजार हैं अन्धकार को दूर करने के कठोर संकल्प का , इन्तेजार हैं बूराई की प्रतिक पूतना का बध होने का ,हर वर्ष इन्तेजार करते -करते थक सा गया , पर आज भी उसी का इन्तेजार के लिए राह देखने के सिवाय मेरे पास कुछ भी शेष नहीं बचा ,मात्र इन्तेजार ---! कोई कहता हैं जल बचा लो ,कोई कहता हैं पवीत्रता बचा लो,कोई कहता है परम्परा बचा लो ,मै कहता हूँ लाज बचा लो ,जब भारत माता की लाज खुले आम निलाम हो रही हो ,कंस के अट्टहास से चारों दिशाओं में भय व्यप्त हो ,तब कौन सी होली खेलने को बची हैं ? अरे ! अब होली तो ऐसे खेलेंगे कि , जब इसे सोच कर ही लोग दॉतों तले अंगूली दबा ले ,मेरे पास आज मेरे साथियों के लिए बधाई देने को शब्द ही नहीं बचा हैं , होली की बघाई ! अब नहीं ।

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

डूब गया ३० हजार

मुझे याद हैं वो दिन जब मुम्बई शेयर बाजार औधे मूंह गिरा था ,21000 सेंसेक्स की उड़ान ने देश के छोटे निवेशकों का हौसला इस कदर बढ गया था कि वे अपने सब कुछ दाव में लगा कर शेयर बाजार से कुछ रकम कमाने के लिए साहस किया था , मुझे याद है एक निवेशक मेरे पास 30000 रूपये लेकर आया और कहने लगा कि सर ! इसे कहीं अच्छे जगह लगा दिजिए ताकि लडकी की शादी के समय कुछ अधिक मिल जाए ,मैंने पूछा लडकी की आयु कितनी हैं कहने लगे 15 वर्ष , 18 -19 साल में शादी कर दूंगा ,गरीब आदमी हूँ ,बहुत मेहनत मजदूरी करके इतनी रकम जोड पाया आप इस कहीं लगा दिजिए ,वे कहने लगे सर ! अभीतो शेयर वाली पालिसी में 1-2 वर्ष के अन्दर दुगुणा हो जाता हैं उस तहर की पालिसी भी चल जाएगा ,अब मैं क्या कहूं ,उसका मकशद तो मुझे समझ में आ गया था ,मैंने एक बीमा एजेन्ट को बुला कर शेयर बेस युलिप में उस रकम को निवेश करने के लिए कह दिया था ,आज से तीन वर्ष पूर्व का शेयर बाजार और आज के शेयर बाजार में जमीन आस्मान का अन्तर हो चुका है,आज 30000 रूपया घटकर 21000 रह गया हैं ,अपनी ही रकम देखते ही देखते घटता चला जा रहा हैं और निवेशक ठगा सा यह सब तमाशा देखने को मजबूर ,असहाय ,खून की घूंट पी कर जी रहा हैं ,निवेशक लूट गया एक बेचारा पिता लडकी की शादी का रकम डुबो दिया ,इसलिए जिम्मेदार कौन हैं ? मुझे भी तो पता नहीं चल पाया कि अचानक यर बाजार में भूचाल आ जाएगा और बेचारा पिता को मुझे लूटता हुआ देखना पडेगा ,कहॉं 30000 का 60 हजार होने का सपना और आज मात्र 21 हजार !! गरीब लडकी की शादी 30 हजार में होना भी भाग्य का खेल हैं और यदि देश के गद्दारों के कारण इस गरीब का रकम शेयर बाजार में डुब गया तो इसका क्षतिपूर्ति कौन करेगा ? मैं आज उसे देखकर आत्मग्लानी से भर जाता हूँ ,मेरे मित्र मंडली कहते हैं कि मुझे अधिक भावुक नहीं होना चाहिए ,उसकी लडकी का भाग्य खराब था अत: ऐसा हो गया ,पर क्या इस तरह की चिन्ता से उस गरीब का कुछ भलाई होने वाला हैं ? देश में न जाने कितने गरीबो का रकम शेयर बाजार में डुब चुका हैं ,पैकेज तो अमीरों को मिल रहा हैं पर निवेशकों को कुछ भी प्राप्त नहीं होता ,यह सरासर मजाक नहीं तो और क्या हैं ?

translator