रविवार, 8 मार्च 2009

होली की बधाई ! अब नहीं

मस्ति में मस्त दिल में होली का उजाला लिए निकल पडे उस रास्ते में जहॉं आज भी उजाले का इन्तेजार हैं ,इन्तेजार हैं बुराईयों पर अच्छाई की विजय का ,इन्तेजार हैं अन्धकार को दूर करने के कठोर संकल्प का , इन्तेजार हैं बूराई की प्रतिक पूतना का बध होने का ,हर वर्ष इन्तेजार करते -करते थक सा गया , पर आज भी उसी का इन्तेजार के लिए राह देखने के सिवाय मेरे पास कुछ भी शेष नहीं बचा ,मात्र इन्तेजार ---! कोई कहता हैं जल बचा लो ,कोई कहता हैं पवीत्रता बचा लो,कोई कहता है परम्परा बचा लो ,मै कहता हूँ लाज बचा लो ,जब भारत माता की लाज खुले आम निलाम हो रही हो ,कंस के अट्टहास से चारों दिशाओं में भय व्यप्त हो ,तब कौन सी होली खेलने को बची हैं ? अरे ! अब होली तो ऐसे खेलेंगे कि , जब इसे सोच कर ही लोग दॉतों तले अंगूली दबा ले ,मेरे पास आज मेरे साथियों के लिए बधाई देने को शब्द ही नहीं बचा हैं , होली की बघाई ! अब नहीं ।

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