परिवर्तण ही जीवन हैं ,दुनियॉं में हर वक्त कुछ न कुछ परिवर्तण होता ही रहता हैं ,होना भी चाहिए ,एक ही धारा में चलते -चलते थकान भी महशुस होता हैं 1 आज अंग्रेजी के बहाने मेरे अनेक मित्रों ने मुझे परिवर्तण कर दिया,अंग्रेजी एस.के.राय को हिन्दी राय बना दिया ,अब तो बहुत अच्छा लग रहा हैं ,जी.के. अवधिया जी ने भी इसमें बहुत मदद किया है ,समीर भाई का तो क्या कहने, आपने तो एक सरल तरीका ही टिप में डाल दिया 1
बार -बार सेटिंग में जाकर अंग्रेजी को हिन्दी में करना चाहा ,हर बार असफलता ..... अंकिता को बुला लिया ,अंकिता मेरी बेटी हैं । बोली जादु कर देती हूँ ,एक स्थान में एस.के.राय हिन्दी में लिख कर कॉपी -पेस्ट कर दी ,मैं जिसके लिए घन्टों परिश्रम कर रहा था ,एक मिनट में सचमुच जादु हो गया ...........अब ``मेरे विचार´´ लगता हैं समीर जी के शब्दों में एस.के.राय के विचार हो जाएगा ।
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
उड़न तश्तरी के समीर भाई ---आप तो मित्र हो ---
हिन्दी दिवस के स्थान पर अंग्रेजी की अर्थी दिवस पर जो विचार ब्लोग के माध्यम से मैंने लोगों तक पहुँचाने की कोशिस किया हैं उस पर अनेक टिका टिप्पणी के पश्चात मुझे लगता हैं कि हम सभी को हिन्दी के प्रति बहुत सम्मान हैं ,हो सकता हैं कि कुछ लोग किसी मजबुरी के लिए अंग्रेजी को सम्पर्क भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हो ,पर समयानूकुल हिन्दी का ही पक्ष मजबुती से सामने रखना चाहते हैं ।
आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पनी भेजी हैं, जिसे मैंने कई बार पढा ,रोचक और ज्ञानवर्धक टिप्पणी के लिए ससम्मान धन्यवाद । टिप्पणी को प्रकाशित कर दिया गया हैं । विशेष रूप से महफूज अली जी के टिप्पणी तो गागर में सागर हैं ।
संगीता पुरी जी ने भी बहुत अच्छी बाते लिखी हैं ,हिन्दी सम्पन्न बने ,पर सकारात्मक सोच के साथ ,खुद बडा हो जाए तो सामने वाला छोटा होना तय हैं और अंग्रेजी ज्ञान का भण्डार हैं ,आदी ...जरा महाभारत काल को मनन करने की कोशिस करें तो सच्चाई पर चलने वाले पाण्डव के साथ क्या घटना घटती हैं और आखीर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लड़ाई करने का उपदेश दिया ,हम सच्चाई पर चलने पर भी कौरव पक्ष आज भी सक्रिय हैं अत: न चाहते हुए भी कौरव को सबक सिखाना अति आवश्यक हैं ।आप बडा होना चाहते हैं, पर आपका कद वर्तमान परिस्थिती के कारण छोटा कर दिया जाता हैं ,अत: परिस्थिती को अनुकुल करने के पश्चात ही कद बड़ा या छोटा प्राकृतिक नियमानुसार सम्भव हैं । काशिफ आरिफ जी ने तो मुझे प्रमाण पत्र ही दे दिया ,हिन्दी ही उत्तम ...
उडन तश्तरी और समीर जी ने प्रथम टिप्पणी न देखपाने की बाते लिखी हैं ,समीरजी !मैं कार्यक्षेत्र पर था ,आप देखिए मेरी अधिकांश आलेख रात की ही होगी ,रात में प्राय: सभी मेल और अन्य टिप्पनीयॉं देखने की कोशिस करता हूं, अत: आपको रात को ही पढ पाया ।
आलेख में मैंने हिन्दी को राष्ट्र भाषा होने के साथ ही साथ एक अच्छा सम्पर्क भाषा होने के लिए भाषा में सर्वोच्च स्थान पर रखने की कोशिस किया हैं । जैसे देश की राष्टीय ध्वज मात्र कपड़े की टुकड़े नहीं होती ,उसी तरह हिन्दी भी मात्र भाषा नहीं ,पर देश की प्राण हैं ।
अंग्रेज इस देश में मात्र राज करते तो शायद विशेष क्षती नहीं होती ,अंग्रेजों ने तो यहॉं के संस्कृति पर हमला किया हैं , शिक्षा पर हमला किया हैं ,जीवन के हर पहलूओं को नेस्तानाबुत किया हैं जोर जूल्म के साथ इस देश में गुरूकुल के स्थान पर कान्वेन्ट चालु किया हैं ,यहॉं जुल्म के साथ ईसाइ मत का प्रचार किया हैं । अंग्रेजी बहुत अच्छी भाषा , और भारत वर्ष की सभी भाषा तुच्छ हैं ,ऐसा प्रचार करना किसी भी तरह क्षम्य नहीं हैं ।
यदि गान्धीजी होते तो हो सकता था कि वे अंग्रेजों को क्षमा कर देते ,पर मैं किसी भी किंमत पर उन्हें क्षमा नहीं कर सकता हूँ । मैं अंग्रेज और अंग्रेजी को अलग नहीं कर सकता ,मैं अपराध और अपराधी को भी अलग नजर से नहीं देखता , यदि दोनों भीन्न होता तो न्यायालय अपराधी को कैद की सजा क्यों देते हैं ? अपराधी के मन से अपराध को निकालकर उस अप्रत्यक्ष अपराध बोध को कैद में क्यों नहीं डाल सकते ?
अंग्रेज दुनियॉं मे जहॉं -जहॉं गया ,वहॉं बरबादी को ही प्रोत्साहन दिया हैं, अत: अंग्रेज और अंग्रेजी क्षमायोग्य नहीं । अंग्रेजी धौस जमाने की भाषा हैं अत:, मुझे इस पर कोई सहानुभूती नहीं है।
समीरजी विचार तो विचार हैं ,दुनियॉं में सभी पहलुओं के लिए सभी का विचार एक जैसे हो ,कोई जरूरी हैं क्या ? आपने अपना काम किया ,मैंने मेरा काम किया हैं , विचार भिन्नता के कारण आज के नेताओं जैसे हम थोड़े ही लडेंगे ? आप तो मित्र हैं , तभी तो एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान होता हैं । खूब लिखिए और कोशिस करूंगा जवाब भी दे सकूँ । क्षमा वगैरा की कोई आवश्यकता नहीं ....................
प्रवीण शाह को भी धन्यवाद । एक बहुत अच्छी बात आपने लिखी हैं ,कि सबसे पहले एस.के.राय को अंग्रेजी से हटा कर हिन्दी किया जाए । मैंने भी अनेक बार कोशिस किया, पर हटता ही नहीं , यदि कोई टीप हो तो मुझे अवश्य बताने का कष्ट करें । देश में कानून की किताबे ,विज्ञान और अन्य किताबे भी अभी मिलने लगे हैं, यदि हम सभी बाजार में हिन्दी की मांग करें तो अधिकाधिक छपवाने का भी व्यवस्था करना ही पड़ेगा ।
आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पनी भेजी हैं, जिसे मैंने कई बार पढा ,रोचक और ज्ञानवर्धक टिप्पणी के लिए ससम्मान धन्यवाद । टिप्पणी को प्रकाशित कर दिया गया हैं । विशेष रूप से महफूज अली जी के टिप्पणी तो गागर में सागर हैं ।
संगीता पुरी जी ने भी बहुत अच्छी बाते लिखी हैं ,हिन्दी सम्पन्न बने ,पर सकारात्मक सोच के साथ ,खुद बडा हो जाए तो सामने वाला छोटा होना तय हैं और अंग्रेजी ज्ञान का भण्डार हैं ,आदी ...जरा महाभारत काल को मनन करने की कोशिस करें तो सच्चाई पर चलने वाले पाण्डव के साथ क्या घटना घटती हैं और आखीर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लड़ाई करने का उपदेश दिया ,हम सच्चाई पर चलने पर भी कौरव पक्ष आज भी सक्रिय हैं अत: न चाहते हुए भी कौरव को सबक सिखाना अति आवश्यक हैं ।आप बडा होना चाहते हैं, पर आपका कद वर्तमान परिस्थिती के कारण छोटा कर दिया जाता हैं ,अत: परिस्थिती को अनुकुल करने के पश्चात ही कद बड़ा या छोटा प्राकृतिक नियमानुसार सम्भव हैं । काशिफ आरिफ जी ने तो मुझे प्रमाण पत्र ही दे दिया ,हिन्दी ही उत्तम ...
उडन तश्तरी और समीर जी ने प्रथम टिप्पणी न देखपाने की बाते लिखी हैं ,समीरजी !मैं कार्यक्षेत्र पर था ,आप देखिए मेरी अधिकांश आलेख रात की ही होगी ,रात में प्राय: सभी मेल और अन्य टिप्पनीयॉं देखने की कोशिस करता हूं, अत: आपको रात को ही पढ पाया ।
आलेख में मैंने हिन्दी को राष्ट्र भाषा होने के साथ ही साथ एक अच्छा सम्पर्क भाषा होने के लिए भाषा में सर्वोच्च स्थान पर रखने की कोशिस किया हैं । जैसे देश की राष्टीय ध्वज मात्र कपड़े की टुकड़े नहीं होती ,उसी तरह हिन्दी भी मात्र भाषा नहीं ,पर देश की प्राण हैं ।
अंग्रेज इस देश में मात्र राज करते तो शायद विशेष क्षती नहीं होती ,अंग्रेजों ने तो यहॉं के संस्कृति पर हमला किया हैं , शिक्षा पर हमला किया हैं ,जीवन के हर पहलूओं को नेस्तानाबुत किया हैं जोर जूल्म के साथ इस देश में गुरूकुल के स्थान पर कान्वेन्ट चालु किया हैं ,यहॉं जुल्म के साथ ईसाइ मत का प्रचार किया हैं । अंग्रेजी बहुत अच्छी भाषा , और भारत वर्ष की सभी भाषा तुच्छ हैं ,ऐसा प्रचार करना किसी भी तरह क्षम्य नहीं हैं ।
यदि गान्धीजी होते तो हो सकता था कि वे अंग्रेजों को क्षमा कर देते ,पर मैं किसी भी किंमत पर उन्हें क्षमा नहीं कर सकता हूँ । मैं अंग्रेज और अंग्रेजी को अलग नहीं कर सकता ,मैं अपराध और अपराधी को भी अलग नजर से नहीं देखता , यदि दोनों भीन्न होता तो न्यायालय अपराधी को कैद की सजा क्यों देते हैं ? अपराधी के मन से अपराध को निकालकर उस अप्रत्यक्ष अपराध बोध को कैद में क्यों नहीं डाल सकते ?
अंग्रेज दुनियॉं मे जहॉं -जहॉं गया ,वहॉं बरबादी को ही प्रोत्साहन दिया हैं, अत: अंग्रेज और अंग्रेजी क्षमायोग्य नहीं । अंग्रेजी धौस जमाने की भाषा हैं अत:, मुझे इस पर कोई सहानुभूती नहीं है।
समीरजी विचार तो विचार हैं ,दुनियॉं में सभी पहलुओं के लिए सभी का विचार एक जैसे हो ,कोई जरूरी हैं क्या ? आपने अपना काम किया ,मैंने मेरा काम किया हैं , विचार भिन्नता के कारण आज के नेताओं जैसे हम थोड़े ही लडेंगे ? आप तो मित्र हैं , तभी तो एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान होता हैं । खूब लिखिए और कोशिस करूंगा जवाब भी दे सकूँ । क्षमा वगैरा की कोई आवश्यकता नहीं ....................
प्रवीण शाह को भी धन्यवाद । एक बहुत अच्छी बात आपने लिखी हैं ,कि सबसे पहले एस.के.राय को अंग्रेजी से हटा कर हिन्दी किया जाए । मैंने भी अनेक बार कोशिस किया, पर हटता ही नहीं , यदि कोई टीप हो तो मुझे अवश्य बताने का कष्ट करें । देश में कानून की किताबे ,विज्ञान और अन्य किताबे भी अभी मिलने लगे हैं, यदि हम सभी बाजार में हिन्दी की मांग करें तो अधिकाधिक छपवाने का भी व्यवस्था करना ही पड़ेगा ।
उड़न तश्तरी के लाल जी को हिन्दी टिपण्णी पर सादुवाद ओर सुझाव---
जब से मैंने ब्लोग में लिखना शुरू किया किया हैं तब से किसी पर व्यक्तिगत रूप में कुछ भी आक्षेप नहीं लगाया हैं ,न ऐसा मंशा कभी था और न आज है। जब राष्ट्रहित और जनहित की बात आती हैं तो विपरीत टिप्पनी पर लिखना मजबूरी के साथ फर्ज भी हो जाता हैं ।
मैं उड़न तस्तरी के लालजी को बताना चाहता हूँ कि जब अंग्रेजों के साथ आजादी सम्बन्धी चर्चा चल रही थी तो डोमिनियन स्टैट के बारे में भी विकल्प के रूप बात चली ,आपको पता होगा कि गान्धी जी के डोमिनियन स्टैट पर हामी भरने के कारण ,अधिकांश लोगों ने उसका विरोध भी किया ,नेताजी ने तो यहॉं तक कहॉं कि आजादी का अर्थ पुर्नस्वराज हैं ,हम लेंगे तो पूरी लेंगे ,अधुरी बातों पर हमें विस्वास नहीं हैं । डोमिनियन स्टैट का अर्थ रक्षा ,विदेश - नीति सम्बन्धी सभी अधिकार अंग्रेजों के हाथ में होगी और हमें केवल आन्तरिक मामले में अधिकार प्राप्त होगा ।
हमने अंग्रेजों को मीटाकर ही स्वराज हासिल कर सकें हैं ,यदि गुलामी का दर्द आजादी के दीवानों को न होता तो शायद देश आजाद भी नहीं होता ,अंग्रेजी का मोह जब तक हमारे मानसिक पटल से साफ न हो जाए, तब तक कितने ही अच्छे शब्द जाल से लिखते हुए लोगों को रिझा ले ,अपने पक्ष में व्होट डलवा ले , उससे देश और समाज का भला नहीं हो सकता हैं ।
लाल जी ! आज भारतवर्ष में आप सर्वे करवा लें कि कितने भारत वासी अंग्रेजी समझते और बोल सकते हैं ? मुठि्ठ भर लोग अंग्रेजी के नशे में अपने आप को महान घोषित कर रखा हैं । यदि चीन बगैर अंग्रेजी के तरक्की कर सकता हैं ,फ्रांस ,रूस ,जपान,जर्मनी,क्या अंग्रेजी के बलबुते में विकास हुआ हैं ? वहॉं तो अंग्रेजी में बाते करने पर उसे जोकर की तरह देखते हैं ।
अंग्रेजी जैसे भिखारी भाषा तो दुनियॉं में हैं ही नहीं ,जहॉं आज भी पारिवारिक रिस्तों के लिए सम्बोधन शब्दों का अभाव हैं । दुनियॉ के सभी भाषाओँ से उधार लेकर अंग्रेजी काम चलाता हैं ,अत: हिन्दी अंग्रेजी से सम्पन्न भाषा हैं, इसे समृद्ध बनाने के लिए लकीर को छोटी करने की आवश्यकता नहीं हैं ,जो छोटी हैं उसे बडी साबित करने की मुझे आवश्यकता नहीं हैं ,मैं तो हिन्दी जैसे समृद्ध भाषा को शडयंत्र पूर्वक छोटी करने का जो प्रयास करता हैं उस पर आवाज उठाता रहूंगा ,जरूरत हैं मानसिक समृद्धि की ,जरूरत हैं राष्ट्रवाद पर चलते हुए विश्व की सोच रखने की ,हम अपने घर में विदेशीपन को पनाह देकर ,राष्ट्र और राष्ट्रिय भाषा की समृद्धि कभी नहीं कर सकते हैं ।
मैं उड़न तस्तरी के लालजी को बताना चाहता हूँ कि जब अंग्रेजों के साथ आजादी सम्बन्धी चर्चा चल रही थी तो डोमिनियन स्टैट के बारे में भी विकल्प के रूप बात चली ,आपको पता होगा कि गान्धी जी के डोमिनियन स्टैट पर हामी भरने के कारण ,अधिकांश लोगों ने उसका विरोध भी किया ,नेताजी ने तो यहॉं तक कहॉं कि आजादी का अर्थ पुर्नस्वराज हैं ,हम लेंगे तो पूरी लेंगे ,अधुरी बातों पर हमें विस्वास नहीं हैं । डोमिनियन स्टैट का अर्थ रक्षा ,विदेश - नीति सम्बन्धी सभी अधिकार अंग्रेजों के हाथ में होगी और हमें केवल आन्तरिक मामले में अधिकार प्राप्त होगा ।
हमने अंग्रेजों को मीटाकर ही स्वराज हासिल कर सकें हैं ,यदि गुलामी का दर्द आजादी के दीवानों को न होता तो शायद देश आजाद भी नहीं होता ,अंग्रेजी का मोह जब तक हमारे मानसिक पटल से साफ न हो जाए, तब तक कितने ही अच्छे शब्द जाल से लिखते हुए लोगों को रिझा ले ,अपने पक्ष में व्होट डलवा ले , उससे देश और समाज का भला नहीं हो सकता हैं ।
लाल जी ! आज भारतवर्ष में आप सर्वे करवा लें कि कितने भारत वासी अंग्रेजी समझते और बोल सकते हैं ? मुठि्ठ भर लोग अंग्रेजी के नशे में अपने आप को महान घोषित कर रखा हैं । यदि चीन बगैर अंग्रेजी के तरक्की कर सकता हैं ,फ्रांस ,रूस ,जपान,जर्मनी,क्या अंग्रेजी के बलबुते में विकास हुआ हैं ? वहॉं तो अंग्रेजी में बाते करने पर उसे जोकर की तरह देखते हैं ।
अंग्रेजी जैसे भिखारी भाषा तो दुनियॉं में हैं ही नहीं ,जहॉं आज भी पारिवारिक रिस्तों के लिए सम्बोधन शब्दों का अभाव हैं । दुनियॉ के सभी भाषाओँ से उधार लेकर अंग्रेजी काम चलाता हैं ,अत: हिन्दी अंग्रेजी से सम्पन्न भाषा हैं, इसे समृद्ध बनाने के लिए लकीर को छोटी करने की आवश्यकता नहीं हैं ,जो छोटी हैं उसे बडी साबित करने की मुझे आवश्यकता नहीं हैं ,मैं तो हिन्दी जैसे समृद्ध भाषा को शडयंत्र पूर्वक छोटी करने का जो प्रयास करता हैं उस पर आवाज उठाता रहूंगा ,जरूरत हैं मानसिक समृद्धि की ,जरूरत हैं राष्ट्रवाद पर चलते हुए विश्व की सोच रखने की ,हम अपने घर में विदेशीपन को पनाह देकर ,राष्ट्र और राष्ट्रिय भाषा की समृद्धि कभी नहीं कर सकते हैं ।
बुधवार, 16 सितंबर 2009
भूल जाइए हिन्दी दिवस ---
मैंने अंग्रेजी दिवस मनाते हुए आज तक न देखा और न सुना हैं ,हर वर्ष धुमधाम से हिन्दी दिवस मनाने का एक परम्परा इस देश में चल निकला हैं । मेरे मित्र ने अभी हिन्दी दिवस के दिन फोन पर सम्पर्क किया और कहा कि फ्रेन्ड हिन्दी डे मनाना है होटल .....में 10 ए एम को आना जरूरी हैं । मैंने दोस्त को कहा कि भाई मैं तो आज का दिन अंग्रेजी की अर्थि दिवस के रूप में मनाना चाहता हूँ , क्या ऐसा नहीं हो सकता ?
हिन्दी दिवस में अग्रेजी की अर्थि दिवस मनाने से एक खास समाचार जनता तक पहुँचेगी कि जब तक अंग्रेजी का अर्थि इस देश से न निकले तब तक हिन्दी का भला हो ही नहीं सकता हैं । एक ही बील में सॉंप और चूहा कैसे रह सकता हैं ? अब अंग्रेजी सॉंप हैं या चूहा यह तो हम सबको मिलकर सोचना होगा । हमारे देश में तो दोनों का पूजा होता हैं ,एक ओर नाग देवता, दूसरी ओर गणेश जी के वाहन । मुझे तो बस भावना से आगे हिन्दी का विकास चाहिए ।
स्वामी विवेकान्द ने तो सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी को ही विशेष स्थान दिया था ,यदि राष्ट्रभाषा के रूप में आज भी हिन्दी उपेक्षित हैं तो उसका एक मात्र कारण हैं कि हम अंग्रेजी का गुलाम बन चूके हैं ।
जिस तरह घर के प्रियजन के मौत होने के पश्चात यथाशीघ्र शव को परम्परानुसार क्रिया कर्म किया जाता हैं ,क्योंकि सभी को भय रहता हैं कि यदि सडन लग जाए तो रहना मुस्किल हो जाएगा । ठीक उसी प्रकार जिस दिन इस देश से अंग्रेज सत्ता की मौत हो चूकी थी उसी दिन से अंग्रेजी और अंग्रेजीयत की शव को दफन कफन कर देना चाहिए था । पर ऐसा नहीं हुआ ,अत: उस शव के सडन से दुर्गन्ध तो आना ही हैं ।
जितनी जल्दी हो सके अंग्रेजी की अर्थि उठाकर दफन कर दिया जाए ,नही तो बदबू से तमाम प्रकार के रोगों से हम मरते रहेंगे ।
प्रथमत: धनादेश पर हिन्दी में ही हस्ताक्षर करना शुरू किया जा सकता हैं । अक्षरों को हिन्दी में लिखना और वाक्यों में लिखना अपने आप में कान्तिकारी कदम हो सकता हैं । मैंने यह किया हैं ,अच्छा लगता हैं, आप भी यदि सचमुच हिन्दी का भला चाहते हैं तो अवश्य शुरू किजीए । यदि असुद्ध होने लगे तो भय की क्या बात हैं ? शुद्ध असुद्ध तो हमने तय किया हैं ,जब मरा -मरा जपते हुए रत्नाकर दस्यु वािल्मकी बनकर रामायण की रचना कर सकते हैं तो क्या असुद्ध लिखते लिखते शुद्ध नहीं हो जाएगा ?
बंगला भाषी होने पर भी मैंने हिन्दी में लिखना शुरू किया हैं ,असुद्ध लिखता हूँ ,पहले और आज के लेखन में मैंने स्वयं बहुत अन्तर देख रहा हूँ ,उन अंग्रेजों के औलादों से तो मैं ठीक कर रहा हूं न ?? छोटी छोटी शुरूआत समुद्र भी बनेगा ...अवश्य बनेगा....इसलिए हिन्दी दिवस भूल जाइए ..अंग्रेजी का अर्थि दिवस प्रारंभ....तो देर किस बात की ...
हिन्दी दिवस में अग्रेजी की अर्थि दिवस मनाने से एक खास समाचार जनता तक पहुँचेगी कि जब तक अंग्रेजी का अर्थि इस देश से न निकले तब तक हिन्दी का भला हो ही नहीं सकता हैं । एक ही बील में सॉंप और चूहा कैसे रह सकता हैं ? अब अंग्रेजी सॉंप हैं या चूहा यह तो हम सबको मिलकर सोचना होगा । हमारे देश में तो दोनों का पूजा होता हैं ,एक ओर नाग देवता, दूसरी ओर गणेश जी के वाहन । मुझे तो बस भावना से आगे हिन्दी का विकास चाहिए ।
स्वामी विवेकान्द ने तो सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी को ही विशेष स्थान दिया था ,यदि राष्ट्रभाषा के रूप में आज भी हिन्दी उपेक्षित हैं तो उसका एक मात्र कारण हैं कि हम अंग्रेजी का गुलाम बन चूके हैं ।
जिस तरह घर के प्रियजन के मौत होने के पश्चात यथाशीघ्र शव को परम्परानुसार क्रिया कर्म किया जाता हैं ,क्योंकि सभी को भय रहता हैं कि यदि सडन लग जाए तो रहना मुस्किल हो जाएगा । ठीक उसी प्रकार जिस दिन इस देश से अंग्रेज सत्ता की मौत हो चूकी थी उसी दिन से अंग्रेजी और अंग्रेजीयत की शव को दफन कफन कर देना चाहिए था । पर ऐसा नहीं हुआ ,अत: उस शव के सडन से दुर्गन्ध तो आना ही हैं ।
जितनी जल्दी हो सके अंग्रेजी की अर्थि उठाकर दफन कर दिया जाए ,नही तो बदबू से तमाम प्रकार के रोगों से हम मरते रहेंगे ।
प्रथमत: धनादेश पर हिन्दी में ही हस्ताक्षर करना शुरू किया जा सकता हैं । अक्षरों को हिन्दी में लिखना और वाक्यों में लिखना अपने आप में कान्तिकारी कदम हो सकता हैं । मैंने यह किया हैं ,अच्छा लगता हैं, आप भी यदि सचमुच हिन्दी का भला चाहते हैं तो अवश्य शुरू किजीए । यदि असुद्ध होने लगे तो भय की क्या बात हैं ? शुद्ध असुद्ध तो हमने तय किया हैं ,जब मरा -मरा जपते हुए रत्नाकर दस्यु वािल्मकी बनकर रामायण की रचना कर सकते हैं तो क्या असुद्ध लिखते लिखते शुद्ध नहीं हो जाएगा ?
बंगला भाषी होने पर भी मैंने हिन्दी में लिखना शुरू किया हैं ,असुद्ध लिखता हूँ ,पहले और आज के लेखन में मैंने स्वयं बहुत अन्तर देख रहा हूँ ,उन अंग्रेजों के औलादों से तो मैं ठीक कर रहा हूं न ?? छोटी छोटी शुरूआत समुद्र भी बनेगा ...अवश्य बनेगा....इसलिए हिन्दी दिवस भूल जाइए ..अंग्रेजी का अर्थि दिवस प्रारंभ....तो देर किस बात की ...
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