गुरुवार, 17 सितंबर 2009

उड़न तश्तरी के समीर भाई ---आप तो मित्र हो ---

हिन्दी दिवस के स्थान पर अंग्रेजी की अर्थी दिवस पर जो विचार ब्लोग के माध्यम से मैंने लोगों तक पहुँचाने की कोशिस किया हैं उस पर अनेक टिका टिप्पणी के पश्चात मुझे लगता हैं कि हम सभी को हिन्दी के प्रति बहुत सम्मान हैं ,हो सकता हैं कि कुछ लोग किसी मजबुरी के लिए अंग्रेजी को सम्पर्क भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हो ,पर समयानूकुल हिन्दी का ही पक्ष मजबुती से सामने रखना चाहते हैं ।
आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पनी भेजी हैं, जिसे मैंने कई बार पढा ,रोचक और ज्ञानवर्धक टिप्पणी के लिए ससम्मान धन्यवाद । टिप्पणी को प्रकाशित कर दिया गया हैं । विशेष रूप से महफूज अली जी के टिप्पणी तो गागर में सागर हैं ।
संगीता पुरी जी ने भी बहुत अच्छी बाते लिखी हैं ,हिन्दी सम्पन्न बने ,पर सकारात्मक सोच के साथ ,खुद बडा हो जाए तो सामने वाला छोटा होना तय हैं और अंग्रेजी ज्ञान का भण्डार हैं ,आदी ...जरा महाभारत काल को मनन करने की कोशिस करें तो सच्चाई पर चलने वाले पाण्डव के साथ क्या घटना घटती हैं और आखीर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लड़ाई करने का उपदेश दिया ,हम सच्चाई पर चलने पर भी कौरव पक्ष आज भी सक्रिय हैं अत: न चाहते हुए भी कौरव को सबक सिखाना अति आवश्यक हैं ।आप बडा होना चाहते हैं, पर आपका कद वर्तमान परिस्थिती के कारण छोटा कर दिया जाता हैं ,अत: परिस्थिती को अनुकुल करने के पश्चात ही कद बड़ा या छोटा प्राकृतिक नियमानुसार सम्भव हैं । काशिफ आरिफ जी ने तो मुझे प्रमाण पत्र ही दे दिया ,हिन्दी ही उत्तम ...

उडन तश्तरी और समीर जी ने प्रथम टिप्पणी न देखपाने की बाते लिखी हैं ,समीरजी !मैं कार्यक्षेत्र पर था ,आप देखिए मेरी अधिकांश आलेख रात की ही होगी ,रात में प्राय: सभी मेल और अन्य टिप्पनीयॉं देखने की कोशिस करता हूं, अत: आपको रात को ही पढ पाया ।
आलेख में मैंने हिन्दी को राष्ट्र भाषा होने के साथ ही साथ एक अच्छा सम्पर्क भाषा होने के लिए भाषा में सर्वोच्च स्थान पर रखने की कोशिस किया हैं । जैसे देश की राष्टीय ध्वज मात्र कपड़े की टुकड़े नहीं होती ,उसी तरह हिन्दी भी मात्र भाषा नहीं ,पर देश की प्राण हैं ।
अंग्रेज इस देश में मात्र राज करते तो शायद विशेष क्षती नहीं होती ,अंग्रेजों ने तो यहॉं के संस्कृति पर हमला किया हैं , शिक्षा पर हमला किया हैं ,जीवन के हर पहलूओं को नेस्तानाबुत किया हैं जोर जूल्म के साथ इस देश में गुरूकुल के स्थान पर कान्वेन्ट चालु किया हैं ,यहॉं जुल्म के साथ ईसाइ मत का प्रचार किया हैं । अंग्रेजी बहुत अच्छी भाषा , और भारत वर्ष की सभी भाषा तुच्छ हैं ,ऐसा प्रचार करना किसी भी तरह क्षम्य नहीं हैं ।
यदि गान्धीजी होते तो हो सकता था कि वे अंग्रेजों को क्षमा कर देते ,पर मैं किसी भी किंमत पर उन्हें क्षमा नहीं कर सकता हूँ । मैं अंग्रेज और अंग्रेजी को अलग नहीं कर सकता ,मैं अपराध और अपराधी को भी अलग नजर से नहीं देखता , यदि दोनों भीन्न होता तो न्यायालय अपराधी को कैद की सजा क्यों देते हैं ? अपराधी के मन से अपराध को निकालकर उस अप्रत्यक्ष अपराध बोध को कैद में क्यों नहीं डाल सकते ?
अंग्रेज दुनियॉं मे जहॉं -जहॉं गया ,वहॉं बरबादी को ही प्रोत्साहन दिया हैं, अत: अंग्रेज और अंग्रेजी क्षमायोग्य नहीं । अंग्रेजी धौस जमाने की भाषा हैं अत:, मुझे इस पर कोई सहानुभूती नहीं है।
समीरजी विचार तो विचार हैं ,दुनियॉं में सभी पहलुओं के लिए सभी का विचार एक जैसे हो ,कोई जरूरी हैं क्या ? आपने अपना काम किया ,मैंने मेरा काम किया हैं , विचार भिन्नता के कारण आज के नेताओं जैसे हम थोड़े ही लडेंगे ? आप तो मित्र हैं , तभी तो एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान होता हैं । खूब लिखिए और कोशिस करूंगा जवाब भी दे सकूँ । क्षमा वगैरा की कोई आवश्यकता नहीं ....................
प्रवीण शाह को भी धन्यवाद । एक बहुत अच्छी बात आपने लिखी हैं ,कि सबसे पहले एस.के.राय को अंग्रेजी से हटा कर हिन्दी किया जाए । मैंने भी अनेक बार कोशिस किया, पर हटता ही नहीं , यदि कोई टीप हो तो मुझे अवश्य बताने का कष्ट करें । देश में कानून की किताबे ,विज्ञान और अन्य किताबे भी अभी मिलने लगे हैं, यदि हम सभी बाजार में हिन्दी की मांग करें तो अधिकाधिक छपवाने का भी व्यवस्था करना ही पड़ेगा ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉगर पृष्ट पर जायें:

    सेटिंग्स>बेसिक>टाईटिल

    इसमें हिन्दी में एस. के. रॉय (राय) लिख दें, बस हिन्दी में दिखने लगेगा.

    आपका आभार इस आलेख के लिए और इस भावना के लिए.

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  2. ओह, शायद मेरी सलाह से आपका शीर्षक ’मेरे विचार’ से बदल कर एक के राय हो जायेगा.

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  3. आप अपने ब्लोगर प्रोफाइल में अपना नाम अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी में कर दें याने कि अपने प्रोफाइल में S.K. Roy को एस.के. रॉय (या राय, जो भी सही हो) कर दें। आपकी परेशानी दूर हो जायेगी।

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