सिरिल गुप्ता जी !
यदि उत्तर न दू तो अच्छा नहीं लगता ,आपने तो ब्लॉग में लिख ही दिया कि ब्लागवाणी पर यह पहला आरोप नहीं है । इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ लोग हो सकता है कि आरोप लगाने में ही कोई भला समझते हो , लेकिन ऐसे लोगों को पुछना चाहिए कि आरोप लगाने से उसका क्या भला हो रहा हैं ,यदि आरोप से उसका भला होता हो और ब्लागवाणी को विशेष नुकसान न हो तो ,ऐसे व्यक्तियों को आरोप लगाने के लिए उत्साहित करना भी ठीक हैं ।
आजकल नकारात्मक विचार भी सकारात्मक की ओर ले जा सकता है ,मैंने एक पोस्ट में लिखा है कि यदि मरा -मरा जपने से राम -राम हो सकता हैं ,तो आरोप लगाते लगाते स्वयं आरोप रहित हो जाने की सम्भावना अधिक हो सकती हैं ।
आपने धीरज खोने की बातें लिखी है ,इससे तो साफ हो जाता हैं कि समस्याओं पर आपलोगों ने बहुत अधिक ध्यान दिया हैं , तभी तो मोडरेशन के बारे में ब्लोगारों का सुझाव भी आमंत्रित किया गया हैं । मैं बहुत ही स्पष्ट रूप से आपको बताना चाहता हूँ कि ईमानदारी पूर्वक सबसे अच्छा जो विकल्प आपलोगों को सही लगे ,आपलोग वही करें ,मैं तो भारत वर्ष की भेड़तंत्र पर विस्वास ही नहीं करता ,अत: आपसे निवेदन हैं कि आप सर्वमान्य पर अधिक ध्यान न देते हुए ,जो सबसे अच्छा विकल्प आपलोगों के विचार में लगे, उसी पर आमल करें तो उत्तम होगा ।
जारा ध्यान देने की बात हैं कि आप कितनी भी अच्छी विकल्प ढूंढ ले ,क्या फिर भी आरोप से रहित रह सकेंगें ... ? मुझे लगता हैं कि सम्भव ही नहीं हैं ॥ मैंने जीवन में ऐसे कुछ कार्य जो बहुत ही इमानदारी पूर्वक किया हैं ,उसका फल भी लोगों को अच्छा ही मिला ,फिर भी आरोपों से बच नहीं सका ....
हिन्दी का विकास बहुत जरूरी हैं ,जो भी प्रयत्न और जैसी भी प्रयत्न ,आपलोगों ने शुरू किया हैं उसका एक इतिहास बनेगा .... लोग चाहे कुछ भी कहें पर न्यु का ईंट तो दफन हो जाता ,और उस पर मंजिल खड़ी होती हैं ,आप तो न्यु की ईंट हो ,तो दफन होने में किसकी भय हैं ?
मेरे संदेश याद रखने की बात कहकर सिरिल जी ! आपने बडप्पन का परिचय दिया हैं ,ईश्वर आपको सही दिशा दे ,आपलोगों को नई उमंग दे ,हिन्दी की विकास के लिए आप लोग कृत संकल्पित रहें ...यही प्रार्थना करता हूं ............
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
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लेखन के क्षेत्र में इतने विवाद उठाए जाते हैं कि यदि आपने उन्हें सीरियसली लेना शुरू कर दिया तब आप एक कदम भी नहीं चल सकते। अत: आपका कथन एकदम सही है कि विवादों से दूनिया चलती नहीं है, हम बस ईमानदारी पूर्वक काम करते रहें। हाँ इतना अवश्य होता है कि जब हम बिना स्वार्थ या आर्थिक उपलब्धि विहीन कोई कार्य करते हैं तब मन में जरूर विचार आता है कि यदि ऐसा ही है तब हम क्यों करे? फिर भी विचारवान व्यक्ति को संयम रखना ही पडता है। लोग तो आपकी कीर्ति को धूमिल करने के लिए ही तत्पर बैठे हैं। हमने भी पलायन कर लिया तब हम उन्हीं की मंशा को पूर्ण करने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंडाक्टर गुप्ता के विचारो से सहमत हूँ .
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