दुनियॉं को बनाने ,सवॉरने वाले सर्वशक्तीमान भगवान को कुछ भी नाम से पुकारे ,पर पुकार तो एक ही स्थान में ही जाकर रूक जाता हैं ,जैसे पिता को पिताजी कहें,पापा कहें ,कहीं -कहीं भैया ही कहते हैं ,पिताश्री कहें ,फादर कहें या अन्य भाषाओं में कुछ भी कह ले पर पिताजी ही प्रतिक्रिया करते हैं । ईश्वर को भी अनेक नामों से पुकारने पर भी ईश्वर तक आवाज जरूर पहुंचता हैं । लेकिन मैंने कभी ईश्वर को रोता हुआ न सुना हैं, और न देखा हैं । परन्तु मेरे साथ तो आज कल कुछ अजीब -अजीब घटना घटने लगी है ।
कल ही भगवान मेरे सामने आकर रोने लग गए ,मैंने पूछा कि भगवान आप क्यों रो रहे हैं ? आपको तो कोई कष्ट रूला नहीं सकता , पल भर में सारे दु:ख -कष्टों को हरने वाले आप ...आज मेरे जैसे दो कौड़ी के आदमी के सामने रो रहे हैं !
मैंने कहा प्रभू यह तो मुझसे देखा नहीं जाता ,और विश्वास भी नहीं हो रहा हैं कि सत्य ही आप भगवान हैं ? मैंने जेब से रूमाल निकाला और ऑंखो को पोछने लगा और कहा भगवान यदि आप भगवान नहीं हैं, फिर भी मुझे आप के रोने से कष्ट हो रहा हैं,क्या मैं आपका कष्ट को दूर कर सकता हूँ ?
भगवान बोले राय ! तुमको पहले मुझ पर विश्वास करना होगा कि मैं भगवान ही हूँ ,इसके पश्चात ही मेरे दु:ख का कारण बताउंगा ।मैं तो आज बुरा फंश गया ,भगवान को मैंने कहा कि प्रभू ! मैं किसी के कहने पर कैसे विश्वास करू कि आप भगवान हैं ? आज तो नकली भगवान असली भगवान से अधिक सुन्दर और चमत्कारिक होते हैं ,भारत जैसे देश में तो आपके जैसे असली भगवान की आवश्यकता ही नहीं हैं ।
यहॉं तो एक नहीं हजारों भगवान हैं ,फिर आपके कहने से मैं आपको भगवान कैसे मानलूँ ? भगवान तो जैसे आगबबूला हो गए ,बोले राय मैं नराज होता हूँ , तो प्रलय हो जाता हैं--
परन्तु तुम्हारे सामने तो रो रहा था ,अब देखो मेरे विश्व रूप ......सचमुच भगवान ने मेरे सामने विश्वरूप दिखाया ,मैं रोमांचित हो रहा था और रूप देखकर भयभीत भी...
इतने में भगवान ने कहा बस आगे मेरे बारे में कुछ न लिखना.......
अब विश्वास हो गया कि नहीं ? मैं क्या कहूँ ,एका एक भगवान के चरणों में साष्टांग हो गया और बोला प्रभु मुझे क्षमा करना ,मैं तो अबोध हूँ , नराधाम हूँ ,द्वापर के अर्जुन को जो रूप आपने दिखाया था आज विश्व में मैं दूसरा हूँ , जिसको विश्व रूप का दर्शन हुआ हैं ।
मैंने कहा प्रभू अब तो आप जो भी बोलेंगे वही करूंगा ,जल्दी -जल्दी बताईए कि क्या करने से आपका रोना बंद होगा ? प्रभुबोले ...सुनो राय! अभी -अभी गणेश जी के पूजा के समय लोगों ने नदी नालों में इतनी कचरा भर दिया कि सालों तक देश के लाखों कल कारखाने से निकलने वाली मैले से अधिक है। अब दुर्गा पूजा के बाद नदियों का क्या हाल होगा वहीं सोच -सोच कर मैं रो रहा हूँ ।
दूनियॉं में जितनी प्राणी हैं उनके लिए शुद्ध जल तो क्या अशुद्ध पानी की व्यवस्था मैं कैसे कर पाउंगा, मेरे द्वारा बनाए गए सारे व्यावस्था तो मनुष्यों ने बिगाड़ दिया हैं ,जिसके कारण वर्षा भी समय से नहीं दे पा रहा हूँ ,जिस दूनियॉं को मैंने बनाया हैं उसी दुनियॉं को आखों के सामने बरबाद होते देखना पडेगा ? यह सब सोचता हुआ रो रहा हूँ । तुम जरा इस लोगों को समझाना कि दशहारा में मूर्तियों का विसर्जन नदी नालों में न करे उसके लिए अन्य व्यवस्था किया जा सकता हैं । भारत वर्ष में तो शरीर से आत्मा चले जाने के पश्चात दाह संस्कार और दफनाने का रिवाज हैं ,मूर्तियों को दोनों विधीयों से कोई एक विधी द्वारा शान्ति किया जा सकता है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो मैं प्राणीयों के लिए शुद्ध जल तो दूर अशुद्ध पानी भी व्यावस्था नहीं कर पाउंगा ......इतना कहते हुए प्रभु अंतर्ध्यान हो गए ,परन्तु रोने की आवाज आज भी हर रात को मेरे कान में गूंजता हैं ......पता नहीं प्रभु को कब तक रोना पड़ेगा ......................................
रविवार, 20 सितंबर 2009
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बहुत सही मुद्दे पर ध्यान गया है आपका .. सचमुच पर्यावरण के लिए चिंता के विषय होते जा रहे हैं हमारे त्यौहार .. भगवान ऐसे मिलते हैं भला !!
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