जब से मैंने ब्लोग में लिखना शुरू किया किया हैं तब से किसी पर व्यक्तिगत रूप में कुछ भी आक्षेप नहीं लगाया हैं ,न ऐसा मंशा कभी था और न आज है। जब राष्ट्रहित और जनहित की बात आती हैं तो विपरीत टिप्पनी पर लिखना मजबूरी के साथ फर्ज भी हो जाता हैं ।
मैं उड़न तस्तरी के लालजी को बताना चाहता हूँ कि जब अंग्रेजों के साथ आजादी सम्बन्धी चर्चा चल रही थी तो डोमिनियन स्टैट के बारे में भी विकल्प के रूप बात चली ,आपको पता होगा कि गान्धी जी के डोमिनियन स्टैट पर हामी भरने के कारण ,अधिकांश लोगों ने उसका विरोध भी किया ,नेताजी ने तो यहॉं तक कहॉं कि आजादी का अर्थ पुर्नस्वराज हैं ,हम लेंगे तो पूरी लेंगे ,अधुरी बातों पर हमें विस्वास नहीं हैं । डोमिनियन स्टैट का अर्थ रक्षा ,विदेश - नीति सम्बन्धी सभी अधिकार अंग्रेजों के हाथ में होगी और हमें केवल आन्तरिक मामले में अधिकार प्राप्त होगा ।
हमने अंग्रेजों को मीटाकर ही स्वराज हासिल कर सकें हैं ,यदि गुलामी का दर्द आजादी के दीवानों को न होता तो शायद देश आजाद भी नहीं होता ,अंग्रेजी का मोह जब तक हमारे मानसिक पटल से साफ न हो जाए, तब तक कितने ही अच्छे शब्द जाल से लिखते हुए लोगों को रिझा ले ,अपने पक्ष में व्होट डलवा ले , उससे देश और समाज का भला नहीं हो सकता हैं ।
लाल जी ! आज भारतवर्ष में आप सर्वे करवा लें कि कितने भारत वासी अंग्रेजी समझते और बोल सकते हैं ? मुठि्ठ भर लोग अंग्रेजी के नशे में अपने आप को महान घोषित कर रखा हैं । यदि चीन बगैर अंग्रेजी के तरक्की कर सकता हैं ,फ्रांस ,रूस ,जपान,जर्मनी,क्या अंग्रेजी के बलबुते में विकास हुआ हैं ? वहॉं तो अंग्रेजी में बाते करने पर उसे जोकर की तरह देखते हैं ।
अंग्रेजी जैसे भिखारी भाषा तो दुनियॉं में हैं ही नहीं ,जहॉं आज भी पारिवारिक रिस्तों के लिए सम्बोधन शब्दों का अभाव हैं । दुनियॉ के सभी भाषाओँ से उधार लेकर अंग्रेजी काम चलाता हैं ,अत: हिन्दी अंग्रेजी से सम्पन्न भाषा हैं, इसे समृद्ध बनाने के लिए लकीर को छोटी करने की आवश्यकता नहीं हैं ,जो छोटी हैं उसे बडी साबित करने की मुझे आवश्यकता नहीं हैं ,मैं तो हिन्दी जैसे समृद्ध भाषा को शडयंत्र पूर्वक छोटी करने का जो प्रयास करता हैं उस पर आवाज उठाता रहूंगा ,जरूरत हैं मानसिक समृद्धि की ,जरूरत हैं राष्ट्रवाद पर चलते हुए विश्व की सोच रखने की ,हम अपने घर में विदेशीपन को पनाह देकर ,राष्ट्र और राष्ट्रिय भाषा की समृद्धि कभी नहीं कर सकते हैं ।
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
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आपके लेख से मै यह तो ठीक से नहीं समझ पाया कि आखिर इसमें समीर जी का क्या रोल था, लेकिन जहां तक इस पिछले ५-७ महीने के अन्तराल में मैंने समीर जी को समझने की कोशिश की, वे बहुत ही सुलझे हुए इंसान है ! कहीं पर किसी टिप्पणी को ठीक से लिख पाना या कभी-कभार समझने वाले ठीक से न समझ पाना शायद कोई उलझन पैदा करे वो और बात है ! खैर, आप ये न समझे कि मै समीर जी की तरफ से कोई सफाई दे रहा हूँ ! आपके लेख के पैराग्राफ को पढ़ कर मुझे महफूज अली जी की टिप्पणी याद आ गई जो उन्होंने कल मेरे लेख पर की थी ! काफी इन्तेरेस्तिंग है इस लिए टिपण्णी का कुछ हिस्सा यहाँ लिख रहा हूँ :
जवाब देंहटाएंअंगरेजी बोलने वाले खुद को ऊँचा समझते है लेकिन यह भी देखिएगा अपने आस-पास कि कौन लोग और कब अंगरेजी बोलते है
उदाहरण के लिए :
१. शराबी- जब ज्यादा शराब पी लेता है !
२.कम पढालिखा इंसान- जिसे यह जतलाने की जरुरत पड़ती है कि वह भी पढा लिखा है !
३.सेल्स मैन- क्योंकि माल बेचना है
४.आदमी जब गुस्से में होता है
५.किसी को दबाने के लिए
तो कुल मिलाकर अर्थ यह निकला कि अंगरेजी एक खराब उद्देश्य के लिए इस्तेमाल होने वाली भाषा है !
सकारात्मक सोंच यही होती है .. जो समीरलाल जी ने लिखा है .. अपनी तरक्की पर ध्यान देना चाहिए .. खुद बडा हो जाए तो सामनेवाले का छोटा होना तय है .. अंग्रेजी में ज्ञान का भंडार खुला है .. जबतक अपना भंडार न बने .. उसका उपयोग तो करना ही होगा .. कहां तक बच सकते हैं आप !!
जवाब देंहटाएंहिन्दी ही उत्तम है....
जवाब देंहटाएंसाधुवाद...आभार
एक बार जरा अपने पिछले आलेख पर अपना आलेख और मेरी टिप्पणी फिर से पढ़ें और उसे समझने की कोशिश करें.
जवाब देंहटाएंअंगेजों और अंग्रेजी/ हिन्दुस्तानी और हिन्दी-इसका फरक करके पढ़ियेगा.
अगर फिर भी आप अपना आज का आलेख सही मानते हैं तो सही ही होगा. मेरी समझ या समझाईश में ही कुछ कमी होगी, अतः मै क्षमाप्रार्थी हूँ.
मेरी अग्रिम शुभकामनाएँ.
मेरी पिछली टिप्पणी दिख नहीं रही..फिर से उसी बात को दोहराने की कोशिश करता हूँ:
जवाब देंहटाएंनिवेदन है कि एक बार फिर से अपना पिछला आलेख और मेरी टिप्पणी पढ़्कर इस आलेख का उद्देश्य निर्धारित करें. मुझ लगता है कि समझने में कुछ जल्दबाजी कर दी आपने या कोई अन्य उद्देश्य हो इस शीर्षक का, तो मैं नहीं जानता.
पढ़ते वक्त अंग्रेजों और अंग्रेजी/ हिन्दुस्तानी और हिन्दी का भेद ध्यान में रखें. इन्सानों और भाषा का अलग अलग महत्व और अर्थ होता है.
इसके बात भी अगर आपको अपना यह आलेख उचित लगता है तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. शायद मेरी समझ और समझाईश में कमी हो, जिसकी संभावनाऐं ज्यादा है.
आप ज्ञानी है-इस बात से कतई इंकार नहीं है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ है.
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रॉय जी,
सर्व प्रथम तो आप एक काम यह कीजिये कि ब्लॉग पर अपना पूरा नाम हिन्दी में लिखिये, S K ROY अच्छा नहीं लगता आप जैसे हिन्दी समर्थक के लिये...
अब रही बात हिन्दी और अंग्रेजी के बड़े छोटे होने का तो जिस दिन हम लोग विज्ञान, कानून आदि की भाषा के तौर पर हिन्दी को स्थापित कर लेंगे तथा हिन्दी वालों को भी हर क्षेत्र के शीर्ष पद मिलने लगेंगे अंग्रेजी का महत्व स्वत: खत्म हो जायेगा...
जय हिन्द! जय हिन्दी!
भाषाएँ तो सभी महान होती हैं पर स्वाभिमानी व्यक्ति निज भाषा को ही प्राथमिकता देता है। अपनी भाषा का सम्मान करना अवश्य ही गर्व की बात है किन्तु किसी भी भाषा का अपमान करना अनुचित कृत्य है।
जवाब देंहटाएंसमीर लाल जी की टिप्पणी में मुझे कहीं पर भी कुछ अनुचित नहीं दिखाई पड़ा।