सोमवार, 14 सितंबर 2009

अमेरिका असभ्य,बर्बर,कंगाल--कौन कहता हैं विकसित हैं --

कौन कहता हैं कि अमेरिका विकसित देश हैं ,सभ्य हैं ,धनी हैं ? इतिहास गवांह हैं कि अमेरिका एक असभ्य ,बर्बर ,कंगाल के सिवाय कुछ भी नहीं है ,जिस देश की बुनियाद 30 लाख रेड- इंडियानों की खुन से रंगा हो ,जो वंश ड्रेकुला से सम्बन्ध रखता हो ,जो स्थानिय लोगों को बेरहमी से कत्ल कर उनके धन सम्पत्ति को लूट कर आज अपने आप को विकसित घोषित करता हो ,उसे क्या इतिहास के जानकार विकसित और सभ्य कहलाएगा ?
आज नहीं तो कल अमेरिका के वास्तविक हकदार जगेगा और अपना हक छीन कर लूटेरों का भगाने का काम जरूर करेगा ,हम ऊपरी चकाचौध को ही सत्य मानने का भ्रम कर बैठे हैं ,आज भी क्या अमेरिका कंगाल नहीं हैं ?
दुनियॉ का एक भी ऐसा देश आज नजर नहीं आता जहॉं सैकडों बैंक दिवालिया हो चुके हो ,देश के बीमा कंपनीयॉं बरबाद हो गई हो , आटो क्षेत्र का दम निकल गया हो , लाखों लोग बेरोगार होकर नारकिय जीवन जीने को मजबुर हो , जहॉं का अर्थव्यावस्था ही खत्म हो चुका हैं, वह देश क्या विकसित कहलाने योग्य हैं ?
कंगालो को आज भी हम धनी कहलाने में नहीं चुकते ,जिसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं बचा हैं और उनके नीति को मानने वाले देश भी बरबादी के कगार पर खडी हैं, फिर भी हम अमेरिका के पिछलग्गु बने हुए हैं ।
भारत वर्ष में ऐसे अनेक लोग होंगे जिसका नाम धनीराम हैं ,लेकिन रहते हैं झोपड़ी में । नाम सोनाधर पर सोने की एक अंगुठी भी नसीब नहीं ,अमेरिका का भी यही हाल है। यदि अमेरिका से विदेशी डाक्टर ,विदेशी वैज्ञानिक , शोध में लगे विदेशी विद्वान आदी स्वदेश चले आए तो अमेरिका के पास अपना कहलाने लायक क्या बचेगा ?
35 से 40 प्रतिशत इंजिनीयर ,लगभग 30 प्रतिशत वैज्ञानिक , 30 प्रतिशत शोध के विद्वान , 40 प्रतिशत लगभग डाक्टर ,सभी भारत वर्ष के हैं । यदि ये लोग स्वदेश लौट आए तो अमेरिका का क्या होगा ? हम कह सकते हैं कि देश की जनसंख्या बढ जाने के कारण अनेक समस्या पैदा होगी ,जबकि हमारे पास आज भी इतने संसाधन हैं कि उनका सही उपयोग हो तो आज 1 अरब से अधिक जनसंख्या होने पर भी हम जिस तरह जीवन यापन कर रहे हैं यदि इतनी जनसंख्या ओर हो जाए अर्थात 2 अरब भी हो जाए तो हमें को असुविधा नहीं होने वाली हैं ।
हमें मात्र ईमानदारी से संसाधनों का सन्तुलित और सही उपयोग करना होगा ,फिर भी आज हम अमेरिका से किसी भी तरह १९ नहीं हैं , एक कमजोरी जो हमें बारबार गर्त में ले जाती हैं वह हैं अमेरिका के सामने कंगाल जैसे हाथ फैलाना । १९७१ का बंगलादेश युद्ध मुझे याद आता हैं जब अमेरिका ने हमारे खिलाफ पाकीस्थान को सहयोग के लिए सातवीं बेडे को भेज दिया था । रूस ने उस समय हमारे साथ दोस्ती ईमानदारी से निभाई और अमेरिका को धमकाते हुए अपनी नोवीं बेडे को हमारे सहयोग के लिए भेज दिया था । हमारे मुर्खराज लोगों ने रूस को भुला कर अमेरिका जैस धूर्त लम्पट ,
लूटेरों के साथ दोस्ती करने बार बार दौड़ता है।
जब जब भारत ने अमेरिका से दोस्ती का हाथ बढाया तब तब अमेरिका ने लात मारा फिर भी यहॉं के नेताओं को शर्म नहीं आती ,अमेरिका का लात आशिर्वाद मानकर ,चरणामृत समझकर नेताओं ने सर पर लगाया ,कारगील के लड़ाई में भी अमेरिका ने पाकीस्थान का साथ दिया , पाकिस्थान को अमेरिका ने जब जब अर्थिक और युद्ध सामग्री दी तब तब वह भारत के खिलाफ प्रयोग किया अमेरिका को मना करने पर भी हमारा निवेदन कभी नहीं सुना, ऐसे गद्दारों के साथ आज भी कुछ अमेरिकी गुलाम जो सत्ता में बैठे हुए हैं ,वे इस देश को बरबाद करके ही दम लेगें ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. ओह रिय्यली?

    http://www.wider.unu.edu/publications/working-papers/discussion-papers/2008/en_GB/dp2008-03/_files/78918010772127840/default/dp2008-03.pdf

    पेज ८ और ११ देख लेना (बाकी अंग्रेजी मे है!)

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  2. आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.

    आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

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