गुरुवार, 3 सितंबर 2009
प्रकृति बचाओ या मौत के लिए तैयार हो जाओ
विष कन्याओं की किस्सा तो अनेक स्थानों में उल्लेख मिलता हैं ,परन्तु आज विश्व के प्राय: प्रत्येक स्थान में विष मानव पैदा हो रहा हैं ,गुप्तचरी के किस्से कहानीओं से आगे सचमुच मनुष्य आज विष खाने पीने का आदी हो चुका हैं । जैसे -जैसे जल-जमीन और जंगलों से मनुष्य का नाता टुटता जा रहा हैं वैसे -वैसे मानव ही नहीं पशु भी जहरीला बनता जा रहा हैं । जहॉं देखो जहर का ही खेल हैं । प्रात: काल से सोने तक हम आज जहर पर ही निर्भर होते जा रहे हैं ,समय ऐसा आएगा जब हम जहर के वगैर जीवन की कल्पना करना भी भुल जायेंगे , हम भुल जायेंगे कि इस धरती पर कभी आक्सिजन करके कोई जीवन वायु हुआ करता था । आक्सीजन के सिलेण्डर पीठ में लटका कर हमें जीना होगा और दूसरी पीढी के लोग तो इसकी आदी हो चुकी होगी , उन्हें ये सब सामान्य लगने लगेगा । कही भी आज पर्यावरण का जिस ढंग से विनाश किया जा रहा हैं उसे सुनकर और देख कर रोंगटे खडी हो जाती हैं । आश्चर्य तो तब और अधिक होता हैं कि पर्यावरण विभाग जैसे संस्थान ही मिली भगत करके पर्यावरण का ही दुश्मन बन बैठे हैं, यदि इस विभाग को बंद कर दिया जाए तो कुछ समय तक पर्यावरण दूषित होने से बच सकती हैं ,आज इस विभाग को बंद कर देने की अतिआवश्यकता हैं । कोयला दोहन करने का तो एक जुनून सा पैदा हो गया हैं ,कोयला नही तो जीवन नहीं का एक नया नारा ही बना लिया गया हैं । आज भूगर्भ से जिस तरह खनिजों का अति दोहन हो रहा हैं जिसके चलते जल -जंगल -जमीन सीमित हो कर मानव ही नहीं सम्पूर्ण जीव जगत के लिए चुनौती बन गया हैं । प्राणी इस जगत में रह पाएगा कि नहीं यह विचारनीय प्रश्न हैं । विकास का जो परिभाशा हमें बताया जा रहा हैं वह परिभाषा ही गलत अवधारनाओं पर आधारित होने के कारण आज विनाश ही विनाश देखते हुए सुधी जन वेचैन हैं ,लिख लिखकर लोग थक गए हैं ,समझा बुझाने का कोई असर ही नहीं होता हैं, आज रक्षक ही भक्षक बन कर प्राणी जगत का विनाश करने को तूले हुए हैं ,दुर्योधन जैसे लोग आज समझने को तैयार ही नहीं ,अपनी स्वार्थ के आगे सब बौना साबित हो रहा हैं ,ऐसे घनघोर स्थिति से कैसे निजात पाया जाए यह हम सभी को तुरंत सोचना होगा ,आज हंसी मजाक का समय बीत चुका हैं, जब संकट प्राणी जगत पर आ ही गया हैं तो सबसे पहले इस संकट को खत्म करके फिर अन्य सभी कार्य किया जा सकता हैं । इस वर्ष वर्षा की कमी के कारण सुखे की स्थिति पैदा होने के पीछे मानव निर्मित षडयंत्र ही हैं । प्रकृति तो दयामयी हैं ,प्राणों का प्राण हैं ,प्रकुति माया हैं ,प्रकृति छाया हैं ,प्रकृति क्षमा हैं ,प्रकृति मॉं हैं ,सुख का भण्डार हैं ,फिर आज मॉं की गोद खाली क्यों हैं ? प्रकृति विनाश लीला दिखाने को मजबूर क्यों हैं ? किसने किया प्रकृति को मजबूर ? आज जवाब चाहिए ...समाधान चाहिए ,चाहे कुछ भी किंमत चुकाना पड़े प्रकृति के दुश्मनों का नाश आज करना ही होगा ...कौन आज प्रकृति को बचाएगा ? कौन आज सामने आएगा ? अगली पीढी को बचाने के लिए आज हमे त्याग करना ही होगा .....करो या मरो का नारा फिर से देने का समय आ चुका हैं । प्रकृति बचाओ या मौत के लिए तैयार हो जाओ । ....
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सही संदेश.
जवाब देंहटाएंचेतावनी देती और चेताती पोस्ट अच्छी लगी। आप की intensity से हमेशा विस्मित सा हो जाता हूँ।
जवाब देंहटाएंपैरा में लिखें न। पढ़ने में सहूलियत रहेगी।