बुधवार, 30 सितंबर 2009

२३-०९ -२००९ को बालको में नव निर्मित बिजली सयंत्र की चिमनी धराशाई पर विस्तृत जानकारी





2 फरवरी 2001 का दिन कोरबा शहर के लिए एक मनहुस दिन सभी को आज भी याद हैं ,इसी दिन छत्तीसगढ विधान सभा में बालको निजीकरण के पक्ष और विपक्ष में गरमा- गरम बहस भी चल रहा था, 2001 में केंद्रीय सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी और राज्य में कांग्रेस के तेज तर्रार नेता और छत्तीसगढ के प्रथम मुख्य मंत्रि श्री अजित जोगी जी रहे हैं ।
बालको का निजीकरण किसी भी कीमत पर न करने का संकल्प विधान सभा में लेना था और कांग्रेस के सभी नेता एक जुटता दिखाते हुए बालको निजीकरण का विरोध ही नहीं किया बल्की यहॉं तक कहा कि हम बालको को बिजली-पानी नहीं देंगे । भारतीय जनता पार्टी की और से स्थानिय विधायक श्री बनवारी लाल अग्रवाल ,श्री ननकी राम कवंर ,विधान सभा में निजीकरण के पक्ष में भाषण दिए एवं केंद्र में बैठे भा ज पा का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा -कि बालको का निजीकरण होना ही चाहिए ।
विनिवेश मंत्रि श्री अरूण शौरी , पता नहीं कौन सी जुनून में रहे हैं, कि वे चून-चून कर लाभ में चल रही कंपनीयों को मिट्टी के मौल सौदा करते जा रहे थे । उस समय यदि बाजार मूल्य से बालको का मुल्यांकण किया जाता तो अधिकांश बुद्धिजिवीओं का कहना था -कि बालको किसी भी हालत में 5000 हजार करोड़ से कम की नहीं हो सकता हैं ।
बालको निजीकरण के साथ ही साथ उसका एक केप्टिक बिजली संयंत्र को भी एक साथ बेच दिया गया ,मात्र बिजली संयंत्र ही 1500 हजार करोड़ से कम नहीं था ,कुल मिला कर 551 करोड़ में एक विदेशी कंपनी को बालकों बेचने का सौदा पक्का करके, कोरबा वासीयों के साथ ही साथ बालको कर्मचारियों पर थौप दिया गया था ।
कांग्रेस की विधान सभा में संकल्प पास होना ,और बिजली पानी बंद कर देने का जो बातें विधान सभा में किया गया था, वह मात्र एक दिखावा साबित हुआ ,अजित जोगी तो बालको संयंत्र के भितर जाकर धरना में बैठ गए थे । केंद्र सरकार को ललकारते हुए वे कह रहे थे कि 551 करोड़ में 51 प्रतिशत हिस्सा छत्तिसगढ सरकार को दे दिया जाए ,हम बालको को अच्छी तरह चला लेंगे ,परन्तु सारी बाते केवल हवा बन कर रह गया ।
मुख्यमंत्री राजधानी जाते ही बालको निजीकरण से अपनी हाथ ही खिंच लिए ,वे यहॉं के नेताओं से मिलना तक मुनासिब नही समझे ,बेइमानी का पराकाष्टा ,गद्दारी का जिता जागता उदाहरण-- साक्षात देखकर कर्मचारि और छत्तिसगढ के जनता सहम गए थे, किंम्कर्तव्य विमुढ हो कर अनिष्ट की कल्पना करके जहर की घूंट पीकर वे अपने से जो कुछ हो सकता हैं ,जैसे भी हो, विरोध करते रहे हैं ।
मजेदार बात जो बाद में सामने आई ,वह यह कि श्रमिक संघ के नेताओं ने दिल्ली में पहले से ही सौदा करके बालको लौटे थे ,जिसके तहत अपने बच्चों और चहेतों को नौकरी के अलावा पदोन्नती के साथ भेंट आदी की पक्की इंतेजाम करते हुए मात्र श्रमिकों को वेवकुफ बनाने के लिए ,दिखावा स्वरूप बालको के हडताल में शामिल हुए थे । जिसमें भारतीय मजदूर संघ ,इंटक और समर्थीत संगठन का नाम लेना अनुचित न होगा ।



एटक और उनके कुछ चहते ने इमानदारी पूर्वक 67 दिन तक ऐतिहासिक आन्दोलन करने के पश्चात एकाएक इंटक ने आन्दोलन से समर्थन वापस लेकर ऐतिहासिक आन्दोलन के पीठ में छुरा भोंकने का काम किया ,जिसे भुल पाना सम्भव नहीं है। कांग्रेस और बीजेपी दोंनों बालको निजीकरण के मामले में मिर्जाफरी किया हैं ।
आज जो परिस्थिती बालको का है, उसे देख कर मन हाहाकार कर उठता है , बालको का पहचान एल्युमिनियम से जुड़ा हुआ था ,अनिल अग्रवाल जो एक अप्रवासी भारतीय ,इंग्लैण्ड से करोड़ों रूपये लाकर बेदान्ता समूह के नाम से ,ऐसा लगता है कि यह भारतीय कंपनी हैं ,जबकि वे विदेशी कंपनी का दलाल है -जो कि देश के साथ ईस्ट इण्डिया कंपनी से भी बढ कर गद्दारी करने की तैयारी में है।
कुछ लोगों को यह कहते हुए सुना गया हैं कि अजित जोगी ने बेदान्ता समूह से बहुत लाभ पाकर चुप हो गए और जब कार दुर्घटना में चलना फिरना भी मुस्किल हो गया था, तो लोगों को यह कहते हुए सुना गया कि ..ये बला दुनियॉ से चले क्यों नहीं गये ? मनुष्य संवेदनशील प्राणी हैं ,विपत्ति में तो कोई इस तरह की सोच भी नहीं रखता ,परन्तु जोगी जी ने लोगों का मन किस हद तक दुखाया होगा, जिसके चलते लोगों के मुंह से सहानुभूती के भी शब्द निकल नहीं रहा था । ..................
आगे चलकर उसका राज पाट खत्म हो जाता हैं, और राजधानी में जग्गी हत्याकांड में फँस कर राजनैतिक जीवन को चौपट कर बैठा ।
अति सर्वथा वर्जते ,ऐसा शास्त्रों में लिखा है , बालको के साथ भी अत्याचार का अति हो चुका है ,जो भी इस प्रकारण में लिप्त हैं , उसका भला कभी हो नहीं सकता ।बालको के एक श्रमिक नेता का जो दुर्गति हुई ,उसे देखकर भी वर्तमान श्रमिक नेताओ को होश नही आ रहा हैं , कहते हैं कि उस समय के भापजा मंत्री प्रमोद महाजन का हिस्सा भी बालको में था ......
एक कबाड़ बेचने वाला वह भी बालको का कबाड़ बेचकर जीवन चलाने वाला ,रातों रात बालको का मालिक कैसे बन सकता हैं ? सबसे पहले तो इस बात की जॉंच होनी चाहिए ,ऐसे व्यक्ति पाप छिपाने के लिए सामाजिक कार्य के आड़ में लोगों के ऑंखों धूल झोंकता हैं, दोचार सामूदायिक कार्य इसलिए किया जाता है ताकि स्थनीय लोग सोचे कि यह हमारा मसीहा है ,साधारण जनता ऐसे लोगों को बहुत बाद में पहचान पाते हैं ,जब तक समझ आता है ,तब तक सबकुछ लूट गया होता है।
जबसे वेदान्ता समूह बालको में आया हैं, यहॉं के कर्मचारियों से लेकर स्थानिय जनता ,सभी पेरेशान है1 बालको का निजीकरण न हो इसलिए कोरबा जिला बंद का अह्वान किया गया था, ऐसा बंद स्वस्फूर्त हो कर महाबंद का रूप ले लिया था ,इसका मतलब यह हुआ कि यहॉं के जनता बालको निजीकरण के पक्ष में कभी न थे, और न आज है ।
विनिवेश के नाम से विरोध को दबाने के लिए 2001 में बालको कोरबा को छावनी बना दिया गया था ,और आज जब चीन के कंपनी सेपको के सहयोगी कंपनी जे डी सी एल के भ्रष्टाचार के कारण ऊँची चिमनी धराशायी होकर सैकडों लोगों की जान चली गई और यहॉं किसी भी तरह की विरोध न हो सके इसलिए फौज मंगा लिया गया है ,शासन प्रशासन के सहयोग से चीन के भ्रष्ट कर्मचारि अधिकारीयों को कोरबा से बाहर जाने दिया गया , जिन्हें तुरन्त ग्रिप्तार करके जेल में डाल देना था ,उन लोगों को सुरक्षित दिल्ली तक जाने देना...शासन -प्रशासन की मंशा का पर्दाफाश करने में काफि हैं ।
घटना 23.09.2009 के दोपहर लगभग ३ बजकर ४० मिनट के लगभग होगा .29.09 09 तक 41 शव निकाला जा चुका था ,कुछ लोगों का कहना हैं कि यह संख्या सौ से अधिक है । सैकडों लोग घायल भी हुए कुछ लोगा लापता भी हैं । यदि स्थानीय समाचार पत्र विरोध न करते तो, हो सकता था कि भ्रष्टाचार में लिप्त सभी विदेशी चीन भाग गए होते ,इसके बाद किसकी जॉच और कैसी जॉच ....?
हमने तो भोपाल गैस काण्ड देख चुके है ,आज भी गैस से त्रस्त लोग टुट- टुट कर जीवन को ढो रहे है। और भारत सरकार महाराष्ट्र सरकार इस प्रकरण में तमाशा देख रही है ,हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने वाले एंडरसन का बाल तक बॉंका नहीं कर सकें । भारत में हत्या के आरोपी को फॉसी की सजा होती हैं ! परन्तु किसको होती हैं फॉसी की सजा ? भारतीयों को फॉसी हो जाती हैं, और विदेशीयों को हम फॉंसी नहीं दे सकते ,इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कोई प्रवासी भारतीय हो जाए तो उसके लिए कानून ही बदल जाता है ।
देश्द्रोही के अपराधी अफजल गूरू को कई साल बित जाने पर भी उसे सजा नहीं दिया जा सका हैं ..ऐसा क्यों हो रहा हैं ..... ? जिस चिमनी को सेपको द्वारा बनाई जा रही थी ,पूर्ण रूप से अमानक था ,लोहे की छड ,गिट्टी ,बालू , क्यूरींग ,पाईलिंग ,नींव आदी सभी अमानक निकला ,जिस चिमनी धराशायी हो चुकी है उसके बाजू में एक और चिमनी बन कर तैयार होने को हैं ,उसका भी यही हाल हैं कि कब वह गिरकर सैकडों लोगों का जान ल ेले और फिर एक बार जख्म को ताजा कर दे , किसीको पता नहीं है ।
एक चिमनी बनाने मे पिछले वर्ष आठ लोगों का जान ले लिया था , जान लेने वाली कंपनी को ही दूसरी चिमनी बनाने के लिए ठेका दे दिया गया हैं , भ्रश्टाचार का क्या क्या बयान करू ..... जब से एल्युमिनियम के नाम से कोरबा में अनिल अग्रवाल आया है ,तब से यहॉं लंूट ,दंगा ,गुंडागदी डकैती , शराब खोरी ,बलात्कार, हत्या ,नशेडि,गंजैडी , दूघजटना , प्रदूशण ,अवैध धंधा , वेश्यावृति,नकली नोटों का धंधा , आदी .....ऐसी कोई अपराध नहीं बचा हैं जो अनिल अग्रवाल के साथ यहॉं न आया हो ।
अत: अनिल अग्रवाल को सबसे पहले िग्रप्तार करते हुए उनके चमचों को भी िग्रप्तार करना आवश्यक है । श्रमिक संघ वाले तो ठेकेदारों से उगाही करने में मस्त रहे हैं ,इसलिए इसबार ऐसा कोई विरोध भी देखने को नहीं मिल रहा है । एकट ,इंटक ,सीटू सभी मात्र बयान बाजी तक सीमित हैं ,सैकडों लोगों का जान चला गया और आज तक एक भी लोगों का िग्रप्तारी न होना आश्चर्य ही नही , महा आश्चर्य है।
वन विभाग के जमीन पर अवैद्य रूप से चिमनी बनने का कार्य बालको कर रहा था ,न्यायालय के आदेश का पालन न करते हुए दादागीरि से कार्य करने का साहस स्थानिय प्रशासन के होते हुए भी किसने दिया हैं ,इस पर जॉच होना आवश्यक है।
श्रम विभाग के पास यह भी आकड़े नहीं हैं कि चिमनी स्थल में कितने लोग कार्य कर रहे थे ,बहुत लापता लोगों का लाश नही मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में मरने वालों की संख्या कैसे पता लगेगा ?श्रम विभाग भी बालको और ठेकेदारों से मिले हुए हैं , जॉंच निष्पक्ष रूप से होना आवश्यक हैं ।
राज्य शासन का जॉच तो मात्र दिखावा के सिवाय कुछ भी नहीं रहेगा,जॉच के नाम पर लिपाई -पुताई ही अधिक होने की सम्भवना के कारण सीबीआई से ही जॉच करना आवश्यक हैं ।
पुलिस विभाग भी इस प्रकरण में अपनी दाइत्व से बच नहीं सकता ,जहॉ घटना घटी है उस स्थान से पुलिस थाना बहुत ही नजदीक है ,फिर भी अपराधीयों को पुलिस ने घटना स्थल से जाने क्यों दी ?
घटना स्थल से लगा रिकार्ड रूम को बहुत ही सुनियोजित ढंग से जला दिया गया हैं ,ताकि भ्रश्टाचार से सम्बन्धित सम्पूर्ण दस्तावेज जल जाए और सबूत खत्म हो जाने से प्रकरण को दबाने में सरल हो । बालको आज रहने लायक नहीं रह गया हैं ,नया संयंत्र लगने के बाद ही परिवार सहित कर्मचारि रहने के लिए आते है। यहॉं तो एक बार बालको संयंत्र बन चूका था ,फिर एल्युमिनियम संयंत्र को यदि नया रूप दे कर उत्पादन बढया जाता तो कुछ समझमें भी आता और त्याग भी किया जा सकता था ,लेकिन आज बालको के संयंत्र तो पुरा का पुरा बंद हो चुका हैं । मात्र स्मेलटर को छोड कर सभी बंद है ,पी टी एस –प्रोफा्रईल एण्ड टयूब शॉप , सी डब्ल्यू एस – सेन्ट्ल वर्क शॉप ,पुराना सेल हाउस ,एल्युमिना प्लांट , सभी बंद पड़ा हुआ हैं ----
यहाँ के बाक्साईड को लांजीगढ उडीसा में भेज दिया जाता है । कर्मचारियों में भय का वातावरण तैयार करके व्ही आर एस लेने को वाद्य कर दिया गया ,बालको प्रशासन चाहती हैं कि एल्युमिनियम के आढ में बिजली का धंधा करें । हजारों एकड सरकारी भूमि को kabjaa karke ,हजारों पेडों का वली देकर ,चारों ओर अशान्ती का वातारण बनाकर ,पता नहीं कोरबा और देश का क्या विकास हो रहा हैं ।
विकास के नाम से ,विनाश का जो खेल प्रत्यक्ष दिख रहा है ,उसे देखकर भी शासन प्रशासन क्यो नहीं ? यह प्रश्न सबके मन में आज घर कर गई हैं ,लोग ऐसी नहीं कि समझती नहीं हैं ये सब समझती है ,वक्त बलवान हैं ,जरूर समय अपना हिसाब किताब मांगेगा ........... बेशर्मी का ,बेइमानी का तो हद ही हो गया हैं ,बालको प्रबंधन भ्रश्टाचार को प्राकृतिक कारण बताने की पूरी तैयारी करने में जूटी हुई है।
जिस समय चिमनी गिरी ,उसी समय थोडीसी हवा के साथ वर्षा हो रही थी ,कोरबा में जब कभी वर्षा होती हैं तो अधिकांश समय बिजली भी कडकती रहती हैं ,यहॉं के लोगों के लिए यह सब साधारण बात हैं ,प्रबंधन का कहना हैं कि हवा ,पानी के कारण चिमनी गिरी है ,यह बात करने वाले प्रबंधन किस हद तक मानव जीवन के साथ खिलवाड कर सकती हैं ,यह बयान ही समझने में बहुत है।
जब कभी ऊँची मकान निर्माण होती हैं उसके साथ ही साथ तडित चालक भी चढाया जाता है ,यह एक सामान्य सी नियम है । यदि हवा पानी ,बिजली से उची मकान और चिमनी धराशायी होने लगे तो इस दूनियॉं में ऊँची निर्माण ही बंद हो जाती ,इसका अर्थ यह हुआ कि तड़ित चालक ही निर्माण कार्य के साथ आगे नहीं बढाया गया ,यदि ऐसा होता हैं तो बहुत बड़ी खामि को किसी भी हालत में क्षमा योग्य नहीं माना जा सकता हैं ।
बालको प्रकरण तो मात्र एक उदाहरण ही हैं ,इस तरह की खामियॉं देश के अन्य भागों में आज विकास के नाम से किया जा रहा जनसंहार ,चाहे यह उडिसा के कोरियाई कंपनी पोस्तो का हो ,बिहार के कर्णपूरा क्षेत्र का हो ,हिमाचल प्रदेश के पन बिजली उत्पादन में लगे कंपनी का हो ,बडे सेजों द्वारा निर्माण किया जा रहा अन्य निर्माण कार्य हो ,सभी और पर्यावरण और जनहानी.... प्राणी और अन्य तरह की विनाश ही अधिक परिलक्षित हो रहा हैं । अत: इस तरह की विनाश अविलम्ब रोकना अतिआवश्यक हैं ।
विकास तो मानव या जीव जगत के लिए आवश्यक हैं ,विकास का अर्थ और किसके लिए विकास,यह दोनों बातों को नजर अन्दाज कर दिया जाता है ,मानव रहित और प्राणी रहित विकास से किसका भला होने वाला है ं ,यह विचार करने का भी किसी को समय नहीं मिल रहा है , शासन -प्रशासन सभी मदहोश होकर विनाश कार्य में लिप्त हैं ,एक मानसीक रोगी जिस तरह से अपनी जुनून में कुछ भी करता हैं ,और उसे रोगी मानकर चिकित्सा की व्यवस्था की जाती ,ठीक उसी प्रकार देश के शासन -प्रशासन एक मानसीक रोगी बन चुका हैं ,सही चिकित्सा यदि नहीं किया गया तो ,देश और दुनियॉं से जीवन का ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा ......
भोले भाले जनता के नाम से देश नहीं चलता ,और जो भोले भाले और निरस जीवन जीने वालों पर प्रजातंत्र जैसे शासन व्यवस्था का भार देना अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने का समान हैं ।
प्रजातंत्र में अधिकांश जनता को हमेशा जागरूकता का परिचय देना आवश्यक हैं ,यदि जनता जागरूक न हो तो प्रजातंत्र का अर्थ ही क्या रह जाएगा
सभी घटनाओं पर विचार करने पर एक बात साफ हो जाता हैं कि निजीकरण और सरकारी करण दोनों में विशेश अन्तर नहीं रह गया हैं । काम करने वाले सभी भारतीय होते हैं , हम यह मानकर चलते हैं कि यदि निजीकरण होगा तो लोग ज्यादा कार्य करेंगे और राश्ट्ीय कृत उद्योग में लोग अधिक कार्य नहीं करेंगे ,बात मात्र मानसीक तैयारी की हैं । अत: बालको जैसे अन्य उद्योगों का जो नीजिकरण के पश्चात कार्यकुशलता पूर्व संचालन नहीं कर पा रही हैं ,उन सभी उद्योगों को फिर से रािश्ट्यकरण कर देना समयानुसार उचित है ।
निजीकरण ,सेज ,विनाश से सम्बंधित जो भी ,जैसे भी विषय मिले उस पर हमें कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य करना चाहिए ------

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