करोड़ों ,अरबों की सम्पत्ति छोड़कर धीरूभाई अम्बानी इस दुनियॉं को छोड़ चले गए ,वे जीते जी शायद ही कभी सोचे होंगे कि उनके चले जाने के तुरंत बाद दोनों भाई सम्पित्त के लिए लड़ने लगेंगे, मामूली पेट्रोल पम्प में काम करने वाले धीरूभाईजी अम्बानी ने अकूत धन सम्पत्ति का जो साम्राज्य खड़े करके चले गए ,मेरे जैसे लोग यह सोच-सोच कर पेरेशान हैं कि जादू सा क्या धन- सम्पत्ति आकाश से टपका होगा ? कई पीढी तक लगातार प्रयत्न करने के पश्चात भी कुबेर सा सम्पत्ति बनाना असम्भव होता हैं ,फिर जीवन के द्वितीय सोपान में ही इतनी सम्पत्ति कहॉं से टपक गया हैं ?
इस देश में किस तरह धन बनाया जाता हैं यह तो एक साधारण सा आदमी भी आज समझने लगे हैं ।लेकिन लूट के माल जिस तरह बटवॉंरे के समय लूटेरे लड़ते हैं और बाद में इसी लड़ाई का परिणाम जेल तक का सफर बनकर अंत होता हैं ,ठीक इसी तरह ही अम्बानीभाई के साथ हुआ हैं ,इससे अधिक कहना अच्छा नहीं लगता ।
धन सम्पत्ति बनाने के लिए न्याय ,अन्याय, नीति ,अनीति का ख्याल तो रखना ही - चाहिए , आखिर धन सम्तत्ति इकट्ठा करने की हमारे धर्मशात्र अकुंश लगाती हैं । धर्म के ठेकेदार इस देश के कुबेरों को इस बात के लिए क्यों नसिहत नहीं देते, यह समझ से परे नहीं हैं । देश की सारी धन सम्पत्ति मुठि्ठ भर लोगों के हाथों में केंद्रित हो जाने के परिणाम स्वरूप आज समाज के हर अंग में विकृती परिलक्षित हो रहा हैं ।
मनुष्य मात्र धन सम्पत्ति का अम्बार लगाने का मशीन नहीं हैं ,इस दुनियॉं में उनके लिए अन्य अनेक कार्य हैं, जिसे समयानुकूल सभी को करना ही चाहिए ,हमारे गुरुजनों ने चार - आश्रम व्यावस्था की परिकल्पना भी इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया था,परन्तु आज हम अपने पूज्यजनों का कहना मानना तोहिन समझते हैं । अपरिग्रह नीति का अपमान करने में ऐसे लोगों को मजा आता हैं । देश जाए भाड़ में ,देश के लोग कंगाल हो जाए , मर जाए ,आत्महत्या कर ले , गरिबी से सड़ गल कर मर जाए, अनपढ गंवार हो कर गुलामी की जीवन ढोते रहे ,पर ऐसे धन पिशाचों को तो केवल चिटियों की भांती एकत्रित करने में ही मजा आता है, भले ही उसका कोई काम न आवे ।
धन इकट्ठा करना भी एक मानसीक रोग हैं और हम इन रोगीयों का तारिफ करते नहीं थकते । मनसीक रोगीयों का ईलाज होना चाहिए था, परन्तु हम उन्हें खुले आम छुट दे रहे हैं । क्या पागलों की तरह इन रोगीयों को ईलाज के लिए मानसीक चिकित्सालय में नहीं भेजना चाहिए ? अभी हाल ही में आन्ध्रप्रदेश की मुख्यमंत्री दुर्घटना में मारे गए ,माधव राव सिंधिया,प्रमोद महाजन आदी के पास भी तो करोड़ों की धन सम्पत्ति थी ,आज उस धन सम्पत्ति का उपयोग क्या हो रहा हैं ,यह सभी लोग देख सकते हैं । इस लिए साध्य और साधन का जो बाते धर्म ग्रन्थों में उल्लेख किया गया हैं वह कोई मजाक में नहीं लिखा गया हैं । हमें उन पर आमल करना चाहिए था ,पर कर रहे हैं उसके ठीक उल्टा , जिस पेड़ के डाली में बैठे हैं ,कालिदास उसी पेड़ के डाली को काटने लगे थे ,हम कालिदास को पकड़ कर राज कन्या से शादी कर देते हैं । आज भी हम वही सब कर रहे हैं जो हजारों वर्ष पूर्व सबक के लिए हमें विद्वानों ने बार बार चेताया करते थे , हम चेतने में भी अपमानित महशुस करते हैं ......मैं तो बस यही कहना चाहता हूँ कि बहूत हो चूका हैं .........उन लोगों को शर्म नहीं आती बेशर्म, बेहया- अमानुश ..........
रविवार, 6 सितंबर 2009
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निश्चित ही उन बातों पर अमल करना चाहिये.
जवाब देंहटाएंbahut hi achha lekh...aap achha sochte hai ye lekh padh kar pata chalta hai
जवाब देंहटाएंसच कहा जाये तो आज देश मे जो गरीबी है वो इन लोगों के कारण ही है बहुत बडिया विषय उठाया है आपने शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआएगी क्यों ? सरकार के साथ साथ हम लोग भी उसी का सम्मान करते हैं | अब जब भला उन्हें इतना सम्मान मिलेगा तो वो सरमायेंगे क्यों ?
जवाब देंहटाएंहमारी वैदिक सभ्यता ने हमें सब कुछ बता दिया है पर हमें अपने शाश्त्रों के पढने की फुरशत ही कहाँ ! वैसे भी इम्पोर्टेड विचारों के अलावा वैदिक सभ्यता के बारे मैं सोचने का समय मिले तब ना !
VERY GOOD
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