गुरुवार, 10 सितंबर 2009

तमिलों को नंगा करके -आंखों में पट्टी बाँध कर -गोलिओं से भुना जा रहा हैं

एक ईमेल ने मुझे पेरशान कर रखा हैं ,मैं सोचने को मजबूर हो गया कि आज 21वीं सदी में जो कुछ भी हो रहा हैं वह तो प्राचीन पाषण काल में भी नहीं होता था ,ईमेल श्री लंका में तमिलों पर हो रही फौजी अत्याचार से सम्बन्ध रखता हैं ,एक व्ही डी ओ क्लिप भी साथ में भेजा गया , मानवतावादी संगठनों द्वारा प्रजातंत्र की रक्षा के लिए एक साथ श्रीलंका में चल रही अमानवीय कुकृत्य पर पर्दा उठाकर दूनियॉं को झकझोर कर रख दिया ।
क्या आज यह विस्वास योग्य हैं कि श्रीलंका तमिलों को पकड़ कर लिट्टे के नाम से उसे नंगा करके ऑंखों में पट्टी बॉंध कर खुलेआम गोलियों से भूल डाले ? आज श्रीलंका में वह सब कुछ हो रहा हैं ,जो मानवता के नाम से कलंक हैं ।
एक समाचार कल ही मैंने पढा हैं जिसमें अमेरिका के युद्ध सामिग्र बनाने वाले सभी कंपनीयॉं कम से कम 5 गुणा मुनाफा कमाया हैं जहॉं अमेरिका में बैंक, बीमा ,साप्टवेयर कंपनियॉं ,आटो उद्योग सभी मंदी के कारण बंद हो चुकी हैं, वही युद्ध सामिग्र बनाने वाली कंपनियॉं लाभ कैसे कमा सकती हैं ? उत्तर सरल है कि अमेरिका पक्ष -विपक्ष सभी को हथियार प्रदान कर उपकृत करती हैं और भारी मुनाफा कमाने में लगी हुई हैं ,अमेरिका यदि छोटे बड़े सभी देशो और संगठनों को हथियार न दे तो दुनियॉं में शान्ति स्थापित होने में देर नहीं लगेगी ।
अमेरिका में बने हथियारों से एक विश्व युद्ध सा चल निकला हैं , प्रजा पर प्राणाघात प्रहार किसी भी किंमत पर सहमती योग्य हो ही नहीं सकता ,चाहे यह प्रहार कोई भी ,किसी भी नाम से ही क्यों न करें । मनुष्य जब जान दे नहीं सकता तो उसे किसी का जान लेने का अधिकार भी नहीं हैं । मनुष्य में देश के सरकार ,फौज ,हथियारों द्वारा लड़ने वाले लोग सभी आ जाते है। लडाई शुरू होने से पहले ही उसके तह तक जा कर उसे खत्म करना चाहिए ,आज तो उल्टा हो रहा हैं ।
छोटी -छोटी लड़ाई की परीक्षा ली जाती हैं ,और इन्तेजार किया जाता हैं ताकि लड़ाई आप ही आप खत्म हो जाए , परन्तु ऐसा नहीं होता ,कभी कभी यदि आप ही आप लड़ाई खत्म भी हो जाए तो, आगे और अधिक उग्र रूप से वह चालू भी हो जाने के कारण उसे सम्भालना मुस्किल हो जाता हैं । एक तो दुनियॉं से हथियारों का व्यापार बंद होना चाहिए ,जो शायद ही हो ,कारण अमेरिका का बुनियाद ही हथियार हैं । दुनियॉ के बारे में उसे सोचने का समय ही नहीं हैं ।
मानवता पर अत्याचार कदापी सहन योग्य नहीं हैं ,चाहे श्री लंका हो ,इराक हो ,ईरान हो , तालिवान ,पाकिस्थान या भारत हो । मानवता के खिलाफ जो भी कार्य करें उसके खिलाफ शान्ति पूर्वक ढंग से विरोध तो सुधी जनों को अवश्य ही करनी चाहिए ,अन्यथा मानव केवल दो हाथ पैर के पशु के सिवाय कुछ भी कहलाने लायक नहीं हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

translator