मंगलवार, 15 सितंबर 2009

देश के हरामखोरों को चैन से सोने नहीं दूंगा

इस देश से प्रजातंत्र और लोकतंत्र तो गुप्त सम्राज्य के पतन होने के साथ -साथ समाप्त हो चुका हैं 1
ओर पीछे चले तो सम्राट अशोक याद आता हैं ,इतिहास के जानकार दोनों पर विशेष शोध करके वस्तुस्थिति से जनता को जानकारी दे सकते हैं ,भारत वर्ष के महान लोकतंत्र हजारों वर्ष पुरानी हैं, हमें इस पर गर्व होना चाहिए ।
भारत वर्ष में प्रजातंत्र के नाम से जो शोषण तंत्र का जाल चारों ओर बिछाया गया हैं ,उसका परिणाम भी सभी के सामने हैं । देश में आज कोई भी सुरक्षित नहीं रह गया हैं । जीवन का एक -एक पल भारी पड़ जाता हैं ,विकास के नाम से ,प्रगतिशील के नाम से जो ढॉंचे खड़े किए गए हैं आज सभी एक छलवा के सिवाय अन्य कुछ भी संज्ञा देना उचित नहीं लगता ।
देश की बागडोर ऐसे -ऐसे जोकरों के हाथ में हैं ,जिस पर टिप्पनि करना भी अपने आप को छोटा साबित करने के समान हैं ।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजादी के पश्चात कम से कम बीस वर्षों तक कल्याण- कारी तनाशाही लागू करने की योजना बहुत पूर्व देश के सामने रख चुके थे ,नेताजी जानते थे कि हजारों सालों से गुलाम प्रजा एका एक देश को नहीं चला सकते , प्रजातंत्र की सबसे बडी बाधा अशिक्षा, गरिबी, असमानता, बेरोजगारी, अन्धविस्वास ,ऊँच -नीच की भावना ,जाति-प्रथा आदी हैं ,अत: जब तक इन समस्याओं से हम योजना बद्ध तरीके से समाधान न कर ले तब तक लोकतंत्र सफल नहीं हो सकती1
यहॉं के स्वार्थी और अंग्रेजों के तलुए चाटने वाले कुछ नेताओं ने नेताजी के बात नहीं मने ,एक षडयंत्र के तहत उन्हें जीते जी मृत घोषित करके ,देश के भाग्य विधाता बन बैठे ।वर्तमान हालात को देखकर चुप रहना बहुत मुस्किल हो गया तो लिखना शुरू किया , कवि -लेखक ,साहित्य कार बनने का कभी सपना न था और न हैं ,अब तो देश के हरामखोरों को चैन से सोने नहीं दुंगा ।

सोमवार, 14 सितंबर 2009

अमेरिका असभ्य,बर्बर,कंगाल--कौन कहता हैं विकसित हैं --

कौन कहता हैं कि अमेरिका विकसित देश हैं ,सभ्य हैं ,धनी हैं ? इतिहास गवांह हैं कि अमेरिका एक असभ्य ,बर्बर ,कंगाल के सिवाय कुछ भी नहीं है ,जिस देश की बुनियाद 30 लाख रेड- इंडियानों की खुन से रंगा हो ,जो वंश ड्रेकुला से सम्बन्ध रखता हो ,जो स्थानिय लोगों को बेरहमी से कत्ल कर उनके धन सम्पत्ति को लूट कर आज अपने आप को विकसित घोषित करता हो ,उसे क्या इतिहास के जानकार विकसित और सभ्य कहलाएगा ?
आज नहीं तो कल अमेरिका के वास्तविक हकदार जगेगा और अपना हक छीन कर लूटेरों का भगाने का काम जरूर करेगा ,हम ऊपरी चकाचौध को ही सत्य मानने का भ्रम कर बैठे हैं ,आज भी क्या अमेरिका कंगाल नहीं हैं ?
दुनियॉ का एक भी ऐसा देश आज नजर नहीं आता जहॉं सैकडों बैंक दिवालिया हो चुके हो ,देश के बीमा कंपनीयॉं बरबाद हो गई हो , आटो क्षेत्र का दम निकल गया हो , लाखों लोग बेरोगार होकर नारकिय जीवन जीने को मजबुर हो , जहॉं का अर्थव्यावस्था ही खत्म हो चुका हैं, वह देश क्या विकसित कहलाने योग्य हैं ?
कंगालो को आज भी हम धनी कहलाने में नहीं चुकते ,जिसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं बचा हैं और उनके नीति को मानने वाले देश भी बरबादी के कगार पर खडी हैं, फिर भी हम अमेरिका के पिछलग्गु बने हुए हैं ।
भारत वर्ष में ऐसे अनेक लोग होंगे जिसका नाम धनीराम हैं ,लेकिन रहते हैं झोपड़ी में । नाम सोनाधर पर सोने की एक अंगुठी भी नसीब नहीं ,अमेरिका का भी यही हाल है। यदि अमेरिका से विदेशी डाक्टर ,विदेशी वैज्ञानिक , शोध में लगे विदेशी विद्वान आदी स्वदेश चले आए तो अमेरिका के पास अपना कहलाने लायक क्या बचेगा ?
35 से 40 प्रतिशत इंजिनीयर ,लगभग 30 प्रतिशत वैज्ञानिक , 30 प्रतिशत शोध के विद्वान , 40 प्रतिशत लगभग डाक्टर ,सभी भारत वर्ष के हैं । यदि ये लोग स्वदेश लौट आए तो अमेरिका का क्या होगा ? हम कह सकते हैं कि देश की जनसंख्या बढ जाने के कारण अनेक समस्या पैदा होगी ,जबकि हमारे पास आज भी इतने संसाधन हैं कि उनका सही उपयोग हो तो आज 1 अरब से अधिक जनसंख्या होने पर भी हम जिस तरह जीवन यापन कर रहे हैं यदि इतनी जनसंख्या ओर हो जाए अर्थात 2 अरब भी हो जाए तो हमें को असुविधा नहीं होने वाली हैं ।
हमें मात्र ईमानदारी से संसाधनों का सन्तुलित और सही उपयोग करना होगा ,फिर भी आज हम अमेरिका से किसी भी तरह १९ नहीं हैं , एक कमजोरी जो हमें बारबार गर्त में ले जाती हैं वह हैं अमेरिका के सामने कंगाल जैसे हाथ फैलाना । १९७१ का बंगलादेश युद्ध मुझे याद आता हैं जब अमेरिका ने हमारे खिलाफ पाकीस्थान को सहयोग के लिए सातवीं बेडे को भेज दिया था । रूस ने उस समय हमारे साथ दोस्ती ईमानदारी से निभाई और अमेरिका को धमकाते हुए अपनी नोवीं बेडे को हमारे सहयोग के लिए भेज दिया था । हमारे मुर्खराज लोगों ने रूस को भुला कर अमेरिका जैस धूर्त लम्पट ,
लूटेरों के साथ दोस्ती करने बार बार दौड़ता है।
जब जब भारत ने अमेरिका से दोस्ती का हाथ बढाया तब तब अमेरिका ने लात मारा फिर भी यहॉं के नेताओं को शर्म नहीं आती ,अमेरिका का लात आशिर्वाद मानकर ,चरणामृत समझकर नेताओं ने सर पर लगाया ,कारगील के लड़ाई में भी अमेरिका ने पाकीस्थान का साथ दिया , पाकिस्थान को अमेरिका ने जब जब अर्थिक और युद्ध सामग्री दी तब तब वह भारत के खिलाफ प्रयोग किया अमेरिका को मना करने पर भी हमारा निवेदन कभी नहीं सुना, ऐसे गद्दारों के साथ आज भी कुछ अमेरिकी गुलाम जो सत्ता में बैठे हुए हैं ,वे इस देश को बरबाद करके ही दम लेगें ।

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

तमिलों को नंगा करके -आंखों में पट्टी बाँध कर -गोलिओं से भुना जा रहा हैं

एक ईमेल ने मुझे पेरशान कर रखा हैं ,मैं सोचने को मजबूर हो गया कि आज 21वीं सदी में जो कुछ भी हो रहा हैं वह तो प्राचीन पाषण काल में भी नहीं होता था ,ईमेल श्री लंका में तमिलों पर हो रही फौजी अत्याचार से सम्बन्ध रखता हैं ,एक व्ही डी ओ क्लिप भी साथ में भेजा गया , मानवतावादी संगठनों द्वारा प्रजातंत्र की रक्षा के लिए एक साथ श्रीलंका में चल रही अमानवीय कुकृत्य पर पर्दा उठाकर दूनियॉं को झकझोर कर रख दिया ।
क्या आज यह विस्वास योग्य हैं कि श्रीलंका तमिलों को पकड़ कर लिट्टे के नाम से उसे नंगा करके ऑंखों में पट्टी बॉंध कर खुलेआम गोलियों से भूल डाले ? आज श्रीलंका में वह सब कुछ हो रहा हैं ,जो मानवता के नाम से कलंक हैं ।
एक समाचार कल ही मैंने पढा हैं जिसमें अमेरिका के युद्ध सामिग्र बनाने वाले सभी कंपनीयॉं कम से कम 5 गुणा मुनाफा कमाया हैं जहॉं अमेरिका में बैंक, बीमा ,साप्टवेयर कंपनियॉं ,आटो उद्योग सभी मंदी के कारण बंद हो चुकी हैं, वही युद्ध सामिग्र बनाने वाली कंपनियॉं लाभ कैसे कमा सकती हैं ? उत्तर सरल है कि अमेरिका पक्ष -विपक्ष सभी को हथियार प्रदान कर उपकृत करती हैं और भारी मुनाफा कमाने में लगी हुई हैं ,अमेरिका यदि छोटे बड़े सभी देशो और संगठनों को हथियार न दे तो दुनियॉं में शान्ति स्थापित होने में देर नहीं लगेगी ।
अमेरिका में बने हथियारों से एक विश्व युद्ध सा चल निकला हैं , प्रजा पर प्राणाघात प्रहार किसी भी किंमत पर सहमती योग्य हो ही नहीं सकता ,चाहे यह प्रहार कोई भी ,किसी भी नाम से ही क्यों न करें । मनुष्य जब जान दे नहीं सकता तो उसे किसी का जान लेने का अधिकार भी नहीं हैं । मनुष्य में देश के सरकार ,फौज ,हथियारों द्वारा लड़ने वाले लोग सभी आ जाते है। लडाई शुरू होने से पहले ही उसके तह तक जा कर उसे खत्म करना चाहिए ,आज तो उल्टा हो रहा हैं ।
छोटी -छोटी लड़ाई की परीक्षा ली जाती हैं ,और इन्तेजार किया जाता हैं ताकि लड़ाई आप ही आप खत्म हो जाए , परन्तु ऐसा नहीं होता ,कभी कभी यदि आप ही आप लड़ाई खत्म भी हो जाए तो, आगे और अधिक उग्र रूप से वह चालू भी हो जाने के कारण उसे सम्भालना मुस्किल हो जाता हैं । एक तो दुनियॉं से हथियारों का व्यापार बंद होना चाहिए ,जो शायद ही हो ,कारण अमेरिका का बुनियाद ही हथियार हैं । दुनियॉ के बारे में उसे सोचने का समय ही नहीं हैं ।
मानवता पर अत्याचार कदापी सहन योग्य नहीं हैं ,चाहे श्री लंका हो ,इराक हो ,ईरान हो , तालिवान ,पाकिस्थान या भारत हो । मानवता के खिलाफ जो भी कार्य करें उसके खिलाफ शान्ति पूर्वक ढंग से विरोध तो सुधी जनों को अवश्य ही करनी चाहिए ,अन्यथा मानव केवल दो हाथ पैर के पशु के सिवाय कुछ भी कहलाने लायक नहीं हैं ।

रविवार, 6 सितंबर 2009

उन लोगों को शर्म नहीं आती --बेशर्म ,बेहया ,अमानुष --

करोड़ों ,अरबों की सम्पत्ति छोड़कर धीरूभाई अम्बानी इस दुनियॉं को छोड़ चले गए ,वे जीते जी शायद ही कभी सोचे होंगे कि उनके चले जाने के तुरंत बाद दोनों भाई सम्पित्त के लिए लड़ने लगेंगे, मामूली पेट्रोल पम्प में काम करने वाले धीरूभाईजी अम्बानी ने अकूत धन सम्पत्ति का जो साम्राज्य खड़े करके चले गए ,मेरे जैसे लोग यह सोच-सोच कर पेरेशान हैं कि जादू सा क्या धन- सम्पत्ति आकाश से टपका होगा ? कई पीढी तक लगातार प्रयत्न करने के पश्चात भी कुबेर सा सम्पत्ति बनाना असम्भव होता हैं ,फिर जीवन के द्वितीय सोपान में ही इतनी सम्पत्ति कहॉं से टपक गया हैं ?
इस देश में किस तरह धन बनाया जाता हैं यह तो एक साधारण सा आदमी भी आज समझने लगे हैं ।लेकिन लूट के माल जिस तरह बटवॉंरे के समय लूटेरे लड़ते हैं और बाद में इसी लड़ाई का परिणाम जेल तक का सफर बनकर अंत होता हैं ,ठीक इसी तरह ही अम्बानीभाई के साथ हुआ हैं ,इससे अधिक कहना अच्छा नहीं लगता ।
धन सम्पत्ति बनाने के लिए न्याय ,अन्याय, नीति ,अनीति का ख्याल तो रखना ही - चाहिए , आखिर धन सम्तत्ति इकट्ठा करने की हमारे धर्मशात्र अकुंश लगाती हैं । धर्म के ठेकेदार इस देश के कुबेरों को इस बात के लिए क्यों नसिहत नहीं देते, यह समझ से परे नहीं हैं । देश की सारी धन सम्पत्ति मुठि्ठ भर लोगों के हाथों में केंद्रित हो जाने के परिणाम स्वरूप आज समाज के हर अंग में विकृती परिलक्षित हो रहा हैं ।
मनुष्य मात्र धन सम्पत्ति का अम्बार लगाने का मशीन नहीं हैं ,इस दुनियॉं में उनके लिए अन्य अनेक कार्य हैं, जिसे समयानुकूल सभी को करना ही चाहिए ,हमारे गुरुजनों ने चार - आश्रम व्यावस्था की परिकल्पना भी इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया था,परन्तु आज हम अपने पूज्यजनों का कहना मानना तोहिन समझते हैं । अपरिग्रह नीति का अपमान करने में ऐसे लोगों को मजा आता हैं । देश जाए भाड़ में ,देश के लोग कंगाल हो जाए , मर जाए ,आत्महत्या कर ले , गरिबी से सड़ गल कर मर जाए, अनपढ गंवार हो कर गुलामी की जीवन ढोते रहे ,पर ऐसे धन पिशाचों को तो केवल चिटियों की भांती एकत्रित करने में ही मजा आता है, भले ही उसका कोई काम न आवे ।
धन इकट्ठा करना भी एक मानसीक रोग हैं और हम इन रोगीयों का तारिफ करते नहीं थकते । मनसीक रोगीयों का ईलाज होना चाहिए था, परन्तु हम उन्हें खुले आम छुट दे रहे हैं । क्या पागलों की तरह इन रोगीयों को ईलाज के लिए मानसीक चिकित्सालय में नहीं भेजना चाहिए ? अभी हाल ही में आन्ध्रप्रदेश की मुख्यमंत्री दुर्घटना में मारे गए ,माधव राव सिंधिया,प्रमोद महाजन आदी के पास भी तो करोड़ों की धन सम्पत्ति थी ,आज उस धन सम्पत्ति का उपयोग क्या हो रहा हैं ,यह सभी लोग देख सकते हैं । इस लिए साध्य और साधन का जो बाते धर्म ग्रन्थों में उल्लेख किया गया हैं वह कोई मजाक में नहीं लिखा गया हैं । हमें उन पर आमल करना चाहिए था ,पर कर रहे हैं उसके ठीक उल्टा , जिस पेड़ के डाली में बैठे हैं ,कालिदास उसी पेड़ के डाली को काटने लगे थे ,हम कालिदास को पकड़ कर राज कन्या से शादी कर देते हैं । आज भी हम वही सब कर रहे हैं जो हजारों वर्ष पूर्व सबक के लिए हमें विद्वानों ने बार बार चेताया करते थे , हम चेतने में भी अपमानित महशुस करते हैं ......मैं तो बस यही कहना चाहता हूँ कि बहूत हो चूका हैं .........उन लोगों को शर्म नहीं आती बेशर्म, बेहया- अमानुश ..........

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