सोमवार, 27 जुलाई 2009

राष्ट्रपिता-राष्ट्रमाता ,फ़िर राष्ट्रपति -राष्ट्रपत्नी क्यों नहीं--?

कुछ लोगों को राष्ट्रपत्नी ....शब्द कोष में ढुढने पर भी नहीं मिल रहा हैं अब शब्दों पर किसी का वश तो चलता नहीं कि हर शब्द ,कोष में ही मिल जाए ,यदि यह शब्द नई हो तो भारतवर्ष के परिवेश में इसे समझा जा सकता हैं ,देश में राष्ट्रपिता कहने से गर्व होता हैं ,राष्ट्रचाचा भी शान हैं ,यहॉं राष्ट्रमाता भी हुए हैं ,राष्ट्रपति तो जगजाहिर हैं, अब यदि राष्ट्रपत्नी हो गए तो हर्ज क्या हैं ,जिस तरह पत्नी , पति का जान देकर भी सेवा करती हैं ,बच्चों का देखभाल ही नहीं करती बल्कि एक अच्छी नागरिक बनाकर देश को तोफा के रूप में सौप देती हैं ,सति सावित्री ,अनुसुया,तिलोत्तमा ,सीता, अरूंधुती,आदी न जाने कितनी विदुषी पित्नयॉं अपनी शक्ति से देश और समाज को राह दिखाई हैं ,एक क्रांतिकारि साथी को पुछा गया कि तुम्हारा शादी हो गया हैं ? तो उत्तर मिला हॉं .....पुछा गया किसके साथ उत्तर ? उत्तर मिला - इस देश के साथ ,अब एक क्रांतिकारी यदि देश को पत्नी के रूप में स्वीकार कर सकता हैं, तो किसी को भी राष्ट्रपत्नी बनने पर गर्व होना चाहिए,अभी तो अगिनत रिस्ते बनने बचे हुए हैं ,शिक्षक -शिक्षिका,अध्यक्ष -अध्यक्षा ,पिता -माता इसी तरह राष्ट्रपिता -राष्ट्रमाता ,अब राष्ट्रपति और राष्ट्रपत्नी यह तो साधारण सी बात हैं ,हम सब रिस्तों के डोर से बन्धते चले तो देखिए फिर देश में सभी रिस्ते ही रिस्ते नजर आ आयेंगे ............. अब इसे किसी भी रूप कोई इस्तेमाल किया सकता हैं .....सुवरण को खोजत फिरे...कवि ,व्याभिचारी ,चोर ....मैं तो शब्द को कवि के रूप में देखना समझना ज्यादा पसन्द करता हूँ ।

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