बुधवार, 1 जुलाई 2009

क्या भारत कूड़े-डब्बे के सिवाय कुछ हैं ?

आज का भारत कूड़े -डब्बे के सिवाय कुछ रह गया है क्या ? मैकाले के शिक्षा पद्धति से लेकर अमेरिका का हर कूड़ा यही तो फेंका जाता हैं , विकसित देशों के नजर में भारत एक कूड़े दानी के सिवाय कुछ भी नहीं । अभी परमाणु सौदे में अमेरिका के जहरीले परमाणु कचड़ा भारत में डाल दिया जाएगा । सैकडों वर्षों तक, उस कचड़े से रेडिओ धर्मी का प्रभाव भारत के लोगों को ही तो झेलना पड़ेगा ,एक समय देश के जमीन को ज्यादा उपजाऊ बनाने के लिए हालैंड से सूआरों के गोबर मंगाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी,देशी गाय की गोबर से बने खाद उपजाऊ नहीं ,पर सुअर के गोबर देश के लोगों को ज्यादा उपजाऊ लगता हैं । इस देश के बहू ज्यादा उपजाऊ नहीं है,अत: विदेशी बहू से राज कराना इस देश को अधिक भाता है। मुझे तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं देशी बनाम विदेशी हो गया हूँ । देशी संस्कृति कहीं ढूढने पर भी अपवाद स्वरूप भले मिल जाए ,परन्तु विदेशी भाषा खास करके अंगेजों के औलाद आज भी यही राज जमाए हुए हैं । इसे मैं कचडा कहूं या कुछ और, यह तो सुधी पाठक ही कह सकते है, परन्तु यहॉं भारतीयता ---देश प्रेम --स्वदेशी आदी तो गाली के सिवाय कुछ भी नहीं लगता , अब आगे खाने -पीने से लेकर शादी - विवाह तक सभी विदशी तर्ज पर हो रहा हैं तो इन सभी चीजों में जब मेरा भारत वर्ष ढूढता हूँ तो कही दिखाई नहीं देता हैं । कचड़े की ढेरों मे मेरा भारत कही खो गया है। भाई साहब ! बंगलादेश में नजरूल इस्लाम ,बंगलादेश में रविन्द्र नाथ ठाकुर ,बंकिम चन्द चटर्जी, क्रान्तिकारी सूर्य सेन , सबसे छोटी उम्र के शहीद खूदीराम बोस ,काकोरी प्रकरण ,ढाका के नागवंशी कान्तिकारी सुश्री लीला नाग जो आजीवन नेताजी सुभास चन्द्र बोस के साथ भारत में रहकर ही कार्य सम्पादन किया था । जो ऐतिहासिक भूल हमारे नेताओं ने किया है उसका सजा आज बंगाल के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। मैं इस बात से कदापि सहमत नहीं हूँ कि चाहे बंगाल के लोग हो या चाहे भारत के लोग या विदेश के अन्य -लोग, भारत में किसी भी प्रकार के षडयंत्र में लिप्त हो, और हम मौन रह कर सहन करते रहे, क्या देश में रह कर देशी लोग आतंकवादी कार्य को अन्जाम नहीं दे रहे है ?आज पाकिस्थानी आतंकवादी ,कश्मीरी आंतकवादी ,देशी आतंक वादी और न जाने कितने प्रकार के लोग देश को खोखला बनाने मे लगे हुए है। विदेशी ताकत तो देश में जहर बेचने का धंधा ही बना लिया है ताकि देश के लोग धीमी जहर पी पी कर चलता फिरता मूर्दा बना रहे ,और वे भी मूर्दो पर राज करके अरबों -खराबों से खेल सकें । बंगलादेशी पर मैंने लिखकर कोई बड़ा अपराध तो नहीं कर दिया हैं ? हमने अभी तमिलों को शरण दिया हैं ,नेपालीयों को तो हमने गोद में ही ले लिया हैं ,फिर बंगलादेशिओं पर इतनी आक्रोश क्यों है ? मेरे नजर में यह एक षडयंत्रकारी प्रचार के सिवाय कुछ भी नहीं है। आज इस लेखनी के माध्यम से भविष्यवाणी कहना चाहता हूँ कि निकट भविष्य में बंगलादेश भारत का ही अंग बन जाएगा -----मुझे एक भाई साहब ने बहुत ही भावूक कहा है, वास्तव में मैं भावूक हूँ , भावूक ही दूसरों का भाव समझ सकता हैं ,दूसरों का दू:ख -दर्द तो भावूक व्यक्ति ही समझ सकता है। और मुझे भावूक होने में कोई दोष नहीं दिखता । भाषा और वर्तनी सम्बन्धी दोष लेखनी में होने की बात भाई साब ने कही हैं ,मैं मात्र भाव को लेखनी के माध्यम से पहूंचाने का प्रयत्न करता हूँ ,यदि भाषा गत दोष दिखता हो तो कृपया स्वयं सुधारकर पढने का कष्ट करें ,मुझ पर बहुत उपकार होगा ।

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