गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..?

जिस देश में 80 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो ,84 करोड़  लोग मात्र 20 रूपये में जीवन चलाता हो ,52 करोड़  लोग 12 रूपये में ही प्रतिदिन जीवन की गाड़ी चला रहा हो ,उस देश में आदर्श ,न्याय , नैतिकता ,आदी सुनने और देखने को मिलना अपने आप में महान आश्चर्य हैं ,दूसरी और प्रतिदिन एक लाख रूपये की होटल में जनप्रतिनिधि रात गुजारने में खर्च डालते है । देश की राष्ट्रपति  474 से भी अधिक कमरों की महलों में रहना ,सुनने में विश्वास नहीं होता .

लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो भी खर्च किए जाते हैं उसका 90 प्रतिशत लगभग बिचौलिओं के जेब में चला जाता है। गैर बराबरी समाज व्यवस्था कब तक चलेगी ... हालत इतनी बिगड़  चूकी हैं कि घर से बाहर निकलने के बाद लौटकर आने की कोई उम्मिद नहीं रहती .......... कौन कहॉ और कैसे लोगों को मौत के घाट उतार दें उसे कोई बता नहीं सकता , कुछ हजार रूपये की सुपाड़ी  देकर किसी का भी कत्ल कर देना बहुत आसान हो गया हैं , बच्चों को सुबह पढने के लिए विद्यालय भेजो ..... थोड़ी  देर में फोन आता हैं ...... रूपये दो नही तो बच्चे की लाश मिलेगी .............. जीवन भर की कमाई को चुपचाप अपहरण कर्ता को देकर बच्चे को वापस लाना होता है। कभी -कभी तो रूपये देने के बाद भी बच्चे नहीं .... लाश भी नहीं ......

आतंकवाद ,नक्सलवाद ,आदी से आए दिन सैकड़ों  लोग मारे जा रहे हैं ,जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा घेरे में ही कत्लेआम कर दिया जाता है । जो जैसे पाए इस देश को लूटने में ही अपना धर्म समझने लगे हैं , कोई रोक टोक नहीं हैं , न्याय , नियम ,कानूनों से जनता का मोह भंग हो चूका है। ये सब केवल गरीब और कमजोरों को दबाने का काम आता हैं । आज दिन प्रतिदिन हालात बिगड़ना  ,महंगाई ,कालाबाजारी ,जहर बेचने का धन्धा ,मिलावट खोरी आदी अबाध गति से चल रही हैं ।

अगर गलत परम्पराओं का नाम गिनाने जाउं तो पन्ने भी कम पड़  जाए ..... चंद नर पिशाचों के कारण देश प्रतिदिन गर्त की और अग्रसर हैं ,ऐसे पिशाच मात्र भौतिक संशाधनों पर एकाधिकार जमाने में ही कर्म समझता हैं । इन्हें देश के कानून ,न्याय ,नियमों का काई भय नहीं लगता ,चंद रूपये के लिए अब सब कुछ बिकाऊ  हो गया हैं ।

मैं कभी -कभी सोचता हूँ  कि आतंकवादी ,नक्सलवादीयों को ये धन पिशाचों को क्या नजर नहीं आता हैं ...?
लेकिन इनके कुछ करतूतों से विचार बदल गया है ... खबर तो यहॉं तक हैं कि नक्सली और आतंकवाद को ये धन पिशाच ही पाल पोशकर बढा किया है ,जरूरत के समय वे अपने ही स्वार्थ में इन्हें उपयोग भी करते है।

शहर में रह कर गठबंधन से धंधा भी चलता है ,शासन भी मौन ..... क्यूँ  ! ...........क्योंकि हिस्सा जो मिलता है । जब चारों ओर से दबाव आ रहा है तो सेना के शरण में पहुँचने  की मजबूरी से विदेशी दुश्मनों के लिए खड़े  किए गए फौज का उपयोग कर सैकडों बहादूर फौजियों को जानबुझ कर शहीद होने को महबूर करना...
हम खून की ऑशू बहाकर जी रहे है , पता नहीं ... किसके हाथ ... हमारी भी बारी लिखा हैं ...........

कहते है कलम में बहुत ताकत है ..... क्या यह सच हैं --?  यदि सच हैं तो हजारों कलमकारों के लिए देश में एक नई दिशा दिलाने में विलम्ब क्यों हो रहा है ----?  और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..?  क्रमश:..

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

इलाहाबाद ब्लोगार सम्मेलन पर एक सशक्त टिप्पनी - हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।

नामवार सिंह जी के मुख्य आतिथ्य में ,राष्ट्रिय  ब्लोगर सम्मेलन ,श्री प्रमोद प्रताप सिंह जी जो कि सम्मेलन स्थल इलाहाबाद के ही रहनेवाले होने के पश्चात भी उन्हें न बुलाने  की बाते ,सुरेश चिपलुनकर जी के आरोपों का क्रमवार जवाब ..विशेष  करके गुजरात के संजय बेगाणी जी और केरल के शास्त्री जी को सम्मेलन में न बुलाने और देश के अन्य ब्लोगारों की उपेक्षा से उपजी एक आक्रोश पर ज्वलन्त बहसों का सिलसिला .........


मैं कल और आज अनेक ब्लागों पर भ्रमण किया ,,तथ्यों की तह में जाने का भी प्रयत्न करने के पश्चात एक बात जो मुझे समझमें आया कि ब्लोगरों को भी कुछ लोगों के द्वारा गुटबाजी में बदलने की षडयंत्र  रची  जा रही  हैं ,एक वर्ग जो इसे हिन्दुत्व वादी गुट में परिवर्तण करना चाहते थे ,जोकि चुक जाने के कारण अन्य एक वर्ग अपनी करनी से सफल हो गए , कौन अच्छा है या कौन बूरा है ,इस पर अभी मैं नहीं जाना  चाहता हूँ  ,परन्तु नामवार सिंह जी अपनी मंशा में  कामयाब हो गए यह तो साफ दिख रहा है ... जिस व्यक्ति को जो नहीं जानते थे, इस बहस में उन्हें लोग जानने लग गए है ,कामयाबी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है ।

यदि तमाम बातों को छोड़कर  हम सुरेश जी के आरोप पर जाए कि हिन्दुवादियों का उपेक्षा किया गया है ,इसका अर्थ यह हुआ कि नामवार जी और उनके भक्त हिन्दुवादी नहीं है ,इसका अर्थ और स्पष्ट  किया जाए कि वे अहिन्दुवादी विचार धारा के है । यदि अहिन्दुवादी विचारधारा के लोग हिन्दुवादी विचार धारा के लोगों के साथ बैठे तो निश्चित  रूप से खिंचातानी शुरू हो जाने के डर से यदि उन्हें न बुलाया गया हो तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।

एक हिन्दु होकर दूसरों की बुराई पर बोलने का कोई हक नहीं है, उसी तरह एक बामपंथी होकर एक दक्षीण पंथी पर कटाक्ष करने का भी उन्हे अधिकार नहीं है ,दोनों मतवादों में जो बूराई है उस पर कबीर दास जी जैसे भक्त ही अपनी  मजबूत पक्ष द्वारा समाधान दे सकते है अन्य कदापी नहीं ।

एक बात जो मुझे भी अच्छी नहीं लगी वह यह कि राष्ट्रिय  सम्मेलन हो रहा हो और देश के अन्य ब्लोगरों को खबर तक नहीं...... इस पर विचार करना आवश्यक हैं ,ताकि इस प्रकार की चूक फिर न हो जाए ।

गुटबाजी से परे हटकर स्वतंत्र लेखन और चिन्तन द्वारा देश सेवा में अपने आप को समर्पित कर देना हमारा लक्ष्य होना चहिए ,लिखने के लिए लिखना ही हमारा उद्देश्य  न हो ,आज देश पतन की और लगातार अग्रसर है अत: लेखनी द्वारा ,विचार द्वारा , अन्य माध्यम द्वारा यदि छोटी से छोटी सेवा भी हम कर सकें तो इससे बढकर इस नश्वर जीवन में और क्या  उपलब्धी हो सकती हैं ?

हम अपनी जिम्मेदारी को समझे ,कुछ प्रतिक्रियावादी लोग हमेशा लाभ लेने के लिए सदा सक्रिय रहते हैं ,आगे भी इस तरह के लोग रहेंगे ,हमें ही सजग रहना होगा यदि हम ही सजग न रह सकें, तो इस देश को हम कैसे दिशा दिखायेगें ?

हमें किसी की प्रमाण पत्र की आवश्यकता क्यों हैं ? हम लिखेंगे और लिखते रहेंगे ,मैंने हिन्दी में जब लिखना शुरू किया तो बहुत अशुद्धियॉं होती थी , ,वर्तनी ,व्यकारण आदी दोष  आज भी हैं ,मैंने लिखना बंद नहीं किया, जिन लोगो ने भारत में रहकर भी अंग्रेजीयत पाल रखें है उनसे तो हम लाख गुने  अच्छे हैं । एक बहुत अच्छे अहंकार सम्पन्न साहित्यकार से एक कम साहित्यिक जानकार देश सेवक कई गुणा अधिक लाभदायक हैं ।

अन्तिम बातें जो मैं बताना उचित समझता हूँ  यह कि हमें हिन्दुवाद ,मुस्लिमवाद ,वामपंथी ,दक्षीण पंथी आदी से परे हटकर आज मानववाद पर ध्यान केन्द्रित  करना चाहिए और जो देश रसातल की और जा रही है उसे प्रगति की चरम शिखर पर उठाने का सभी को संकल्प लेकर आगे बढना चाहिए ,हजार पग उद्देश्य  विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य  के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....

वर्तमान परिस्थिति  जन्य कारण से आज हम क्रान्ति शब्द से ही डरने लगे है , एक समय था जब क्रान्ति से लोग बहुत प्यार करते थे ,क्रान्तिकारि कहने मात्र से लोगों का मस्तक झुक जाया करता था ,आजादी के समय तो जान जोखिम में डालकर भी क्रांतिकारिओं  को मदद के लिए जनता बढ-चढ कर आगे आते रहे है। लोग समझते थे कि क्रान्तिकाररियों का साथ देना एक पवीत्र कार्य हैं ।


बंकिमचन्द्र द्वारा लिखे गये क्रान्तिकारी साहित्य आनन्द मठ पढने से क्रान्तिकारिओं  का चरित्र भी समाज में एक अलग ही प्रतिष्ठा  -मान -सम्मान .स्थापित करने में सहयोग साबित हुए ,उच्च नैतिक और चारित्रिक बल से प्रतिष्ठित  युवा वर्गों  द्वारा परिवर्तणकारी विशेष  करके भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने की संकल्प लेकर सर्वस्व न्योछावर कर देने का  साहस ही क्रांतिकारिओं  का पहचान हुआ करता था ।

एक भी उदाहरण इतिहास में नहीं मिल सकता ,जिससे यह साबित हो सके कि क्रान्तिकारियों ने साधारण जनता पर , नारियों पर , असहायों पर ,जोर जुल्म किया हो , लेकिन आजादी की लड़ाई  में एक सक्षम हिस्सेदारी , कर्तब्य आदी का निर्वहन करने के पश्चात भी कुछ स्वार्थी लोगों ने  क्रान्तिकारियों को बदनाम करने का षड़यंत्र  रचने में कामयाब हो गए ,अहिंसा शब्द को ढाल जैसे प्रयोग करते हुए करोड़ों  निर्दोष  देशवासीयों का कत्ल हो जाना ,लाखों लडकियों ,महिलाओं पर अत्याचार ,जिस देश के लिए नौजवानों ने खून बहाया उस देश को  दो टुकड़ों में बॉट देना आदी कोई सामान्य बात नहीं है , यदि प्रत्यक्ष हिंसक लड़ाई  भी होती ,तो भी इतनी बड़ी  संख्या में हिंसक घटनाओं का परिणाम करोड़ों का जान माल और अत्याचार नहीं हुआ होता ,आज तक इतिहास को तोड़ -मरोड़  कर सामने रखने का षड़यंत्र  जारी है। ।

मैंने कई बार क्रान्ति शब्द का उपयोगा, कई स्थानों पर, गर्व के साथ किया हैं ,क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....आज इसे जिस रूप में ग्रहण किया जाता है या समझा जाता है उससे भिन्न रूप में हमें इस शब्द का भावार्थ समझना आवश्यक हैं । मै एक उदाहरण दे कर इसे बताने की कोशिस करना चाहता हूँ  –
नदी यदि धारा बदलकर बहने लगी- तो धारा बदलना ओर फिर  बहना-- क्रान्तिकारि कहा जा सकता हैं ,समाज आज जिस दिशा में जा रही है यदि उस दिशा से हटाकर अन्य दिशा की ओर मोढ दिया जाए तो समाज में क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ कहना उचित होगा ।

हर समय परिवर्तण की आवश्यकता होती है ,दुनियॉं में स्थिर कुछ भी नहीं है , सब कुछ चलायमान है ,आज जो कुछ सही लगता है ,कल वही गलत साबित हो सकता है ,विचार में भी परिवर्तण होता रहता है ,आज से वर्षों  पूर्व घुसखोरी को कोई अच्छी नजर से नहीं देखते थे वैसे  तो आज भी नहीं देखते है ,पूर्व में घुसखोरी भी होती थी ,तो छीपते और डरते हुए ,आज तो यह खुले आम होने लगी  है, अत: घुस खोरी में भी क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ हैं ऐसा कहा जा सकता है ।

परिवर्तण का ही नाम क्रान्ति है, परिवर्तण  कितनी गति से हो रही हैं , उस गति को ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि कुछ नये शब्द का उपयोग किया जाए , पर भावार्थ वही है जो परिवर्तण के लिए समझा जाता हैं ।

मार काट ,खून खराबा , ही क्रान्ति है इस तरह की विचार कतई उचित नहीं है ,जब समाज के किसी अंग में क्रान्तिकारि परिवर्तण होने लगती  है ,तो तीन तरह के लोग उसमें भागिदारी निबहाते है प्रथमत: जो परिवर्तण में प्रत्यक्ष अंश ग्रहण करते है ,द्वितीय वे लोग है जो परिवर्तण का विरोध करते है ,विरोध करने का भी विभिन्न कारण हो सकता है ,कुछ लोग परिवर्तण के कारण प्रभावित होते है ,जैसे यदि अर्थनीति में परिवर्तण हो रहा हो तो अर्थप्रधान लोग उसका विरोध करेंगे ,इस तरह अन्य अनेक कारण हो सकता हैं ।

तिसरी तरह के लोग पक्ष और विपक्ष दोनों से भिन्न होते है उन्हें तो किसी से कोई दिलचस्पी ही नहीं रहता हैं ,ऐसे लोग समाज के लिए अधिक खतरनाक हो सकते हैं , क्योंकि  ऐसे लोग जिधर दम, उधर हम की बातों पर अधिक विश्वास करते हुए सही गलत दोनों को सामान्य मान बैठने के कारण समाज में सन्देहास्पद स्थिति तैयार कर देता है। और सन्देह उत्पन्न होने के करण ऐसे लोग मारे भी जाते है।

परिवर्तण के लिए खून बहाना आवश्यक नहीं है ,विचार क्रान्ति से भी अनेक प्राकार के परिवर्तण सही दिशा में अग्रसर हो सकता हैं ,विचार क्रान्ति के आगे कोई भी शक्ति  टिक नही सकती  ,विचार शब्दों द्वारा उत्पन्न होता है। और शब्द का प्रचार लेखन से आगे बढने के कारण कलम में जो शक्ति है वह तोप तलवार में भी नहीं होने की बाते पूर्व के अनेक साहित्यकारों ने भी स्वीकार किया है ।

भारतवर्ष  में क्रान्ति की आवश्यकता है या नहीं इस पर बहस हो सकती  है ,विचार किया जा सकता है ,यदि विचार करने के पश्चात  परिवर्तण आवश्यक हो जाए तो उस परिवर्तण की रूप कैसे हो ...किस दिशा मे परिवर्तण की  रूख बदलने की आवश्यकता है ,परिवर्तन  के समय यदि विरोध हुआ तो उस विरोध का किस तरह सामना किया जाए ,विरोध करने वालों को समझाया जाए या बल प्रयोग द्वारा दबा दिया जाए या उसे रास्ते से ही हटा दिया जाए ... इस तरह अनेक प्रश्न और उत्तर भी अनेक प्राप्त हो सकता है परन्तु एक बात साफ हैं कि परिवर्तण तो परिस्थिति का दास है परिस्थिति ही साधनों को प्रयोग करने का रास्ता बताता है।

कोई भी सभ्य समाज खून खराबी का समर्थन नहीं कर सकता ,परन्तु परिस्थिति जन्य अनेक अवसरों पर खून बहाना मजबूरी हो सकता है , यदि अधिकांश परिवर्तण शान्ति पूर्ण ढंग से हो जाए तो क्रान्ति शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ ऐसा समझना उचित होगा । क्रमश:...........

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

एक साथ इतनी समस्या ---साथी हाथ -----

दीपावली  के बाद से लगातार मैं लैपटॉप से लड़ता  रहा और आज भी लड़  रहा हूँ  ,पहले तो बेचारा वायरस के चलते बीमार गया  गया , पता नहीं एक साथ इतनी  वायरस कहाँ  से chali  आई  ,एन टी वायरस लैपटॉप में है, फिर भी काम नहीं आया, आज कल तो हर जगह एक ही बात लागू हो रहा  हैं कि फैशन के जमाने में गारंटी की इच्छा न रखे ,अब मैं वायरस के लिए किसके साथ लड़ता  ...?

 एक साल तक वायरस से कुछ हानी हो तो कंपनी क्षतिपूर्ति करने की बाते लिखी है पर उसके लिए कंपनी पर दावा करो ,कितनी क्षती हुई हैं उसकी जॉच कराने से लेकर उपभोक्ता फोरम ,उससे बात न बने तो वर्षों  अदालतों का चक्कर ......नुकसान जो हुआ वह कब मिलेगा उसका तो पता नहीं ----पर कानूनी दॉव पेंच के लिए वकील रखो ,दावा रकम का दस प्रतिशत फीस जमा करने के अलावा अपना खून भी जलाते रहो ............यही सब न्याय पाने का माध्यम हैं .............इससे अच्छा चुपचाप बैठे रहो ....रोते रहो ......और व्यवस्था को कोसते रहो ............ अधिक हुआ तो एक आध लेख के माध्यम से भड़ास  निकाल कर चैन से बैठना ज्यादा अच्छा  है ।

वायरस से कुछ फाईल नष्ट  हो गयी  , उसे फिर कब तक बना पाउंगा पता नहीं ,मेरे कष्ट  देखकर लड़का  भी दु:खी होकर कहने लगे कि क्या फालतू की चिजों से आप जुझ रहे है ,ब्लाग में लिख कर कभी देश में क्रान्ति आ सकती है क्या ....! ऑंखे खराब होना ,रात की नींद गायब..  न जाने कितनी बाते से  मुझे समझाने की कोशिस करते हुए ,कुछ मद्द भी किया ।

नेट तो एक दम धीमी हो गई , गूगल का नया क्रोम लोड करने से सचमूच  नेट में जान आ गया , नेट खोला ही था  कि अचानक वर्चूल मेमोरी कम होने की सूचना से मैं परेशान हो गया , ये वर्चुल  मेमोरी की बातें तो मेरे सर के उपर से चला गया ,पर लड़का  को  समझमें आने से मेमोरी बढाने का भी रास्ता निकालकर मुझे एक बड़ी  समस्या से मुक्त कर दिया ....नही तो आज मै इस लेखनी को पूरा नहीं कर सकता था ।

मैने सोचा कि ब्लोग के हेडार में कुछ नए चित्र लगा दूं ,इस चक्कर में ब्लोग ही गायब हो गया ,दुबारा लोड किया तो नया सन्देश तो अंग्रेजी से हिन्दी में परिवर्तण हो जाता है  पर शीर्षक  का अनुवाद हिन्दी में आज भी नहीं हो पा रहा है ,जबकि सन्देश और शीर्षक  पूर्व में हिन्दी अनुवाद सरलता से हो जाता था ।


टेम्ल्पेट नया लग जाने से हैडर पर मेर चित्र के माथे में मेरे विचार हटाकर कुछ सामने लाना चाहता था ,पर उसे आज तक नहीं कर पाया । हैडर में अन्य चित्र कैसे लगाया जाए और सरलता से चित्रों को कैसे पोस्ट में प्रयोग किया जाए यह बता कर मुझे मद्द करने का कष्ट  करें ।

नेट पर अनेक टेम्प्लेट उपलब्ध हैं मुझे तीन भाग वाला टेम्प्लेट अधिक पसन्द हैं और हैडर कुछ चौड़ी हो तो बहुत ही अच्छा, कुछ मैंने चुना भी था पर उसे किसी भी हालत में ब्लोग में नहीं जोड सका .............मैंने एडसेन्स को भी ब्लोग में रखना उचित समझा ... पर ऐसा नहीं कर पाया ...

पिछले समय मैंने हिन्दी पर कुछ सुझाव मांगा था ,उस समय  एक नहीं अनेक हाथ मद्द के लिए उठे थे  ...आज भी साथी हाथ बढाना



शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

दीपवली में बचत ही धन की बरकत हैं --नहीं तो कंगाली

आस्थाओं का दोहन हजारों वर्षों से चली आ रही है ,हम चन्द्रमॉं –मंगल –आदी ग्रहों की बातें करते है परन्तु हजारों वर्षों से जो विज्ञापण द्वारा मानसीक जड़ता पैदा किया गया हैं , उन जड़ताओं पर कुठाराघात करने में हम भयभीत हो जाते है । पूजा -पाठ से क्या आज तक किसी की गरिबी हटी है ....? हजारों वर्षों तक पिढी दर पिढी पूजा अर्चना करने वालों को तो गरिब होने की सवाल ही पैदा नहीं होना चाहिए था ,लेकिन उनकी गरिबी क्यों नहीं हटी ----???????

देश में जितने प्रकार के त्यौहार आज प्रचलित है ,और नए -नए त्यौहार भी चलाकी से बाजार में बिक्री हेतु पेश किया जा रहा है .... चलाक व्यपारी अपने घर में लक्ष्मी को बॉंधकर रखने के लिए एक से एक नियम समाज में विज्ञापित किया हैं , सॉठगॉठ करके हजारों सालों से मानसीक और आर्थिक शोषण का सिलसिला जारी है।

वैश्य और तथाकथित ब्रह्मणों ने मिलकर समाज से अधिकाधिक लाभ उठाने की पुरजोर कोशिस में आज भी कामयाब हैं । यदि दिपावली में लक्ष्मी किसी के पास आती है तो ये दोनों वर्गो के पास ही स्पष्ट रूप से दिखता हैं ,आज पूजापाठ के नाम पर धर्म के ठेकेदार -और दलालों को लक्ष्मीजी वरदान देगी , बनिये तो धनतेरस के नाम से लोगों को जिस तहर से लूटा हैं वह सुधी जनों से छिपा नहीं है।

लक्ष्मी पूजन करने के लिए जिस विधान आदी प्रचलित की गई हैं उसकी पुर्ति के लिए सिधे बनिये और तथाकथित ब्राह्मणों के पास ही रकम लेकर जाना होता है। जिसके पास रकम एकत्रित हो रहा है वे धनवान और उनके पास लक्ष्मी का वास होगा ..... या जिसके घर से लक्ष्मी बाहर जा रही हैं उसके पास लक्ष्मी रहेगी .....? हर त्यौहारों की छुपी हुई राज पैसा कमाने का होड हैं , हम समझते है कि यह धार्मिक कार्य हैं, इसे नहीं करने से हम कंगाल हो जाऐंगे , जबकि इस भय से हम लगातार कंगाल होते जा रहे है, इस बात को स्पष्ट रूप से हमें समझना होंगा ।

लक्ष्मी पूजन वही हैं जहॉं धन एकत्रित हो ,,,,फटाका फोड़कर धन की बरबादी से लक्ष्मी कहॉं से आयेगी ---? दिपावली के रात जुआ खेला जाएगा , पूजापाठ करों और प्रसाद --पकवान अधिक खाकर पेट खराब करके डाक्टरों के पास भागो ......जुआ खेलो ...शराब पिओ ओर पिलाओं ...ऐसे अनेक प्रकार के विधाओं से धन की बरबादी होती हैं ,अत: धन की बरबादी रोकना ही लक्ष्मी जी का बरकत हैं ..................

बिजली विभाग का एक नारा हैं कि बिजली की बचत ही बिजली का उत्पादन हैं ,इसलिए धन की बचत ही धन की उत्पादन हैं । सीधी सी बात भी लोगों को समझमे न आवे तो चुल्लु भर पानी में मर जाना अच्छा हैं । पूजा पाठ ,टोटका ,तांत्रिक क्रिया ,आदी से लक्ष्मी खुश नहीं होते ....लक्ष्मी चंचला हैं उसे रोकने के लिए धन की बरबादी को रोकना अतिआवश्यक हैं ।

दीपावली पर पवित्र भाव से मन और समाज को प्रकाशित करने वालों को शुभकामना-पर्यावरण के दुश्मनों को अशुभकामना

दिपावली आज धूल.धूर्त और धूओं का त्यौहार बन कर रह गया हैं ,जो जितनी कानफोडू आवाज के साथ फटाका फोडेंगे और वायु प्रदुषण से देश के जन जीवन को बरबाद करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहेंगे- वे उतने ही बड़े दिपावली हिरो कहलाएगा ,अरबों की कमाई वाली दिपावाली में जिनके पास लक्ष्मी जाना हैं वह तो कल धनतेरस के दिन ही जा चुकी हैं ,बाकी वे लक्ष्मी पुत्र पर्यावरण और जन जीवन के बारे में सोचते हुए असली मजा क्यों किरकिरा करें ............

कितने लोगों का कान का पर्दा फटेगा उसका तो गिनती नहीं है ,कई बच्चे जवान और लोग अपंग और स्वर्गवासी हो जाएँगे उसका भी सही पता भी लोगों को नहीं लगेगा ,मानसीक रूप से कमजोर लोग तो कल पागल की तरह उग्र हो जाऐगे क्योंकि उन्हें अधिक आवाज सहन नहीं होगा ।

दिपावली वर्तमान समय में द्वीपों का त्यौहार को फटाकों का त्यौहार कहें तो ज्यादा उपयुक्त होगा ,
मैं एक बार फिर धर्म संकट में पड़ गया हूँ ... मेरे चाहने वाले और न चाहने वालों को इस पर्व के लिए शुभकामना प्रेषित करूं कि नहीं ......... यदि पवित्र भावनाओं से मन और समाज को प्रकाशित करने के लिए यह त्यौहार मनाया जाए तो सभी को मेरी शुभकामना और पर्यावरण के दुश्मनों को अशुभकामना..........

राजतन्त्र: ईमानदार एएसपी ने मारा मंत्री के मुंह पर इस्तीफा

राजतन्त्र: ईमानदार एएसपी ने मारा मंत्री के मुंह पर इस्तीफा

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

मोहन लाल गुप्ताजी के आलेख पर --देश के नैतिकवानों एक हो

कल ही मोहन लाल गुप्ता जी के आलेख पढने का मौका मिला ,मुझे बहुत अच्छा लगने के साथ ही साथ यह भी सोचने के लीए मजबूर कर दिया हैं कि क्या वास्तव में हम एक अराजकता की और एक दो कदम नहीं, परन्तु अनेक कदम बढा लिए हैं ? और उस कदम को आज पिछे लाने का कोई उपाय शेष नहीं रह गया है ..?

मैंने भी मेरे अनेक आलेखों के माध्यम से यही बात समाज के सामने रखने का प्रयत्न किया कि प्रतिभा ..सम्मान आदी मेरे देश की किस काम की है ....यदि उस प्रतिभा का लाभ मेरे देश को न मिले ! बड़े -बड़े धनवान लोगों से मेरे देश का क्या भला होने को हैं ...... शासन को उनके द्वारा कमाया हुआ रकम का कुछ हिस्सा जरूर मिल जाता है ,चुनाव के समय उन्हें चंदा मिल जाती हैं ,नाम मात्र के कुछ कर लाभ भी हो जाता है। बच्चों को उंची बेतन में नौकरी का लाभ प्राप्त होने के अलावा भी एक लाभ जो सुरा और सुन्दरियों पर समाप्त होकर आगे गुलामी सा नारकिया जीवन ....................

मोहन लाल गुप्ता ने इतिहास से अनेक उदारण देकर यह समझाने का प्रयत्न किया कि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति देशभक्त होगा यह जरूरी नहीं हैं और कम प्रतिभाशाली व्यक्ति यदि देशभक्त हैं तो देश के लिए अधिक उपयोगी हो सकता हैं ।

गुप्ता जी ! एक कदम आगे बढते हुए मैं तो यह कहना ज्यादा उपयुक्त समझता हूँ कि प्रतिभावान व्यक्ति ही इस देश के लिए अधिक खतरनाक है । अपवाद शब्द का उपयोग इसलिए कर रहा हूँ ताकि कोई दावा करें कि मुझमें प्रतिभा हैं परन्तु मैं देशभक्त हूँ ,ऐसे लोगों के लिए यह शब्द रखना जरूरी है ।
हमें आज अधिक प्रतिभावानों की आवश्यकता नहीं है ,कलेक्टर बनने के लिए आई ए एस जैसे प्रतियोगिता से अच्छा हैं कि गुप्त रूप से पता लगाना ज्यादा उपयुक्त होगा कि कौन इमानदार और देशभक्त है , हर शहर और गॉव में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो जनसेवा में इमानदारी से हमेशा सक्रिय रहते हैं ऐसे लोगा भले कम पढा लिखा हो उन्हें प्रशिक्षण देकर जिम्मेदारी दिया जा सकता हैं आज के सफेद हाथी पालने की अपेक्षा यह रास्ता मुझे अच्छा लगता है ।

अब यह बात तो स्पष्ट हैं कि हमारे व्यवस्था में ही कहीं खामियॉं आ गई हैं, जिसके चलते समाज में जिसे सम्मान मिलना चाहिए उन्हें सम्मान नहीं मिलता और जिन्हें बहिष्कार करना चाहिए उन्हें सम्मान दिया जा रहा हैं । सबसे पहले तो मानसीक रूप से हमें तैयारी करनी हैं कि हम लेखनी द्वारा समाज को अब जगाने का काम करने के साथ ही साथ इमानदार लोगों को एकत्रित करने के लिए एक मुहिम छेड़ा जाए ,यह आज वर्तमान समय के लिए एक पवीत्र कार्य होगा ................... मैं इस प्रकार के मुहिम में तन -मन -धन से सहयोग करूंगा । देश के नैतिकवानों ------------------

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

प्राकृतिक संशाधनों की लुट में सबको हिस्सा चाहिए ---

नियम-कानूनों का हवाला देकर प्राकृतिक संशाधनों को लूटने की छुट सरकार दे रही हैं । इस लूट में क्या सरकार भी भागीदार नहीं है.....? हजारों एकड़ों में सेज के नाम पर जल... जमिन और जंगलों का सफाया कर अमीरों को लूटने की खूली छुट दिया जा रहा हैं । एक पेड़ काटने पर वन विभाग जुमार्ना करती हैं ,गरिबों पर मामला दर्ज कर जेल में ढूंस देती हैं और कानूनी रूप से जनसुनवाई और अन्य बहाने हजारों एकड़ भूमि को बंजर बनने का कोई दोषी नहीं है ।

प्राकृतिक संशाधनों का लाभ सभी को मिलना चाहिए , मैं नहीं कहता कि समान रूप से सभी को लाभ दिया जाय ,पर लाभ का हिस्सा तो सबको मिलना ही चाहिए ,यदि प्राकृतिक संशाधनों को सरकार नाश करने को तुली हुई हैं तो उस नाश का तात्कालिक लाभ से गरिबों को क्यों अलग रखा जा रहा हैं ?

जंगलों को काटने की खूली छुट गरिबों को मिलना चाहिए ...कोयले खदानों से कोयला निकालने की भी छुट सबको होना चाहिए , मात्र मुठि्ठ भर लोग लाभ ले और अन्य लोग ताकते रहे-- यह कैसे सम्भव हैं ....? वन विभाग का काम मात्र यह हो कि नए नए स्थान में जंगल विकसित करें और आगे बढते जाए ...उसका उपयोग जो जैसे चाहे वैसे करते रहे इस पर कोई रोक टोक नहीं होना चहिए ।

देश के सभी खनिज सम्पदाओं को यदि निजी हाथों में दे कर कुछ लोगों के आड़ में जब सरकार में बैठे लोग उसका उपयोग कर धनी बन रहे हैं ,तो गरिब को भी धनी बनने का हक तो हैं ........1 रूपया या 2 रूपये किलो चावल और नमक मुफत में बॉट कर इस देश की गरिबी नहीं हट सकती ,इससे तो लोग अलाल और नपुंशक होते जा रहे हैं ,देश के कुछ धन पिशाचों को तो इस तरह की स्थिति वरदान साबित हो रहा हैं ।

जब लूट लगी हैं तो सबको लूटने दो ........... लूटने के लिए कोई कानुन नहीं होना चाहिए ,जिसकी लाठी उसकी भैस वाली बात जब फिर वापस आने को हैं तो आने दो .........बंद कर दो सारी व्यवस्था ..... कानुन ..नियम ..... अराजक राज जब शुरू हो चुकी हैं तो कब तक आग को कागज से ढंक कर रखने का नाटक किया जाएगा ...? असफल सरकार ..... नपुंशक समाज ............ अनैतिक नेताओं से अब किसको क्या उम्मिद बची हैं ...............?

मैं घोर राष्ट्रवादी हूँ विश्वबन्धुत्व का दुश्मन --कुपमन्दुक---

मैं एक घोर राष्ट्रवादी हूँ .... मुझे दुनियॉ के हर चीज वैसा नहीं दिखता जैसा वह हैं ,दिखने की.. और होने के बीच में एक सरल रेखा न चाहते हुए भी बार -बार खींचता चला जाता हूँ , आज तो मुझे मेरे देश के सिवाय कुछ दिखता ही नहीं है।

मैं अप्रवासी भारतीयों को मिलने वाली सम्मान भी कोई अच्छी नजर से नहीं देख पाता .........पिछले समय दुनियॉं में तहलका मचाने वाले भारतीय मूल के अमर्त सेन जी को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ, अर्थशास्त्र के महान विद्वान .... कल्याण कारी अर्थशास्त्र के चिन्तक ....जरा सोचने की बात हैं कि इस प्रकार के पुरस्कार से मेरे देश को क्या मिला ? यही न कि सेन जी कभी भारतीय थे ..... और भारत में उनके जैसे विद्वानों का सम्मान न मिलने के कारण देश छोडकर विदेश चले गए...?

भु पू राष्ट्रपति कलाम जी को भी अनेक बार विदेश जाने और डालरों का लोभ दिया गया, विशेष कर अमेरिका से ............ परन्तु कलाम जी ने देश प्रेम और कर्तव्य बोध से प्रेरीत होकर देश सेवा को सर्वोपरि मानते हुए डालरों का लोभ त्याग कर ,भारत वर्ष में ही रहना पसन्द किया ,

श्री स्वराज पाल को इंग्लैण्ड में लार्ड पाल कहते हैं ..... उससे मुझे और मेरे देश को क्या फायदा ...? आप बड़े तोप खान है ,आरबों से खेलते हैं ....बड़े -बड़े महलों में रात गुजारते हैं, और वहॉं से देश के लिए घडियाली ऑंसू बहाते हैं ........... यह हैं प्रवासी भारतीय ।

जरा लक्ष्मी मित्तल जी पर नजर डालना आवश्यक हैं ॥ एक पत्रकार ने पुछा कि- वीलगेट ने अपना सारा सम्पत्ति गरीब दु:खियों में बॉंटकर समाज सेवा में व्यास्त हो गये हैं ,क्या आप भी वैसा करना चाहते हैं ? जवाब मिला कि अभी तो मुझे बहुत आगे बढना हैं ...बहुत कमाना है ....आगे सुनिए ......जब पूछा गया कि आप भारत में रहना पसन्द करेंगे ? उन्होंने जबाव दिया कि भारत के लोग अमीर लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं अत: यहॉं आना पसन्द नहीं ।

हम हैं कि ऐसे लोगों को देख कर अपने आप को गर्व महशुस करते हैं ......... धन पिशाचों पर गर्व करना छोडकर हमें अपने आप को इमानदारी पूर्वक भारतीयता के आधार पर देश को स्थापित करना होगा ,तभी हम जीने और गर्व करने लायक बन सकेंगे ............

मुझे अपने आप को राष्ट्रवादी कहने में कोई झिझक नहीं है ............ लोग विश्ववादी कहते हुए गर्व करते हैं और आज मेरे जैसे लोग आपने आप को राष्ट्रवादी कह कर अधिकांश लोगों को आलोचना करने की खुली छुट देने को तैयार हैं ........... कहिए मैं कुपमण्डुक हूँ ........ संकुचित विचार का हूँ ..... विश्वबन्धुत्व का दुश्मन हूँ ..............गाली भी दिजीए ..................... पर एक बात याद रखिए कि- इस देश को यदि आगे ले जाना हैं तो घोर राष्ट्रवाद के रास्ते से ही जाना होगा ........

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

मत सम्प्रदाय हिंदू -मुस्लिम जी का जंजाल --धर्म कहाँ ---?

धर्म पर ब्लोगर बन्धुओं के बीच एक जोरदार बहस चल निकला हैं , बहुत दिनों से बड़े-छोटे सभी ब्लोगर इस बहस में भाग लेते देख मैंने भी सोचा कि इस विषय से स्वयं को अलग रखना कतई उचित नहीं है।

धर्म पर एक विस्तृत पोस्ट मेरे लेखों में पूर्व से सम्मिलित हैं ,इस पोस्ट के बाद यदि जिज्ञासु रूची लेकर पूर्व लेख पढ़ने में कुछ समय निकाले तो हो सकता हैं कुछ नई बात सामने आ सकें ।

इस विचार शुरू करने के पहले मैं विषयान्तर्गत कुछ बातें लिखना आवश्यक समझता हूँ कि- मैं एक ईश्वरीय सत्ता पर विस्वास करता हूँ ,परन्तु न मैं अपने आप को हिन्दु ,न मुस्लिम ,न इसाई ,न जैन ,और न ही अन्य कोई मतवादों से बॉंधना चाहता हूँ ,आज अपवाद को छोडकर एक भी मत मानवता के सिद्धान्त पर खरे नहीं उतरने के कारण मैं यह भी मानता हूं कि आज हिन्दु कहलाने वाले मात्र अपने आप को हिन्दु ही कहते है ,मुस्लिम भी कहने के लिए मुस्लिम है, इसाई भी नाम मात्र के इसाई है ,जैन भी वेसे ही और सिख भी वैसी ।

दुनियॉं में जितने भी मत हैं या सम्प्रदाय हैं जिसे मजहब भी कह सकते है ,किसी में भी कोई कमी मुझे नहीं दिखता है ,एक मुस्लिम मत कहता है कि यदि हाथ गलत कार्य में लिप्त हो तो उसे काट देना चाहिए ,यदि ऑख गलत चीजों पर आकृष्ट हो तो ऑंख फोड़ देना चाहिए ,मात्र दो पर ही विचार करें तो साफ हो जाता हैं कि मनुष्य जन्म अच्छाई के लिए मिला हैं ,गलत कार्य करने और करवाने के लिए नहीं ।

क्या मुस्लिम उक्त बातों को व्यवहारिक जीवन में लागू करते हैं ? मुस्लिम भाई यदि उक्त बातों को जीवन में नहीं उतार सके, तो वे किस बात के लिए दावा करते हैं कि मैं मुस्लिम हूं ?
कुरान में तो कमजोरों को मदद करने की बाते लिखी हैं , ज़कार्ता की बाते है ,अपनी आय के एक अंश जरूरत मंद लोगों को बॉटने की बाते साफ लिखा हुआ हैं ,कितने मुस्लिम भाई इमान पर कायम हैं ? दु:ख तो तब अधिक होता है जब जिस देश का खाया जाता हैं, उसी देश के खिलाफ षडयंत्र रचते हुए दुश्मनों को मदद करते हुए मुस्लिम भाई पकड़े जाते है ।

मैं नहीं कहता कि मुस्लिम देश भक्त नहीं होते ,मैं तो मात्र यह कहना चाहता हूँ कि ५ बार नमाज अदा करने मात्र से कोई मुस्लिम नहीं हो जाते है ।

अब जरा हिन्दुओं पर विचार किया जाए तो पता लगता हैं कि भारत वर्ष में मुझे खोजने पर भी हिन्दु नजर नहीं आते , मंदिरों में माथा टेकने से और पूजा पाठ में लिप्त रहकर, बड़ा सा टिका माथे में लगा लेने से कोई हिन्दु नहीं हो जाता हैं ।

हिन्दुओं में जाति व्यवस्था तो एक नासूर बन चुका हैं ,देश के धर्म के नाम पर ठेकेदारी चलाने वाले इस प्रथा को जड़ से खत्म क्यों नहीं करते ? इस देश में तो स्वयभू भगवानों की कमी नहीं हैं ,ऐसे भगवान देश में हो रहे मानव-मानव का नफरत देख कर मात्र बयान बाजी करने के सिवाय अन्य कुछ भी करने में क्यों हिचकते हैं ?

मैं एक बहुत ही कटु उदाहरण देना चाहता हूँ ....महानायक अमिताभ बच्चन को दुनियॉं में अधिकांश लोग पहचानते हैं ,अभी ६७ वर्ष के उम्र में भी पर्दे पर कुछ भी करते हुए नजर आ जाते है , पैसे के लिए कुछ भी करेगा वाली बात तो बच्चन जी में आज एक दम सठीक बैठ रहा हैं ।

हिन्दु मत में एक आश्रम व्यावस्था की बात लिखी हुई है ,५ वर्ष से २५ वर्ष तक व्रह्मचार्य,२६ से ५० वर्ष की उम्र तक गृहस्थाश्रम ,५१ से ७५ तक वाणप्रस्थाश्रम ,और ७६ से सन्यास आश्रम की प्रावधान हैं ,क्या बच्चन ही वाणप्रस्थ आश्रम के नियम को पालन कर रहे है ? यदि नही तो वे हिन्दु कैसे हो सकते हैं ? नियमों को पालन नहीं करेंगे ,लेकिन अपने आप को हिन्दु कहेंगें ,वाह भाई .....
मैने बच्चन जी का मात्र उदाहरण दिया हैं ,ऐसे तो एक ढुढों तो सौ मिल जाऐंगे ,किसका किसका नाम गिनाता रहूँ ? राजनीति में तो भरमार है ............

जैन मत में अपरिग्रह की नीति तो मुझे बहुत अच्छी लगती है ,छात्र जीवन में जैन दर्शन से मै प्रभावित भी था, लेकिन आगे चल कर जैनियों का हालत देख कर मुझे तो रोना आता हैं ....... अहिंसा ,सत्य,आस्तेय ,ब्रम्हचार्य ,अपरिग्रह नीति, मन-कर्म और वाचा से पालन करने की बातें लिखी हुई हैं ,किन्तु कितने लोग इसे पालन करते है ? जो पालन करते हैं वे जैनि हैं, जो जितेन्द्रिय हैं, वे जैनि और जो नहीं हैं वे कैसे जैनी हो सकते हैं ?

इसाईयों की नीति जरा सुनिये ...प्रेम से दुनियॉं जितने की बाते किया गया हैं ,प्रेम करने वालों को स्वर्ग मिलेगा ,ईसामसिह को सूली पर चढाने के बाद भी वे कहते रहे कि- हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना ,ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं ...
लेकिन आज बाईबिल को कितने लोग मानते है ? दुनियॉं में जहॉं -जहॉं भूखमरी ,गरिबी हैं वहॉं जाकर ये लोग सेवा के नाम पर ईसाइ बनाने में अपना प्रधान फर्ज समझते है। भारत वर्ष में तो आए दिन आदिवासी और चर्च के बीच में लड़ाई की खबरे आम बात हो गई है।

अब सोचने वाली बात यह है कि क्या बाईबिल में जरूरत मंद लोगों को ईसाइ बनाने की बाते लिखी हुई हैं ? मैंने जहॉं तक समझा और पढा हैं ...ऐसा कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा , फिर चर्च में जाकर प्रार्थना करने मात्र से मैं ऐसे लोगों को ईसाइ कैसे मान लूँ ?

सिक्ख भाईयों को पंच "क" कार धारण करने की इजाजत हैं , इसका अर्थ यह हुआ कि सनातन धर्म पर यदि विपत्ति आती है , तो हमेशा रक्षा करने को तैयार रहना । कितने सिक्ख इस बात से इन्कार कर सकते है ? मैं समझता हूँ कि एक भी शायद ही मिलेगें ,क्या आज सनातन धर्म पर विपत्ति की स्थिति नहीं हैं ? चारों ओर हाहाकर मची हुई नहीं हैं ? जाति के नाम पर यहॉं मार काट होती हैं ,हरिजन स्त्रीयों की ईज्जत तो मानों खिलौना है ,गरिबी ,भूखमरी ,बेरोजगारी आदी क्या सनातन धर्म को रसातल नहीं ले जा रही है ?

उक्त स्थितियों को देखते हुए भी अत्याचारियों के खिलाफ म्यान से तलवार कयों नहीं निकलती ? क्या सामने विपत्ति देखकर भी चुपचाप सहने वालों को सिक्ख कहा जा सकता है ?
तमाम मत साम्प्रदाय कभी धर्म नहीं हो सकता है । धर्म मात्र एक है ,मानवता के नाते जो भी गुण लोगों में होना चाहिए वे सभी गुण ही धर्म है । और सभी गुणी जनों को ही धार्मिक कहलाने योग्य हैं ।
दया ,माया,क्षमा ,अपरिग्रह ,सत्य, सेवा ,त्याग ,आदी मानवोचित गुणों को धारण करते हुए ईश्वर की समर्पित भाव से आराधना और आडम्बर रहित प्रार्थना द्वारा उन्हें अनुभव करने का ही नाम धर्म कहा जा सकता है।

उक्त गुणों को सिखने के लिए किसी दलाल की आवश्यकता नहीं हैं , हॉं यदि उच्च ज्ञानी और गुणी से कभी दर्शन हो जाए तो उपदेशों का पालन करने में कोई हर्ज भी नहीं है ,परन्तु आज तो विरले ही मिलेंगें ...........मत -संप्रदाय जी का जंजाल --धर्म कहाँ --?

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

अब बाबा रामदेव और राजीव दिक्षित स्काटलैंड के टापू से दुनियाँ में क्रांति करेंगे !--2

3 अक्टूबर 2009 को जब मैंने रामदेव बाबा पर कुछ लिखना चाहा तो एक बार नहीं अनेक बार सोचता रहा कि क्या मुझे ऐसा करना चाहिए ..... देश में भ्रष्ट बाबा लोगों से तो रामदेव जी बहुत अच्छे कार्य कर रहे हैं । फिर भी लिखने का साहस किया ,क्योंकि दूध का जला छॉछ को भी फूंक फूंक कर पीता है ।

भारत भूमि हमेशा त्याग की बुनियादी शिक्षा देता आया हैं ,यहॉं त्यागी और भोगी का परिभाषा ही अलग हैं । जो भोगी हैं वह कभी योगी नहीं बन सकते ,भौतिक साधनों के प्रति आकर्षित योगी को पथभ्रष्ट योगी के रूप में देखकर कष्ट होना स्वभाविक है ।

मैंने सोचा था कि पता नहीं इस मुद्दे पर मुझे क्या -क्या आलोचना का सामना करना पड़ेगा ....एक दो बन्धु ने जरूर यह लिखने का प्रयास किया कि रामदेव बाबा ऐसे कार्य कर रहे हैं जिससे अनेक कार्पोरेट जगत के आउटलेट घाटे में चल रहा है ।

``समय´´ने कहा कि तथा कथित पैरोकारों को पर्दे के पीछे के ऐसे खेलते देखना सामान्य बात है । इस टिप्पनी से साफ हो जाता है कि मेरे जैसे बहुत लोग होंगे जो बाबाओं के खेल से पहले से परिचित हैं ,राजीव तनेता जी --ने तो कहा कि ऐसे लोगों के खाने के दॉंत और होते है। और दिखाने के और ....

सुरेश चिपलूनकर ने कहा कि-- मुझे उनके चेले से शिकायत हैं क्या ? स्पष्ट करू ...
भाई सुरेश ! मै जरा घुमा कर जवाब देता हूँ ... एक शराबी को यह पता रहता हैं कि कौन सी जगह शराब बिकाती हैं , हम जहॉं से रोज निकलते है फिर भी हमें पता ही नहीं रहता कि यहॉ शराब बिक सकती हैं ,लेकिन शराबी को उस स्थान का पता कैसे चल जाता हैं ? आपने कभी गौर किया है .........
मीठी -मीठी बातें करते हुए राजीव दिक्षीत ने भारतीय जन मानस के जिस विस्वास के साथ खिलवाड़ किया है और जिसके चलते देश को कई वर्ष ,सुधारने की क्रम से पीछे हटना पड़ा हैं ...मैं तो यह मानकर चल रहा था कि अब देश में क्रांति आने को कोई भी नहीं रोक सकता है ,मै सच कहता हूँ -कि नौकरी भी छोडने को तत्पर हो गया था , मेरे एक मित्र ने नौकरी छोड़कर आजादी बचाओ आन्दोलन के साथ हो लिए थे ,जब उनको यह पता लगा कि राजीव दिक्षीत आजादी बचाओ आंदोलन को छोड़कर हिन्द स्वराज अभियान में शामिल हो गए और उनको भी हिन्द स्वराज अभियान में शामिल होने के लिए प्ररित कर रहे हैं, तो वर्षों तक इस परिणाम के कारण मानसीक सन्तुलन ही खो बैठे थेे ।

एक नहीं सैकडों उदाहरण मेरे पास हैं ,कुछ आन्दोलन कारी साथियों ने तो बाबा रामदेव जी को उनके काली करतुतों के बारे में प्रमाण सहित बताया ,और बाबा को निवेदन भी किया कि आपके जैसे योगी को एक लोभी और बदनाम व्यक्ति को किसी भी कीमत में पनाह नहीं देना चाहिए ....बाबा नहीं माने ....

बाबा ने उन्हें स्वदेशी मंच का प्रधान बना दिया ..... जिस राजीव दिक्षीत को सुनने के लिए हजारों लोग स्वप्ररित होकर इकट्ठा हो जाया करते थे ,आज राजीव दिक्षीत यदि कहीं खड़े हो जाए तो उसे सुनने वाले कोई मजबूरी में ही खडे होंगे ....अनिच्छा से ..... घृणा और जिज्ञासा से ................... जानबुझ कर रामदेव जी ने एक अनैतिक वान को देश के जनता पर थौप दिया हैं जैसे हमारे देश में मंत्री –अधिकारियों को थौपे जाते है। मैं अब किसका तारिफ करू ...?

एक कंपनी ने दस हजार जमा करने पर एक हजार रूपया प्रति माह देता था ,अर्थात साधारण हिसाब 120 प्रतिशत ब्याज देना कोई मामूली बात तो नहीं हैं ,कई परिचित लोगों को मैंने मना किया पर बहुत लोग माने नही ,अभी कुछ दिन पहले इस कंपनी के फर्जीवाडा पकड़ में आ गया और लोगों को मिलने वाली प्रतिमाह दस प्रतिशत भी मिलना बंद ..... इस पर भी यदि स्काट लैंड के धरती से देश में क्रान्ति हो जाए तो मैं सबसे पहले उसका समर्थन ही नहीं करूंगा, बल्कि बाबा जी के चरणों में जाकर निवेदन करूंगा कि मुझे भी देश सेवा का एक अवसर आपके सानिद्ध में प्राप्त होने पर आपकी कृतज्ञता स्वीकार करने में गर्व की अनुभुती होगी .....मैं यह भी विस्वास दिला सकता हूँ कि आज की भौतिक वादी युग में नोटों से भरी हजारों ट्क भी मुझे सच्चाई की राह से डिगा नहीं सकता ..............................

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

अब बाबा रामदेव और राजीव दिक्षीत स्काटलैंड के टापू से दुनियाँ में क्रांति करेंगे !

बाबा रामदेव ने अब भारतीय रकम को विदेशों में निवेश करने लग गए है ,हाथी के दॉंत दिखाने का कुछ और खाने का कुछ होता हैं ,स्वदेशी का नारा लगाने वाले बाबाजी अवसर देखकर अपनी साम्राज्य विस्तार में लगे हुए हैं ,उनका कहना है कि- विदेशों में भारी मांग होने के कारण उनके चेलों ने एक टापू खरीदने में विशेष सहयोग किया है ।

मंदी के मार से विदेश में अचल सम्पत्ति खरीदने वाले विरले ही मिलेंगे ,इस अवसर का लाभ तो एक योगी को उठाना ही चहिये , क्योंकि उनके पास बैठे हुए एक ऐसे तमाशेबाज ,एक ऐसे नटवरलाल जिनको ईश्वर ने लोगों को प्रभावित करने के लिए वाणी तो दी है ,पर ईमानदारी शायद उनके खून से गायब हो चुका है।

मै नाम लूँ तो हो सकता हैं कि देश के बहुत लोगों को अच्छा नहीं लगेगा ,आज कल रामदेव जी के साथ बैठे-हाईटेक स्वदेशी प्रचारक ,देश के कर्णधार ,देश से विदेशी कंपनीयों को भगाकर ही दम लेंगे, ऐसे कहने वाले स्व उपाधी धारक राष्ट्रबंधु श्री राजीब दिक्षीत जी जिनके सलाहकार बन बैठे है .....

मैं पिछले वर्ष जब एक सम्मेलन में भाग लेने वर्धा पहूंचा तो राजीव दिक्षीत से मिलने का मन होने से उनके घर चला गया , एक साधरण जीवन जीने की संकल्प करने वाले ,गॉंधी जी को आदर्श मानकर, देश में प्रचार करने वाले ,अपने नाम से कभी कोई बैंक में खाता न रखने की बातें करने वाले त्यागी जी- के घर में जो भव्यता देखा तो मुझे एका एक विस्वास ही नहीं हुआ कि.. मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं ....?

श्री कृष्ण और सुदामा के किस्से तो जग जाहिर है , गरीब सुदामा अपनी सखा श्रीकृष्ण से कभी कुछ मांगने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे ,परन्तु जब श्री कृष्ण से मिलकर वे घर लौटे तो झोपड़ी के स्थान पर महल देखकर हैरान हो गए थे । अब राजीव भाई को कलियुग में ऐसी कौन भगवान राजा मिल गए होंगे, जिसने रातों रात उन्हें करोड़पति बना दिए हैं .... कुछ समय पहले मेरे पास कई मेल आया --- जिसमें राजीव भाई के बारे एक खुलीचिट्ठा भी था ,भावनाओं से खेलते हुए इस देश में रातों रात करोड़पति बनना बहुत आसान है ,यही बात दिक्षीत जी पर भी लागु होता है।

सलहाकार बन कर बाबा राम देव को विदेश में धन निवेश करने का काम यही एक व्यक्ति के सिवाय अन्य कोई करने का हिम्मत नहीं कर सकता ..... स्कॉट लैंड स्थित एक पुरे टापू को ही बाबा रामदेव जी ने खरीद लिया है ,भारतीय भूमि उन्हें अब रास नहीं आ रहा है ,इस देश में घर- घर तक योग सिखाते हुए, राष्ट्रप्रेम ,स्वदेशी - भावना द्वारा देश में क्रान्ति लाने की बातें करने वाले बाबा ,अब विदेश से भारत का संचालन करेंगे । एक विदेशी निर्जन टापू में बैठ कर भारत में दोनों मिलकर क्रांति करेंगे ,योजना बहुत ही अच्छी है । १५.३० करोड़ रूपये में एक टापू खरीद कर आगे लाभ की सम्भवना अभी से ही शुरू है .....

वर्षों पहले इस देश में एक महेश योगी हुए ,वे भी विदेश में रहकर न जाने क्या- क्या प्रयोग किया करते थे,आज महेश योगी को कितने लोग जानते हैं पता नहीं ...........एक समय आचार्य रजनिश भी देश छोडकर विदेश चले गए थे ,अमेरिका में रजनिशपूरम् बना कर अमेरिका का ही राष्ट्रपति बनने का सपना देखने वाले ओशो का जो हस्र हुआ, उसे देख सुन कर बाबाओं को कुछ ज्ञान लेने का समय ही कहॉं हैं ........

देश के महान साहित्यकार ने एक स्थान में लिखा कि... अपनी मॉं को असहाय छोड़ कर जो दूसरे मॉं की सेवा करते हैं वे कृतघ्न कहलाते हैं ....पता नहीं ...सत्य लिखने की मुझे क्या सजा मिलेगी... पर यह तो स्पष्ट हैं कि कलियुगीन बाबाओं को सजा देने वाले अभी देश में शायद ही पैदा हुए होगे ....!!

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

देश में जीवन का कोई कीमत नही --बिहार में ६० की जल समाधी

यदि लोग अकाल मृत्यु में चल बसे और हम विज्ञान की दम्भ में, समय गूजारते चले जाए तो , आगे चलकर विज्ञान को नकारने का एक बहाना तो लोगों को मिल ही जाएगा ,हम चॉंद में पानी होने की बाते करते है, वहॉं मनुष्य के बसने लायक स्थिति पैदा करने लगे हैं ,लेकिन जहॉं मनुष्य के लिए प्रकृति ने सब कुछ अनुकूल वातावरण बनाकर वरदान स्वरूप हमें प्रदान किया है ,उसी वरदान को हम नकारते हुए, दूर का ढोल सुहावना लगता हैं वाली कहावत चरितार्थ करने लगे हुए है ।

आज भी हम लोगों को भर पेट भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाए है ,उचित शिक्षा की बात तो दूर हम अक्षर ज्ञान तक बच्चों को उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं ,रास्ते में कैसे चलना चाहिए यह भी सिखाने में हम असमर्थ हैं । लोग जल के बीना बेमौत मारे जाते हैं ,पिलिया तो जल के कारण ही होता हैं , गन्दगी के कारण लाखों लोग प्रत्येक वर्ष मारे जाते हैं । मलेरिया ,हैजा ,डेंगू आदी तो गंदगी के कारण ही पैदा होता है ,हम आजादी के बाद बाते तो बहुत करते है ,साधनों की भी कमी नहीं है.... पर लोग साधन के अभाव में मर रहे हैं ।

जानबूझ कर लोगों को काल की मूंह में पहुंचाना एक परम्परा सी इस देश में बन गई हैं । भूखमरी से लोगों को अनेक प्रकार की बिमरी आ घेरती हैं ,खून की कमी से बच्चे ग्रसीत हैं ,किशोरावस्था में गरीब घर की लड़किओं की जो दूर्गती होती हैं उसे लिखना भी कष्ट साध्य हैं ,जिस समय लड़कियों को पौष्टिक आहार की आवश्यकता हैं ,उसी समय यदि उसे भूखमरी की सामना करना पड़ें ,तो आगे जाकर देश के लिए माता बन कर वे कैसी सन्तान उत्पत्ति करेंगी यह तो सोचने की बात हैं ।

शासन सब कुछ जानती हैं , माताओं के लिए अनेक प्रकार की योजनायें भी प्रारंभ किया गया हैं पर उसका लाभ उसे कितना मिल पाता है ,यह तो परिस्थिति पर निर्भर करता है ।
गरिबी की बात तो एक और छोड़ दे, तो अमीर लोग भी आज सुरक्षित नहीं है । गुंडों के कारण रास्ते में चलना आज बहुत मुस्किल हो चुका हैं ,यदि गुंडों से बच भी गए तो भी सुरक्षित नहीं हैं ।

कब किस गाड़ी के नीचे कौन आ जाए, उसका कोई भरोसा भी नहीं ,रास्ते में तो अमीर -गरीब -नेता -कर्मचारि..अधिकारी सभी कीड़े मकदों की तरह पीसे जाते है। फिर हम किस विकास और उन्नती की बाते करते हैं ,समझ से परे है ।

बाजार से जो भी खाने पीने के लिए हम खरिदते हैं ,घर में यदि साफाई करके और उत्तम तरिके से उपयोग में लाया जाए ,तो भी हम नहीं कह सकते कि हमने सही आहार का सेवन किया है ,वह शरीर लिए दायक ही होगा ... हो सकता हैं कि हम घर की बनी हुई भोजन से ही अन्तिम श्वाश लेने लगे ,हम
बाहर सुरक्षित नहीं हैं ,जंगल में चले जाए तो वहॉं भी औद्योगिकरण का जो वातावरण तैयार हो चूका है जिसके चलते जंगल भी सुरक्षित नहीं रह गया हैं ,जंगली जानवर आज इस हद तक हिंसक बन चुका कि शहरों में आकर हाथी ,भालू ,शेर आदी हमला शुरू कर दिया हैं 1

बिहार के खगड़िया और दरभंगा जिले में नौका डुबने से 60 लोगों की मौत हो सकता हैं,और सरकार हर एक परिवार को 1लाख 50 हजार रूपये मुआवजा देती हैं तो 90 लाख रूपये तो एक झटके में जनता का ही चला गया ना ? आदमी का जान 1.5 लाख में सौदा हो गया ,कितनी सस्ती हैं आदमी का जान ! जबकि 100 जैकेट का किमत यदि 500 रूपये भी प्रति नग हो तो पचास हजार ही होती हैं ।

जहॉं नाव चलती है यदि पहले से ही सुरक्षा की व्यवस्था की जाती तो क्या 60 लोग डुबने नहीं बच सकते थें , नाव में प्रत्येक को सुरक्षित जैकेट पहनना आवश्यक होता हैं ,पर भारत में मनुष्य थोडे ही रहते हैं ,यहॉं तो प्राय: भेड़ बकरी ही नजर आने के कारण उनके किस्मत में हलाल या बली ही
लिखा है ।

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

गाँधी जयंती पर--राम रावण की जय -----

हे गान्धीजी ! मैंने अनेक बार चाहा ताकि आपसे बहुत प्यार कर सकूँ ,आपको श्रेष्ट पुरूष मान कर दिल की गहरीई में बीठा सकूँ ,पर आज तक ऐसा नहीं हो सका , इसका अर्थ यह नहीं हैं कि मैं आपसे नफरत करता हूं ।

आपसे मानवता के खातिर नफरत कोई भी नहीं कर सकता ,विचार भिन्नता होते हुए भी नेताजी सुभाष ने ही आपको सबसे पहले महात्मा कहा था ,आज देश के अधिकांश लोगा आपको महात्मा के नाम से ही जानते है ।

मैं आपके राम -नाम जपते जपते-- पता नहीं कब मेरे मूंह से रावण -रावण भी आना शुरू हो गया हैं ,गलती मेरा नहीं है ,मैंने तो राम -राम ही सत्य हैं की कल्पना करता हूं .... पर मुंह में राम और बगल में छुरी रखने वाले लोगों को देखते हुए , आजकल मुझे राम-राम जपने वालों से बहुत भय होने लग गया हैं ।

रावण से मुझे भय नहीं लगता क्योंकि रावण आज सामने से वार करता हैं, और राम-नाम जपने वाले पीछे से , रावण से तो बचा जा सकता हैं , पर राम भक्तों से बचना आज कठीन हो गया है ।

हे गॉंन्धी जी ! आपके टोपी का तो क्या कहने ,टोपी के साथ और खादी के साथ दिन में न जाने कितने वार बलात्कार होता है .उसे यदि आप देखते तो हो सकता था कि , आप स्वयं ही आत्महत्या कर बैठते !

नाथूराम गोडसे ने तो आपकी शरीर को मारा हैं ,पर आपके चाहने वालों ने तो आपकी आत्मा को ही मार डाला है । गीता में कहा गया हैं कि ..आत्मा अमर हैं ,अजर हैं ,आजन्मा हैं ...पर कलियुग में आत्मा को मानने वालों को तो पिछड़ा ,अशिक्षित ,मूरख,और न जाने कौन -कौन सी अलंकारों से अलंकृत किया जाता हैं ।

कल आपका जन्म दिन हैं .... मै किस मूंह से आपको जन्म दिन का बधाई दूँ ॥ यह सोच-सोच कर परेशान भी हूँ , अभी पिछले कुछ साल पहले आपने सुनिल दत्त को साक्षात्कार दिया था ,दत्त जी तो आपके कृपा से माला माल हो गए हैं ,परन्तु मेरे जैसे को क्या आप कुछ सूनने का समय दे सकेंगें ?

आप मुझ पर अब नराज मत होईएगा ...... मैं अब न आपसे और न रावण से नफरत करूंगा ,राम और रावण दोनों को पूरक मानते हुए चलने का दिल चाहता है ।

लोहा -लोहा को काटता हैं ,जहर का दवाई भी जहर ही है ,अत: जब राम के नाम पर रावण ही अधिक हो गया, तो कोई रावण ही इसे खत्म कर सकता है ,अत: रावनम् शरणाम् गच्छामी .......

रावण तो अपने राज्य को स्वर्ण लंका बना दिया था ,यदि रावण जपते हुए मेरे देश भी स्वर्ण भारत बन जाए ,और इस लिए मेरे जैसे कुछ लोगों को गाली भी सहना पड़े , तो बहुत ही कम हैं .........
रावण जी को कहना चाहूंगा कि आपके बहन को यदि कोई नाक कान काट दे ,अपमान करें ,तो कलियुग में बदला लेने के लिए किसी की पत्नी को उठाकर न ले जाए ,हॉलाकि रामायण में सीता जी को बहुत ही इज्जत के साथ लंका पुरी में रखने की बाते लिखी हुई है ।

एक नारा आज क्यों नहीं दिया जा सकता है कि राम -रावण की जय !.

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