जीवन में अनेक यादगार क्षण आहिस्ता -आहिस्ता मन के किसी कोने में आकर चुपचाप बैठ जाती हैं ,समय के साथ साथ कुछ यादें कूरेद-कूरेद कर मन को लहुलुहान भी करने में नहीं चुकती ,उसे तो सताने में ही मजा आता हैं ,यादें यदि किसी के मन को खुशिओं से भर देंतो ऐसे नसीब वालों को मैं नमन करना चाहता हूँ ,जब एक अन्तराल के बाद लिखने बैठा तो स्कूली जीवन के उन क्षणों को यदि न याद करू तो मैं अक्षम्य के पात्र बनकर रह जाउंगा । काश आज उस बात को मैं भूल सकता ! पढाई लिखाई में जरूरी नहीं कि सभी सहपाठी एक ही जैसे समझदार हो ,परन्तु यदि कुछ नासमझी के कारण सहपाठी को दण्ड देने के लिए शिक्षक ही प्रेरित करें तो सोचने की बात हैं कि उस सहपाठी पर क्या बितता होगा ,जरा आगे यदि विचार करें ,दण्ड पाने वाले कोई लड़की हो तब ? सह शिक्षा में तो मान अपमान की भावना बहुत ही अहम् हो जाती हैं । किसी लड़की के सामने कोई मेरा अपमान करें चाहे शिक्षक हो या सहपाठी मुझे कतई मंजूर नहीं था ,स्कूल के सभी काम ,पढाई समय पर ही करके जाता था ,मेरी अंग्रेजी कुछ अच्छी थी ,अंग्रेजी के शिक्षक मुझे चाहते भी बहुत थे ,उस लड़की अंग्रेजी में कमजोर थी ,एकबार शिक्षक महोदय ने आदेश दिया कि लड़की की कान पकड़ कर खींचो और अंग्रेजी समझाओ ।यदि ऐसा नहीं करोगे तो उस लड़की तुम्हारे कान खिचेगी ,अब धर्म-संकट की बात हो गई ,लड़की की कान नहीं खिचने पर मुझे ही दण्डित किया जाएगा ,अत: न चाहते हुए भी मुझे उसकी कान खिचना पड़ा । अंग्रेजी भाषा न आने के कारण लड़की को लज्जीत होना पड़ा था ,दु:ख क्षोभ और अपमान सहकर किसी तरह वो कक्षा छुटते तक साथ में थी ,जैसे ही अंग्रेजी क्लास खत्म हुई ,--चली गई । मै कुछ अनहोनी के बारे में सोचता रहा हैं और उसे जाते हुए देखता रह गया ,मेरे पास कोई विकल्प नहीं था ,शिवाय पश्चाताप के ।दूसरे दिन वो नही आई ,लगातार कई दिनों तक नहीं आई ,मैं अन्दर ही अन्दर घुटन से पल पल मरता रहा ,पश्चाताप की आंसू के सिवाय मेरे पास कुछ भी खाली नहीं था ,काश मुझें अंग्रेजी न आया होता ,मात्र अंग्रेजी न आने के कारण एक मालूम लड़की को इस तरह की अपमानित हो पड़ा ? उस समय से अंग्रेजी के प्रती मेरे नफरत धीरे -धीरे बढता चला गया ,एक दिन अचानक वो मिली ,स्कूल के रास्ते में ही ,स्कूल पोशाक में नहीं थी ,मुझे देखकर मुस्कराई और आगे बढ गई ।
मैं महाविद्यालय पहुंच चुका था , स्कूली जीवन की इस घटना को भूल सा गया था ,अचानक मेरे घर में उसकी विवाह निमंत्रण पत्र पाकर मैं फिर अतीत की उस घटना में खो सा गया था । महाविद्यालय में स्कूली सहपाठीओं में कुछ लडकीयॉं मेरे साथ ही पढती थी ,अचानक एक लड़की से मैने पूछ ही लिया कि वो किस कक्षा तक पढ ली हैं ? उत्तर मिला कि स्कूली दिनों की घटना के बाद उसने स्कुल से ही तौबा कर ली थी ,उसकी माता पिता सहेलियों के हजार समझाने के बाद भी पढने लिखने को राजी नहीं हुई । जीवन में छोटी -छोटी घटना के कारण किस तरह की परिवर्तण हो जाती हैं जिसे सोचना भी असम्भव हो जाता हैं । चूंकि मेरी कोई कसूर नहीं थी ,आज मैं समझता हूँ कि अंग्रेजी शिक्षक के कहने से जो दण्ड उस लडकी को दिया गया वह अत्यन्त घृणीत और अमानविय था ,एक दिन मुझे दोस्तों द्वारा ज्ञात हुआ कि उस अंग्रेजी के शिक्षक का किसी दुर्घटना से मृत्यु हो गई । घटना चक्र तेजी से आगे बढती चली गई ओर अनेक वर्ष बित चुकी हैं, आज अचानक चल चित्र की भॉती उस घटना ऑखों के सामने आ जाने से लिखने की इच्छा हुई । मैं उससे क्षमा तक नहीं मांग सका ,आज कहा होगी मुझे पता नहीं ,घटना से सम्बन्धीत किसी को अगर ओ मिले तो उससे जरूर बताने का कष्ट करें कि मैंने जान बुझ कर कोई कसूर नहीं किया था ,अगर अनजाने में कोई कसूर हो गया हो तो मुझे क्षमा कर दें !!
शनिवार, 30 मई 2009
शुक्रवार, 29 मई 2009
भाड़ में जाय तुम्हारी व्यस्तता
भागम भाग की जीवन में हमें खुद को ही पता नहीं कि हम कहॉं जा रहे हैं । हमें यह भी पता नहीं कि जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं ।समाचार पत्र में लिखा था कि बाम्बे में एक लड़की की बलात्कार हुई, ओर सरे आम लोग देखते रहे । आलोचना बहुत हुआ ,आज सब चुप! कहते हैं बाम्बे भारत वर्ष के लाईफ लाईन अर्थात जीवन रेखा हैं ,एक आर्थिक महानगरी हैं ,यहॉं सभ्य लोग बसते हैं । अत: सभी इतने व्यास्त कि कहॉं क्या हो रहा हैं उसे देखने की किसी को फूर्सत ही नहीं हैं । जीवन अमूल्य हैं और पल -पल का समय किंमति होता हैं, समय यहॉं मूल्य पर बिकती हैं । आपके पास यदि मूल्य हैं तो किसी भी व्यस्ततम लोग को आप मूल्यनुसार खरीद सकते हैं । आपको सर्दी हो गया हो तो मूल्य दीजिए ,खबर राष्ट्रिय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय बन जाएगी ,आपको छिंक आई हैं तो सहानुभूति करने के लिए सैकडों लोग तैयार , यदि मूल्य नहीं हैं तो सरेआम आपकी हत्या हो जाएगी और आपको बचाने वाले भी नहीं मिलेंगें ।पड़ोसी घर से नहीं निकल रहें हैं , पुलिस आकर दरवाजा तोड़ते हुए पड़ोसी के सड़े गले लाश लेकर चली जाती है, समाचार पत्र से पता चलता हैं कि पड़ोसी 15 दिनों से मृत पड़ा था । मृत पड़ोसी के लाश से बदबू नहीं समझ में आती हैं ,क्योंकी सभी इतने व्यस्त कि एक ही खुशबु से वे मदमस्त है, वह हैं मात्र नोटों की । एक विदेशी ने कला के नाम पर बाम्बे में रहने वालों पर झोपडिओं के कुत्ते फिल्म बना डाला ,अपवाद को छोडकर यहॉं सभी को मजा आया ,नोट दिजीए कुत्ते ,भालू,उल्लू,
लात, बात, सभी चलाउ हैं । क्योंकि हम बहुत व्यस्त हैं ,जब किसी सभ्य कहलाने वाले बहु बेटियों पर बलात्कार होता हैं या अपहरण होता हैं तब मामला ही कुछ ओर नजर आने से मेरे जैसे लोग बरबस कह उठता हैं कि बोए पेड़ बबूल का आम कहॉं से होय । खुले आम आज वह सब कुछ हो रहा हैं जो पहले पर्दे के पीछे हुआ करता था ,पर लोग व्यस्त इतने कि दो मिनट रूकर देखने का भी फूर्सत नहीं । मुझे याद आता हैं कि एक बार कार्यालय से लौटते वक्त दुर्घटना ग्रस्त मोटर सायकल को देखते हुए मैं रूक गया था और कुछ ही कदम पर थाना था ,एक युवक रास्ते में तड़प रहा था मूझसे पहले न जाने कितने लोग उसे देखते हुए आगे बढ चूके होंगे परन्तु उसे उठाकर हॉस्पिटल तक पहुचने में कोई सामने नहीं आया ,मार्च माह में मुझे घर लौटते हुए कभी कभी काफी रात हो जाता था अधिक रात हो जाने के कारण मैं बहुत थक भी गया था, परन्तु युवक को देखकर मुझे आगे बढने की हिम्मत नहीं हुई ,उसे हॉस्पिटल पहूंचा ही था कि पुलिसवाले आ धमके ,मुझसे ही कहा सूनी करने लगे ,परन्तु जब वस्तूस्थिती समझमें आया तो वे मुझसे कुछ भी नहीं कहा ,मेरे अनुरोध पर वे गवांही में भी नाम नहीं लिखा ,क्योंकि जीवन में ऐसी अनेक घटना घटती रहती हैं यदि गवांही में ही समय चला जाए तो अनेक आवश्यक कार्य रूक जाने के कारण मैं गवांही में नाम न लिखने को कहता हू और पुलिस वाले मदद भी करते है। सभी पुलिसवाले खराब नहीं होते । वह व्यस्तता भी किस काम की ,जो मानव कल्याण के लिए ,जरूरत मंद प्राणी के लिए काम न आ सके ? विपत्ति किसी को बोलकर नहीं आती, चाहे अरबपति हो या लखपति प्रकृति की मार से कोई भी बच नहीं सकते भाड़ मे जाए तुम्हारी व्यस्तता और नोटों की खुश्बु ।
लात, बात, सभी चलाउ हैं । क्योंकि हम बहुत व्यस्त हैं ,जब किसी सभ्य कहलाने वाले बहु बेटियों पर बलात्कार होता हैं या अपहरण होता हैं तब मामला ही कुछ ओर नजर आने से मेरे जैसे लोग बरबस कह उठता हैं कि बोए पेड़ बबूल का आम कहॉं से होय । खुले आम आज वह सब कुछ हो रहा हैं जो पहले पर्दे के पीछे हुआ करता था ,पर लोग व्यस्त इतने कि दो मिनट रूकर देखने का भी फूर्सत नहीं । मुझे याद आता हैं कि एक बार कार्यालय से लौटते वक्त दुर्घटना ग्रस्त मोटर सायकल को देखते हुए मैं रूक गया था और कुछ ही कदम पर थाना था ,एक युवक रास्ते में तड़प रहा था मूझसे पहले न जाने कितने लोग उसे देखते हुए आगे बढ चूके होंगे परन्तु उसे उठाकर हॉस्पिटल तक पहुचने में कोई सामने नहीं आया ,मार्च माह में मुझे घर लौटते हुए कभी कभी काफी रात हो जाता था अधिक रात हो जाने के कारण मैं बहुत थक भी गया था, परन्तु युवक को देखकर मुझे आगे बढने की हिम्मत नहीं हुई ,उसे हॉस्पिटल पहूंचा ही था कि पुलिसवाले आ धमके ,मुझसे ही कहा सूनी करने लगे ,परन्तु जब वस्तूस्थिती समझमें आया तो वे मुझसे कुछ भी नहीं कहा ,मेरे अनुरोध पर वे गवांही में भी नाम नहीं लिखा ,क्योंकि जीवन में ऐसी अनेक घटना घटती रहती हैं यदि गवांही में ही समय चला जाए तो अनेक आवश्यक कार्य रूक जाने के कारण मैं गवांही में नाम न लिखने को कहता हू और पुलिस वाले मदद भी करते है। सभी पुलिसवाले खराब नहीं होते । वह व्यस्तता भी किस काम की ,जो मानव कल्याण के लिए ,जरूरत मंद प्राणी के लिए काम न आ सके ? विपत्ति किसी को बोलकर नहीं आती, चाहे अरबपति हो या लखपति प्रकृति की मार से कोई भी बच नहीं सकते भाड़ मे जाए तुम्हारी व्यस्तता और नोटों की खुश्बु ।
गुरुवार, 28 मई 2009
पढ़े लिखे मूर्खों की देश में -सट्टा बनाम शेयर
भारत वर्ष में आज साक्षरों की संख्या दिनों दिन बढता जा रहा हैं ,परन्तु सुशिक्षा की ओर कदम आनुपातिक रूप से घटता की ओर हैं । साक्षर और सुशिक्षा में बहुत अन्तर हैं ,शिक्षा और सुशिक्षा में यदि अन्तर जानने की कोशिस करें तो पानी और जल या शुद्ध और विशुद्ध पर चिन्तन करना आवश्यक हैं । कुछ पुस्तकों को रट कर प्रविण्य सूचि में स्थान तो बनाया जा सकता है या अन्य साधनों का इस्तेमाल करके भी अंक बढाया जा सकता हैं ,परन्तु ज्ञान की कमी ही जीवन के मार्ग में हमेशा रोढे बन कर तोता रटन्त विद्या का मजाक उड़ाता रहेगा । देश दूनियॉं में आज डिग्री धाररियों की संख्या में बृद्धि तो हुई हैं ,पर दुनियॉं को भारी मंदी से ये नहीं बचा पाए । करोड़ों रूपये सलाना पाने वाले सीओ प्राय: फिसड्डी साबित हो चूंके हैं । प्रगतिशील कहलाने वाले अमेरिका आज मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहे हैं अनेक दिग्गज सीओं को बेरहमी के साथ विशाल कार्पोरेट जगत से निकाल दिया गया हैं । डिग्री हॉंसिल करके बहुत बड़े पद में पहूंच जाने मात्र से वे बहुत होशियार ओर व्यावहारिक होंगे यह आवश्यक नही हैं , ओर न इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकते हैं । मैं तो कहता हूँ कि आज इस देश में पढे लिखे मूर्खों की संख्या में लगातार बृद्धि हो रही हैं । एक बन्धुने मुझे लिखा कि भाई साब ! निवेश और सट्टा में बहुत अन्तर हैं ,दोनों को एक ही नजर से देखना नहीं चाहिए । मैं इस बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ ,किन्तु मैं जहॉं बैठा हूँ और जो कुछ भी देखा और अनूभव किया हैं ,उसे शब्द देने के लिए परिभाषा की आवश्यकता नहीं होती , यहॉं तो सट्टा बनाम शेयर हैं । निवेश और बचत की मार्केटिंग करते हुए एक लम्बे अन्तराल के बाद मैंने शेयर बाजार पर टिप्पनी किया हैं । यहॉं तो बचत का रकम ही निवेश कर दिया गया , एक दो प्रकरण होता तो शायद लिखने की आवश्यकता नहीं होती ,परन्तु लाखों नहीं करोड़ों में हैं । मैंने एक छोटी सी लेख`` डुब गया 30 हजार´´ में इसे स्पष्ट करने का प्रयत्न किया हैं । आज परिभाषाओं की नहीं; परन्तु व्यावहारिक मुल्यांकण पर विशेश ध्यान देने की आवश्यकता हैं ।
बुधवार, 27 मई 2009
चमड़े की झोली -कुत्ता रखवार ,एक शेयर सौ बीमार
निवेश के बारे में अनेक लेख ,विचार -मंथन के पश्चात मुझे जो समझ में आया हैं उसे लिखना कोई अपराध नहीं हैं , कुछ लोग हो सकते हैं कि मुझे पूंंजीपतियों के विरोधी समझ बैठे ,परन्तु मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मुलत: मैं पूंजीपतियों का विरोधी नहीं हूं । परन्तु कुछ पूंजीपतियों द्वारा मात्र अपने हित के लिए दिन रात मात्र पूंजी एकत्रित करने में ही अपना धर्म समझने वालों को मैं समर्थन नहीं कर सकता । यहॉं पूंजीपतियों को तो यह भी पता नहीं होता कि वास्तव में उनके लिए हित क्या हैं और अहित क्या हैं ,उन्हें तो बस एक ही धुंध रहता हैं कि धन एकत्रित करते रहो । चिटियों की स्थिति सा जीवन भर धन इकट्ठा करना ही उनके लिए एकमात्र धर्म होता हैं । धनवान होना और पूंजी एकत्रित करने में बहुत अन्तर होता हैं । एक धनपति कुबेर बनने का सपना देखता हैं ,दूनियॉं में इतने धन सम्पत्ति हैं कि कई जन्म तक इकट्ठा करते रहने पर भी अधूरा ही रह जाता हैं । क्या इस दूनियॉ के सारे भूमि कोई खरीद सकता हैं ? क्या दुनियॉ के सारे सोने खरीदे जा सकते हैं ? क्या पानी पर पूरा कब्जा किया जा सकता हैं ? इसी तरह से अनेक उदाहरणों द्वारा धन सम्पत्ति के बारे में समझा जा सकता हैं । लोगों ने अपना धन प्यास बुझाने के लिए जनता से गलत तरिके द्वारा धन इकट्ठा करने लगे हैं । शेयर बाजार भी गलत तरीके से धन इकट्ठा करने का एक साधन हैं ,शेयर बाजार का कोई माई -बाप नहीं होता ,कहने को तो सरकार इस पर नियंत्रण करती है, ऐसा समझाया जाता हैं सेबी नामक संस्थान शेयर बाजार पर नियंत्रण करती हैं ,वास्तव में नियंत्रण मात्र नाम का होता है,यदि नियंत्रण होता तो शेयर बाजार से लाखों करोड़ रूपये ऐसे कंपनीयॉं जिसका कोई नाम निशान तक नहीं होता ,ले कर फरार हो सकते थे ? फर्जी कंपनीयां शेयर बाजार से रकम लेकर गायब कैसे हो जाते हैं?एक बार नहीं - काई बार और ये कंपनीयॉं शेयर बाजार से कई लाख करोड़ रूपये लेकर चम्पट हो जाती हैं और देश के जिम्मेदार पद पर बैठे लोग मात्र अपना वक्तव्य देकर जनता को बेवकुफ बनाती हैं । क्या येसब बगैर मिली भगत के सम्भव हो सकता हैं? कदापि नहीं । कुछ लोग पुछते हैं कि निवेश का सही समय कौन सा हैं ,यदि देश में एक भी ऐसी विशेशज्ञ मिले जो कि बता दे कि निवेश के लिए अमूक समय उचित हैं और उनके कहने से रकम लगाकर लाभ कमाया जा सकता हैं ,तब मैं उसका गुलाम बनने को तैयार हूं ,वर्तमान लुटपाट की बाजार मैं निवेश करने का अर्थ हैं अपनी खून पसिने की कमाई को दूसरों को देकर तालि बजाने के समान हैं । एक कहावत हैं कि ``चमडे की झोली और कुत्ता रखवार ।´´ एक सन्तुलित जीवन जीने के लिए जितनी आर्थिक संशाधन चाहिए उतना इस समाज से परिश्रम करके लेने में तो कोई हर्ज नहीं ,परन्तु यदि एक तलाब से पानी उठा -उठा कर मात्र अपनी खेत का ही सिंचाई किया जाए तो उस तलाब का उपयोग स्वार्थ सिद्धि के सिवाय कोई काम नहीं आता जबकि तलाब हमेशा जन कल्याण के लिए खुदवाया जाता रहा हैं । अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं संक्षेप में शेयर बाजार में रकम लगाना आज सॉंप को दुध पिलाने के समान हैं यदि जहरीले सॉंप से मौत बेमौत मरने की तमन्ना हैं तो शेयर बाजार में रकम लगाना चाहिए अन्यथा आज बैंक ,पोस्ट आफिस, जीवन बीमा निगम में रकम लगाना अधिक सुरक्षित हैं, कम से कम अपना रकम डुबता तो नहीं हैं । बीमा क्षेत्र में आज एक नया बिमारी शुरू हो चुकी हैं जिसे हम यूलिप कह सकते हैं ,यह यूलिप शेयर बाजार बेस पालिसी का रकम भी शेयर बाजार में निवेश किया जाता हैं, जिससे जनता का धन डुबने का अधिक सम्भावना बनी रहती हैं । अत: वर्तमान समय में देश के जागरूक जनता को शेयर की बिमारी से दूर रहना ज्यादा उपयुक्त हैं । अर्थ व्यावस्था सॉंप सिडी का खेल नहीं हो सकता हैं ।स्थिर व्यावस्था ही जीवन को सुरक्षा और शान्ति प्रदान कर सकती हैं इसके विपरीत जीवन को असुरक्षा और अशान्त बना कर नरक तुल्य कर देता हैं ।
मंगलवार, 26 मई 2009
राष्ट्र गीत तुम्हारा जय हो -----
जन अर्थात जनता ,गण अर्थात जनता के समूह ,मन अर्थात मानव भाव –विचार आदी ,अधिनायक अर्थात सर्वोच्च सत्ता ,डिक्टेटर ,जय हे । भारत भाग्य विधाता -तुम ही हमारे किस्मत को लिखने वाले विधाता –भगवान हो ।
हे भारत वर्ष के जन-गण-मन के सर्वोच्च सत्ता अधिनायक ,डिक्टेटर तुम्हारा जय हो ।तुम्हीं हमारे भाग्य विधाता भगवान हो ।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्रविड उत्कल बंग ,तब नामे जागे ,तब शुभ आशीष मांगे ,गाहे तब जय गाथा । वर्तमान पंजाब ,सिन्धु आज पाकिस्थान में चला गया हैं । गुजरात ,मराठा -महाराष्ट्र ,उत्कल-उड़ीसा ,बंग -बंगाल ,पूर्व में बंग का अर्थ बंगलादेश से भी जोड़ दिया जाता था , आज भिन्न देश हैं ,ये सभी तुम्हारे शुभचिन्ता के साथ जगते हैं ,भगवान से तुम्हारा ही शुभ भावना मांगते हैं ,देश के सभी लोग तुम्हारा ही जय जय कार करते हैं । यहॉं तक कि देश के पवीत्र नदियॉं ,पहाड़ ,पर्वत ,हिमालय तक तुम्हारे गुण गान में मग्न हैं इसलिए हे भाग्य विधाता ,अधिनायक! तुम्हारा जय हो,जय हो .जय हो! इस गीत को गा कर कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैण्ड के सम्राट जो भारत के भी सम्राट थे जार्ज पंचम के सामने दण्डवत हो गए थे ,कहते हैं कि अंग्रेजों के भक्त को टैगोर के उपाधी के साथ नोवल पुरस्कार भी रविन्द्र नाथ ठाकुर को प्राप्त हो गया था । कौन हैं आज अधिनायक ? वर्तमान में भारत को प्रजातांत्रिक देश कहते ,यहॉं तो अधिनायक तंत्र हैं ही नही, भारतीय संविधान में तो कहीं अधिनायक तंत्र का जिक्र भी नहीं हैं , फिर भी आज गुलामी के जमाने की गीत को हम गाकर अंग्रेजों के गुण गान करते रहते हैं इसलिए तो कहा जाता हैं कि भारत महान हैं, सत्य ही हैं कि हम बहुत बडे देश भक्त है। जिसका एक बार नमक खा लिया उसके साथ नमक हलाली कदापि सम्भव नहीं । भले ही सर कट जाए पर अंग्रेजों की शुभ कामना तो करना ही हैं ,भारत वर्ष आज भी अंग्रेजों का ही तो एक कालोनी हैं ! राष्ट्र गीत तुम्हारा जय हो , लिखने वाले का भी जय हो ।
हे भारत वर्ष के जन-गण-मन के सर्वोच्च सत्ता अधिनायक ,डिक्टेटर तुम्हारा जय हो ।तुम्हीं हमारे भाग्य विधाता भगवान हो ।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्रविड उत्कल बंग ,तब नामे जागे ,तब शुभ आशीष मांगे ,गाहे तब जय गाथा । वर्तमान पंजाब ,सिन्धु आज पाकिस्थान में चला गया हैं । गुजरात ,मराठा -महाराष्ट्र ,उत्कल-उड़ीसा ,बंग -बंगाल ,पूर्व में बंग का अर्थ बंगलादेश से भी जोड़ दिया जाता था , आज भिन्न देश हैं ,ये सभी तुम्हारे शुभचिन्ता के साथ जगते हैं ,भगवान से तुम्हारा ही शुभ भावना मांगते हैं ,देश के सभी लोग तुम्हारा ही जय जय कार करते हैं । यहॉं तक कि देश के पवीत्र नदियॉं ,पहाड़ ,पर्वत ,हिमालय तक तुम्हारे गुण गान में मग्न हैं इसलिए हे भाग्य विधाता ,अधिनायक! तुम्हारा जय हो,जय हो .जय हो! इस गीत को गा कर कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैण्ड के सम्राट जो भारत के भी सम्राट थे जार्ज पंचम के सामने दण्डवत हो गए थे ,कहते हैं कि अंग्रेजों के भक्त को टैगोर के उपाधी के साथ नोवल पुरस्कार भी रविन्द्र नाथ ठाकुर को प्राप्त हो गया था । कौन हैं आज अधिनायक ? वर्तमान में भारत को प्रजातांत्रिक देश कहते ,यहॉं तो अधिनायक तंत्र हैं ही नही, भारतीय संविधान में तो कहीं अधिनायक तंत्र का जिक्र भी नहीं हैं , फिर भी आज गुलामी के जमाने की गीत को हम गाकर अंग्रेजों के गुण गान करते रहते हैं इसलिए तो कहा जाता हैं कि भारत महान हैं, सत्य ही हैं कि हम बहुत बडे देश भक्त है। जिसका एक बार नमक खा लिया उसके साथ नमक हलाली कदापि सम्भव नहीं । भले ही सर कट जाए पर अंग्रेजों की शुभ कामना तो करना ही हैं ,भारत वर्ष आज भी अंग्रेजों का ही तो एक कालोनी हैं ! राष्ट्र गीत तुम्हारा जय हो , लिखने वाले का भी जय हो ।
सोमवार, 25 मई 2009
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह किस खेत की मुली हैं
मनमोहन जी अर्थात देश के दूसरी प्रधानमंत्री के बारे में आज की स्थिति में कुछ कहने का मतलब अपने आप को मूर्ख साबित करने जैसा ही हैं ,लेकिन मुझे लगता हैं कि यदि औसत लोग के सामने मूर्ख हो कर भी यदि कुछ लोग ही तथ्यों को समझने में अक्ल का इस्तेमाल करें तो हो सकता हैं कुछ नई बात सामने आ सकें । चुनाव जितना और सरकार बनाना इस देश में एक फैशन छोडकर कुछ भी नहीं ,आप कह सकते हैं कि इतने बहुमत में जितने के बाद भी इस तरह की टिप्पनी किया जाना ठीक नहीं हैं । जरा व्होटों पर यदि ध्यान दिया जाए तो कितने प्रतिशत जनता ने व्होट डालें होंगे ,औसत 50 प्रतिशत से भी कम ,इन 50 प्रतिशत व्होटों में एक एक दल को कितने व्होट मिलें ?यदि कोई आधा ही व्होट पा जाए तो राजा बन गये ,अर्थात कुल मत का एक चौथाई में ही देश के भाग्यविधाता बन बैठे हैं । 100 में यदि किसी विद्यार्थी को 33 अंक न मिले तो उसे फेल कर दिया जाता हैं और देश के भाग्य विधाता बनने के लिए मात्र 25 अंक से नीचे होने पर भी चलता हैं और इस 25 प्रतिशत के मुखिया प्रधान मंत्री बनेंगे ,वह भी शान से । जरा सोचने की बात हैं यदि किसी घर के बच्चे ने परीक्षा में मात्र 33 प्रतिशत लेकर आए तो घर की स्थिति कैसी रहती हैं वह तो भुक्तभोगी ही अनुभव कर सकते हैं लेकिन देश के किसी दल को जब इससे भी कम अंक मिले तो कुछ लोग झुम उठते हैं , नगाड़े बजने लगते हैं, लड्डु बांटी जाती हैं । कितनी शर्म बात हैं कि इस देश में 25 फिसदी वाले 75 फिसदी पर राज करेंगे और 75 फिसदी भिगी बिल्ली बने उनके जी हुजुरी करेंगें । एक बात याद आती हैं जब अंग्रेजों ने प्लासी का युद्ध, बंगाल के सम्राट सिराजूदौला के बेईमान ,देशद्रोही सेनापति मीरजाफर के गद्दारी के कारण जीता, तो बंगाल में एक विजय जूलूस निकाला गया था । इतिहास में लिखा हैं कि इस जुलूस में अंग्रेंजों के मात्र 400 फौजी वेशधरी शामिल थे,और सामने लार्ड क्लाईव बडे शान से आगे बढते हुए बंगाल को गुलाम बना लिया । क्या आज भी इससे कुछ कम दिखने को मिल रहा हैं ? धिक्कार हैं ऐसी लोगतंत्र पर, जहॉं लोक कम और तंत्र लोगों पर हाबी हैं । तभी तो अल्प मत होने के पश्चात भी हम उनके गुलाम बने हुए हैं । ये मुठि्ठभर काले अंग्रेज आज भी देश पर राज जमाए हुए हैं ,हर चुनाव में उनके नंगी नाच मुझे बंगाल में विजय जुलूस याद करा कर चिडाती रहती हैं मेरा उपहास उडाता हैं, मैं मात्र मुक दर्शक होकर देखता रहता हूँ ,कायर जैसा ,नमक हलाल सा !! किसे कहे कि देश में जितने अर्थशास्त्री हैं ,अपवाद छोडकर सभी अनर्थशास्त्री हैं ,जब भारतीय अर्थ व्यावस्था पतन की ओर होता हैं तो ये सभी घर में दुबके बैठे रहते हैं और जब देश में अचानक अर्थव्यावस्था में सुधार होने लगता हैं तो उसका श्रेय लेने के लिए ये दौड़े चले आते हैं । समाचार पत्र में ,मिडिया में अपनी बडे -बडे बखानों से जनता को ऐसा समझाया जाता है जैसे ये ही महाबली हैं इन्ही लोगों के कारण ही शेयर बाजार उठता और गर्त में जाता हैं । जब बाजार गर्त को जाता हैं तो विदेशी शेयर बाजार और विश्व अर्थव्यावस्था का दुहाई देते हुए मेंढक जैसे कहीं गायब हो जाना और जैसे ही वर्षा होने लगता हैं तो टर्र -टर्र की आवाज से घर में रहना भी असम्भव हो जाता हैं । जब देश के लाखों करोड़ रूपये जब डुब चुका हैं ,लाखों लोगों का रोजगार छीन गया हैं ,हजारों लोगों ने ,हजारों किसानों ने आत्महत्या कर लिए और आज भी स्थीति कोई अच्छी नहीं कहीं जा सकती हैं ,मनमोहन जी के प्रधानमंत्री बनते ही खाद्य सामग्री का मूल्य बढने लगा हैं ,मात्र शेयर बाजार के बढने से देश को राजी रोटी ,सुख-चैन की जीवन नहीं मिल सकती हैं । जब देश ही नहीं बचेगा और यह देश लुटेरों का अड्डा बन जाएगा तो प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह किस खेत की मूली हैं ? हॉंलाकि प्राय: सभी दल चोर -चोर मौसेरे भाई साबित हुए हैं ।
बियाना के हिंसा से पंजाब में आग- आज और अभी रोको
आस्टि्या के बियाना स्थित गुरूद्वारे जैसे पवित्र धार्मिक स्थान में हमला बोलकर गुरू रामानंद पर गोली मारना और कायराना हमले में निरीह लोगों को आहत करने की घटना को जितनी निन्दा की जाए कम हैं ,सभ्य कहलाने वाले लोगों के देश में ऐसी घिनौना हरकते ! सोचने पर भी मानव मस्तिष्क हाहाकार कर उठता हैं । यदि किसी के आस्था पर हमला किया जाए तो प्रतिक्रिया होना स्वभाविक ही हैं । दुनियॉं को 1984 का घटना याद होगा जब विश्व की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गान्धी पर हमला हुआ था और आक्रोश के कारण देश में निरीह सिक्ख कौम को किस तरह की दहशत भरी जीवन बिताने को मजबूर होना पडा था ,सिक्खों को तो अनेक स्थानों मे जिन्दा तक जला दिया गया था ,जिसे किसी भी तर्क द्वारा सही नहीं ठहराया जा सकता हैं । सारे देश सिक्खों के पक्ष में खडें हो गए थे क्योंकि यदि एक सिक्ख इंदिरा गान्धी पर गोली चलाइ, तो सारे सिक्ख कौम अपराधी नहीं हो जाते । देश में एक तरह की पागलपन आज भी व्याप्त हैं ।अभी बियाना में संत रामानंद पर हमला बोलकर मार डालने का जो भी अपराध किया हैं उन्हें पकड़ कर दण्ड देना चाहिए था ,नकि निरीह लोगों के ठेले ,दुकाने ,यात्री बस,रेल आदी बंद कर सभी को परेशान करना । एक दहशत भरी जीवन ,लोगों मे थौपन का प्रयास भी संत जी के मौत से कम नहीं हैं । जो खडी रेल को जला दे , लोगों के रोजी रोटी पर कुठाराघात करें ,हिंसा पर उतारू लोग कभी सहानुभूति के पात्र नहीं हो सकते ,ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जा सकता । यदि अपनी संत पर इतनी भक्ति हैं तो उन्हें एक साथ मिलकर बियाना चले जाना चहिए था । भारत के लोगों पर बियाना मे मारे गए सन्त के लिए आक्रोश में अत्याचार करना ,दहशत फैलाना ,कहॉं तक लोग सहन कर सकते हैं ? आक्रोश दिखाना है तो बियाना में दिखाना चाहिए ,यहॉं के लोगों ने कौन सा गुनाह किया हैं ? ऐसे सिरेफिरे लोग देश के हितचिन्तक नहीं हो सकते ,ऐसे नर पशुओं के लिए देश आगे जाते जाते पीछे की और मुढजाता हैं । पंजाब के संत ,पंजाब के सिक्ख, पंजाब के नेताओं के साथ सभी समाज सेवी और देश के हित चिन्तकों को तुरंन्त सड़क में उतरना चाहिए ,ताकि बहुत बिगड़ने से पहले स्थिति पर नियंत्रण किया जा सकें । अन्यथा पंच क कार के राज्य में कडा ,केश , कृपाण ,कच्छा ,कंगी का कोई मायने नहीं रह जाएगा । पंच क कार का इज्जत बचा लो नहीं तो याद रखों तुम्हें भी कोई इज्जत करने वाला नहीं रहेगा । बियाना के हिंसा से पंजाब में आग- आज और अभी रोको ।
शुक्रवार, 22 मई 2009
जय हो पान और पानवाले
पान डब्बे ! नाम से ही काम समझने में कोई कठिनाई नहीं होती ,जैसा नाम वैसा ही काम । मै इसे पी।आर.ओ अर्थात जन सम्पर्क आफिसर के नाम से ज्यादा पुकारता हूँ ,आपको किसी भी तरह की जानकारी चाहिए तो पान डब्बे में पहुँचिये बस आपका समस्या का समाधान हो गया । यदि किसी कारण से समाधान नहीं हो सका तो वही से कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा ,पान वाले आपको खाली हाथ नहीं भेजेगा ,यह नुक्शा अजमाया हुआ हैं ,शत प्रतिशत गारंटी के साथ । फला आदमी को जानते हैं ?जवाब मिलेगा हॉं साब ,कभी कभी मेरे यहॉं पान खाने चले आते हैं, सामने की गली से तीसरे मोढ में उनके घर हैं । भाई साब आज कल सुना हैं पान डब्बे में भांग की गोली मिल जाती है ,भंग नहीं साब -मदुर मुनक्का एक दम खाटी ,खाने से मजा आ जाता हैं । अच्छा भाई ये बताओं यहॉं कहीं ओ मिलना हैं क्या ?सिगरेट के साथ मिला कर पीना हैं । थोडा इधर उधर झाकने के पश्चात साब से यदि जंच गई तो साब मैं तो नहीं रखता पर मंगा दंगा -जरा रूक जाइए ,बस आपका माल हाजीर । किसी के लिए किसी को सुपाडी देना हैं तो पुछिए भाई एक दादा बताओ जो मेरा ये काम कर सकें ,कुछ न कुछ जवाब जरूर मिलेगा रास्ता बता देगा ,जरूरी हो तो किसी को साथ भी भेज देगा , आज कल सुना इस काम के लिए कुछ परसेंन्टेज तय हैं इसलिए आपका काम कुछ ज्यादा रूची से किया जाएगा । अरे भाई फलां कवि जी यही रहते हैं ? आपको इसका भी उत्तर मिल मिलेगा ,यदि आपको समय बिताना हैं तो खड़े रहिए और राजनैतिक , सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक , छिटाकसी , रंगदारी जो भी इच्छा हो यहॉं सबके लिए बराबर का दर्जा प्राप्त हैं कोई न कोई आपके रूची का मिल ही जाएगा ,हॉं एक पान या गुटका या सिगरेट और कुछ भी नहीं तो एक चाकलेट ही सही खरीदना अच्छा रहेगा । आप डब्बे में घन्टों खड़े रहिए ,वह कभी नहीं बोलेगा कि भाई साहब पान बना दूँ ?आपके मांगने पर ही सब कुछ मिलेगा ,यहॉं बिन मांगे माती मिले वाली कहावत सच नहीं हो सकता हैं । खाय के पान बनारस वाला ,खुल जाय बंद अक्ल का ताला ,यह भी खुब मजे की बात हैं पान पॉंच रूपये से लेकर 50 रूपये तक मिलना आमबात हो चुका हैं ,बीबी को खुश करना हैं तो पान वाले को बता दो कि घर के लिए हैं फिर देखिए कितनी जतन से पान सज जाती हैं और सही मायने में घरवाली के साथ साथ आप भी खुश हो जायेंगे । अब यह तो राम कथा अनन्त वाली बात है पान भी कई तरह की और गुण भी अनेक प्रकार का ,एक बात आज लिखना गुनाह न होगा ,पढने पर कहानी जैसा लगेगा पर हैं 100 प्रतिशत सच । एक राजा के घर महाशय पान पहुंचाने जाते थे ,रानी साहिबा पान के शौकिन थी , एक समय राजा को भारत सरकार के मौखिक आदेश से स्थानीय शासन ने राजा को गोली का शिकार बनाया ,राजा मारा गया ,कुछ समय पश्चात रानी साहिबा पान वाले के घर रहने लगी ,पान का माया अपरम्पार हैं और पान वाले ! मुझे और आपको इस रहस्य को जानने के लिए शायद दूसरी जन्म लेना पडें । जय हो पान और पान वाले ।
गुरुवार, 21 मई 2009
धर्म आत्म ज्ञान हैं- मजहब नहीं
अध्यात्मिक ज्ञान के लिए भारत वर्ष का नाम अग्रणी माना जाता हैं,एक ओर इस ज्ञान द्वारा हमें प्रसिद्धी मिलती हैं दूसरी ओर हम पाखण्डपन में भी आगे हैं । पाखण्ड के नाम से हमारी अध्यात्मिक ज्ञान का पूर्ण दोहन नहीं हो पाता ,जिसके कारण हम देश और दूनियॉं में अपमानित होते रहते है ,भूत-प्रेतों का देश डाईन-चुडैल ,तंत्र-मंत्र,जादू-टोना-टोटका ,और अगिनत बीना हाथ पैर के परम्पराओं के नाम से हम आज भी जाने जाते हैं , जिन्हें देखने से तो ऐसा लगता हैं कि वास्तव में इस तरह की परम्परओं को सति प्रथा जैसे कुचल दिया जाना चाहिए ,परन्तु कुछ परम्परा तो सभ्य कहलाने वालों से दो कदम आगे की हैं । बस्तर के आदिवासीयों में विशेश करके गोंड जनजातिओं में घोटूल प्रथा का प्रचलन हैं, भले ही आज उसका स्वरूप कुछ बदला बदला सा दिखेगा ,परन्तु विशुद्ध रूप से यह प्रथा नर नारी भेद भाव से कोषों दूर मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत , बचपन के खेल खेल में कब एक दूसरे के प्रति आकर्षण भाव से जीवन साथी के रूप में परिविर्रत हो जाता हैं और पता भी नहीं लगता , पवित्र भाव से जीवन चलाने की नई जिम्मेदारी खुशी खुशी से उठा कर सफल सामाजिक और पारिवारिक बन्धन में बन्ध जाने की ऐसी प्रथा दुनियॉं में विरले ही कही देखने सुनने को मिलेगा । आज भी अनेक प्रथा- परम्पराओं से हम अपने ही देश में अनभिज्ञ हैं । कुछ गलत परम्पराएं और प्रथा देश में विद्यमान हैं उसे तो तत्काल अन्त कर देना चाहिए ,गलत प्रथा को इसलिए बंद नहीं किया जाता क्योंकि यदि सम्बंधित
समाज के लोग नराज न हो जाए और व्होट के समय सुधार वादी दल को व्होट न दे , इस भय से सुधार का काम देश मे नही के बराबर हो रहा हैं । हर प्रथा अच्छा और हर प्रथा खराब दोनों नहीं हैं । जनजातियों में जडीबुटियों द्वारा ईलाज करने का जो परम्परा जारी हैं वर्तमान में इसमें भी कुछ कमी आई हैं फिर भी जडीबुटियों की खोज होना आवश्यक हैं ,इन जडिबुटियों में रोग नाशक का कमाल की गुण विद्यमान हैं।अब प्रश्न उठता हैं कि क्या वास्तव में हम अजीब देश में निवास करते हैं ? मुझे तो लगता हैं कि यही अजुबा ही हमारी धरोहर हैं ।अध्यात्मिक ज्ञान मजहबी ज्ञान नहीं,साम्प्रदायिकता और धर्म में कोई मेल नहीं हो सकता हैं ,एक गीत में यह गाया गया कि `मजहब नहीं सिखाता हमें, आपस मे बैर करना´ पर यह गीत किस भाव से गाया गया इस पर चर्चा करने से अधिक महत्वपुर्ण बात यह होगी कि हम धर्म के बार मे ज्ञान ले । धर्म एक आग के समान हैं दूनियॉ के कहीं भी आग का धर्म जलाना ही हो सकता हैं ,भले ही आग का नाम अलग -अलग हो ,आग का धर्म एक ही होता हैं वह हैं जलाना और धर्म के मार्ग में आगे बढने का रास्ता भी एक ही हैं यदि साधु संतों ने रास्ता अलग अलग कहते हैं तो यह सत्य प्रतीत नहीं होता । धर्म का मार्ग तो एक ही हैं कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि धर्म के मार्ग में द्वेतवाद और अद्वेतवाद दोनों मागों से धर्म के मार्ग तय किया जा सकता हैं ।प्रश्न यह है कि आखिर धर्म क्या हैं ? हजारों वर्षों से आत्मा और परमात्मा पर अनेक विचार विमर्श किये गए हैं और यह मान लिया गया हैं कि हर जीव में आत्मा का वास होता है,ओर उस आत्मा को यदि प्राणी जान जाय तो परमात्मा को जानने मे कोई कठिनाई नहीं होती है । मानव में यह आत्मा कहा निवास करता है यह एक कठीन सवाल भले ही हो, पर शरीर में कहीं न कहीं आत्मा का वास हैं । एक मनुष्य जब जीवित रहता हैं तो वह कहता हैं कि यह शरीर मेरा हैं ,यह हाथ भी मेरी हैं यह धन सम्पत्ति पर भी मेरा ही अधिकार है । अब यदि उस मनुष्य का मृत्यु हो जाए तो शरीर पर दावा करने वाले कोई नहीं होता ,वह शव बोलता नहीं कि यह हाथ मेरा हैं, यह सम्पत्ति मेरा हैं, यह मेरी पत्नी है, यह बच्चे मेरे हैं आदी ,अब कौन शरीर के भितर अधिकार जता रहा था ,और मृत्यु के पश्चात अधिकार जताने वाला कहॉं चला गया ? यही विचार ही आध्यात्मिकता का मूल हैं इसे जानने के लिए मात्र एक ही रास्ता हैं कि आत्मारूपी उस अधिकारी को जाना जाय । पूजा-पाठ ,मन्दिर -मस्जिद ,आदी में चिन्तन तो किया जा सकता हैं पर यदि वास्वत में आत्मा परमात्मा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करना हैं तो शरीर के अधिकारी को शरीर के भितर ही खोजना होगा, सब कुछ जानने के पश्चात भी हम बहारी दूनियॉं में ईश्वर,भगवान अल्लाह ,यशु,आदी को ढुढते फिरते हैं यदि मात्र शरीर रहस्य को ही लोग जानने का प्रयत्न करें तो देश में मजहबी जूनुन एवं साम्प्रदायिकता की भावना का अन्त हो जाय ।जब शरीर में ही आत्मा का वास हैं और आत्मा को जानने का शरीर ही एक मात्र रास्ता हैं एवं आत्मारूपी परमात्मा ही इस दुनियॉं का संचालन कर्ता हैं जिसे कुछ भी नाम दे दें पर हम एक ही स्थान में पहूंचेंगें वह हैं आत्मज्ञान ।आत्मज्ञानी हमेशा स्वर्ग में ही विचरण करता हैं, उसे बाहरी दूनियॉ के स्वर्ग से कोई मतलब नहीं होता, वह तो मुक्त होकर इस दुनियॉं में विचरण करता हैं ।अत: भ्रम में जीनेवाले नरक और चेतनशील प्राणी हमेशा स्वर्ग में ही वास करता हैं ।स्वर्ग और नरक सब कुछ यही हैं हम बाहरी दुनिया के भ्रम में इस अमूल्य जीवन को व्यार्थ ही गवां देते हैं और झुठी आडम्बर और छलवा में फंस कर आत्मज्ञान के लिए यहॉं -वहॉं मारे मारे फिरते हैं , अन्त में ``अब पछतावे क्या होत, जब चिडियॉं चुग गई खेत´´ वाली कहावत चरितार्थ होता हैं ।
समाज के लोग नराज न हो जाए और व्होट के समय सुधार वादी दल को व्होट न दे , इस भय से सुधार का काम देश मे नही के बराबर हो रहा हैं । हर प्रथा अच्छा और हर प्रथा खराब दोनों नहीं हैं । जनजातियों में जडीबुटियों द्वारा ईलाज करने का जो परम्परा जारी हैं वर्तमान में इसमें भी कुछ कमी आई हैं फिर भी जडीबुटियों की खोज होना आवश्यक हैं ,इन जडिबुटियों में रोग नाशक का कमाल की गुण विद्यमान हैं।अब प्रश्न उठता हैं कि क्या वास्तव में हम अजीब देश में निवास करते हैं ? मुझे तो लगता हैं कि यही अजुबा ही हमारी धरोहर हैं ।अध्यात्मिक ज्ञान मजहबी ज्ञान नहीं,साम्प्रदायिकता और धर्म में कोई मेल नहीं हो सकता हैं ,एक गीत में यह गाया गया कि `मजहब नहीं सिखाता हमें, आपस मे बैर करना´ पर यह गीत किस भाव से गाया गया इस पर चर्चा करने से अधिक महत्वपुर्ण बात यह होगी कि हम धर्म के बार मे ज्ञान ले । धर्म एक आग के समान हैं दूनियॉ के कहीं भी आग का धर्म जलाना ही हो सकता हैं ,भले ही आग का नाम अलग -अलग हो ,आग का धर्म एक ही होता हैं वह हैं जलाना और धर्म के मार्ग में आगे बढने का रास्ता भी एक ही हैं यदि साधु संतों ने रास्ता अलग अलग कहते हैं तो यह सत्य प्रतीत नहीं होता । धर्म का मार्ग तो एक ही हैं कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि धर्म के मार्ग में द्वेतवाद और अद्वेतवाद दोनों मागों से धर्म के मार्ग तय किया जा सकता हैं ।प्रश्न यह है कि आखिर धर्म क्या हैं ? हजारों वर्षों से आत्मा और परमात्मा पर अनेक विचार विमर्श किये गए हैं और यह मान लिया गया हैं कि हर जीव में आत्मा का वास होता है,ओर उस आत्मा को यदि प्राणी जान जाय तो परमात्मा को जानने मे कोई कठिनाई नहीं होती है । मानव में यह आत्मा कहा निवास करता है यह एक कठीन सवाल भले ही हो, पर शरीर में कहीं न कहीं आत्मा का वास हैं । एक मनुष्य जब जीवित रहता हैं तो वह कहता हैं कि यह शरीर मेरा हैं ,यह हाथ भी मेरी हैं यह धन सम्पत्ति पर भी मेरा ही अधिकार है । अब यदि उस मनुष्य का मृत्यु हो जाए तो शरीर पर दावा करने वाले कोई नहीं होता ,वह शव बोलता नहीं कि यह हाथ मेरा हैं, यह सम्पत्ति मेरा हैं, यह मेरी पत्नी है, यह बच्चे मेरे हैं आदी ,अब कौन शरीर के भितर अधिकार जता रहा था ,और मृत्यु के पश्चात अधिकार जताने वाला कहॉं चला गया ? यही विचार ही आध्यात्मिकता का मूल हैं इसे जानने के लिए मात्र एक ही रास्ता हैं कि आत्मारूपी उस अधिकारी को जाना जाय । पूजा-पाठ ,मन्दिर -मस्जिद ,आदी में चिन्तन तो किया जा सकता हैं पर यदि वास्वत में आत्मा परमात्मा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करना हैं तो शरीर के अधिकारी को शरीर के भितर ही खोजना होगा, सब कुछ जानने के पश्चात भी हम बहारी दूनियॉं में ईश्वर,भगवान अल्लाह ,यशु,आदी को ढुढते फिरते हैं यदि मात्र शरीर रहस्य को ही लोग जानने का प्रयत्न करें तो देश में मजहबी जूनुन एवं साम्प्रदायिकता की भावना का अन्त हो जाय ।जब शरीर में ही आत्मा का वास हैं और आत्मा को जानने का शरीर ही एक मात्र रास्ता हैं एवं आत्मारूपी परमात्मा ही इस दुनियॉं का संचालन कर्ता हैं जिसे कुछ भी नाम दे दें पर हम एक ही स्थान में पहूंचेंगें वह हैं आत्मज्ञान ।आत्मज्ञानी हमेशा स्वर्ग में ही विचरण करता हैं, उसे बाहरी दूनियॉ के स्वर्ग से कोई मतलब नहीं होता, वह तो मुक्त होकर इस दुनियॉं में विचरण करता हैं ।अत: भ्रम में जीनेवाले नरक और चेतनशील प्राणी हमेशा स्वर्ग में ही वास करता हैं ।स्वर्ग और नरक सब कुछ यही हैं हम बाहरी दुनिया के भ्रम में इस अमूल्य जीवन को व्यार्थ ही गवां देते हैं और झुठी आडम्बर और छलवा में फंस कर आत्मज्ञान के लिए यहॉं -वहॉं मारे मारे फिरते हैं , अन्त में ``अब पछतावे क्या होत, जब चिडियॉं चुग गई खेत´´ वाली कहावत चरितार्थ होता हैं ।
मंगलवार, 19 मई 2009
यह देश किसी का जागीर नहीं
एक मित्र ने फोन पर बार बार मुझसे कहने लगे कि वर्तमान चुनाव और आगे परिणाम पर विचार लिखूं ,मैंने मित्र से निवेदन किया कि वर्तमान राजनीति पर मैंने पूर्व में अनेक बार लिख चुका हैं और उन विचारों के अलावा आज लिखने के लिए मेरे पास कुछ भी नई नहीं हैं ,भाव वही रहेगा मात्र शब्द ही बदल सकता हैं ,मुझे शब्दों का खेल खेलना होता तो कवि बन जाता, जो मुझे आता ही नहीं । फिर भी यह बात सच हैं कि समयानुकूल शब्द को हेर -फेर करते हुए एक ही बात को या भाव को प्रकट किया जाए तो उसका प्रभाव मानव मन में पड़ता ही हैं और प्रभाव दो प्रकार से पड़ सकता है। यह साकारात्मक और नकारात्मक,दोनों हो सकता हैं ।किसी से प्यार करने की बात को गहराई तक पहूंचाने के लिए अनेक तरिकों का इस्तेमाल किया जाता है। और सभी तरिकों का एक ही अर्थ होता कि मैं तुमसे या आपसे प्यार करता हूँ । मैंने भी यही सब सोचा कि राजनीति को समझने और समझाने के लिए शब्दों का ही नवीनिकरण करते हुए कुछ तो विचार किया जाए ।क्या आम के पेड़ में अमरूद फल सकता हैं? मैंने फलते देखा हैं और मुझे आज तक आश्चर्य होता हैं जब -जब उस घटना के बारे में याद करता हूँ तो मुझे विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता हैं, पर जादूगरी की दुनियॉं में सब कुछ सम्भव हैं ।मैंने भी एक जादू में आम के पेड़ मेंअमरूद फलते देखा हैं ,जादू तो जादू होता हैं जीवन के वास्तविक धरातल पर जादू सा चमत्कार नहीं होता यदि होता भी हैं, तो अपवाद ही कहना अधिक उपयूक्त होगा । भारत जैसे देश में अभी चुनाव हुआ ,नतिजा निकला ,कहीं खुशी कहीं गम की हालत हम सब कोई देख भी रहे हैं एक पार्टी को अधिक व्होट मिल गया,देश में उसका मर्जी चलेगा ,करोड़पति सांसदों को चॉंदी हो गया ,उसके धन्धे में चार चॉंद लग जायगा ,उन्हें ठेका मिलेगा,नए धन्धे खोलने का लाईशेंस मिलने में को दिक्कत नहीं होगा ,किसी भी विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए अब उन्हें दौडधुप करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगा ,वर्तमान समय में प्रदुषण विभाग ,वन विभाग की आनापत्ति उद्योग लगाने के लिए बहुत ही अहम बात हैं, अब करोड़पति सांसदों के लिए ये सब करना चुटकि की बात हो जाएगी । अब जिन्हें इस तरह की मौका नहीं मिलेगा उन्हें तो गम पीना ही पड़ेगा ,जीतने की खुशी इसलिए कि उन्हें देश की सम्पूर्ण संशाधनों पर हक जताने और उपयोग करने की खुली छुट मिल जायेगी ,हारने वालों को पॉंच साल तक इस छुट के लिए फिर इन्तेजार करना होगा जो बहुत ही कष्ट साध्य काम है। जरा अनुभव करने की बात हैं जिसने यह तपस्या किया कि इस बार मेरा प्रधान मत्री बनना पक्का, ऐन वक्त पर धोखा हो जाए तो उसका हालत क्या हो रहा होगा ? सभी को इस देश के संशाधनों पर नजर हैं ,देश सेवा,समाज सेवा,देशप्रेम यह सब तो आज नारे बनकर रह गया हैं ,विकास के नाम पर लोगों को छलने का जो सिलसिला जारी हैं आगे भी यही जारी रहना हैं देश के गरीब जनता,किसान, बेरोजगार, गरीबों के माता बहने करोड़पतियो ,अरबपतियों के लिए एक साधन मात्र हैं इन साधनों का वे जैसे चाहे इस्तेमाल करे,इसे पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक सा इस्तेमाल करेगा. हॉं नाम अलग- अलग हो सकता है। वर्तमान बनने वाली सरकार से मेरे जैसे लोगों को बहुत ज्यादा उम्मिद नहीं करना चाहिए और हारे हुए से भी आगे जितने पर उससे भी अधिक उम्मिद करना व्यार्थ है। हमने तो दोनों पक्षों को लम्बे समय से देखते हुए आ रहे हैं ,गिरगिट की तरह रंग बदलना ही इन्हें आती हैं ,गिरगिटों से हमें क्या को उम्मिद करनी चाहिए ? अब प्रश्न उठता हैं कि इस देश को अब बचायेगा कौन ?मुझे देश के युवा शक्ति पर आज भी विश्वास हैं ,देश के गद्दारों के कारण युवा शक्ति आज खण्डित जरूर दिखरहा हैं ,युवा शक्ति को नशिली पदार्थो का गुलाम बना कर देश के मुठि्ठ भर स्वार्थी तत्वों ने आज भारत पर नंगे नाचने की खुशी में मस्त हैं ,लेकिन भारत के युवा जागेगी ,जरूर जागेगी ,याद रखो यह देश किसी का जागीर नहीं ----
बुधवार, 13 मई 2009
मृत्यु निश्चित पर अकालमृत्यु कदापि नहीं
समाचार पत्र उठाते ही मुख्य समाचारों में सड़क दुर्घटना में मृत्यु ,आत्महत्या की दु:खद घटना और नक्शलवादी और सशत्र पुलिस हमले से नेता,जनता ,पुलिस,और जवानों के असमय निधन पर मेरा ध्यान बार-बार आकर्षित होता हैं ,केवल समाचारों पर यदि जाए तो अधिकांश समाचार तो मृत्यु पर ही आधारित लगता हैं ,मृत्यु -मृत्यु और मृत्यु ही आज का हकिकत हैं । भारतीय दर्शन का भी मूल मृत्यु ही हैं ,काका कलेलकर द्वारा लिखा एक पुस्तक एक बार मेरे हाथ लग गया जिसका नाम ही मृत्यु था ,इस पुस्तक के बारे मे विशेष कुछ लिखने की इच्छा आज नहीं हैं परन्तु मैंने पुस्तक पढने के पश्चात जो सारंश पाया वह यह कि जीवन ही मृत्यु की तैयारी हैं ,मनुष्य जन्म ही मृत्यु के लिए लेता हैं ,फिर भी इस शब्द से प्राणी बहुत घबराता हैं ,मजे की बात तो यह हैं कि इस पुस्तक मुझे एक पान ठेला पर प्राप्त हुआ था ,आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं ,दो चार पन्ने जरूर फट चुका हैं क्योंकि ठेले में इसका क्या उपयोग हुआ होगा इस पर मुझे लिखना भी अच्छा नहीं लगता । मृत्यु तो साक्षात हैं अवश्यमभावी हैं ,परन्तु असमय मृत्यु पर प्राचीन समाज चिन्ता मग्न हो जाया करते थे ,यदि किसी के घर मे बच्चे अकाल मृत्यु को प्राप्त करता तो तुरन्त उस पर विचार करने का भी परम्परा भी था ,आगे इस तरह की मृत्यु न हो इस पर समाज निर्णय लेता था और निर्णय पर कठोरता से अमल भी होता था ,मृत्यु होना ही हैं इसलिएयदि समाज में रहने वाले ही आपस में मरकट कर मृत्यु वरण करें तो यह किसी भी मूल्य पर आज स्वीकार करने योग्य नहीं हैं ,विकास के लिए जनता दुर्घटना में शहीद हो जाए ,विकास के बली वेदी पर लोग आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए , नक्शलवादी हमले के कारण चाहे जवान हो जनता हो या स्वयं नक्शली हो यदि असमय मृत्यु को गले लगाता हैं तो इसके लिए वर्तमान व्यावस्था ही दोषी हो सकता हैं, कोई अन्य नहीं ,क्योंकि व्यावस्था के कारण निर्मित दोष ही प्राणी को अकाल मृत्यु की और धकेल देती हैं । समस्त दोश के भागीदार को जीने के अधिकार से वंचित करने के कारण समुचित दण्ड देना ही चाहिए ।सुचारू रूप से जीते हुए कर्तव्य का अधिकाधिक निर्वाहन हो सकें और अन्तीम श्वास शास्त्रीय विधानानुसार यदि त्याग करने का प्रावधान सभी पर समान रूप से लागु हो तो क्या उक्तानुसार अकाल मृत्यु को रोकना सरल नहीं हो जाएगा ? मैं सत्य का पालन करने में विश्वास करता हूँ और इसी विश्साव से कहता हूँ कि सारी समस्या जान-बुझ कर कुछ स्वार्थी लोगों ने बनाये रखा हैं मैं न्युनतम समय में अकाल मृत्यु को रोक सकता हूँ ,मुझमें समर्थता भी हैं ,पर क्या मेरे जैसे लोगों को इस कार्य के लिए उचित स्थान प्राप्त हो सकेगा ? शायद ही उचित स्थान मिले किन्तु समय बलवान हैं व्यावस्था दोश जबतक अन्त नहीं हो जाता तब तक लेखनी रूपी स्थान को मुझसे कोई छिन नहीं सकता ,निकट भविष्य में व्यावस्था के दुश्मनों को समाज ही दण्डित करेगा ,मैं उस समय के स्थिति को आज अनुभव करके खुश भी और दु:खी भी हूँ ।
सोमवार, 11 मई 2009
१०० प्रतिशत वोटिंग टाय टाय फिश
लोकतंत्र बनाम सामन्तशाही का खेल देश में लगातार विस्तार पा रहा हैं ,भारत वर्ष में गिने -चुने घराने ही धन और बाहुवल से देश में शोषण का जो कुटिल चक्र आजादी के नाम से जारी रखा हैं इस तरह की तो अंग्रेजों ने भी शोषण नहीं किया ,वे यहॉं से कम ही रकम बाहर ले जाते थे और ढॉंचागत विकास के लिए बहुत धन खर्च भी करते थे, आज ऐसे अनेक पुल ,सडक ,कार्यालय, मन्दिर, मस्जिद, गिर्जाघर मिल जाएगा जो आज भी एक मिशाल बन कर आजाद देश को चिडाता हैं, वर्तमान में तो सड़क एक वर्ष नहीं होता कि अगले वर्ष उसी सड़क को खोजना पडता हैं ,कार्यालय निर्माण किया जाता हैं और रकम मिलजाते ही छत नीचे ,भले ही इस तरह की घटना से लोग जख्म हो जाय,मर जाय उससे सरकार ,मंत्री को कोई लेना देना नहीं हैं । अभी दिल्ली में चुनाव हुआ व्होट देने की प्रतिशत मात्र 52 ही रहा ,देश के राजधानी में सारे जतन करने के बाद भी लोग व्होट देने घर से नहीं निकले ऐसा क्यों ? जनता अब व्होट के खेल से सबक लेना शुरू कर चुका हैं जब जनता के भाग्य में दु:ख ही लिखा हैं चाहे किसी भी दल का राज हो पर जनता तो दो पाटों के बीच पिसता ही हैं एक शासन का पाट दूसरा व्यपारीयों का शोषण ,दोनों के बीच जनता सालों साल पिसता चला आ रहा हैं तब वे व्होट के इस खेल मेंक्यों शामिल हो ? पिछले समय मैंने 100 प्रतिशत व्होट के खिलाफ कुछ लिख दिया था, इसका नतिजा मुझे भुगतना पड़ा सैकडों एस.एम.एस में प्राय: यही लिखा था कि आप लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते ? जब 100प्रतिशत व्होट पड़ेगा तो सही लोग सामने आने से देश सुधर जाएगा क्या आप ऐसा नहीं चाहते हैं? मैं एक शब्द में उत्तर देने के अतिरिक्त कुछ नहीं कहना चाहता यह कि वर्तमान समय के लोकतंत्र पर मुझे कतई विश्वास नहीं हैं और रही बात 100 प्रतिशत व्होट की बात वह भी सम्भव नहीं हैं । यदि सम्भव भी हो तब तो देश केगद्दारों का संसद में भारी बहुमत से पहुँचने का रास्ता साफ हो जाएगा । आज तो हम कह सकते हैं कि अल्प मत में जितने वाले बहुमत पर राज कैसे कर सकते हैं ? आगे चल कर हो सकता हैं कि यही मुद्दा काम आ जाए और जनता जागरूक होकर अल्प मत वालों को शासन करने से रोक ले ,अत: मेरे अनुसार तो जब तक "इसमें से कोई नहीं"का विकल्प व्होटिंग मशिन पर न आ जाए तब तक व्होट देना ही नहीं चाहिए । स्वामी रामदेव बावा भी प्रयत्न करके देख लिया वे भी कितने लोगों को घर से व्होट के लिए निकाल पाए हैं ? कारण चाहे कुछ भी हो पर यह बात तो स्पस्ट हो चुका हैं कि जनता अब अन्य वैकल्पिक व्यावस्था की खोज में हैं ,गान्धी टोपी वालों के शासन में जो हालत जनता का हो रहा हैं जिसके चलते लोगों को 10 से 20 रूपए पर जीवन निर्वाह करना पड रहा है क्या आज नेताजी सुभाष और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के सपनों का भारत के लिए प्रयन्त करना अपराध हैं ?
बुधवार, 6 मई 2009
पर्यावरण के दुश्मन बालको को गुड ग्रीन अवार्ड
पर्यावरण के दुश्मनों को गुड ग्रीन गवर्नेस अवार्ड दिया जाने लगा ,टाटा जैसे कंपनी आज इस अवार्ड को इतनी सस्ता बना दिया हैं कि वह जिसे चाहे उसे अवार्ड देकर उपकृत करता हैं,आजादी के पश्चात मनमानी अवार्ड और उपाधी बॉटने का परम्परा को प्रतिबंधीत कर दिया गया था, पर आज समस्त कायदे कानून को ताक में रखकर दुश्मनों को दोस्त की उपाधी से नवाजा जाना एक बहुत ही गिम्भर प्रकरण साबित होने जा रहा हैं ,मुझे याद हैं कि जब रूस के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्वाचोव ने उदारीकरण और वैश्वीकरण के नाम पर अमेरिका के सामने घूटना टेक दिया और रूस को कई टुकडों में बॉटने का रास्ता सुगम कर देश की शक्ति को कमजोर करके अमेरिका को एकछत्र राज करने की खुली छुट दे दी ,जब तक जनता में जागृति आती और इस कुटिल चाल से जनता अवगत होते, उसके पहले ही गोर्वाचोव ने रूस छोडकर अमेरिका भाग गए ,एक गद्दार को अमेरिका ने विश्व शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया, दुनियॉ में जब कोई बडा पुरस्कार से किसी को सम्मान किया जाता हैं उसके लिए प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका की सहमती होना आवश्यक हैं चाहे विश्व शान्ती पुरस्कार हो या नोवल पुरस्कार ।पुरस्कार के खेल में इंग्लैण्ड भी सहभागीता का निर्वाहन करता रहता हैं एक बात यह भी याद करने लायक हे कि जब गुलाम भारत वर्ष में जर्ज पंचम का आगमन हुआ और श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके आगमनी में एक स्वागत गीत गाया था जिसे आज राष्ट्रीय गीत के रूप में गाया जाता हैं इस गाने से जर्ज पंचम इतनी खुश हुए कि श्री ठाकुर को नोवल पुरस्कार प्रदान कर दिया ,अत: पुरस्कार वॉटने का परम्परा मे आज टाटा का नाम भी शामिल हो चुका हैं ,बंगाल की उपजाउ भुमि को बंजर बनाने की कुचेष्टा से जब असफल होकर वहॉं से रतन टाटा भाग कर गुजरात चले गए ,तब उसे समझमें आ गया कि आज पर्यावरण एक अहम सवाल है और जनता इस मामले में जागरूक होने लगे हैं इसलिए पर्यावरण के दुश्मनों को पुरस्कृत करके एक माहौल बनाने लगे हुए कार्पोरेट जगत का एक षडयंत्र के तहत आज बालको को यह पुरस्कार दिया गया है। मै स्वयं साक्षी हूँ कि बाल्कों ने हजारों पेडों को वेबजह हत्या कर दिया यहॉं तक सर्वोच्च न्यायालय के आदेश भी नहीं माना ,और जब कानूनी रूप से फंश गए तो पेड काटने के जुर्म को स्वीकार करते हुए जुर्माना पटा कर साधु बनके घुम रहा हैं , सैकडों साल की पुरानी पेड के जुर्माना मात्र एक हजार रूपए ,सोचने की बात हैं कि पर्यावरण के दुश्मन किस तरह की हथकंडे अपनाती हैं और जनता के जीवन से कैसी खिलवाड करती हैं ।देश चुप ,जनता चुप ,तमाम राजनेता और दल चुप चाप इस तरह की मजाक को देख और सहन कर रहा है ,इससे साबित हो जाता हैं कि जो भी दल सत्ता में अएगा वह भी यही लूटपाट की नीति ही अपनाने मे कोई कोर कसर नहीं छोडने वाला हैं ,यदि आज विरोध करे और कल किसी तरह राज में आएगा तो जनता को जवाब देने लायक नहीं रहेगा ,फिर भी कोई न कोई बहाना बनाने में नेता भी दो कदम आगे ही रहता हैं ।मुझे तो छात्र और युवा शक्ति से ही विश्वास हैं कि एक न एक दिन देश के दुश्मनों को ये सबक जरूर सिखाएगी ,पर यह जिनती जल्दी हो उतनी ही अच्छी अन्यथा यदि यह कहावत चरितार्थ होने लगे कि अब पछतावे क्या होत जब चिडिया चुग गई खेत । अब तो जागने का अन्तिम समय आ गया हैं ,आवाज तो देश के कोने कोने से बुलन्द होना चाहिए पर्यावरण बची रहेगी तो धन तो कभी बनाया जा सकता हैं यदि पर्यावरण ही दूषित हो कर जनता हिरोशिमा और नागाशाकि जैसे जीवन को ढोने को मजबूर हो जाए तो ऐसी जीवन भी बोलो किस काम की ?
शुक्रवार, 1 मई 2009
विज्ञापन*राजनैतिक ट्रेडिंग कंपनी को लुच्चे,लफंगे,हत्यारों की आवश्यकता हैं
राजनैतिक ट्रेडिंग कंपनी में रोजगार के असीम सम्भावना विद्यमान हैं ,ऐसे लोग जिन्हें कहीं भी रोजगार उपलब्ध नहीं हो रहा हैं, उन लोगों के लिए यहॉं स्वर्णिम अवसर प्राप्त हैं, बस कुछ ऐसी योग्यता होना आवश्यक हैं जो आम जनता में नहीं होती ,जैसे झुठ बोलने की योग्यता ,कहीं गई बातों से मुकरने की योग्यता ,जरूरत पड़ने पर गाली -गलौच करना ,घुस-खोरी करना ,लोगों को लुभावने सपना दिखने की कला,यदि कोई इस रास्ते में रोढे अटका रही हो तो उसे खलास करने की ताकत ,चुनाव के समय छल-बल कौशल से व्होटरों को अपनी और करने आदि की योग्यता अगर किसी में हो तो बस देश की बेरोजगारी चुटकी में खत्म । राजनैतिक ट्रेडिंग कंपनी देश में इस महान कार्य को करने के लिए कृत संकल्पित हैं ,इस कार्य के लिए एक महाविद्यालय की भी आवश्यकता महशुस की गई हैं ,जहॉं ऐसे लोगों को प्रक्षिशित की जाएगी ,बहुत ही कम समय में यदि इस तरह के लोग धन -सम्पत्ति से मालामाल बनना चाहते हैं तो उनके लिए भारतवर्ष एक स्वर्ग हैं यहॉं के लोग उन्हें इज्जत के साथ इस क्षेत्र में स्वागत करती हैं । लुच्चे ,लफांगे ,हत्यारे हो तो कोई बात नहीं क्योंकि यही सब गुण ही इस क्षेत्र में कामयाबी के लिए आवश्यक हैं ,इससे भी एक गुण यदि उनमें और हो जैसे मॉं पर बलात्कार करने की ताकत, तब तो सोने सुहागा ,राजनैतिक टे्डिंग कंपनी में तो ऐसे लोगो के लिए बार -बार स्वागत हैं ,समय के साथ सब कुछ बदल गया हैं ,आज नया जमाना हैं ,पुरानी कोई भी चीज वर्तमान में अच्छी नहीं लगती ,पिताजी कहने मे शर्म आती हैं अत: स्कुलों में डैड ,डैडी याने अंग्रेजी में डेथ का भूत काल ,जहॉं बच्चों को बचपन में ही सिखाया जाता हैं तुम्हारे पिता तो जिते जी मरे जैसे हैं और मॉं की हालत तो मम या ममी हो गई ,जब सब कुछ नया हो रहा हैं अर्थ का अनर्थ हो रहा हैं तो सबसे अच्छा नयापन तो बाप को साला बना देना हैं इससे अच्छा नयापन और कहॉं मिल पाएगा ? प्रकृति के साथ खिलवाड को आज विकास कहा जाता हैं जो जितने पेड काटेगा,जितने गरीबों का भूमि हड़प कर उद्योग लगाएगा ,देश का धन सम्पत्ति विदेश बैंकों में रखेगा ,देश को जितना अधिक बरबाद करने में मदद करेगा वह उतना ही अधिक प्रगतिशिल और सभ्य कहलायेगा देश के ठेकेदारों द्वारा बड़े -बड़े सम्मान से उन्हें नवाजा जाएगा ।राजनैतिक टेडिंग कंपनी में ऐसे लोगों का अधिकाधिक आवश्यकता हैं अत: आपना विस्तृत विवरण के साथ अर्थात बायो -डाटा के साथ सम्पर्क करें ,विज्ञापण असीमित समय तक वैद्य हैं ।
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