भागम भाग की जीवन में हमें खुद को ही पता नहीं कि हम कहॉं जा रहे हैं । हमें यह भी पता नहीं कि जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं ।समाचार पत्र में लिखा था कि बाम्बे में एक लड़की की बलात्कार हुई, ओर सरे आम लोग देखते रहे । आलोचना बहुत हुआ ,आज सब चुप! कहते हैं बाम्बे भारत वर्ष के लाईफ लाईन अर्थात जीवन रेखा हैं ,एक आर्थिक महानगरी हैं ,यहॉं सभ्य लोग बसते हैं । अत: सभी इतने व्यास्त कि कहॉं क्या हो रहा हैं उसे देखने की किसी को फूर्सत ही नहीं हैं । जीवन अमूल्य हैं और पल -पल का समय किंमति होता हैं, समय यहॉं मूल्य पर बिकती हैं । आपके पास यदि मूल्य हैं तो किसी भी व्यस्ततम लोग को आप मूल्यनुसार खरीद सकते हैं । आपको सर्दी हो गया हो तो मूल्य दीजिए ,खबर राष्ट्रिय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय बन जाएगी ,आपको छिंक आई हैं तो सहानुभूति करने के लिए सैकडों लोग तैयार , यदि मूल्य नहीं हैं तो सरेआम आपकी हत्या हो जाएगी और आपको बचाने वाले भी नहीं मिलेंगें ।पड़ोसी घर से नहीं निकल रहें हैं , पुलिस आकर दरवाजा तोड़ते हुए पड़ोसी के सड़े गले लाश लेकर चली जाती है, समाचार पत्र से पता चलता हैं कि पड़ोसी 15 दिनों से मृत पड़ा था । मृत पड़ोसी के लाश से बदबू नहीं समझ में आती हैं ,क्योंकी सभी इतने व्यस्त कि एक ही खुशबु से वे मदमस्त है, वह हैं मात्र नोटों की । एक विदेशी ने कला के नाम पर बाम्बे में रहने वालों पर झोपडिओं के कुत्ते फिल्म बना डाला ,अपवाद को छोडकर यहॉं सभी को मजा आया ,नोट दिजीए कुत्ते ,भालू,उल्लू,
लात, बात, सभी चलाउ हैं । क्योंकि हम बहुत व्यस्त हैं ,जब किसी सभ्य कहलाने वाले बहु बेटियों पर बलात्कार होता हैं या अपहरण होता हैं तब मामला ही कुछ ओर नजर आने से मेरे जैसे लोग बरबस कह उठता हैं कि बोए पेड़ बबूल का आम कहॉं से होय । खुले आम आज वह सब कुछ हो रहा हैं जो पहले पर्दे के पीछे हुआ करता था ,पर लोग व्यस्त इतने कि दो मिनट रूकर देखने का भी फूर्सत नहीं । मुझे याद आता हैं कि एक बार कार्यालय से लौटते वक्त दुर्घटना ग्रस्त मोटर सायकल को देखते हुए मैं रूक गया था और कुछ ही कदम पर थाना था ,एक युवक रास्ते में तड़प रहा था मूझसे पहले न जाने कितने लोग उसे देखते हुए आगे बढ चूके होंगे परन्तु उसे उठाकर हॉस्पिटल तक पहुचने में कोई सामने नहीं आया ,मार्च माह में मुझे घर लौटते हुए कभी कभी काफी रात हो जाता था अधिक रात हो जाने के कारण मैं बहुत थक भी गया था, परन्तु युवक को देखकर मुझे आगे बढने की हिम्मत नहीं हुई ,उसे हॉस्पिटल पहूंचा ही था कि पुलिसवाले आ धमके ,मुझसे ही कहा सूनी करने लगे ,परन्तु जब वस्तूस्थिती समझमें आया तो वे मुझसे कुछ भी नहीं कहा ,मेरे अनुरोध पर वे गवांही में भी नाम नहीं लिखा ,क्योंकि जीवन में ऐसी अनेक घटना घटती रहती हैं यदि गवांही में ही समय चला जाए तो अनेक आवश्यक कार्य रूक जाने के कारण मैं गवांही में नाम न लिखने को कहता हू और पुलिस वाले मदद भी करते है। सभी पुलिसवाले खराब नहीं होते । वह व्यस्तता भी किस काम की ,जो मानव कल्याण के लिए ,जरूरत मंद प्राणी के लिए काम न आ सके ? विपत्ति किसी को बोलकर नहीं आती, चाहे अरबपति हो या लखपति प्रकृति की मार से कोई भी बच नहीं सकते भाड़ मे जाए तुम्हारी व्यस्तता और नोटों की खुश्बु ।
शुक्रवार, 29 मई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
प्रकृति की मार से कोई भी बच नहीं सकता-सत्य वचन!!
जवाब देंहटाएंपढ़ा आपका लेख तो अच्छा लगा विचार।
जवाब देंहटाएंगर ऐसा सब सोच लें बदलेगा संसार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जब-जब थक जाईए ,
जवाब देंहटाएंरूकइए सुस्ताइए ,
अपनी यादों की छाँव में ,
जरा सोचिये भी सफ़र में ,
क्या -क्या ले निकले थे,
उम्र के इस छोर आने तक ,
क्या खोया क्या पाया ,
इन्सानी रिश्तों को कौन
सहेज सका , कितना इनको,
मैं खुद भी जी पाया ,
गोया कि सफ़र अभी है बाकी|