बुधवार, 13 मई 2009
मृत्यु निश्चित पर अकालमृत्यु कदापि नहीं
समाचार पत्र उठाते ही मुख्य समाचारों में सड़क दुर्घटना में मृत्यु ,आत्महत्या की दु:खद घटना और नक्शलवादी और सशत्र पुलिस हमले से नेता,जनता ,पुलिस,और जवानों के असमय निधन पर मेरा ध्यान बार-बार आकर्षित होता हैं ,केवल समाचारों पर यदि जाए तो अधिकांश समाचार तो मृत्यु पर ही आधारित लगता हैं ,मृत्यु -मृत्यु और मृत्यु ही आज का हकिकत हैं । भारतीय दर्शन का भी मूल मृत्यु ही हैं ,काका कलेलकर द्वारा लिखा एक पुस्तक एक बार मेरे हाथ लग गया जिसका नाम ही मृत्यु था ,इस पुस्तक के बारे मे विशेष कुछ लिखने की इच्छा आज नहीं हैं परन्तु मैंने पुस्तक पढने के पश्चात जो सारंश पाया वह यह कि जीवन ही मृत्यु की तैयारी हैं ,मनुष्य जन्म ही मृत्यु के लिए लेता हैं ,फिर भी इस शब्द से प्राणी बहुत घबराता हैं ,मजे की बात तो यह हैं कि इस पुस्तक मुझे एक पान ठेला पर प्राप्त हुआ था ,आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं ,दो चार पन्ने जरूर फट चुका हैं क्योंकि ठेले में इसका क्या उपयोग हुआ होगा इस पर मुझे लिखना भी अच्छा नहीं लगता । मृत्यु तो साक्षात हैं अवश्यमभावी हैं ,परन्तु असमय मृत्यु पर प्राचीन समाज चिन्ता मग्न हो जाया करते थे ,यदि किसी के घर मे बच्चे अकाल मृत्यु को प्राप्त करता तो तुरन्त उस पर विचार करने का भी परम्परा भी था ,आगे इस तरह की मृत्यु न हो इस पर समाज निर्णय लेता था और निर्णय पर कठोरता से अमल भी होता था ,मृत्यु होना ही हैं इसलिएयदि समाज में रहने वाले ही आपस में मरकट कर मृत्यु वरण करें तो यह किसी भी मूल्य पर आज स्वीकार करने योग्य नहीं हैं ,विकास के लिए जनता दुर्घटना में शहीद हो जाए ,विकास के बली वेदी पर लोग आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए , नक्शलवादी हमले के कारण चाहे जवान हो जनता हो या स्वयं नक्शली हो यदि असमय मृत्यु को गले लगाता हैं तो इसके लिए वर्तमान व्यावस्था ही दोषी हो सकता हैं, कोई अन्य नहीं ,क्योंकि व्यावस्था के कारण निर्मित दोष ही प्राणी को अकाल मृत्यु की और धकेल देती हैं । समस्त दोश के भागीदार को जीने के अधिकार से वंचित करने के कारण समुचित दण्ड देना ही चाहिए ।सुचारू रूप से जीते हुए कर्तव्य का अधिकाधिक निर्वाहन हो सकें और अन्तीम श्वास शास्त्रीय विधानानुसार यदि त्याग करने का प्रावधान सभी पर समान रूप से लागु हो तो क्या उक्तानुसार अकाल मृत्यु को रोकना सरल नहीं हो जाएगा ? मैं सत्य का पालन करने में विश्वास करता हूँ और इसी विश्साव से कहता हूँ कि सारी समस्या जान-बुझ कर कुछ स्वार्थी लोगों ने बनाये रखा हैं मैं न्युनतम समय में अकाल मृत्यु को रोक सकता हूँ ,मुझमें समर्थता भी हैं ,पर क्या मेरे जैसे लोगों को इस कार्य के लिए उचित स्थान प्राप्त हो सकेगा ? शायद ही उचित स्थान मिले किन्तु समय बलवान हैं व्यावस्था दोश जबतक अन्त नहीं हो जाता तब तक लेखनी रूपी स्थान को मुझसे कोई छिन नहीं सकता ,निकट भविष्य में व्यावस्था के दुश्मनों को समाज ही दण्डित करेगा ,मैं उस समय के स्थिति को आज अनुभव करके खुश भी और दु:खी भी हूँ ।
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जवाब देंहटाएंWe are introducing the concept of Citizen Journalism [read more about this] in our website.
There are so many websites and some big media houses already working with this concept.
Like CNN, BBC and Yahoo.
Have a look on their work
http://cj.ibnlive.in.com/index.html
http://news.yahoo.com/you-witness-news
http://www.ireport.com/
http://news.bbc.co.uk/2/hi/talking_point/
The concept is any citizen of India can express himself on mainstream media.
He may be a journalist, advocate, doctor, teacher, student or simply an educated housewife.
We are determined to make it a valuable and serious platform.
I like if you contribute some short articles for us, once or twice a week.
We will make your separate profile page with brief introduction and photo.
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