शनिवार, 30 मई 2009

अगर ओ मिले

जीवन में अनेक यादगार क्षण आहिस्ता -आहिस्ता मन के किसी कोने में आकर चुपचाप बैठ जाती हैं ,समय के साथ साथ कुछ यादें कूरेद-कूरेद कर मन को लहुलुहान भी करने में नहीं चुकती ,उसे तो सताने में ही मजा आता हैं ,यादें यदि किसी के मन को खुशिओं से भर देंतो ऐसे नसीब वालों को मैं नमन करना चाहता हूँ ,जब एक अन्तराल के बाद लिखने बैठा तो स्कूली जीवन के उन क्षणों को यदि न याद करू तो मैं अक्षम्य के पात्र बनकर रह जाउंगा । काश आज उस बात को मैं भूल सकता ! पढाई लिखाई में जरूरी नहीं कि सभी सहपाठी एक ही जैसे समझदार हो ,परन्तु यदि कुछ नासमझी के कारण सहपाठी को दण्ड देने के लिए शिक्षक ही प्रेरित करें तो सोचने की बात हैं कि उस सहपाठी पर क्या बितता होगा ,जरा आगे यदि विचार करें ,दण्ड पाने वाले कोई लड़की हो तब ? सह शिक्षा में तो मान अपमान की भावना बहुत ही अहम् हो जाती हैं । किसी लड़की के सामने कोई मेरा अपमान करें चाहे शिक्षक हो या सहपाठी मुझे कतई मंजूर नहीं था ,स्कूल के सभी काम ,पढाई समय पर ही करके जाता था ,मेरी अंग्रेजी कुछ अच्छी थी ,अंग्रेजी के शिक्षक मुझे चाहते भी बहुत थे ,उस लड़की अंग्रेजी में कमजोर थी ,एकबार शिक्षक महोदय ने आदेश दिया कि लड़की की कान पकड़ कर खींचो और अंग्रेजी समझाओ ।यदि ऐसा नहीं करोगे तो उस लड़की तुम्हारे कान खिचेगी ,अब धर्म-संकट की बात हो गई ,लड़की की कान नहीं खिचने पर मुझे ही दण्डित किया जाएगा ,अत: न चाहते हुए भी मुझे उसकी कान खिचना पड़ा । अंग्रेजी भाषा न आने के कारण लड़की को लज्जीत होना पड़ा था ,दु:ख क्षोभ और अपमान सहकर किसी तरह वो कक्षा छुटते तक साथ में थी ,जैसे ही अंग्रेजी क्लास खत्म हुई ,--चली गई । मै कुछ अनहोनी के बारे में सोचता रहा हैं और उसे जाते हुए देखता रह गया ,मेरे पास कोई विकल्प नहीं था ,शिवाय पश्चाताप के ।दूसरे दिन वो नही आई ,लगातार कई दिनों तक नहीं आई ,मैं अन्दर ही अन्दर घुटन से पल पल मरता रहा ,पश्चाताप की आंसू के सिवाय मेरे पास कुछ भी खाली नहीं था ,काश मुझें अंग्रेजी न आया होता ,मात्र अंग्रेजी न आने के कारण एक मालूम लड़की को इस तरह की अपमानित हो पड़ा ? उस समय से अंग्रेजी के प्रती मेरे नफरत धीरे -धीरे बढता चला गया ,एक दिन अचानक वो मिली ,स्कूल के रास्ते में ही ,स्कूल पोशाक में नहीं थी ,मुझे देखकर मुस्कराई और आगे बढ गई ।
मैं महाविद्यालय पहुंच चुका था , स्कूली जीवन की इस घटना को भूल सा गया था ,अचानक मेरे घर में उसकी विवाह निमंत्रण पत्र पाकर मैं फिर अतीत की उस घटना में खो सा गया था । महाविद्यालय में स्कूली सहपाठीओं में कुछ लडकीयॉं मेरे साथ ही पढती थी ,अचानक एक लड़की से मैने पूछ ही लिया कि वो किस कक्षा तक पढ ली हैं ? उत्तर मिला कि स्कूली दिनों की घटना के बाद उसने स्कुल से ही तौबा कर ली थी ,उसकी माता पिता सहेलियों के हजार समझाने के बाद भी पढने लिखने को राजी नहीं हुई । जीवन में छोटी -छोटी घटना के कारण किस तरह की परिवर्तण हो जाती हैं जिसे सोचना भी असम्भव हो जाता हैं । चूंकि मेरी कोई कसूर नहीं थी ,आज मैं समझता हूँ कि अंग्रेजी शिक्षक के कहने से जो दण्ड उस लडकी को दिया गया वह अत्यन्त घृणीत और अमानविय था ,एक दिन मुझे दोस्तों द्वारा ज्ञात हुआ कि उस अंग्रेजी के शिक्षक का किसी दुर्घटना से मृत्यु हो गई । घटना चक्र तेजी से आगे बढती चली गई ओर अनेक वर्ष बित चुकी हैं, आज अचानक चल चित्र की भॉती उस घटना ऑखों के सामने आ जाने से लिखने की इच्छा हुई । मैं उससे क्षमा तक नहीं मांग सका ,आज कहा होगी मुझे पता नहीं ,घटना से सम्बन्धीत किसी को अगर ओ मिले तो उससे जरूर बताने का कष्ट करें कि मैंने जान बुझ कर कोई कसूर नहीं किया था ,अगर अनजाने में कोई कसूर हो गया हो तो मुझे क्षमा कर दें !!

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