बुधवार, 6 मई 2009
पर्यावरण के दुश्मन बालको को गुड ग्रीन अवार्ड
पर्यावरण के दुश्मनों को गुड ग्रीन गवर्नेस अवार्ड दिया जाने लगा ,टाटा जैसे कंपनी आज इस अवार्ड को इतनी सस्ता बना दिया हैं कि वह जिसे चाहे उसे अवार्ड देकर उपकृत करता हैं,आजादी के पश्चात मनमानी अवार्ड और उपाधी बॉटने का परम्परा को प्रतिबंधीत कर दिया गया था, पर आज समस्त कायदे कानून को ताक में रखकर दुश्मनों को दोस्त की उपाधी से नवाजा जाना एक बहुत ही गिम्भर प्रकरण साबित होने जा रहा हैं ,मुझे याद हैं कि जब रूस के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्वाचोव ने उदारीकरण और वैश्वीकरण के नाम पर अमेरिका के सामने घूटना टेक दिया और रूस को कई टुकडों में बॉटने का रास्ता सुगम कर देश की शक्ति को कमजोर करके अमेरिका को एकछत्र राज करने की खुली छुट दे दी ,जब तक जनता में जागृति आती और इस कुटिल चाल से जनता अवगत होते, उसके पहले ही गोर्वाचोव ने रूस छोडकर अमेरिका भाग गए ,एक गद्दार को अमेरिका ने विश्व शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया, दुनियॉ में जब कोई बडा पुरस्कार से किसी को सम्मान किया जाता हैं उसके लिए प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका की सहमती होना आवश्यक हैं चाहे विश्व शान्ती पुरस्कार हो या नोवल पुरस्कार ।पुरस्कार के खेल में इंग्लैण्ड भी सहभागीता का निर्वाहन करता रहता हैं एक बात यह भी याद करने लायक हे कि जब गुलाम भारत वर्ष में जर्ज पंचम का आगमन हुआ और श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके आगमनी में एक स्वागत गीत गाया था जिसे आज राष्ट्रीय गीत के रूप में गाया जाता हैं इस गाने से जर्ज पंचम इतनी खुश हुए कि श्री ठाकुर को नोवल पुरस्कार प्रदान कर दिया ,अत: पुरस्कार वॉटने का परम्परा मे आज टाटा का नाम भी शामिल हो चुका हैं ,बंगाल की उपजाउ भुमि को बंजर बनाने की कुचेष्टा से जब असफल होकर वहॉं से रतन टाटा भाग कर गुजरात चले गए ,तब उसे समझमें आ गया कि आज पर्यावरण एक अहम सवाल है और जनता इस मामले में जागरूक होने लगे हैं इसलिए पर्यावरण के दुश्मनों को पुरस्कृत करके एक माहौल बनाने लगे हुए कार्पोरेट जगत का एक षडयंत्र के तहत आज बालको को यह पुरस्कार दिया गया है। मै स्वयं साक्षी हूँ कि बाल्कों ने हजारों पेडों को वेबजह हत्या कर दिया यहॉं तक सर्वोच्च न्यायालय के आदेश भी नहीं माना ,और जब कानूनी रूप से फंश गए तो पेड काटने के जुर्म को स्वीकार करते हुए जुर्माना पटा कर साधु बनके घुम रहा हैं , सैकडों साल की पुरानी पेड के जुर्माना मात्र एक हजार रूपए ,सोचने की बात हैं कि पर्यावरण के दुश्मन किस तरह की हथकंडे अपनाती हैं और जनता के जीवन से कैसी खिलवाड करती हैं ।देश चुप ,जनता चुप ,तमाम राजनेता और दल चुप चाप इस तरह की मजाक को देख और सहन कर रहा है ,इससे साबित हो जाता हैं कि जो भी दल सत्ता में अएगा वह भी यही लूटपाट की नीति ही अपनाने मे कोई कोर कसर नहीं छोडने वाला हैं ,यदि आज विरोध करे और कल किसी तरह राज में आएगा तो जनता को जवाब देने लायक नहीं रहेगा ,फिर भी कोई न कोई बहाना बनाने में नेता भी दो कदम आगे ही रहता हैं ।मुझे तो छात्र और युवा शक्ति से ही विश्वास हैं कि एक न एक दिन देश के दुश्मनों को ये सबक जरूर सिखाएगी ,पर यह जिनती जल्दी हो उतनी ही अच्छी अन्यथा यदि यह कहावत चरितार्थ होने लगे कि अब पछतावे क्या होत जब चिडिया चुग गई खेत । अब तो जागने का अन्तिम समय आ गया हैं ,आवाज तो देश के कोने कोने से बुलन्द होना चाहिए पर्यावरण बची रहेगी तो धन तो कभी बनाया जा सकता हैं यदि पर्यावरण ही दूषित हो कर जनता हिरोशिमा और नागाशाकि जैसे जीवन को ढोने को मजबूर हो जाए तो ऐसी जीवन भी बोलो किस काम की ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
आप अच्छा और अच्छी सोच से लिखते हैं ..
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति