शुक्रवार, 26 जून 2009

बंगलादेशी होना अपराध हैं -- इसलिए मार डालो

बंगलादेशीयों पर लगातार हमले हो रहे हैं ,और आगे भी होते रहेंगे, अच्छा हुआ कि बंगलादेशी आज गर्व के साथ नहीं कह पायेंगे कि मै बंगलादेशी हूँ ,बंगलादेशी होना बहुत बड़ा अपराध है। चाहे मुस्लिम हो ,चाहे हिन्दु हो यदि वे बंगलादेश से आए हैं तो उन पर हमला होना ही चाहिए, उसे कत्ल कर देना जरूरी है, क्योंकि वे बंगलादेशी है ........जब भारत वर्ष को नेताओं ने दो टुकड़े कर दिये थे और यह कहा गया था कि जो भी मुस्लिम पाकिस्थान जाना चाहे तो वे चले जाए और जो पाकिस्थान से भारत आना चाहे तो वे आ जाए ,पाकिस्थान से आए सभी पाकिस्थनियों को इस देश में बसाया गया ,उनमें सिन्धी ,पंजाबी और बंगाली सभी लोग थे । इस देश में आज कोई नहीं कहता कि सिन्धीयों को भगाओ ....पंजाबीयों को भगाओ ......परन्तु पाकिस्थान से स्वतंत्र हुए बंगलादेश के बंगालियों को भगाना चाहिए ,देश दो भागों में बॉंट दिया गया और मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता हूँ ,मुझे किसी का नाम लेने में भय भी नहीं लगता, कई बार ले चुका हूँ ,जब -जब उनका नाम लेता हूँ , तब -तब अपने आप पर घृणा होने लगता और अपने आप को कोसता रहता हूँ , ये नाम मेरे जूबान में नहीं आना चाहिए था ......मेरे भारत वर्ष को दो टुकड़े में बॉट कर राज करने वाले कौन लोग हैं ? क्यों नहीं बंगलादेशीयों को अपना देश चुनने का अधिकार दिया गया ? बंगला देश में तिरंगा झंडा फहराया गया था , एक भी बंगलादेशी पाकिस्थान में रहना नहीं चाहते थे ,वे सभी भारत को ही अपना देश मानते रहे । देश के गद्दारों ने षडयंत्र पूर्वक बंगलादेश को तस्तरी में करके पाकिस्थान को भेंट चढा दिया था ,मात्र इस लिए ...कि बंगाल ने बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर को संसद में जाने के लिए जिताया था ? उन्होंने कहॉं भी कि मुझे मेरे लोगों ने धोखा दिया है। महाराष्ट्र में उन्हें पराजय का मूंह देखना पड़ा था । श्री जोगेन मंडल ने अपना स्तीफा सौप कर बाबा साहेब को कहा था बाबा आप मात्र हॉं कर दिजीए बाकी बंगाल के एक एक नागरिक आपकों व्होट देगा, और यही हुआ भी । जब देश में एक वर्ग ऐसा था कि किसी भी किंमत पर साहेब को संसद में जाने से रोकना चाहते थे और उस समय यदि कोई भारी बहुमत से बाबा साहेब को जिता कर संसद में भेजे तो विरोधी वर्ग का क्या हाल हुआ होगा ......सोचने और कल्पना करने का विषय हैं । बंगाल के लोगों को कायर कहो , डरपोक कहो , गालियां दो क्योंकि एक वर्ग के न चाहते हुए भी बाबा साहेब संसद में पहंचे थे ,जिन्होंने उन्हें मद्द किया उन्हें सबक तो सिखाना ही हैं इसलिए इतिहाकारों ने लिखा कि तस्तरि में करके नेताओं ने बंगलादेश को पाकिस्थान के जिन्ना को भेंट प्रदान किया था ।आजादी का मुल्य तो देश के सभी वर्गो ने चुकाया हैं परन्तु बंगाल के लोग आज भी चूका रहे है। उनके सामने मजबूरी है कि वे आज भी यह मानने को राजी नहीं हैं कि भारत और बंगलादेश दोनों भीन्न -भीन्न देश है। दो कदम दूर मॉं रहती है और दो कदम में मौसी ...बच्चा क्या करें ? उसे मॉं भी चाहिए और मौसी भी । दिन में बंगलादेश के मौसी के पास चला जाता है और शाम तक वहॉं से लौट आता है। यह हालत जैसे हिन्दुओं का है ,वैसे ही मुस्लिमों का । हम किसी देश का नाम बदलकर बंगलादेश रख सकते है हो सकता है कि आगे चलकर कोई दूसरा नाम भी रख ले परन्तु क्या हजारों वर्षों का इतिहास मन मस्तिष्क से हम भूला सकेंगें ? हमने सुरक्षा के लिए प्रहरी लगा दिया ,पर वे भी तो मनुष्य ही है ,जब देखता हैं कि सुबह शाम आना और जाना लगा हुआ है तो आय का भी एक साधन को कौन छोड़ना चाहेगा ? यही तो सब हो रहा है। मैं मानता हूं कि मिलने मिलाने की इस खेल में कुछ हानी हमें उठानी पड़ रही है परन्तु इस हानी के लिए आज के इस पिढी दोशी नहीं हैं यदि इस दोष को दूर करना हो, तो दोनों देश को एक करना ही पड़ेगा । ऐतिहासिक भूल को इतिहास की चश्मे से ही देखना होगा, न की क्षणिक आवेग में जो चाहे वो कह दिया ,लिख दिया, और भावनात्मक रूप से किसी को भागने और भगाने की कार्यवाही करने लगे । यह तो समस्या का समाधान नहीं है। देश को वाटने का जो समस्या हमारे पूर्वजों ने हम पर थौपा हैं ,उस समस्या का समाधान करना हमारा प्राश्चित हैं और हमें इसे सहर्ष स्वीकार करना ही पड़ेगा ।

बुधवार, 24 जून 2009

ताकि लेखनी का धार बरकरार रहें

बन्धु ! मैंने अनेक बार आपके द्वारा लिखा गया आलेख को खोजने का प्रयत्न किया ,जिसमें आपने लिखा था कि कुछ ही लोगों द्वारा यदि ब्लागों को पढा जाए तो उसका महत्व क्या हैं ?मैने मात्र शीर्षक को देख कर अनुमान लगा रहा हूँ कि आप ब्लाग लिखने से परहेज करना चाहते है , कभी -कभी मैं आपके जैसे ही सोचने लगता हूँ , जबसे मुझे यह पता लगा कि गूगल ने हिन्दी में लिखने वालों को कोई भी पारिश्रमिक नहीं देता ,एवं दिल्ली के मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया कि लगभग तीन वर्षों से पूर्व के नियमानुसार लेखन पर भी बकाया नहीं दिया हैं ,परन्तु विदेश में हिन्दी को यदि अंग्रेजी में लिखा जाए तो लेखकों को भुगतान किया जाता है। यदि यह सच हैं तो भारत में लिखने वालों के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है। यदि बहुत ही स्पष्ट रूप से कहूँ तो यह एक आर्थिक और बौद्धिक शोषण ही हैं । हम लिखते रहे और उस लेखन से अरबों कमाने के बाद भी एक अंश तक देने में यदि गूगल नकारा साबित होता हैं तो हमें कुछ करना ही चाहिए । आज नेट में लगातार लिखते रहने से बहुत बड़ा रकम खर्च करना होता है और घर से अधिक समय तक रकम लगाना वर्तमान समय में बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकता है ,स्थायी लेखन के लिए निश्चित रूप से कुछ न कुछ लाभ लेना अनूचित नहीं है। मात्र नकद प्राप्ति से मेरा अभिप्राय नहीं हैं , अन्य तरीके से भी लाभ पहूंचाया जा सकता है। अभी मल्टीफैल्क्स भी लाभ के मुद्दे पर लम्बी लड़ाई के पश्चात फिर से शुरू हो सका है। अत: यदि हम सभी एक मत से गूगल को हमारी भावना से अवगत करवाते हैं तो उसे निश्चित रूप से रास्ता निकालना ही पड़ेगा ,चूँकि जब विदशों में लाभ देने की व्यावस्था हैं और भारत में भी कुछ समय पूर्व यह लाभ मिलता रहा है, अचानक इसे बन्द करना सही नहीं कहा जा सकता है। मैंने जो कही हैं यदि उचित लगे तो एक मंच बनाकर आगे की कुछ रणनीति बनाई जा सकती है। पुराने साथी इस मुद्दे को अच्छी तरह समझ सकते हैं और उन्हें आगे आकर शालिनता से सबको नियम आदी बताकर सहयोग करना चहिए । दुनियॉ के तमाम समस्याओं पर लिखते हुए यदि इस पर लिखने और कुछ करने के लिए हमें संकोच हो तो लेखनी का धार खत्म होने में देर नहीं लगेगी ,जबकि हमें इसे बरकरार रखना है।

सोमवार, 22 जून 2009

यौन शिक्षा ओर प्रगतिशीलता

यौन शिक्षा पर एक समय गरमा गरम चर्चा चलता था ,भारत सरकार में बैठे कुछ लोगों को लगा कि यदि यौन शिक्षा दिया जाए तो हो सकता हैं कि देश में एड्स जैसे बिमारी से छुटकरा मिलने के साथ ही ,बच्चों को भी यौन शिक्षा से लाभ मिलेगा । लेकिन कुछ सिरफिरे लोगों के कारण सरकार के लिए इस उच्चकोटी के शिक्षा पद्धति को लागू करने में पीछे हटना पड़ा ,अब देखना यह हैं कि ये सिरफिरे लोग कौन हैं और क्यों सरकार को पीछे हटना पड़ा । आज कल यदि लिक से हट कर कुछ कहा जाए तो उसे पिछड़ा , पोंगापंथी , सिरफिरे ,और न जाने कितने ही प्रकार के नामों से उसका सम्बोधन होता हैं बताना असम्भव हैं । मै आज कुछ जोखिम लेना चाहता हूँ , हो सकता हैं कि कुछ लोग मुझे भी अलंकार से सम्बोधित करें ,एक घटना से शुरू करता हूँ .....मेरे एक परिचित इंग्लॅण्ड में चले गये थे ,डालर का लालच आज भी लोगों को विदेश जाने में आकर्षित करता हैं ,परिचित भी आकर्षित हुए और कमाई भी छप्पर फाड़ के हुई,दो बच्चों के पिता ने जब देखा कि लड़की बड़ी हो रही हैं और घर मेंलड़कों का जमघट शुरू हो गया हैं तो चिन्तीत हो उठे ,मुझे एक दिन बोलने लगे कि जवान लड़की को मेरे और पित्न के सामने ही एक लड़का चुमने लगा ,मैंने कहा इसमें क्या दोष हैं वहॉं तो यही रिवाज हैं ,हमारे देश में जैसे नमस्कार करना ,प्रणाम करना रिवाज हैं उसी तरह कुछ देश में चुमना रिवाज हैं इसलिए घबराने की आवश्यकता नहीं हैं ,जैसा देश वैसा भेष बनाना जरूरी है। परिचित ने जवाब नहीं दिया ,मैंने सोचा मेरे उदाहरण कुछ धारदार नहीं हैं अत: इससे अच्छा उदाहरण देकर समझाना आवश्यक हैं मैंने कहा भाई –आपने हिप्पीओं के बारे सूना हैं ? उसने कहा अधिक नहीं ,मैं अब हिप्पीवाद पर कुछ कहने के मूड में हो गया ...भाई साहब ! हेप्पी से हिप्पी बना है ,जब जेब गरम रहता है तो लोगों को हेप्पी सुझता है याने मनोरंजन ,नाईट क्लबों में जाना,पीना,जुआ खेलना ,नीला –काला फिल्म देखना ,ये सब गरम जेब का कमाल है ,जब जेब गरम हैं तो दिल भी गरम होने लगता है इसलिए उस खेल को करने के लिए भी रास्ता चाहिए और रास्ता निकाला भी .. एक समय शरीर को ऐसे पेंन्टों से रंगा गया ताकि पास से भी पता न लगे कि शरीर में कुछ भी नहीं है अर्थात सम्पूर्ण नंगे ... रास्ते में देखने वाले देखेंगे कि कपड़े पहने दो युवा बात कर रहे हैं परन्तु खूलेआम सेक्स में मस्त .... इसे ही तो प्रगतिशील कहलाता हैं ,मैने कहा कि भाई साहब आप कहा खो गए है ...? मैं आपसे बात कर रहा हूं और आप हैं कि हूं –हॉं भी नहीं करते ....अब भाई साहब कहने लगे यार मुझे तो समझ में कुछ भी नहीं आ रहा हैं । मैंने सोचा सारा कहानी ही गुड गोबर हो गया हैं ,सारी रात रामायण सुनने के बाद ...राम- सीता कौन ? उत्तर मिला भाई -बहन । अब हाल का एक खबर सुनाना जरूरी हो गया है 11साल का लड़का इंग्लैंण्ड में बाप बन गया हैं माता 14 साल की , लड़का कहता है कि इस लड़की के अलावा और लडकीयों के साथ मेरा सम्बन्ध है , परन्तु जो बच्चा हुआ वह मेरा ही हैं लड़की कहती है कि यह सच है। अब नन्हें माता पिता मिलकर शिशु का पालन पोषण करेगा । समस्या खड़ी हो गई एक लड़का और सामने आ गया ...कहने लगे कि जो बच्चा हैं उसका असली पिता मै हं , कारण मैंने इस लड़की से कई बार यौन सम्पर्क किया है। अब असली और नकली पिता होने का सच्चाई पता लगाने केलिए डी एन ए का जॉंच होगा । भाई साहब ! विदेश में रहना होगा तो ये सब सामान्य बात है , आपको भी आदत डालना होगा ...लड़की मम्मी से बोलेगी कि मुझे आज नाईट क्लब जाना है और वही से डेटिंग भी जाना होगा ...आगे क्या होगा इस पर भाई साब सोचने का भी आवश्यकता नहीं हैं । मोबाईल से सम्पर्क टूट गया .....बहुत दिनों बाद एकाएक परिचित का मोबाईल से सम्पर्क होने पर मैने पूछा भाई साब कैसे हैं ? मै तो इंग्लैंण्ड छोड़ दिया ...अब भारत आ गया हूँ ,डालर का मोह छोड़ चूका हूं ...कहने लगे कि आपने मेरी ऑंखे खोल दी ..यदि आप उस दिन सारी बाते नहीं बतायी होती तो मै बरबाद हो गया होता ,मैं मेरे देश में ही खूश रहूंगा ,इतनी प्रगतिशील मुझे नहीं बनना हैं ...भाई साब बहुत बहुत धन्यवाद । यौन शिक्षा से जो विकृति पैदा होता हैं उसका एक मिशाल मैंने समाज के सामने रखा ,कुछ अच्छाई भी हो सकती है। जैसे एक लड़की मॉं से निरोध की मांग करेगी ,आज भी भारत में इस विषय पर कोई चर्चा नहीं होने पर भी शादी के बाद वर-वधु बच्चे पैदा कर परवरिश करने लगते हैं ,उसे कोई शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती हैं । चिडिओं को मैथुन क्रिया के लिए कहॉं शिक्षा दी जाती हैं , कई बार तो मच्छरों को जोड़ी में चिपके होने पर समझमें नहीं आता था ,बाद में पता लगा कि मच्छर भी इस तरह यौन सुख का आनंद लेता है। तितलियॉं भी.....जानवर भी ...किट पतंगें भी यौन सुख लेता हैं और बच्चे पैदा करके वंश बृद्धि करता है। अब प्रश्न यह हैं कि हम देश के छोटे - छोटे बच्चों को यौन शिक्षा देकर क्या सिखाना चाहते हैं ? निरोध ,गर्भ निरोधक गोली बेचने का एक अलग धंधा इस देश में चल निकलेगा ,आगे जाकर पढाई लिखाई छोड़कर यौन शिक्षा पर ही ध्यान केंद्रित हो जाएगा ,जब मम्मी पूछेगी कि आज कक्षा में क्या पढाई हुई तो उत्तर मिलेगा कि अमूल शिक्षक ने मुझे यौन शिक्षा का प्रेक्टीकल नॉलेज दिया हैं .....यही तो प्रगतिशिलता की निशानी हैं और धारा 376 -377 देश से छुमंतर हो जाएगा ......तो शुरू की जाए प्रगतिशिल बनने का एक नया दौर ..?

रविवार, 21 जून 2009

डॉक्टर मुझे खुजली हो गया हैं

ड्रागिस्टों की कमी नहीं हैं ,दुनियॉं भर से यदि ऑंकडे इकट्ठे किए जाए तो चौकाने वाली तत्थ्य सामने आ सकती हैं । ड्रग एक प्रकार के हो तो कुछ बात सामने लाने में सरल हो जाए ,परन्तु देश -दुनियॉं में तो इसका सम्राज्य बन गया हैं ,पिछले वर्ष पान पराग पान मसाले के बारे में खबरें छपी कि ..निर्माता रसिक भाई का दाउद इब्राहिम के साथ सम्बन्ध हैं और पान पराग में उसका बडा शेयर भी है। देश में रसिक भाई को गिरप्तार कर लिया गया ,बाद में छोड़ भी दिया गया, आज भी पान पराग धड़ल्ले से बिक्री हो रही हैं । बताया जाता हैं कि इसमें ड्रग मिला हुआ हैं ,एक बार किसी को पान पराग का लत लग जाए तो एका एक छुटता नहीं हैं । बाजार में ऐसी कोई चीज नहीं बची हैं जिस पर दावे के साथ कहा जा सके कि यह जहर मुक्त हैं । ड्रगिस्ट की भॉंति मैं भी एक ब्लोगिस्ट बनता जा रहा हूँ ,पिछले बार मैंने लिखा था कि मेरे साथ हर रोज बलात्कार हो रहा हैं ,मुझे न्याय चाहिए ,कुछ मित्रों ने मुझे न्याय मिलने का रास्ता भी बताया था अत: उन मित्रों को मैं फिर से एक निवेदन करना चाहता हूँ कि मुझ पर कुछ न विपत्ति हमेशा आता हैं ,क्या करूं जब मेरा किस्मत ही फूटा हुआ हैं तो किसको दोश दूँ ?विपत्ति में अपनों का ही साथ याद आता हैं । मुझे खूजली हो गया हैं ,अनेक डाक्टरों को दिखाया ,दवाईयॉं ली , पर खूजली हैं कि दिनों दिन बढता ही जा रहा हैं । कल ही डाक्टर साहब के पास गया था ,उन्होंने कहॉं कि.कल ही तुमने बताया ...तुम पर बलात्कार हो गया हैं... आज खुजली कैसे ? मैंने कहा...डाक्टर साहब क्या बलात्कार होने पर खूजली नहीं होता ? उन्होंने कहा कि बिल्कूल नहीं , मैंने पूछा सर...मैं तो कुछ भी समझ नहीं पा रहा हूँ ,उन्होंने कहॉं तुम्हारा खूजली कहॉं -कहॉं होता है? पुरे शरीर में.. पुरे शरीर में खूजली होने का मतलब तुम्हारा खून ही खराब हो गया हैं .....कहीं तुम्हें एड्स तो नहीं हो गया है ? तुम ड्ग्स तो नहीं लेते ? तुम नान वेज लेते हो ? मैंने कहॉं कि डाक्टर साहब घर में कभी कभी खा लेता हूं अरे भाई नानवेज का मतलब भी नहीं समझते ...? मैंने कहा...पहले कभी -कभी मांस भी ले लेता था ,जब से बर्ड फ्लू और स्वाईन फ्लू जैसे महामारी फैल गया हैं तब से नान वेज छोड़ दिया हैं । अब तो डाक्टर साहब कुछ नराज हो कर बोले नानवेज से मेरा मतलब वो नहीं हैं । मैंने पूछा कि फिर क्या बात हैं ,स्कुल -कालेजों में तो यही पढाया जाता है।मुझे बहुत पास बुलाकर बोले कि हम लोग नान वेज का मतलब सेक्स से लेते हैं ,मैंने कहा कि इतनी सी बात और मुझे समझ में नहीं आरहा था ,इसका मतलब हैं कि मुझे कोई कठिन रोग जरूर हो गया है। मैंने कहा डाक्टर !मेरा ईलाज अच्छा से किजीए नही तो मैं मर जाउंगा । आयुर्वेद डाक्टर होने के कारण सबसे पहले मैं रोग के तह तक जाना चाहता हूँ, खान पान रहन सहन आदी ही रोग का जड़ हैं, तुम यदि खाने में शुद्ध शकाहारी भोजन लो तो 90 प्रतिशत रोग भोजन से ही खत्म हो जाता हैं । खूजली भी नहीं होगा ....मैंने कहा कि डाक्टर साहब ! खूजली तो कई प्रकार के होते हैं ,कुछ लोगों को राजनीति करने की खूजली ,कुछ को सेक्स की खूजली ,कुछ तो बकर करने की ,आज लिखने का भी खूजली ही तो हैं । डाक्टर ने पर्ची में लिखा कि दुनियॉं में अनेक प्रकार की खूजली विद्यमान हैं सबका ईलाज भी भीन्न -भीन्न होने के कारण तुम्हारा खूजली उत्तम कोटी के खूजली में गिने जाने के करण तुम इसे खूजाते रहो ...यही तुम्हारा ईलाज है.............

शनिवार, 20 जून 2009

बलात्कारी को फाँसी--जनता का आदालत

बलात्कार पर शायद कुछ ज्यादा ही लिखना पड़ेगा ,इस विषय में मैंने भारतीय दृष्टिकोण रखने का प्रयत्न किया था ,चूंकि मैं सबसे पहले भारतीय हूँ अत: इस समस्या को भारतीय चश्मे से ही देखना पसन्द करूंगा ,मेरे कुछ बन्धुओं ने टिप्पनी किया कि पश्चिम के लोग भारत वर्ष को सपेरों का देश मानते हैं और हम भी पश्चिम को कुछ भी कहने का आजादी रखते हैं ....बात पूर्व और पश्चिम का नहीं हैं, बलात्कार का स्वरूप पश्चिम में और पूर्व में भीन्न होगा ,समाज और परिवेश ही इसे भीन्न रूप में
परिभाषित करता हैं । दूनियॉं में कुछ ऐसे समाज भी हैं जहॉं गर्भवती लड़की की ही विवाह मान्य हैं ,लेकिन भारत वर्ष में ऐसा सोच भी नहीं सकते हैं । समाज ने जिस दंग से मान्यता दिया या कानून बनाया है, उसके विपरीत कार्य करना ही बलात्कार कहना अधिक उचित होगा ।अब भारीतीय समाज ने नारी को बहुत ऊँचा स्थान प्रदान किया हैं ,जहॉं नारी का पूजा होता हैं वहॉं देवता का वास होने जैसे पवीत्र धारना दुनियॉं में कहीं खोजने पर भी नहीं मिल सकता हैं कम बेशी देश के हर कोने में अपवाद को छोडकर यही भावना काम करती हैं । अब पश्चिम में नारी को तो भोग का ही वस्तु माना जाता हैं ,वहॉं जो भी प्रत्यक्ष देखने और सुनने को मिलता हैं उससे यह धारना बनाना कोई अपराध नहीं है। भारत में विवाह को जन्म जन्मान्तर का साथ माना जाता हैं और पश्चिम में विवाह मात्र एक करार हैं जो जब चाहे तब इसे तोड़ दे और अलग हो जाए ,उनके बच्चें अनाथालयों में पलते हैं । टी वी और नेट ने दूनियॉं को छोटा बना दिया हैं अत: कोई भी धारना बनाने के लिए आज वहॉं जाना अति आवश्यक नहीं है।बलात्कार को बहुत हल्के से लेने का कोई मायने ही नहीं होता ,समस्या तो समस्या हैं ,उसका समाधान ढुढना समाज के जागरूक लोगों का कर्तव्य हैं। मेरा तो केवल यह मानना हैं कि हम जिस ढंग किसी नारी बलात्कार का प्रचार और विरोध करने के लिए आगे आते हैं उसी तरह से हमें सभी समस्याओं पर मुक्त विरोध करना चाहिए । जिस देश में आर्थिक तंगी के करण छोटी छोटी लड़किओं को दरिन्दों के हाथ बेच दिया जाता हैं और उसे अन्धी गली में धकेल कर पुरूष अपनी यौन संतुष्टि का साधन बना डाला हैं ,देश के सभी जिम्मेदार लोगों को यह पता हैं-- कहॉं कहॉं यह सब होता हैं , आजादी के 67 साल होनेको हैं, क्यों नहीं देश के गरिबी हटी ? सबसे बडा बलात्कार तो देश के गरिबी हैं जो सामूहिक बलात्कार के श्रेणी में आता हैं । यदि देश के गरिबी हट जाए तो बलात्कार की घटना पल भर में छुमन्तर हो जायगा । अब मैंने अगर लिखा कि मुझ पर हर रोज बलात्कार हो रहा हैं ,मुझे कौन न्याय देगा ? मेरे एक साथी ने लिखा कि मुझे न्याय नहीं मिलेगा ,यदि मिडिया मेहरबान हो जाए तो मुझे न्याय मिल सकता हैं । मैं अब मिडिया के पास जा रहा हूँ ताकि मुझे न्याय मिल सके । हे.....मिडिया भगवान मुझे विस्वास हैं कि आप मेरे फरियाद को सूनेंगे , इस देश के भाग्य विधाता आप ही हैं ,मैंने आपके उस प्रयास को देखा हैं जब आपने प्रिंस को पताल से निकाल कर जीवन दान दिया था ,मैंने पाकिस्थान के प्रेमी को भारत में मिलाने का एक मिसाल भी देखा हैं । मैंने तेजपाल के तेज को देखने का प्रयास किया हैं, मैं अगर लिखने बैठू तो सारा रात बित जाए ,फिर भी अधुरा ही रह जाएगा , इसलिए हे भगवान ! अब आप ही मेरे तारन हार हैं ,जिस तरह से कृष्ण जी ने द्रुपदि के चीर हरण से निजात दिलाया था उसी तरह मेरे साथ हो रही बलात्कार से मुझे मुक्ति दिलाने का कृपा करें और बलात्कारियों को फॉंसी के फन्दे पर लटकाने की व्यवस्था करें !!!!!!!!!!!!

शुक्रवार, 19 जून 2009

मेरे साथ रोज बलात्कार होता हैं ,क्या मुझे न्याय मिलेगा ?

आज कल बलात्कार पर बहुत कुछ लिखा जा रहा हैं ,कुछ लोगों ने किसी लड़की को उठा कर ले गये और लड़की ने चिल्हाई ,लोग जमा हो गए ,एक आध लड़के पकड़ में आ जाने पर बलात्कार के रूप में हल्ला हो गया ,यदि लड़की नहीं चिल्हाई तो बलात्कार नहीं हुआ । अब मजेदार बात यह हैं कि किसी की पत्नी भी यदि रात को वो ..करते वक्त चिल्लाई ,तो हो सकता है पति बेचारा बलात्कार के आरोप में जेल जा पहुचे । कुछ लोगों ने बलात्कार के लिए छोटी कपड़े पहनने को विशेष कारण बताया हैं अर्थात लड़कियां यदि छोटी कपड़े पहने तो उस पर बलात्कार होने का जोखिम अधिक हो सकता हैं । मैं कभी बस्तर में रहता था , उस वक्त वहॉं कपड़े पहनने का रिवाज भी नहीं था , लड़के - लड़कियां को बीन कपडे देखना आम बात था, लेकिन अपबाद को छोड़कर आदिवासियों में बलात्कार की आरोपी सुनने को नहीं मिलता था । वहॉं तो घोटूल प्रथा भी हैं जहॉं रात को अविवाहित लड़के -लडकियॉं नाचते गाते वही सो भी जाते हैं फिर भी बलात्कार नहीं होता हैं । हत्या करना आम बात हो सकता हैं परन्तु बस्तर में बलात्कार आम बात नहीं है , यह भारतीय संस्कृति हैं । पश्चिम में ठंड अधिक होने के कारण काम वासना की ईच्छा भी ठंडे पड जाने से वहॉं की लड़कियां औरतों को समाज ने बीना कपड़े ही रहने को प्रोत्साहित किया करता हैं ताकि पुरुष में वासना की ईच्छा देख- देख कर ही उत्पन्न हो सके । तमाम प्रकार की दवाईयॉं लेकर भी यौन संतुष्टि नहीं हो पाता हैं ,भारत में तो ऐसा नहीं हैं , भारत वर्ष में प्राचीन काल में भी बलात्कार का प्रमाण मिलता हैं किन्तु आज जैसे विकृत रूप वहॉं वर्णन नहीं मिलता ,इसका अर्थ यह हुआ कि कपड़े छोटे हो या बड़े बलात्कार का सम्बन्ध कपडों से नहीं वल्कि परिवेष पर निर्भर होता हैं यदि युवा या युवतीयॉं परिश्रम में व्यास्त हैं तो उन्हें यौन सम्बन्ध पर सोचने तक का समय नहीं मिल पाता हैं । खाली दिमाग शैतान का घर होने के कारण बेरोजगार लोगों में यौन संतुष्टि को मनोरंजन के साधन के रूप में देखने का आदत सा पड़ गया हैं । मूल संस्कृति तो संयम साधना पर बल देती हैं ,हम मूल संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं , जिसके कारण अनेक प्रकार के विकृतियों में बलात्कार भी एक विकृति के रूप में समाज का अंग बनता जा रहा हैं ,बलात्कार एक विकृत मानसिकता है। यदि मानसिकता को बदलने की कोशिस किया जाए तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता हैं ,आज दिन रात टी वी में जिस तरह से नारी दर्शन कराया जाता हैं और चलचित्र में नायिकाओं को नंगी रूप से पेश किया जाता हैं उससे युवाओं का क्या कहना बुजुर्गों को भी लगता हैं कि इस ढलती उम्र में बहती गंगा में हाथ धो लिया जाए । परिवेष ही मनुष्य को अच्छी या बूरी बनाती हैं अत: परिवेश बनने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर हैं यदि बलात्कार जैसे कोई भी घटना हो तो उन जिम्मेदार लोगों पर भी आरोप लगना आवश्यक हैं । अब बलात्कार मात्र किसी लड़की का ही नहीं होता ,लडकों पर भी बलात्कार होता है। आज तो सभी ओर बलात् कार्य कराने का आदत सा हो गया हैं यदि मैं किसी को घूस नहीं देना चाहता हूँ तो मुझे घूस देने के लिए मजबूर कर दिया जाता हैं । मैं मिलावट की वस्तुओं को खाना पसन्द नहीं करता तो मुझे मजबूरन मिलावट खाना पड़ता हैं ,मेरे साथ तो रोज बलात्कार होता हैं क्या मुझे न्याय मिल पाएगा ?

रविवार, 14 जून 2009

मंदी भगवान को जीवित रखना जरुरी हैं

मंदी और मंदी जहॉ जाऊ थोडी सी व्यापार -व्यावसाय की बात निकलते ही मंदी का जिक्र आम बात हो चुकी हैं । क्या करें.. भाई मंदी का जमाना आ गया हैं ,कमाई धमाई पहले जैसा नहीं रहा,जमाना बहुत बदल गया हैं आदी ....सुनते -सुनते काम पक गया हैं ,बेचारा मैं करू तो क्या करू ,सही कहूँ तो मुस्किल ,और गलत कहना सीखा नहीं –बीच में फंस गया । यदि कहूँ मंदी नहीं हैं तो बड़े उद्योगपति बन्धु नराज हो जाते हैं क्योंकि मंदी के नाम से उन्हें कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का एक अच्छा अवसर मिल गया हैं ,ट्रेड युनियनों और श्रमिक कानून के चलते अनेक मजदूरों को नौकरी से निकालना बहुत कठीन काम था ,आज आसान हो गया हैं । अब तो जितनी जोर से चिल्हाया जाए कि मंदी हैं उताना ही जोर शोर से मंदी पैजेक का फैदा भी उद्योग पतियों को मिल रहा हैं ,पैकेज का जो बदरवॉंट होता हैं वह भी जग जाहिर हैं .........एक दिन मेरे एक दोस्त को पूछा कि भाई सत्य बताना ...क्या वास्तव में तुम्हें लगता हैं कि मंदी हैं ? दोस्त ने इधर -उधर देखते हुए कहने लगे कि देखो मंदी के नाम से हम आज चॉंदी नहीं सोने काट रहे हैं ......मैंने कहा यार चॉंदी -सोना काटना क्या वला हैं ? दोस्त ने कहॉं कि तू बहुत बुद्दू हैं ,देखता नहीं मैंने पिछले माह ही मारूती 800 बेचकर सेंट्रो ले लिया हैं ,यदि कमाई नहीं होता तो क्या मैं सेंट्रो ले सकता था ? तू तो जानता हैं अभी 6 माह पहले ही नया मकान बना लिया था । मैंने कहा यार रियल मार्केट वाले बरबाद हो रहे हैं और तू कहता हैं कि मकान बना लिया, वह भी लाभ के रकम से .....बड़ा अजीब बात हैं ,मुझे सचमूच कुछ भी समझ में नहीं आता, बिजनेस करता तब तो समझ आता ना ? दोस्त ने कहॉं अम्बानी बन्धओं ने आपनी -अपनी पित्नयों को एक से एक तौफा इसी मंदी के दौर में दिया हैं वह तो देख रहा हैं कि नहीं ? अनिल अम्बानी का हवेली और मुकेश भाई ने जहाज का तौफा अभी -अभी तो दिया हैं .....अब लक्ष्मी मित्तल को लो अपने लड़के के लिए दूनियॉ के सबसे महंगी महल खरीदने का चर्चा हैं । मैंने कहा भाई कुछ समझ में नहीं आता कि सभी अर्थशास्त्री और विद्वान जब एक मत हैं कि मंदी हैं, तो हमें भी तो कहना चाहिए कि मंदी हैं । दोस्त कुछ नराज होकर कहने लगे कि तुझे अब साफ साफ कहता हूँ कि भारत में कोई मंदी वन्दी नहीं हैं, मात्र मंदी का अर्थ हैं मुनाफा कमाओ ,तुझे खोखा का अर्थ मालूम हैं कि नहीं ? मैंने कहॉं खोखा का अर्थ खाली होता हैं ....हॉं...हॉं॥हॉं ...तुझे कुछ भी समझ में नहीं आता जैसे ..खोखा का खाली नहीं होता वैसे ही मंदी का अर्थ मंदी नहीं होता ,यह तो व्यापार का तकनीकि शब्द हैं अब समझा ?इस तकनीकि शब्द के बल पर श्रमिक लॉं बदल गया , बैंकों को ऋण के लिए लचिलापन लाना पड़ा ,रेपो रेट में कई बार फेर बदल करके व्यापारियों को लाभ पहुचाया गया ,पहले अर्थमंत्री कभी -कभी व्यापारियों से सलाह मशविरा करते थे ,अब तो खुले आम बजट के पहले अनेक बार चर्चा हो जाता हैं और जैसे व्यापारी चाहे वैसे ही बजट पास होता है ,यह सब मंदी भगवान का अर्शिवाद हैं ,अब मुझे भी थोड़ी -थोड़ी समझमें आने लगी कि असल में मंदी भगवान को जीवित रखना कितनी जरूरी हैं । बाद में कभी विश्व अर्थ व्यावस्था पर भी चर्चा करेंगें, क्या वहॉं भी भारत वर्ष जैसे हालात हैं ?

शनिवार, 13 जून 2009

जब मैंने स्वर्ग लोक देखा--सत्य घटना

मैंने स्वर्ग देखने के लिए होश सम्भालते ही तपस्या शुरू कर दिया था ,एक दिन एक गुरू मिल गये , उसने मुझे तपस्या करने की विधी ,एवं अन्य आवश्यक ज्ञान भी बताया ,मैं रोमांचित हो उठा ,सोचा अब तो मुझे यथा शीघ्र स्वर्ग लोक जाना ही हैं । मैं एक निश्चित तिथी को नियमानुसार तपस्या करने लगा , दिन में किसी निर्जन स्थान में और रात को सब कोई सो जाने के पश्चात घर में अपने ही कमरे में जागते हुए तप करना ,आज की भाषा में कठोर तप करना शुरू कर दिया था ,तपोबल से भगवान तुष्ट होते है ,और साक्षात दर्शन देकर आर्शिवाद भी देते हैं । अब एक रात को मैंने घर में ही तप करने लगा था ,बहुत रात को एका -एक सुमधुर अवाज में कोई कहा रहा था कि-- आज मै तम्हें स्वर्ग ले जाउंगा तुम ऑंखे मत खोलना ,मै मंत्र मुग्ध सा उस आवाज का पालन कर रहा था और ऑंखें बंद कर लिया , आवाज आया कि अब तुम स्वर्ग में पहुँच चुके हो अतएव ऑंखें खोलो ! मैंने आखें खोल दिया और अवाक होकर जो दृश्य मैं देखने लगा उसका व्याख्या करना असम्भव हैं फिर भी कुछ तो लिखना ही पड़ेगा इसिलिए जो भी थोड़ा बहुत याद हैं उसे लिखने का प्रयत्न कर रहा हूँ । एक भद्र पुरूष मुझे साथ आने को कहा--- मैं साथ हो लिया ,उन्होंने कहा कि- देखो यह स्वर्ग लोक हैं यहॉं के देवतागण नर लोक जैसे भोजन नहीं करते ,इन्हें तो भूख ही नहीं लगती , फिर भी कितने तन्दुरस्त हैं, देखा ....सच मुच तन्दूरस्त दिखा ,यह देखो इन्द्रलोक ,इन्द्र देवता सिंहासन पर विराज मान दिखा-- मैंने दूर से प्रणाम किया ,वे मुस्करा दिए-- अब तो मुझे अच्छा लगने लगा । मुझे वरून लोक भी दिखाया गया ,वरूण भगवान भी मुस्कराएं ,मैने भी मुस्कराया । अब तो मुस्कराने का ही समय आ गया, चेहरा मे हमेशा मुस्कराहट ...वाह ! कितना आनन्द आ रहा था, मन प्रफुल्लित हो उठा ,अनेक स्थानों का भ्रमन करने के पश्चात, एक स्थान पर जाने का आदेश हुआ, जहॉं दूर से ही मधुर संगीत और घूंघरू की ध्वनी सुनाई पड़ने लगी थी, जैसे -जैसे पास जाने लगा-- आवाज भी स्पस्ट हो कर मदहोश करने लगा था ,मैं कहीं खो गया और अपने आप को भूल सा गया था ,कुछ ही पल पश्चात एक स्थान में पहूंचा ही था कि साथ में उस भद्र पुरुष ने मुझे कहने लगे कि इसे अप्सरा पूरी कहलाता हैं ,देखो जो नाच रही हैं...मेनका है , आगे देखो उर्वशी...देखो आगे तिलोत्तमा ,मैं अप्सरापुरी में जा कर बेहोश सा हो गया ,अचानक एक कठोर आवाज कान में आने से मै घबरा गया ,ऑंखे खोल दिया ....सामने पिताजी खड़े थे और डाटने लगे कि दिन के 9 बजने को हैं और नलायक अभी उठने का नाम नहीं ले रहा हैं । मैं अब क्या जबाव देता जल्दी बिस्तर छोड़ दिया और उर्वशी ...मेनका वाली पहेली बुझने का प्रयत्न करते वर्षों बित जाने के बाद भी पहेली वैसी की वैसी बेबुझ पड़ी हुई हैं, लेकिन यह तो सत्य हैं कि मैंने स्वर्ग तो जरूर देख लिया है; एक बार स्वर्ग देखने के पश्चात मन में इच्छा है कि एक बार नरक दर्शन हो जाए यदि कोई नरक का दर्शन करवा देवे तो मेहरवानी होगी ,अभी अभी एक समाचार मुझे मिल कि मुम्बई नगरी के पास एक स्लम हैं जहॉं एक विदेशी ने फिल्म बनाया और उस फिल्म को अनेक ऑस्कर अवार्ड प्राप्त हो चुका हैं वही पर नरक नगरी बसा हुआ हैं । मुझे पता तो मिल गया अब जाने के लिए समय का इन्तेजार करोड़ों का नरक नगरी देखना भी कोई खेल नहीं हैं भाई !

शुक्रवार, 12 जून 2009

कहीं मैं नरक में तो नहीं जाऊँगा ?

मैंने पाप और पुण्य पर अनेक बार गहन चिन्तन करने का प्रयन्त किया॥अनेक बार किया.. पर लगता हैं बार -बार मैं असफल हो जाता हूँ ,आचार्य श्री राम शर्मा ने लिखा कि हर असफलता यह दर्शाता हैं कि सफलता के लिए सही प्रयन्त नहीं किया गया हैं । अब सही प्रयन्त क्या होता हैं इसे आज तक मै समझ न सका,एक बार इसी प्रयन्त में मैने एक ऐसा कार्य कर बैठा कि आज सोचने पर भी आश्चर्य होता हैं ।हुआ यह. कि एक मित्र के दुकान में बैठा था, थोड़ी देर में वहॉं महिलाओं के एक दल चंदा मांगने आ गए ,अब मुझे भी कुछ शरारत सुझी ,मित्र को मैंने कहा कि तुम चंदा देने में जल्दीबाजी मत करो ,मैं कुछ प्रश्न पुछना चाहता हूँ । प्रथम प्रश्न पुछा था कि- आप लोग किस लिए चंदा मांग रहे हैं ? उत्तर - रामायण कथा के लिए । प्रश्न - आपलोग जानते हैं कि श्रीराम ने 5 माह की गर्भवती सीता को वगैर सूचना के जंगल में शेर -भालूओं के शिकार के लिए छोड़ दिए थे ? उत्तर -हॉं ,प्रश्न - आपलोगों को यह भी मालूम होगा कि श्री राम चन्द्र ने रावन वध के पश्चात सीता मैया को अपनाते समय ब्रम्हा जी को साक्षी स्वरूप बुला कर यह पुछे थे कि सीताजी पवित्र हैं या नहीं ? उत्तर -हॉं , प्रश्न -आपको पता होगा कि श्रीराम चन्द्र ने अपने अश्वमेध यज्ञ के समय लव और कुश को रामायण कथा सुनाने के लिए आयोध्या बुलाने के पश्चात जब पता लगा कि लव और कुश उनके ही पुत्र हैं, और सीता मैया को वन से राजमहल मे ले आए .. एवं दोनों पुत्र के सामने फिर से अग्नि परिक्षा देने को कहने पर धरती माता की छाती फट गई और सीता मैया उस फटे हुए धरती माता की छाती में समा गई ?उत्तर - हॉं । जब श्री राम चन्द्र मर्यदा पुरूषोत्तम थे तो नारी पर अत्याचार का यह एक अमर्यादित कार्य नहीं था ? उत्तर - मौन.... एक और रामचन्द्र नारी पर अत्याचार करते हैं दूसरी ओर श्रीकृष्ण नारीयों पर मेहरवान , भरी सभा में नारी का अपमान होते देख द्रोपदी की चिर को असीमित कर दिए । रासलीला की बात तो आज भी एक मिशाल हैं ,फिर गोवर्धन पर्वत को अंगुली में उठाना भी नारी सम्मान का एक विचित्र उदाहरण हैं । अब राधा -कृष्ण की प्रेम कहानी से बढ कर आज तक कोई प्रेम उच्च स्तर की परम्परा कायम नहीं रख सका हैं । प्रश्न - क्या नारीयों को, कृष्ण कथा अधिकाधिक प्रचार कर आज के समय में नारी अत्याचार से मुक्त होने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए ?उत्तर - सर ! हम लोग आपसे चंदा नहीं लेंगे ,परन्तु अगले वर्ष आपसे दुगना चंदा जरूर लेंगे और इस वर्ष रामायण कथा जरूर करेंगे, पर अगले वर्ष से कृष्ण कथा का ही प्रचार होगा । पता नहीं इससे मैंने कोई पाप किया हैं या नहीं.. लेकिन मुझे याद हैं मेरे दोस्त ने अगले वर्ष उन महिलाओं के आने पर दुगना चंदा अवश्य दे दिया था और मुझे सूचित भी किया ,कुछ प्रश्न जो बार -बार मुझे प्रेरित करता था कि किसी से रामायण के इस प्रसंग को पुछू, और जिज्ञासा वश महिलाओं से चर्चा किया था ,वे अब कृष्ण कथाओं में विशेष रूचि ले रहे है ,कहीं मैं नरक में तो नहीं जाउंगा ?

गुरुवार, 11 जून 2009

नक्शाली के आरोपी डॉ-विनायक सेन को जमानत की खुशी में मुझे खुश होने का हक़ नहीं हैं ?

ब्लाग -समर्थक -टिप्पनियॉं -चाहने वाले और आप सब एक श्रृखला हैं ,पूरक हैं ...एक से बढ कर एक ...किसी को श्रृखला से अलग करना असम्भव हैं ,ये सभी मिलकर ही ब्लागर को जीवित रखते हैं , दुनियॉं में सभी प्रकार के लोग हैं ,कुछ लोगों के विचार आपस में इस तरह घुल मिल जाते है कि अलंकार बनने लग जाता हैं ,और याद आता हैं कि.. सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी हैं ,सारी है कि नारी है –नारी हैं कि सारी हैं । ऐसे ही लोग मिलकर दुनियॉं में असम्भव सा काम कितनी आसानी से कर गए जो आज उदाहरण स्वरूप हम चर्चा में शामिल करते हैं । मैं आज श्रृखला के सभी को हार्दिक साधुवाद देने का हिम्मत कर रहा हूं ...मुझे याद आता हैं कार्ल माक्र्स और एंगेल्स के रिस्ते ,जब मैं कार्ल माक्र्स का नाम ले रहा हूँ तो मुझे लोग कम्युनिस्ट समझने का भूल न करें ॥क्योंकि मेरे विचार से तो पुंजीवाद अगर देश को भिखरी बनाता है तो.. उस भिखरी को कम्युनिस्ट हैवान बनाता है। एक भिखरी से हैवान कितना खतरनाक हो सकता है देश के लोग और सुधी पाठक आज प्रत्यक्ष देख और अनुभव कर रहे हैं ;इस पर अधिक चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है। भिखरी और हैवान के बीच में भी खुशीयाली का मार्ग मिल सकता हैं प्रसंगवश मार्क्स और एंगेल्स के उदारण इसलिए आ गया कि मार्क्स के पास धन नहीं था जिसके चलते विचारों का प्रचार -प्रसार नहीं हो रहा था ,एंगेल्स धनवान थे उन्हें पता था कि मार्क्स का विचार धनवानों के विपरीत जाता हैं ,फिर भी तात्कालिक रूप से कल्याण कारी भावना से प्रेरित हो कर `दास केपिटल´ जिसे कम्युनिस्टो का गीता कहा जाता है; छपवाने का पूरा भार अपने उपर ले लिया था । यह तो महाभारत के कर्ण जैसे उदाहरण पेश होता हैं ,एकलव्य और द्रोनाचार्य जैसे अविश्वासनीय कहानी सा लगता हैं , एक धनवान ने आज धनवानों को कैसे खत्म किया जाए उसका सम्पूर्ण उपकरण जनता को प्रदान करने का बीड़ा उठाया था । मुझे समाचार पत्र के एक खबर आज भी याद हैं जब एक पत्रकार ने श्री रामनाथ गोयनका को पुछा॥ कि आप देश के वंचित वर्गों के लिए प्राय: चिन्तीत रहते हैं क्या अपनी सम्पर्णू सम्पत्ति उस वर्ग के लिए सरकार को देना चाहेंगे ? गोयनका जी ने उत्तर दिया था कि यदि मेरे सम्पूर्ण सम्पत्ति का उपयोग वंचित वर्गो में हो सकेगा, ऐसी गारंटी सरकार दे, तो मैं संपत्ति छोड़ने को सहर्ष तैयार हूँ । लेकिन उस उत्तर का विशेष चर्चा न हो सका ...सरकार को पता है कि जो भी रकम विकास के नाम पर आता है उसका आज 10 प्रतिशत ही खर्च हो पाता है ,इसलिए श्री गोयनका के संपत्ति का गारंटी देने का हिम्मत सरकार को कहा से अएगी ? मेरा तो मानना हैं कि श्रृखला में जुड़े मुट्ठी भर लोग भी यदि चाहे तो देश का इतिहास बदल सकता हैं और अमेरिका वास्तव में दुनियॉ के सामने भीख मांगने को मजबूर हो जाएगा ।मैं किसी भी देश भीख मांगे ,यह कदापि नहीं चाहता हूं परन्तु अहम् की वशिभूत होकर दुनियॉं में जो अत्याचार का राज अमेरिका ने फैला रखा हैं उसका प्राश्चित उसको करना ही चाहिए । कुछ बाते कम्युनिस्टों का आया हैं तो अभी उग्र वादी नक्सलीयों का नाम भी काफी चर्चा में हैं मैंने स्वयं डा- विनायक सेन को जेल से मुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री रमन सिंह जी को पत्र लिखा था ,डा-विनायक सेन पर नक्शली होने का आरोप हैं । मैंने उन्हें देखा तक नहीं...और आज जब वे मुक्त होकर कार्य कर रहे हैं तो मुझे खुशी हो रही हैं ,एक भाई ने लिखा कि डा.विनायक सेन के मुक्त होने से या यूँ कहें कि जमानत मिलने की खूशी में नक्शली भी खूश हैं और पर्चे बाट रहे हैं । अब मेरे खूशी और नक्शली के खूशी को यदि एक ही चश्मे से देखा जाए तो कल मुझे भी लोग नक्शली कहने लगेंगे जबकि दूर- दूर तक कोई रिस्ता नहीं है। इस विचार यदि कोई नक्शली पढे तो हो सकता हैं कि यदि कभी मुझ पर कोई संकट आ जाए और अप्रत्यक्ष रूप से कोई नक्शली उस संकट में मुझे साथ दे ,तो क्या मैं नक्शली कहलाने लगूंगा? देश के वर्तमान न्याय व्यवस्था को देखते हुए मानवता के नाते मैंने मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा था उसमें मेरा कोई और रूची नहीं था ,भय के वातावरण में भी कुछ लोगों के ईमानदारी पूर्वक प्रयास एक क्रान्तिकारि उपलब्धी हॉंसिल करने में सक्षम हो सका हैं ,क्या इसका खूशी मनाने का हक मुझे नहीं हैं ? इसे ही कहते हैं कि सुवरण को खोजत फिरे ,कवि, व्यभिचारी ,चोर ।

बुधवार, 10 जून 2009

जब अमेरिका दुनियाँ के सामने भीख मांगेगी

लूट ले गए हजारों करोड़ रूपये ,लूटने वाले अब कोई देशी कंपनी नहीं बल्की विदेशी संस्थागत निवेशक हैं । देश के बड़े -बड़े दिग्गज देखते रहे गए ,कुछ कंपनी तो मात्र विचार करते रहे कि अब निवेश का समय आ गया हैं ,आज -कल करते करते समय निकल गया, और विदेशी निवेशक मौका का फैदा उठाकर चम्पत हो गए निवेशक रातों -रातों कहॉं से पैदा हो जाते हैं और छापामार कार्यवाही करते कहॉं गायब हो जाते हैं, ये सब बाद में चर्चा का विषय बनकर रह जाता हैं ।वास्तव में शेयर बाजार का लाभ तो आज विदेशी ही अधिक उठा लेते है । आर्थिक विकास के नाम से जो ढॉंचा आज भारत में देखने को मिल रहा है उस ढॉंचे से देश को कैसे बरबाद किया जाए, उसका प्रशिक्षण तो अमेरिका में पूर्व में ही मिल चूका हैं ,अमेरिका में बैंक ,बीमा ,अब जनरल मोटर जैसे भीमकाय कार्पोरेट जगत के कंपनी दिवालिया होने के बाद भी अमेरिका जीवित हैं ,ऐसा कयों ?अब तक अमेरिका को दुनियॉ के सामने कटोरा लेकर भीख मांगना चाहिए था ,परन्तु वह आज भी दुनियॉ के सीरमौर बन बैठा हैं ऐसा क्यों ? इसका एक मात्र कारण जो मुझे समझ में आ रहा वह यह कि अमेरिकी कंपनीयॉं आज जो दूसरे देश में काम कर रहा हैं उसका मुनाफा वास्तविक से सैकडों -हजारों गुणा अधिक होने के कारण मंदी के समय मुनाफे के रकम से दुनियॉं में राज करने का एक नियम सा बना लिया हैं ,अन्यथा पेप्सी -कोकाकोला जैसे जहर बेचने वाली कंपनी को वह कभी सहयोग नहीं करते । एक ओर भारत के उम्दा किस्म के कालिन का आयात मात्र इसलिए लिए बंद कर दिया कि इस प्रकार के कारखाने में बाल मजदूर कार्यरत हैं । अगर भारत में आज भी भीषण गरिबी के कारण बाल कलाकार बनकर रोजगार कर रहा हैं तो अमेरिका के ऑंखों में क्यों खटकती हैं ? क्या पेप्सी -कोका कंपनी के कारण, जहर से देश के तमाम जन स्वास्थ्य पर बूरी असर नहीं पड़ता ? अमेरिका अपनी कंपनी को गलत कार्य करने से क्यों नहीं रोकती?भारत के बिकाउ नेताओं के आड़ में इस देश को लूटने में आज भी अमेरिका एक कदम आगे हैं। एक ओर दुनियॉं को वैश्वीकरण और निजीकरण के मंत्र में उलझा कर आज अपने ही देश में संरक्षण वाद और राष्ट्रीयकरण को खूले आम प्रश्रय दे रहा हैं जिससे भारत को ही अधिक नुकसान होने के साथ -साथ बेरोजगारी की समस्या पैदा होने कारण आगे अर्थव्यावस्था पर बूरी असर पड़ने का बहुत बड़ा कारक बन कर खड़ा हो सकता हैं । आउट सोंर्सिंग के नाम से तो अमेरिका में हायतौबा मच गया हैं जिससे भारत को काफी नुकसान उठाना पर रहा हैं ,हम है कि आज भी अमेरिका के पिछलग्गु बने हुए हैं । हम एक भी अमेरिकी कंपनीयों को बाल तक बॉंका नहीं कर सकते । यदि भारत से अमेरिकी कंपनीयों को खदेड़ने का सिलसिला शुरू हो जाए तो इस देश के सभी लोग एक वर्ष के भितर करोड़पति जरूर बन जाएगा । कयोंकि अमेरिकी कंपनीयों के लूट से हमें छुटकारा मिलने के साथ ही साथ छोटी -छोटी उद्योग धन्धों से भी हमे लाभ मिलने लगेगा । आज शून्य तकनीकि क्षेत्र में कार्पोरेट जगत अपनी वर्चस्व बना बैठी हैंयदि शून्य तकनीकि क्षेत्र से ही अमेरिकी कंपनीयां हट जाए तो देश के बेरोजगार उस तरह के उद्योग खोलकर अपनी जीविका अच्छी तरह से निर्वाहन कर सकेगा ।मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि ऐसा हो तो अमेरिका दुनियॉं के सामने भीख मांगने लगेगा ।

सोमवार, 8 जून 2009

मेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना करना

पर्यावरण पर लिखते हुए मुझे कुछ बातें एकाएक याद आ गई , मेरे कुछ मित्रों ने मुझे यह तक पूछने लगे कि मैं घर का कचरा कहा फेंकता हूँ ? कुछ लोग जो मुझे पहचानते हैं मुझे फोन से पूछने लगे कि पर्यावरण जैसे विषय पर लिखकर अपना समय क्यों गंवा रहे हो ,कुछ लोगों ने तो विश्वास ही नहीं कर सके कि मैं इस विषय पर इतनी उग्र और नंगे शब्द का इस्तेमाल कर सकता हूँ । मुझे कुछ मित्र कहने लगे कि कुछ नहीं से कुछ भली ,आदि -- आदि ,क्या मेरे घर से इतने कचरे निकलते हैं जिससे की पर्यावरण दूषित हो रहा हैं ? भाई साहब! सैकडों वर्षों तक घर से जो कचरा निकलेगा उससे पर्यावरण को कोई क्षति नहीं होने वाली हैं ,यदि वन -जंगलों को स्वार्थी लोगों द्वारा नष्ट न किया जाए तो घर से निकलने वाली कार्बन डाई अक्साईड का कोई प्रभाव पर्यावरण पर नहीं पड़ सकता । प्रकृति ही दूनियां में सन्तुलन बना कर चलती हैं ,हम हैं कि जानबुझ कर प्राकृतिक सन्तुलन को असन्तुलित करते रहते हैं और बाद में हायतौवा मचाने में भी नहीं चुकते । जिस गति से पेड़ पौधे ,नदी नालों को हम बरबाद कर रहे हैं उसी गति से क्या हम उसका स्थानापन्न या क्षति पुर्ति करते हैं ? करे कोई और भुगते कोई, वाली कहावत यदि चरितार्थ होती रही , तो पर्यावरण के दुश्मनों को तो कभी सबक नहीं मिल सकता । उन्हें सबक सिखाने के लिए उनका वहिष्कार करना अतिआवश्यक हैं । वहिष्कार का अर्थ मात्र उनके द्वारा गलत कर्म का वहिष्कार होना चिहिए ,यदि ऐसे व्यक्ति जो हजारों एकड़ भूमि में अपना उद्योग लगाने के जीद और जुनून में छल -बल और कौशल का प्रयोग करते हुए जल जमीन की बरबादी करने में अडे हुए हैं ,तो क्या हमें क्या उसका साथ देना चाहिए ? क्या ऊंट के मूंह में जीरा वाली कहावत से पर्यावरण को बचाया जा सकता हैं ? हम एक पेड़ लगाए और एक पेड़ के बदले सैकड़ों पेड़ काट डाला जाए ? हर वर्ष पेड़ काटने वालों से ही हमारा पाला पड़ता हैं । पेड़ काटने वाले ही हमें बताते हैं कि पेड़ नहीं काटना चाहिए । शराब पीने वाले ही शिक्षा देते हैं कि शराब पीना अच्छी बात नहीं हैं । सिगरेट की कश से अपने को बरबाद करने वाले ही यदि कहें कि सिगरेट पीना ठीक नहीं हैं, तो उसका असर कैसा पड़ सकता हैं ? जरा इस बात पर भी तो हमें गौर करना चाहिए कि हम उस घड़े में पानी डालते चले जाए जिस घड़े के नीचे छेद हो गया हो ,पानी तो घड़े में तभी रूक सकती हैं जब छेद को बंद कर दिया जाए ,अब हम पेड़ लगाते चले और दुश्मन उसे काट कर मौज करते रहे ,यह दुविधा की स्थिति कब तक चलेगी ?अत: हम अपनी उर्जा ऐसे लोगों को चिन्हित कर उसे पेड़ काटने से रोकने में लगाए । एक सत्य घटना लिख रहा हूँ - मैंने वर्षों पहले छोटे-बड़े सभी को बरसात में पेड़ लगाते देख कर बहुत खुश होकर स्वयं भी कुछ पौधे लगाने गया था ,उसी स्थान से जब -जब मैं गुजरता था मेरी खूशी का ठिकाना न रहता ,मैं ऑंखों के सामने उन पौधों को पेड़ होता देखता था और ईश्वर से प्रार्थना करता कि भगवान इनमें से एक भी पेड़ न मर पाए ।कुछ समय पश्चात् चारों और हरियाली छा गई , हरियाली किसे पसन्द नहीं आता हैं ?एक दिन मैं उसी स्थान से गुजर रहा था जहॉं वर्षों पहले छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढे भी बरसात में पेड़ लगाने में मस्त थे और उसका उद्देश्य भी पूरा हो चुका था, अचानक एक दिन एका-एक विश्वास नहीं हुआ कि जहां हजारों पौधे बृक्ष बन कर लोगों को लूभा रहे थे वहॉं आज एक भी बृक्ष शेष नहीं है,बड़े -बड़े डोजर लाकर सभी बृक्षों को बेरहमी से जड़ से उखाड़ दिया गया ,मैं कहुं तो हत्या कर दिया गया ,हरियाली का नामोनिशान मिट चुका था,मुझे यह देख कर अधिक आश्चर्य हुआ कि जो बच्चे वर्षों पहले उन पौधों को लगाये थे , जो आज बृक्ष का रूप लिया था, वे ही उनको काटने में मद्द कर रहे हैं ,यह कैसी विडम्बना हैं? मेरा मन हाहकार कर उठा, आज भी उन स्थानों से मैं कभी -कभी गूजरता हूँ क्योंकि आने जाने के लिए दूसरा कोई रास्ता भी नहीं हैं, वहां आज कंक्रीट के जंगल उंग आए हैं, मैं रास्ते में जाते हुए आज भी अतीत में खो जाता हूँ । जीवन में अनेक सत्य घटनाओं से सामना होता हैं किसी मित्र ने मुझे लिखा कि आप थक गए हैं कुछ समय तक सुस्ताने के बाद फिर आगे बढना अच्छा रहेगा । उस मित्र को मैं जवाब नहीं दे पाया था ,भाई तुमने सच कहा ,मैं आज अपने ही शव को हर रोज देख -देख कर थक चूका हूँ पता नहीं कब इस दूनियॉं से चला जाऊं ,परन्तु जाने के पहले जीवन में जो भी अनुभव किया हैं उसे कुछ लोगों में मैं बॉंट सकूं, ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ; तुम भी मेरे लिए प्रार्थना करना ।

रविवार, 7 जून 2009

पर्यावरण दिवस बनाम नौटंकी दिवस

पर्यावरण दिवस अर्थात पर्यावरण नौटंकी दिवस ,हर वर्ष 6 जून को दूनियॉं में मनाई जाती हैं । चूँकि दूनियॉं इस दिवस को मनाती हैं अत: हम भारतवासिओं को भी दूनियॉं की नकल करनी चाहिए अन्यथा हम विकास के दौर में पिछड जाएगें ,किसी जमाने में हमारे ऋषी मुनिओं ने पिपल ,बट बृक्ष ,तुलसी ,और अनेक प्रकार के पेड़ पौधों की पूजा करने का नियम बना कर समाज में लागू किए थे ,ओर जिसे पूजा जाता हैं उसे काटा नहीं जाता ,उसे जतन किया जाता हैं ,इज्ज्त के साथ व्यावहार किया जाता हैं , आधुनिक भारतीय वैज्ञानिक मेघनाथ साहा ने तो दूनियॉं को प्रमाण के साथ बता दिया कि पेड़ पौधों में जीवन होता हैं ,पेड़ हंस सकते हैं ,पेड दू:खी होकर रोते हैं । चूकि ये सब बताने वाले देशी लोग हैं और देशी लोगों का अर्थ हैं गंवार, इसलिए देश के मुनीऋषीओं का बात मानना हम तौहिन समझते हैं। अमेरिका में औद्योगिक क्रांति शुरू होते ही जंगलों का विनाश शुरू हो गया था ,पर्यवरण को ताक में रख कर जिस विकास की रूपरेखा अमेरिका ने दुनियॉ के सामने रखा, वह इतना खतरनाक और जानलेवा होगा, उस समय तात्कालिक रूप से किसी ने सोचा भी नहीं होगा , परन्तु कुछ ही समय पश्चात अमेरिका के सुलझे हुए पर्यावरणविदों ने विकास के नाम पर विनाश के विरोध में लाम बन्ध होने लगे थे, विरोध के स्वर दुनियॉं में भी सुनने लग गया ,अब अमेरिका के पर्यावरण विरोधी लोगों ने बड़े -बड़े ओद्योगों के लिए जानबुझ कर जंगलो में आग लगा कर जमीन हथियाने के हथकण्डे अपनाने लगे हैं ,हजारों एकड़ वन क्षेत्रों को मात्र जानलेवा उद्योग लगाने के नाम से आग लगा दिया जाता था ।जब ग्लोबल वार्मिंग की समस्या शुरू हो गई और ओजन परत पर बड़े -बड़े छिद्र होने लगे तो कुछ लोगों ने जनता के विरोध को दबाने के लिए बृक्षारोपण ,पर्यारण दिवस ,ओजन सुरक्षा दिवस और आगे अनेक इस तरह की दिवस मनाने का नाटक जानबुझ कर किया जाता रहेगा , बाबा आम्टे ने पर्यावरण सुरक्षा के लिए चिपको आन्दोलन शुरू किया था परन्तु ,क्या हम आज भी उनके आवाज को सुन सकते हैं ? आए दिन देश के किसी न किसी स्थान पर मात्र इसलिए गोलीयॉं चलाई जाती हैं कि उद्योगों के लिए जनता अपनी जमीन और जंगल छोड़ने को राजी नहीं होते और सरकार उद्योगपतियों के साथ सॉंठ-गाँठ करके साधारण जनता को गोलियों से छलनी करके उनको अपनी रोजी -रोटियों से ,संस्कृति से बेदखल करके उद्योगपतियों को जमीन सौप देती हैं । देश की जनता के लाश पर विकास की बुनियाद खड़ी की जाती हैं और फिर शुरू होता हैं पर्यावरण के साथ बलात्कार को दौर ,लाखों पेड पोधौ को नष्ट करने का नंगा नाच,यही पर्यावरण के दुश्मन आगे चल कर लाखों बृक्ष लगाने का नाटक करते हैं, और एक साल बाद लाखों बृक्षों में सैकडों भी नजर नहीं आते । बृक्ष लगाने के इस गोरख धंधे में सरकार की भी बराबर में भागीदारी रहती हैं ,करोड़ों रूपये की बरबादी का नंगा त्यौहार हर वर्ष चलता हैं, केवल भारत में ही नहीं दुनियॉ के कोने-कोने में यही खेल जारी हैं । लेकिन अधिक दिनों तक यह खेल नहीं चल सकती , दुनियॉ के सारे ग्लेशियार पिधलने लगी हैं और बारह मासी नदियॉं सुखने के कगार पर खड़ी हैं ,वायू प्रदुषण की बात यदि एक ओर रख दे क्योंकि धन पिशाच महलों में सड़-सड़ कर भी जिन्दा रहना पसन्द करते हैं, लेकिन जब पानी ही दूनियॉं से खत्म हो रही हैं तो जिन्दा रहना भी एक पहेली बन जाएगी ,आज इसीलिए अमेरिका के कंपनी हमारी जल स्रोतों पर गिद्ध नजर रखे हुए है ,विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ जो खिलवाड करते हुए विनाश का शडयन्त्र रचने वालों को भी यही रहना हैं यदि दुनियॉ की प्राणी जगत ही नष्ट हो जाएगी तो पर्यावरण के दुश्मन किस दुनियॉं मे जीवित रहेगे ?

बुधवार, 3 जून 2009

माँ की दूध में जहर

दुध व्यापारीयों के धंधे में कुछ न कुछ विपत्तियॉं हमेशा मंडारता रहता हैं ,अभी हाल में ही जयपुर के आसपास खाद्य विभाग द्वारा छापामारी की कार्यवाही की गई ,बाताया जाता हैं कि लगभम 70 प्रतिशत दुध नकली पाया गया । दुध में कई तरह की जहरिला रसायनिक पदार्थ मिला हुआ पाया गया , दुध में पानी मिला कर बेचना तो आम बात हैं परन्तु पानी में दुध मिलाकर बेचना भी आम होने के साथ साथ गन्दी पानी मिलाना भी एक रीवाज बन चुका हैं । एक समाचार पढते हुए मैं अवाक रह गया था , समाचार में दुध में छोटी -छोटी मछलियॉं तैरते पाया गया । जब दुधवाले से पूछा गया तो उसने बताया कि जिस तलाब से पानी निकालकर दुध में मिलाया गया था उसमें मछलियॉं बहुत होने के कारण यह स्थिति निर्मित हो गई । परन्तु बाद में दुधवाले का क्या हुआ पता नहीं । दुध की शिकायत तो प्राय: सभी को होता हैं यदि दुध सही और गाढा भी मिल जाए तो मन में शंका होने लगता हैं कि जरूर दुध में मिलावट हैं नही तो दुध इतने गाढा क्यों हैं ? दुध एक शक की पदार्थ बन कर रह गया हैं । दुध मिलावट की बात तो कुछ हजम भी हो जाए तो कृत्रिम दुध के बारे में सुन कर भी रोंगटे खड़ी हो जाती हैं ,साबुन ,युरिया ,कास्टिक सोडा ,सफेद मिट्टि ,और न जाने क्या क्या मिलाकर दुध बेचा जाता हैं यही दुध बड़े चाव से हम बच्चों को पिलाते हैं रोगीयों को ,बुजूर्गो को और परिवार के सभी सदस्य दुध पीने में बहुत गर्व महशूस करते हैं । एक खबरऔर हैं -मॉं के दुध में भी आज जहर मिला हुआ पाया गया । प्रश्न यह हैं कि मॉं के दुध में जहर कहॉं से आ गया ? उत्तर भी खबर में ही था कि हम जो खाना खाते हैं उसमें भी अनेक रसायनिक पदार्थ मिला हुआ होने के कारण खाने के साथ वह जहर हमारे शरीर में चले जाने से माता पर भी उसका प्रभाव पड़ता हैं । उपज बढाने के नाम से खेत में रसायनिक खाद का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता हैं जिससे उपज तो कुछ समय तक बढ सकता हैं परन्तु आगे जाकर खेत बेकार और अनुपजाउ हो कर पड़ती भुमि में परिवर्त्तित होकर किसानों के लिए आत्महत्या का भी एक कारण बन जाता हैं । शिशु काल से ही बच्चे यदि जहर पीकर इस दुनियॉं में आता हो ,तो आगे चलकर वे बच्चे दुनियॉं को क्या अमृत पीलाएगा ? आज देश में जहरीला इंसान ही अधिक देखने को मिलेगा ,haad मॉंस के, दो पैर के मनुष्य ,इन्सान न बनकर जहरीला हैवान बन जाता हैं ।कहा जाता हैंकि जैसे खावे अन्न वैसे उपजे मन , भारत वर्ष में तो खाने का स्तर भी स्पस्ट हैं सात्विक , राजसिक,तामसिक ,आदी भोजन का प्रभाव भी मानव ‘शरीर में अलग -अलग पड़ता ही हैं । आज प्रत्येक दिशाओं में जहर ही जहर का खेल खेला जा रहा हैं ओर हम चुप चाप साक्षी बनकर देख रहे हैं , शासन प्रशासन भी जहर बेचने और बिचवाने में लगा रहता हैं । कुछ समय पूर्व शीतल पेय पदार्थ के नाम से देश में बेचने वाली पेप्सी कोका कोला कंपनी पर प्रश्न चिन्ह लग गया था , यह भी अनेक जॉंच के पश्चात सामने आया कि अमेरिकी कंपनी ने देश में जो शीतल पेय के नाम से बेचती हैं उसमें भी यूरिया, डी,डी।टी ,अफीम ,कार्बनडाई अक्साईडऔर अनेक प्रकार के कीट नाशक मिलाया जाता हैं ,देश में हल्ला हुआ ,बात संसद तक पहूंची एक कमिटी बैठी ,रिपोर्ट संसद में पेश हुआ ,गर्मागर्म बहस भी चली परन्तु देश में जहर बेचने वाली कंपनी का बाल भी बॉंका नहीं हो सका ,आज भी डंके के चोट में पेप्सी और कोकाकोला कंपनी अपनी जहरीलि पदार्थ को बेचकर देश को जहर मय बनाने में लगी हुई हैं । कह तो यहॉं हैं कि जो इसे पीता वह अच्छा और बूरा सोचने का ‘शक्ति भी खो देता हैं ।देश के नेता भी तो यही चाहते हैं कि जनता जहर पी पी कर मस्त रहे और वे मूर्दो पर राज करें । जहरीला दुध बेचने में कहीं पेप्सी कोका जैसे बदनाम कंपनीयों का हाथ तो नहीं हैं ?

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