गुरुवार, 11 जून 2009

नक्शाली के आरोपी डॉ-विनायक सेन को जमानत की खुशी में मुझे खुश होने का हक़ नहीं हैं ?

ब्लाग -समर्थक -टिप्पनियॉं -चाहने वाले और आप सब एक श्रृखला हैं ,पूरक हैं ...एक से बढ कर एक ...किसी को श्रृखला से अलग करना असम्भव हैं ,ये सभी मिलकर ही ब्लागर को जीवित रखते हैं , दुनियॉं में सभी प्रकार के लोग हैं ,कुछ लोगों के विचार आपस में इस तरह घुल मिल जाते है कि अलंकार बनने लग जाता हैं ,और याद आता हैं कि.. सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी हैं ,सारी है कि नारी है –नारी हैं कि सारी हैं । ऐसे ही लोग मिलकर दुनियॉं में असम्भव सा काम कितनी आसानी से कर गए जो आज उदाहरण स्वरूप हम चर्चा में शामिल करते हैं । मैं आज श्रृखला के सभी को हार्दिक साधुवाद देने का हिम्मत कर रहा हूं ...मुझे याद आता हैं कार्ल माक्र्स और एंगेल्स के रिस्ते ,जब मैं कार्ल माक्र्स का नाम ले रहा हूँ तो मुझे लोग कम्युनिस्ट समझने का भूल न करें ॥क्योंकि मेरे विचार से तो पुंजीवाद अगर देश को भिखरी बनाता है तो.. उस भिखरी को कम्युनिस्ट हैवान बनाता है। एक भिखरी से हैवान कितना खतरनाक हो सकता है देश के लोग और सुधी पाठक आज प्रत्यक्ष देख और अनुभव कर रहे हैं ;इस पर अधिक चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है। भिखरी और हैवान के बीच में भी खुशीयाली का मार्ग मिल सकता हैं प्रसंगवश मार्क्स और एंगेल्स के उदारण इसलिए आ गया कि मार्क्स के पास धन नहीं था जिसके चलते विचारों का प्रचार -प्रसार नहीं हो रहा था ,एंगेल्स धनवान थे उन्हें पता था कि मार्क्स का विचार धनवानों के विपरीत जाता हैं ,फिर भी तात्कालिक रूप से कल्याण कारी भावना से प्रेरित हो कर `दास केपिटल´ जिसे कम्युनिस्टो का गीता कहा जाता है; छपवाने का पूरा भार अपने उपर ले लिया था । यह तो महाभारत के कर्ण जैसे उदाहरण पेश होता हैं ,एकलव्य और द्रोनाचार्य जैसे अविश्वासनीय कहानी सा लगता हैं , एक धनवान ने आज धनवानों को कैसे खत्म किया जाए उसका सम्पूर्ण उपकरण जनता को प्रदान करने का बीड़ा उठाया था । मुझे समाचार पत्र के एक खबर आज भी याद हैं जब एक पत्रकार ने श्री रामनाथ गोयनका को पुछा॥ कि आप देश के वंचित वर्गों के लिए प्राय: चिन्तीत रहते हैं क्या अपनी सम्पर्णू सम्पत्ति उस वर्ग के लिए सरकार को देना चाहेंगे ? गोयनका जी ने उत्तर दिया था कि यदि मेरे सम्पूर्ण सम्पत्ति का उपयोग वंचित वर्गो में हो सकेगा, ऐसी गारंटी सरकार दे, तो मैं संपत्ति छोड़ने को सहर्ष तैयार हूँ । लेकिन उस उत्तर का विशेष चर्चा न हो सका ...सरकार को पता है कि जो भी रकम विकास के नाम पर आता है उसका आज 10 प्रतिशत ही खर्च हो पाता है ,इसलिए श्री गोयनका के संपत्ति का गारंटी देने का हिम्मत सरकार को कहा से अएगी ? मेरा तो मानना हैं कि श्रृखला में जुड़े मुट्ठी भर लोग भी यदि चाहे तो देश का इतिहास बदल सकता हैं और अमेरिका वास्तव में दुनियॉ के सामने भीख मांगने को मजबूर हो जाएगा ।मैं किसी भी देश भीख मांगे ,यह कदापि नहीं चाहता हूं परन्तु अहम् की वशिभूत होकर दुनियॉं में जो अत्याचार का राज अमेरिका ने फैला रखा हैं उसका प्राश्चित उसको करना ही चाहिए । कुछ बाते कम्युनिस्टों का आया हैं तो अभी उग्र वादी नक्सलीयों का नाम भी काफी चर्चा में हैं मैंने स्वयं डा- विनायक सेन को जेल से मुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री रमन सिंह जी को पत्र लिखा था ,डा-विनायक सेन पर नक्शली होने का आरोप हैं । मैंने उन्हें देखा तक नहीं...और आज जब वे मुक्त होकर कार्य कर रहे हैं तो मुझे खुशी हो रही हैं ,एक भाई ने लिखा कि डा.विनायक सेन के मुक्त होने से या यूँ कहें कि जमानत मिलने की खूशी में नक्शली भी खूश हैं और पर्चे बाट रहे हैं । अब मेरे खूशी और नक्शली के खूशी को यदि एक ही चश्मे से देखा जाए तो कल मुझे भी लोग नक्शली कहने लगेंगे जबकि दूर- दूर तक कोई रिस्ता नहीं है। इस विचार यदि कोई नक्शली पढे तो हो सकता हैं कि यदि कभी मुझ पर कोई संकट आ जाए और अप्रत्यक्ष रूप से कोई नक्शली उस संकट में मुझे साथ दे ,तो क्या मैं नक्शली कहलाने लगूंगा? देश के वर्तमान न्याय व्यवस्था को देखते हुए मानवता के नाते मैंने मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा था उसमें मेरा कोई और रूची नहीं था ,भय के वातावरण में भी कुछ लोगों के ईमानदारी पूर्वक प्रयास एक क्रान्तिकारि उपलब्धी हॉंसिल करने में सक्षम हो सका हैं ,क्या इसका खूशी मनाने का हक मुझे नहीं हैं ? इसे ही कहते हैं कि सुवरण को खोजत फिरे ,कवि, व्यभिचारी ,चोर ।

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