रविवार, 14 जून 2009

मंदी भगवान को जीवित रखना जरुरी हैं

मंदी और मंदी जहॉ जाऊ थोडी सी व्यापार -व्यावसाय की बात निकलते ही मंदी का जिक्र आम बात हो चुकी हैं । क्या करें.. भाई मंदी का जमाना आ गया हैं ,कमाई धमाई पहले जैसा नहीं रहा,जमाना बहुत बदल गया हैं आदी ....सुनते -सुनते काम पक गया हैं ,बेचारा मैं करू तो क्या करू ,सही कहूँ तो मुस्किल ,और गलत कहना सीखा नहीं –बीच में फंस गया । यदि कहूँ मंदी नहीं हैं तो बड़े उद्योगपति बन्धु नराज हो जाते हैं क्योंकि मंदी के नाम से उन्हें कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का एक अच्छा अवसर मिल गया हैं ,ट्रेड युनियनों और श्रमिक कानून के चलते अनेक मजदूरों को नौकरी से निकालना बहुत कठीन काम था ,आज आसान हो गया हैं । अब तो जितनी जोर से चिल्हाया जाए कि मंदी हैं उताना ही जोर शोर से मंदी पैजेक का फैदा भी उद्योग पतियों को मिल रहा हैं ,पैकेज का जो बदरवॉंट होता हैं वह भी जग जाहिर हैं .........एक दिन मेरे एक दोस्त को पूछा कि भाई सत्य बताना ...क्या वास्तव में तुम्हें लगता हैं कि मंदी हैं ? दोस्त ने इधर -उधर देखते हुए कहने लगे कि देखो मंदी के नाम से हम आज चॉंदी नहीं सोने काट रहे हैं ......मैंने कहा यार चॉंदी -सोना काटना क्या वला हैं ? दोस्त ने कहॉं कि तू बहुत बुद्दू हैं ,देखता नहीं मैंने पिछले माह ही मारूती 800 बेचकर सेंट्रो ले लिया हैं ,यदि कमाई नहीं होता तो क्या मैं सेंट्रो ले सकता था ? तू तो जानता हैं अभी 6 माह पहले ही नया मकान बना लिया था । मैंने कहा यार रियल मार्केट वाले बरबाद हो रहे हैं और तू कहता हैं कि मकान बना लिया, वह भी लाभ के रकम से .....बड़ा अजीब बात हैं ,मुझे सचमूच कुछ भी समझ में नहीं आता, बिजनेस करता तब तो समझ आता ना ? दोस्त ने कहॉं अम्बानी बन्धओं ने आपनी -अपनी पित्नयों को एक से एक तौफा इसी मंदी के दौर में दिया हैं वह तो देख रहा हैं कि नहीं ? अनिल अम्बानी का हवेली और मुकेश भाई ने जहाज का तौफा अभी -अभी तो दिया हैं .....अब लक्ष्मी मित्तल को लो अपने लड़के के लिए दूनियॉ के सबसे महंगी महल खरीदने का चर्चा हैं । मैंने कहा भाई कुछ समझ में नहीं आता कि सभी अर्थशास्त्री और विद्वान जब एक मत हैं कि मंदी हैं, तो हमें भी तो कहना चाहिए कि मंदी हैं । दोस्त कुछ नराज होकर कहने लगे कि तुझे अब साफ साफ कहता हूँ कि भारत में कोई मंदी वन्दी नहीं हैं, मात्र मंदी का अर्थ हैं मुनाफा कमाओ ,तुझे खोखा का अर्थ मालूम हैं कि नहीं ? मैंने कहॉं खोखा का अर्थ खाली होता हैं ....हॉं...हॉं॥हॉं ...तुझे कुछ भी समझ में नहीं आता जैसे ..खोखा का खाली नहीं होता वैसे ही मंदी का अर्थ मंदी नहीं होता ,यह तो व्यापार का तकनीकि शब्द हैं अब समझा ?इस तकनीकि शब्द के बल पर श्रमिक लॉं बदल गया , बैंकों को ऋण के लिए लचिलापन लाना पड़ा ,रेपो रेट में कई बार फेर बदल करके व्यापारियों को लाभ पहुचाया गया ,पहले अर्थमंत्री कभी -कभी व्यापारियों से सलाह मशविरा करते थे ,अब तो खुले आम बजट के पहले अनेक बार चर्चा हो जाता हैं और जैसे व्यापारी चाहे वैसे ही बजट पास होता है ,यह सब मंदी भगवान का अर्शिवाद हैं ,अब मुझे भी थोड़ी -थोड़ी समझमें आने लगी कि असल में मंदी भगवान को जीवित रखना कितनी जरूरी हैं । बाद में कभी विश्व अर्थ व्यावस्था पर भी चर्चा करेंगें, क्या वहॉं भी भारत वर्ष जैसे हालात हैं ?

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