शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

अब बाबा रामदेव और राजीव दिक्षीत स्काटलैंड के टापू से दुनियाँ में क्रांति करेंगे !

बाबा रामदेव ने अब भारतीय रकम को विदेशों में निवेश करने लग गए है ,हाथी के दॉंत दिखाने का कुछ और खाने का कुछ होता हैं ,स्वदेशी का नारा लगाने वाले बाबाजी अवसर देखकर अपनी साम्राज्य विस्तार में लगे हुए हैं ,उनका कहना है कि- विदेशों में भारी मांग होने के कारण उनके चेलों ने एक टापू खरीदने में विशेष सहयोग किया है ।

मंदी के मार से विदेश में अचल सम्पत्ति खरीदने वाले विरले ही मिलेंगे ,इस अवसर का लाभ तो एक योगी को उठाना ही चहिये , क्योंकि उनके पास बैठे हुए एक ऐसे तमाशेबाज ,एक ऐसे नटवरलाल जिनको ईश्वर ने लोगों को प्रभावित करने के लिए वाणी तो दी है ,पर ईमानदारी शायद उनके खून से गायब हो चुका है।

मै नाम लूँ तो हो सकता हैं कि देश के बहुत लोगों को अच्छा नहीं लगेगा ,आज कल रामदेव जी के साथ बैठे-हाईटेक स्वदेशी प्रचारक ,देश के कर्णधार ,देश से विदेशी कंपनीयों को भगाकर ही दम लेंगे, ऐसे कहने वाले स्व उपाधी धारक राष्ट्रबंधु श्री राजीब दिक्षीत जी जिनके सलाहकार बन बैठे है .....

मैं पिछले वर्ष जब एक सम्मेलन में भाग लेने वर्धा पहूंचा तो राजीव दिक्षीत से मिलने का मन होने से उनके घर चला गया , एक साधरण जीवन जीने की संकल्प करने वाले ,गॉंधी जी को आदर्श मानकर, देश में प्रचार करने वाले ,अपने नाम से कभी कोई बैंक में खाता न रखने की बातें करने वाले त्यागी जी- के घर में जो भव्यता देखा तो मुझे एका एक विस्वास ही नहीं हुआ कि.. मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं ....?

श्री कृष्ण और सुदामा के किस्से तो जग जाहिर है , गरीब सुदामा अपनी सखा श्रीकृष्ण से कभी कुछ मांगने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे ,परन्तु जब श्री कृष्ण से मिलकर वे घर लौटे तो झोपड़ी के स्थान पर महल देखकर हैरान हो गए थे । अब राजीव भाई को कलियुग में ऐसी कौन भगवान राजा मिल गए होंगे, जिसने रातों रात उन्हें करोड़पति बना दिए हैं .... कुछ समय पहले मेरे पास कई मेल आया --- जिसमें राजीव भाई के बारे एक खुलीचिट्ठा भी था ,भावनाओं से खेलते हुए इस देश में रातों रात करोड़पति बनना बहुत आसान है ,यही बात दिक्षीत जी पर भी लागु होता है।

सलहाकार बन कर बाबा राम देव को विदेश में धन निवेश करने का काम यही एक व्यक्ति के सिवाय अन्य कोई करने का हिम्मत नहीं कर सकता ..... स्कॉट लैंड स्थित एक पुरे टापू को ही बाबा रामदेव जी ने खरीद लिया है ,भारतीय भूमि उन्हें अब रास नहीं आ रहा है ,इस देश में घर- घर तक योग सिखाते हुए, राष्ट्रप्रेम ,स्वदेशी - भावना द्वारा देश में क्रान्ति लाने की बातें करने वाले बाबा ,अब विदेश से भारत का संचालन करेंगे । एक विदेशी निर्जन टापू में बैठ कर भारत में दोनों मिलकर क्रांति करेंगे ,योजना बहुत ही अच्छी है । १५.३० करोड़ रूपये में एक टापू खरीद कर आगे लाभ की सम्भवना अभी से ही शुरू है .....

वर्षों पहले इस देश में एक महेश योगी हुए ,वे भी विदेश में रहकर न जाने क्या- क्या प्रयोग किया करते थे,आज महेश योगी को कितने लोग जानते हैं पता नहीं ...........एक समय आचार्य रजनिश भी देश छोडकर विदेश चले गए थे ,अमेरिका में रजनिशपूरम् बना कर अमेरिका का ही राष्ट्रपति बनने का सपना देखने वाले ओशो का जो हस्र हुआ, उसे देख सुन कर बाबाओं को कुछ ज्ञान लेने का समय ही कहॉं हैं ........

देश के महान साहित्यकार ने एक स्थान में लिखा कि... अपनी मॉं को असहाय छोड़ कर जो दूसरे मॉं की सेवा करते हैं वे कृतघ्न कहलाते हैं ....पता नहीं ...सत्य लिखने की मुझे क्या सजा मिलेगी... पर यह तो स्पष्ट हैं कि कलियुगीन बाबाओं को सजा देने वाले अभी देश में शायद ही पैदा हुए होगे ....!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. इनके खाने के दाँत और होते हैँ और दिखाने के और

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  2. आपकी बेबाकी पसंद आई।
    समाज के इन तथाकथित पैरोकारों को पर्दे के पीछे के ऐसे खेल खेलते देखना सामान्य बात है।

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  3. भारतीयों को कूपमंडूकता छोड़कर अब आक्रामक हो जाना चाहिये। यदि अंग्रेज पूरी दुनिया पर शासन कर सकते हैं तो भारतीय क्यों नहीं? और इसके लिये अपना घर-बार छोड़कर दूसरे देशों में पैर फैलाना ही सम्यक मार्ग है।

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  4. अनुवाद सिंह जी ! आपने टिप्पनी पर यह तो ठीक ही लिखा हैं कि मै कूपमण्ठुकों की तरह सोचता हूं , आपने shaayad मेरे पोस्ट को पूरा नहीं पढा हैं ,कृपया पोस्ट को पूरा पढते हुए दुबारा टिप्पनी करें ,मेरा गॉंव ,मेरा ‘ाहर
    मेरे देश के बारे में सोचने वाला व्यक्ति कभी कुपमण्डुक कैसे हो सकते हैं ? र्विश्व बन्धुत्व का नारा लगाकर यदि स्वदेश चिन्ता और स्वदेश सेवा का रूप ही बदल जाता है ,देश को कंगाली में देखकर भी यदि विदेशी सेवा में व्यस्त हो जाए ,चंद डालरों के लोभ में देश को असहाय छोडकर विदेश भाग जाए और विदेश में रहकर स्वदेशी होने का नाटक किया जाए ............ यह तो सब हम हम देख चूके हैं ,इसका परिणाम भी लोगों के सामने हैं ।

    अंग्रेजों ने दुनियॉं में राज किया हैं ....क्या आपको अंग्रेजों की गुलामी पसन्द है ? यदि नहीं तो भारतीयों की गुलामी भी दूसरे देश को कैसे पसन्द हो सकती हैं ? आज आश्ट्ेलिया में क्या कुछ हो रहा है,अमेरिका से ,इंग्डैण्ड और देशों से जिस तरह अपमानित हो कर भारतीय अब देश में लौट रहे हैं ,उसे देख-सुन कर आपको कैसा लगता हैं ................?

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  5. अभी आपकी बातो को कोई तबज्जो नहीं देगा क्योकि रामदेव का जादू छाया हुआ है . २०१४ का चुनाव जब बाबा पार्टी बना कर लडेंगे जे गुरु देव की तरह . उसके बाद ही बाबा की असलियत सामने आ पायेगी तब तक तो बाबा ईश्वर के पैगम्बर है ही

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  6. जिस तरह कम्पनियों के देश से बाहर कारपोरेट ऑफ़िस होते हैं शायद यह वैसा ही होगा… हरिद्वार में भी उनके आश्रम में भव्यता की कोई कमी नहीं है…। लेकिन सारे बाबाओं के विरोध में होने के बावजूद मैं रामदेव बाबा के समर्थन में हूं क्योंकि बाकी के बाबा अकर्मण्यता सिखाते हैं और धन-वैभव को हाथ का मैल बताते हुए ऊंची-ऊंची लफ़्फ़ाजी हांकते हैं… जबकि बाबा रामदेव ने कम से कम एक बहुत बड़ी जागरूकता तो पैदा की है। आज रामदेव जी की वजह से कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आउटलेट घाटे में चल रहे हैं…। आपका विरोध बाबा रामदेव से है या उनके इस शिष्य से? यदि इस शिष्य से है, तो यह कहना पड़ेगा कि यदि इसकी जगह कोई और होता तो वह भी यही करता… लेकिन इस वजह से बाबा का समाज को दिया गया योगदान कम नहीं हो जाता।

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  7. सुरेश जी से सहमत
    बाबा की आलोचना ठीक नहीं , रामदेव राष्ट्र के स्वाभिमान को समर्पित लोगों को एक मंच दे रहें हैं | अब वक़्त आ गया है की हम भी साम्राज्यवादी बन जाएँ , नहीं तो समाप्त हो जायेंगे | यहाँ कम्युनिस्ट बनकर सोचने से काम नहीं चलेगा , बाबा को कोसने से बेहतर होगा कि घरेलू मोर्चे पर हम खुद लड़ें बाकी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बाबा लड़ ही लेंगे |

    || " सत्यमेव जयते " ||

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  8. भारत के कम्युनिस्ट सदा से ही रूस-चीन के इशारे पर (और उनकी आइडियालोजी के प्रसार के लिये) भारतीय हितों की बलि देते आये हैं। आज भी वे चीन का प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन करते रहते हैं। नेताजी जब भारत को आजाद कराने के लिये हिटलर और जापान के नेताओं से विचार-विमर्श कर रहे थे तब भी वामपंथियों ने अंग्रेजों के हित में उन्हें तरह-तरह की गालियाँ दीं थीं।

    यह अब छिपा नही है कि कम्प्युनिस्ट बहुत दिनों से बाबा रामदेव के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। उन्हें भारतीय संस्कृति का नाम लेने वाला फूटी आंखों नहीं सुहाता। कम्प्युनिस्ट सदा चाहते हैं कि देश में ह।दताल हो, उत्पादन ठप्प हो, सरकारी सम्पत्ति का तो।द-फो।द किया जाय, अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो - तभी तो चीन भारत पर मनमानी कर सकेगा। यही उनका परम लक्ष्य है।

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