सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

मैं घोर राष्ट्रवादी हूँ विश्वबन्धुत्व का दुश्मन --कुपमन्दुक---

मैं एक घोर राष्ट्रवादी हूँ .... मुझे दुनियॉ के हर चीज वैसा नहीं दिखता जैसा वह हैं ,दिखने की.. और होने के बीच में एक सरल रेखा न चाहते हुए भी बार -बार खींचता चला जाता हूँ , आज तो मुझे मेरे देश के सिवाय कुछ दिखता ही नहीं है।

मैं अप्रवासी भारतीयों को मिलने वाली सम्मान भी कोई अच्छी नजर से नहीं देख पाता .........पिछले समय दुनियॉं में तहलका मचाने वाले भारतीय मूल के अमर्त सेन जी को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ, अर्थशास्त्र के महान विद्वान .... कल्याण कारी अर्थशास्त्र के चिन्तक ....जरा सोचने की बात हैं कि इस प्रकार के पुरस्कार से मेरे देश को क्या मिला ? यही न कि सेन जी कभी भारतीय थे ..... और भारत में उनके जैसे विद्वानों का सम्मान न मिलने के कारण देश छोडकर विदेश चले गए...?

भु पू राष्ट्रपति कलाम जी को भी अनेक बार विदेश जाने और डालरों का लोभ दिया गया, विशेष कर अमेरिका से ............ परन्तु कलाम जी ने देश प्रेम और कर्तव्य बोध से प्रेरीत होकर देश सेवा को सर्वोपरि मानते हुए डालरों का लोभ त्याग कर ,भारत वर्ष में ही रहना पसन्द किया ,

श्री स्वराज पाल को इंग्लैण्ड में लार्ड पाल कहते हैं ..... उससे मुझे और मेरे देश को क्या फायदा ...? आप बड़े तोप खान है ,आरबों से खेलते हैं ....बड़े -बड़े महलों में रात गुजारते हैं, और वहॉं से देश के लिए घडियाली ऑंसू बहाते हैं ........... यह हैं प्रवासी भारतीय ।

जरा लक्ष्मी मित्तल जी पर नजर डालना आवश्यक हैं ॥ एक पत्रकार ने पुछा कि- वीलगेट ने अपना सारा सम्पत्ति गरीब दु:खियों में बॉंटकर समाज सेवा में व्यास्त हो गये हैं ,क्या आप भी वैसा करना चाहते हैं ? जवाब मिला कि अभी तो मुझे बहुत आगे बढना हैं ...बहुत कमाना है ....आगे सुनिए ......जब पूछा गया कि आप भारत में रहना पसन्द करेंगे ? उन्होंने जबाव दिया कि भारत के लोग अमीर लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं अत: यहॉं आना पसन्द नहीं ।

हम हैं कि ऐसे लोगों को देख कर अपने आप को गर्व महशुस करते हैं ......... धन पिशाचों पर गर्व करना छोडकर हमें अपने आप को इमानदारी पूर्वक भारतीयता के आधार पर देश को स्थापित करना होगा ,तभी हम जीने और गर्व करने लायक बन सकेंगे ............

मुझे अपने आप को राष्ट्रवादी कहने में कोई झिझक नहीं है ............ लोग विश्ववादी कहते हुए गर्व करते हैं और आज मेरे जैसे लोग आपने आप को राष्ट्रवादी कह कर अधिकांश लोगों को आलोचना करने की खुली छुट देने को तैयार हैं ........... कहिए मैं कुपमण्डुक हूँ ........ संकुचित विचार का हूँ ..... विश्वबन्धुत्व का दुश्मन हूँ ..............गाली भी दिजीए ..................... पर एक बात याद रखिए कि- इस देश को यदि आगे ले जाना हैं तो घोर राष्ट्रवाद के रास्ते से ही जाना होगा ........

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