सोमवार, 11 मई 2009

१०० प्रतिशत वोटिंग टाय टाय फिश

लोकतंत्र बनाम सामन्तशाही का खेल देश में लगातार विस्तार पा रहा हैं ,भारत वर्ष में गिने -चुने घराने ही धन और बाहुवल से देश में शोषण का जो कुटिल चक्र आजादी के नाम से जारी रखा हैं इस तरह की तो अंग्रेजों ने भी शोषण नहीं किया ,वे यहॉं से कम ही रकम बाहर ले जाते थे और ढॉंचागत विकास के लिए बहुत धन खर्च भी करते थे, आज ऐसे अनेक पुल ,सडक ,कार्यालय, मन्दिर, मस्जिद, गिर्जाघर मिल जाएगा जो आज भी एक मिशाल बन कर आजाद देश को चिडाता हैं, वर्तमान में तो सड़क एक वर्ष नहीं होता कि अगले वर्ष उसी सड़क को खोजना पडता हैं ,कार्यालय निर्माण किया जाता हैं और रकम मिलजाते ही छत नीचे ,भले ही इस तरह की घटना से लोग जख्म हो जाय,मर जाय उससे सरकार ,मंत्री को कोई लेना देना नहीं हैं । अभी दिल्ली में चुनाव हुआ व्होट देने की प्रतिशत मात्र 52 ही रहा ,देश के राजधानी में सारे जतन करने के बाद भी लोग व्होट देने घर से नहीं निकले ऐसा क्यों ? जनता अब व्होट के खेल से सबक लेना शुरू कर चुका हैं जब जनता के भाग्य में दु:ख ही लिखा हैं चाहे किसी भी दल का राज हो पर जनता तो दो पाटों के बीच पिसता ही हैं एक शासन का पाट दूसरा व्यपारीयों का शोषण ,दोनों के बीच जनता सालों साल पिसता चला आ रहा हैं तब वे व्होट के इस खेल मेंक्यों शामिल हो ? पिछले समय मैंने 100 प्रतिशत व्होट के खिलाफ कुछ लिख दिया था, इसका नतिजा मुझे भुगतना पड़ा सैकडों एस.एम.एस में प्राय: यही लिखा था कि आप लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते ? जब 100प्रतिशत व्होट पड़ेगा तो सही लोग सामने आने से देश सुधर जाएगा क्या आप ऐसा नहीं चाहते हैं? मैं एक शब्द में उत्तर देने के अतिरिक्त कुछ नहीं कहना चाहता यह कि वर्तमान समय के लोकतंत्र पर मुझे कतई विश्वास नहीं हैं और रही बात 100 प्रतिशत व्होट की बात वह भी सम्भव नहीं हैं । यदि सम्भव भी हो तब तो देश केगद्दारों का संसद में भारी बहुमत से पहुँचने का रास्ता साफ हो जाएगा । आज तो हम कह सकते हैं कि अल्प मत में जितने वाले बहुमत पर राज कैसे कर सकते हैं ? आगे चल कर हो सकता हैं कि यही मुद्दा काम आ जाए और जनता जागरूक होकर अल्प मत वालों को शासन करने से रोक ले ,अत: मेरे अनुसार तो जब तक "इसमें से कोई नहीं"का विकल्प व्होटिंग मशिन पर न आ जाए तब तक व्होट देना ही नहीं चाहिए । स्वामी रामदेव बावा भी प्रयत्न करके देख लिया वे भी कितने लोगों को घर से व्होट के लिए निकाल पाए हैं ? कारण चाहे कुछ भी हो पर यह बात तो स्पस्ट हो चुका हैं कि जनता अब अन्य वैकल्पिक व्यावस्था की खोज में हैं ,गान्धी टोपी वालों के शासन में जो हालत जनता का हो रहा हैं जिसके चलते लोगों को 10 से 20 रूपए पर जीवन निर्वाह करना पड रहा है क्या आज नेताजी सुभाष और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के सपनों का भारत के लिए प्रयन्त करना अपराध हैं ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. दरअसल में जनता ये जान गयी है की सारे नेता एक जैसे है,इनके पास न कोई मुद्दा है न कोई कुछ करने का इरादा.......है तो केवल वादा जो जनता चाहती नहीं..क्यूंकि वो कभी पूरा होता नहीं..

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