रविवार, 7 जून 2009

पर्यावरण दिवस बनाम नौटंकी दिवस

पर्यावरण दिवस अर्थात पर्यावरण नौटंकी दिवस ,हर वर्ष 6 जून को दूनियॉं में मनाई जाती हैं । चूँकि दूनियॉं इस दिवस को मनाती हैं अत: हम भारतवासिओं को भी दूनियॉं की नकल करनी चाहिए अन्यथा हम विकास के दौर में पिछड जाएगें ,किसी जमाने में हमारे ऋषी मुनिओं ने पिपल ,बट बृक्ष ,तुलसी ,और अनेक प्रकार के पेड़ पौधों की पूजा करने का नियम बना कर समाज में लागू किए थे ,ओर जिसे पूजा जाता हैं उसे काटा नहीं जाता ,उसे जतन किया जाता हैं ,इज्ज्त के साथ व्यावहार किया जाता हैं , आधुनिक भारतीय वैज्ञानिक मेघनाथ साहा ने तो दूनियॉं को प्रमाण के साथ बता दिया कि पेड़ पौधों में जीवन होता हैं ,पेड़ हंस सकते हैं ,पेड दू:खी होकर रोते हैं । चूकि ये सब बताने वाले देशी लोग हैं और देशी लोगों का अर्थ हैं गंवार, इसलिए देश के मुनीऋषीओं का बात मानना हम तौहिन समझते हैं। अमेरिका में औद्योगिक क्रांति शुरू होते ही जंगलों का विनाश शुरू हो गया था ,पर्यवरण को ताक में रख कर जिस विकास की रूपरेखा अमेरिका ने दुनियॉ के सामने रखा, वह इतना खतरनाक और जानलेवा होगा, उस समय तात्कालिक रूप से किसी ने सोचा भी नहीं होगा , परन्तु कुछ ही समय पश्चात अमेरिका के सुलझे हुए पर्यावरणविदों ने विकास के नाम पर विनाश के विरोध में लाम बन्ध होने लगे थे, विरोध के स्वर दुनियॉं में भी सुनने लग गया ,अब अमेरिका के पर्यावरण विरोधी लोगों ने बड़े -बड़े ओद्योगों के लिए जानबुझ कर जंगलो में आग लगा कर जमीन हथियाने के हथकण्डे अपनाने लगे हैं ,हजारों एकड़ वन क्षेत्रों को मात्र जानलेवा उद्योग लगाने के नाम से आग लगा दिया जाता था ।जब ग्लोबल वार्मिंग की समस्या शुरू हो गई और ओजन परत पर बड़े -बड़े छिद्र होने लगे तो कुछ लोगों ने जनता के विरोध को दबाने के लिए बृक्षारोपण ,पर्यारण दिवस ,ओजन सुरक्षा दिवस और आगे अनेक इस तरह की दिवस मनाने का नाटक जानबुझ कर किया जाता रहेगा , बाबा आम्टे ने पर्यावरण सुरक्षा के लिए चिपको आन्दोलन शुरू किया था परन्तु ,क्या हम आज भी उनके आवाज को सुन सकते हैं ? आए दिन देश के किसी न किसी स्थान पर मात्र इसलिए गोलीयॉं चलाई जाती हैं कि उद्योगों के लिए जनता अपनी जमीन और जंगल छोड़ने को राजी नहीं होते और सरकार उद्योगपतियों के साथ सॉंठ-गाँठ करके साधारण जनता को गोलियों से छलनी करके उनको अपनी रोजी -रोटियों से ,संस्कृति से बेदखल करके उद्योगपतियों को जमीन सौप देती हैं । देश की जनता के लाश पर विकास की बुनियाद खड़ी की जाती हैं और फिर शुरू होता हैं पर्यावरण के साथ बलात्कार को दौर ,लाखों पेड पोधौ को नष्ट करने का नंगा नाच,यही पर्यावरण के दुश्मन आगे चल कर लाखों बृक्ष लगाने का नाटक करते हैं, और एक साल बाद लाखों बृक्षों में सैकडों भी नजर नहीं आते । बृक्ष लगाने के इस गोरख धंधे में सरकार की भी बराबर में भागीदारी रहती हैं ,करोड़ों रूपये की बरबादी का नंगा त्यौहार हर वर्ष चलता हैं, केवल भारत में ही नहीं दुनियॉ के कोने-कोने में यही खेल जारी हैं । लेकिन अधिक दिनों तक यह खेल नहीं चल सकती , दुनियॉ के सारे ग्लेशियार पिधलने लगी हैं और बारह मासी नदियॉं सुखने के कगार पर खड़ी हैं ,वायू प्रदुषण की बात यदि एक ओर रख दे क्योंकि धन पिशाच महलों में सड़-सड़ कर भी जिन्दा रहना पसन्द करते हैं, लेकिन जब पानी ही दूनियॉं से खत्म हो रही हैं तो जिन्दा रहना भी एक पहेली बन जाएगी ,आज इसीलिए अमेरिका के कंपनी हमारी जल स्रोतों पर गिद्ध नजर रखे हुए है ,विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ जो खिलवाड करते हुए विनाश का शडयन्त्र रचने वालों को भी यही रहना हैं यदि दुनियॉ की प्राणी जगत ही नष्ट हो जाएगी तो पर्यावरण के दुश्मन किस दुनियॉं मे जीवित रहेगे ?

3 टिप्‍पणियां:

  1. आप अपने घर का कचरा कहाँ फेंकते हैं?

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  2. aapne kaha to sahi hai ,....magar mujhe ek baat bataaiye is tarah se lagbhag har diwas ek nautankee hee hotee hai...aur kamobesh ismein dikhaawaa hee jyaadaa hota hai...magar to kya chhod dein ..ye sab are hujoor isee bahaane kuchh to yaad dilayaaa jaa saktaa hai logon ko...aur fir jarooree to nahin ki sab kuchh dikhaawaa maatra ho ...auron kaa to pata nahin main khud apne jeevan mein 100 se adhik ped laga chukaa hoon...apne gaanv mein...magar yahaan shahar mein kiraaye ke makaan mein ek paudhaa tak nahin laga paataa..aapkee bhaavnaa kaa samman kartaa hoon..magar sach ye bhee nahin hai poora

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