शनिवार, 13 जून 2009

जब मैंने स्वर्ग लोक देखा--सत्य घटना

मैंने स्वर्ग देखने के लिए होश सम्भालते ही तपस्या शुरू कर दिया था ,एक दिन एक गुरू मिल गये , उसने मुझे तपस्या करने की विधी ,एवं अन्य आवश्यक ज्ञान भी बताया ,मैं रोमांचित हो उठा ,सोचा अब तो मुझे यथा शीघ्र स्वर्ग लोक जाना ही हैं । मैं एक निश्चित तिथी को नियमानुसार तपस्या करने लगा , दिन में किसी निर्जन स्थान में और रात को सब कोई सो जाने के पश्चात घर में अपने ही कमरे में जागते हुए तप करना ,आज की भाषा में कठोर तप करना शुरू कर दिया था ,तपोबल से भगवान तुष्ट होते है ,और साक्षात दर्शन देकर आर्शिवाद भी देते हैं । अब एक रात को मैंने घर में ही तप करने लगा था ,बहुत रात को एका -एक सुमधुर अवाज में कोई कहा रहा था कि-- आज मै तम्हें स्वर्ग ले जाउंगा तुम ऑंखे मत खोलना ,मै मंत्र मुग्ध सा उस आवाज का पालन कर रहा था और ऑंखें बंद कर लिया , आवाज आया कि अब तुम स्वर्ग में पहुँच चुके हो अतएव ऑंखें खोलो ! मैंने आखें खोल दिया और अवाक होकर जो दृश्य मैं देखने लगा उसका व्याख्या करना असम्भव हैं फिर भी कुछ तो लिखना ही पड़ेगा इसिलिए जो भी थोड़ा बहुत याद हैं उसे लिखने का प्रयत्न कर रहा हूँ । एक भद्र पुरूष मुझे साथ आने को कहा--- मैं साथ हो लिया ,उन्होंने कहा कि- देखो यह स्वर्ग लोक हैं यहॉं के देवतागण नर लोक जैसे भोजन नहीं करते ,इन्हें तो भूख ही नहीं लगती , फिर भी कितने तन्दुरस्त हैं, देखा ....सच मुच तन्दूरस्त दिखा ,यह देखो इन्द्रलोक ,इन्द्र देवता सिंहासन पर विराज मान दिखा-- मैंने दूर से प्रणाम किया ,वे मुस्करा दिए-- अब तो मुझे अच्छा लगने लगा । मुझे वरून लोक भी दिखाया गया ,वरूण भगवान भी मुस्कराएं ,मैने भी मुस्कराया । अब तो मुस्कराने का ही समय आ गया, चेहरा मे हमेशा मुस्कराहट ...वाह ! कितना आनन्द आ रहा था, मन प्रफुल्लित हो उठा ,अनेक स्थानों का भ्रमन करने के पश्चात, एक स्थान पर जाने का आदेश हुआ, जहॉं दूर से ही मधुर संगीत और घूंघरू की ध्वनी सुनाई पड़ने लगी थी, जैसे -जैसे पास जाने लगा-- आवाज भी स्पस्ट हो कर मदहोश करने लगा था ,मैं कहीं खो गया और अपने आप को भूल सा गया था ,कुछ ही पल पश्चात एक स्थान में पहूंचा ही था कि साथ में उस भद्र पुरुष ने मुझे कहने लगे कि इसे अप्सरा पूरी कहलाता हैं ,देखो जो नाच रही हैं...मेनका है , आगे देखो उर्वशी...देखो आगे तिलोत्तमा ,मैं अप्सरापुरी में जा कर बेहोश सा हो गया ,अचानक एक कठोर आवाज कान में आने से मै घबरा गया ,ऑंखे खोल दिया ....सामने पिताजी खड़े थे और डाटने लगे कि दिन के 9 बजने को हैं और नलायक अभी उठने का नाम नहीं ले रहा हैं । मैं अब क्या जबाव देता जल्दी बिस्तर छोड़ दिया और उर्वशी ...मेनका वाली पहेली बुझने का प्रयत्न करते वर्षों बित जाने के बाद भी पहेली वैसी की वैसी बेबुझ पड़ी हुई हैं, लेकिन यह तो सत्य हैं कि मैंने स्वर्ग तो जरूर देख लिया है; एक बार स्वर्ग देखने के पश्चात मन में इच्छा है कि एक बार नरक दर्शन हो जाए यदि कोई नरक का दर्शन करवा देवे तो मेहरवानी होगी ,अभी अभी एक समाचार मुझे मिल कि मुम्बई नगरी के पास एक स्लम हैं जहॉं एक विदेशी ने फिल्म बनाया और उस फिल्म को अनेक ऑस्कर अवार्ड प्राप्त हो चुका हैं वही पर नरक नगरी बसा हुआ हैं । मुझे पता तो मिल गया अब जाने के लिए समय का इन्तेजार करोड़ों का नरक नगरी देखना भी कोई खेल नहीं हैं भाई !

5 टिप्‍पणियां:

translator