सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

झोपडिओं के कुत्ते स्लमडॉग, आस्कर अवार्ड के टुकड़े खाओ

अंग्रेजों ने भारतीयों को काले कुत्ते कह कर सम्बोधित करते थे ,हम चुप-चाप सहते रहे ,क्योंकि हम गुलाम थे ,हम मजबुर थे ,स्वाभिमान टुट चुका था, और जब अन्याय सहते सहते तंग आ चुके थे तो विरोध का स्वर सुनाई देने लगे ,आवाज आया भारतीय कुत्ते नहीं पर दुनियॉं को राह दिखाने वाले जगत गुरू हैं ,स्वाभिमान जागृत हुआ ,अंग्रेजों को देश छोडना पडा ,आज हम आजाद हैं ,देश के भाग्यविधाता भारतवासी दुनियॉं में किसी भी रूप से कमजोर नहीं हैं ,लेकिन हम एक बार फिर अपने आप को भुलने लगे हैं ,कुत्तों को सोने की जेजीरों से बाँध कर यदि उपहार स्वरूप खुब अच्छा खाना खिलाया जाय तो स्वामी भक्ति और अधिक बढ जाती हैं। यदि झोपडियों मे रहने वाले कुत्ते को ऑक्सर से नवाजा जाए वह भी ब्रिटेन द्वारा निर्मित फिल्म के लिए ,हम उन्हें बधाई दे कि आपने झोपडियों में रहने वाले मुम्बई के कुत्तों को जो सम्मान दिया हैं उस लिए राष्ट्र कृतज्ञ हैं ! आज भी अंग्रेज हमें हरामखोर कहें ,कुत्तें कहें ओर ईनाम दिला दे ,तो दुम हिलाते हुए उसका हम गुनगाण करने लगते हैं ,देश के पत्रकार ,मिडिया भी चुप ,ऐसे अवार्ड लेने से मर जाना अच्छा है। कला चाहे कितने ही श्रेष्ठ हो, यदि कला का अपमान हो रहा हो और उससे राष्ट्रीय स्वभिमान आहत हो रहा हैं तो कोई भी अवार्ड हमारे नजर मे तुच्छ होना चाहिए ,तुरन्त वापस कर देना चाहिए इस तरह की अवार्ड ,एक -एक करके 8 ऑक्सर मिलना जैसे कुत्तों के सामने बारी बारी से 8 रोटी के टुकडे डालने के समान है ,ऐसी टेकडों में पलने वाले लोग यदि इस देश में पैदा हो गए हैं तो आगे इस देश का मालिक कौन होगा इस चिन्ता से मैं बहुत दु:खी हूँ, आक्रोशित हूँ ,आहत हूँ । अंग्रेज दुनियॉ के सामने यह साबित करने के लिए सफल हो गए कि इण्डियन आज भी स्लम डॉग यानि झोपडियों के कुत्ते के सिवाय कुछ भी नहीं हैं । यह फिल्म भी सोची समझी षडयंत्र के तहत बनाई गई हैं ,भारत को नीचा दिखाने के लिए एक साजिश के अलावा यह कुछ भी नहीं हैं क्या इस फिल्म का नाम झोपडी का शेर नहीं रखा जा सकता था ? स्लम लायन भी तो अच्छा नाम हो सकता था पर स्लम डॉग !!!!!!!!!

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

मेरा देश भारतवर्ष, हिंदूस्थान नहीं

काव्य ,महाकाव्य को छोडकर एक भी धार्मिक ग्रन्थ नहीं हैं जिसमें जाति प्रथा का उल्लेख है ,सच कहूँ तो भारत को लोगों ने कब हिन्दुस्थान बना दिया पता ही नहीं लगा और आज तक इसे हिन्दुस्थान बनाए रखने का जीतोड मेहनत किया जा रहा हैं । भारतवर्ष का नाम शकुन्तला -दुश्यन्त के पुत्र से प्रचलित हुआ ,बहादुर और न्यायप्रिय भरत में जो गुण हमें दिखता हैं हिन्दुस्थान शव्द में उस गुण का सर्वथा अभाव है। इतिहास में उल्लेख हैं कि सप्त सिन्धु पार करके आर्य हमारे देश में आए थे ,सिन्धु नदी आज पाकिस्थान में है देश के नलायक नेताओं ने अंग्रेजों के साथ मिलकर भारत माता को टुकडों में वॉट दिया ,एक टुकडे का नाम पाकिस्थान और दूसरे का नाम हिन्दुस्थान रखकर इतिहास को ही तोड मरोड कर लोगों के सामने रखने का दु:स्साहस किया हैं ,दुर्भाग्य से गान्धीजी और नहरू भी इस समय साक्षी स्वरूप जीवित थे , कुल मिलाकर हिन्दुस्थान ,पाकिस्थान भारतवर्ष ही हैं, आर्यों का उच्चारण स के स्थान पर ह होता था, आज भी बहुत लोग र के स्थान पर ल बोलते हैं ,इसितरह की उच्चारण में गलती के कारण सिन्धु को आर्यों ने हिन्दु कहना शुरू कर दिया था और यहाँ रहने वालों को आगे चल कर हिन्दुस्थानी कहने लगे ,हिन्दु शब्द को आर्यों ने कभी जाति वाचक के रूप में नहीं लिया , स्थान विशेष के लिए इस शब्द का उपयोग किया जाता रहा है । धार्मिक और कर्मकाण्ड के समय हिन्दुस्थान का उल्लेख कहीं नहीं मिलता हैं ,आर्य कभी भारतवर्ष को हिन्दुस्थान बनाने का प्रयत्न नहीं किया ,अत: हमें हिन्दुस्थानी या हिन्दु न कह कर भारतवासी और भारत कहना ज्यादा उपयुक्त होगा ।
हमने रामायण को रामायना ,कृष्ण को कृष्णा ,महाभारत को महाभारता ,योग को योगा बना कर चुप चाप तमाशा देख रहे हैं ,आगे जाकर मौलिक नाम को सिद्ध करना भी हमारे लिए असंभव सा हो जायेगा ,शिक्षकों को जागरूक रहना आवश्यक हैं, जिन्होंने भारत को हिन्दुस्थान बनाने के लिए षडयंत्र रचा ,उन्होंने ही हिन्दु को जातियों में बाटने का साजिश किया हैं ,प्राचीन भारत में हमें कहीं इसाई नजर नहीं आते थे ,और न ही मुसलमान और पारसीं मिलता था ,प्राचीन धर्म ग्रन्थें में गीता सर्वमान्य मिलेगा ,रामायण एक महाकाव्य हैं इसे किसी भी तरह से धार्मिक ग्रन्थ नहीं कहा जा सकता हैं' जिस तरह से मुस्लिम यह मान कर चलते हैं कि कुरान का वाणी आकाश से उतरा हैं और वह ईश्वर का वाणी हैं ,उसी तरह गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने जो कुछ कहा वह देव वाणी हैं ,उसे किसी ने लिखा नहीं हैं परन्तु भगवान ने कहा हैं, इसलिए भारत में गीता ही ईश्वर वाणी हैं अन्य सभी काव्य अथवा महा-काव्य हैं । गीता में जो भी लिखा हैं वह मानव और प्राणीयों के लिए कल्याण कारी हैं इसलिए गीता का उपदेश को पालन करना ही धार्मिक कर्म हैं , भारत में रहने वाले सभी को इस धर्म का पालन करना आवश्यक हो सकता हैं , यह कानून से भी उपर हैं, कानून तो हमने बनाया हैं और गीता ईश्वर ने ,ईश्वर के नियम से उपर कोई भी नियम आमान्य योग्य हैं ,अब हमें देखना हैं कि यह वाणी क्या मात्र किसी सम्प्रदाय विशेष के लिए या कौम विशेष के लिए दिया गया हैं ? गीता के 700 श्लोकों में यह नही बताया कि यह वाणी हिन्दुओं के लिए हैं, कारण उस समय हिन्दु शब्द कोई जानते ही नहीं थे ,चूंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भारतवर्ष में हुआ था अत: भारत में रहने वालों को गीता आवश्यक रूप से मानना चाहिए ,यदि कोई गीता में दिए गए उपदेशों का पालन नहीं करता, तो वह अधार्मिक है। उसे भारत वासी कहने का हक नहीं हैं ,चूंकि भारतीय ग्रन्थ गीता है,औरइसमें ज्ञान का भण्डार के साथ ही साथ भगवान स्वयं कहते कि यदि कोई मेरे शरण में आता हैं तो मैं उसे मोक्ष देता हूँ ,मैं ही मोक्षदाता हूँ ,मैं ही उद्धारकर्ता हूँ अत: सब आडम्बरों को छोड मेरे पास आओ ,यदि भुत-प्रेतों का पूजा करोगे तो भुत -प्रेत जैसे हो जाओगे ,जड का चिन्तन करोगे तो जड हो जाओगे और मेरे पास आओगे तो मुझमे मिल जाओगे । श्री कृष्ण ने मुर्ति पूजा को जड कहा हैं अत: गीता मानने वालों को या भारतवासीयों को मुर्ति पूजा नहीं करना चाहिए । गीता में एक बात बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा गया हैं कि चार वर्णों का श्रृजन मेरे द्वारा किया गया हैं ,और यह वर्ण गुण एवं कर्म पर आधारित हैं ,इससे अधिक स्पस्ट बात और क्या हो सकता हैं ? गुण पर आधारित व्यवस्था को कुछ सिरफिरे लोगों ने, समाज विरोधी पागलों ने, जन्म पर आधारित जाति बना कर आज भी अपना उल्लु सीधा करता हैं ,जो जाति प्रथा को मान्यता देता हैं या मानता हैं वह भारत वासी कैसा हो सकता हैं? क्यों कि गीता को जो नहीं मानता वह पाखण्डी हैं । चुकि इस देश में मुस्लिम ,ईसाइ अनेक बाद मे आए हैं और अधिकांश अपना मूल धर्म को बदल दिया हैं ,देश के कानून मूल धर्म को बदलने का अधिकार कैसे दे सकती है ? जो सरकार जनता द्वारा बनाया हुआ हो ,वह सरकार ईश्वर प्रदत्त नियम को किस रूप में बदल सकता हैं ? और यह पाप कर्म अमान्य योग्य है ,इस देश के सभी लोग भारत वासी हैं चूँकि भारत का धार्मिक ग्रन्थ गीता हैं तो हर भारत वासी को गीता मानना जरूरी हैं, गीता के बाद कुछ भी माने, परन्तु भारतवासीयों को अपना मौलिकता कदापि नहीं छोडना चाहिए ,यह बात बताना आवश्यक है कि गीता मानने वाले हिन्दु नहीं वल्कि सभी भारत वासी कहलायेंगे ।
गीता के अनुसार जाति प्रथा मानना पाप कर्म हैं अत: भारत वासियों को उच- नीच पर आधारित जाति को मान्यता न देते हुए मानव धर्म पर आधारित समाज व्यवस्था बनाने मे तुरन्त आगे आना होगा , जाति प्रथा का विकृत रूप मुस्लिम सम्प्रदाय,ईसाइ आदी सभी में समा गया हैं अत: किसी भी सम्प्रदाय को जाति मानने का कोई अधिकार नहीं हैं ,सभी भारत वासियों को गीता पर आधारित समाज व्यवस्था बनाने के लिए आगे आना होगा ,संकुचित विचारधारा से परे हटकर अब देश बनाने के कार्य में जुट जाने का समय आ गया है यदि समय रहते लोग न चेते तो महाभारत का रास्ता भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदेशित रास्ता अपनाना ही पडेगा, इसलिए धृतराष्ट्र और दुर्योधन जैसे पापी ही फिर कटघरे में खडे नजर आयेंगे ,गीता का अधिकाधिक प्रचार करना युग धर्म हैं आज रामायण का अधिक बोलबाला हैं रामायण अधिकार छोड जंगल प्रवास पर जोर देती हैं ,गीता अधिकार के लिए लडने की बात करती हैं अत: भारत में अधिकार की लडाई हर युग होता आया हैं ,इस देश में चन्द दुर्योधनों ने सभी साधनों पर अपना अधिकार जमा बैठा है दुर्योधन बिना युद्ध के कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं इसलिए ऐसे लोग रामायण का अधिकाधिक प्रचार कर लोगो का ध्यान अधिकार से हटाने का कुटिल षडयंत्र रचा हैं, परन्तु श्रीकृष्ण के मामा विदुर भी हमेशा ऐसी परिस्थिति में मार्गदर्शक के रूप में सामने आते रहें हैं आज भी क्या यही सब होना बचा हैं ?

१०० प्रतिशत मतदान और रामदेव बाबा

सवाल 100 प्रतिशत मतदान का हैं ,अभी रामदेव बाबा ने भष्ट्राचार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया हैं ,अन्ना हजारे ने तो चुनाव सुधार और भाष्ट्रचारी नेताओं को वापस बुलाने की मांग को लेकर बहुत सशक्त आन्दोलन चलाया ,फिर भी कोई भी आन्दोलन आज सफल होता नहीं दिख रहा हैं ,परन्तु आंशिक सफलता मिलने की उम्मीद से लोग इस तरह की आन्दोलन से जुड जाते हैं ,समाज में कुछ चेतना जागृत होती हैं ,कुछ लोग आंशिक सफलता से खुश भी हो जाते हैं,एक बार मैंने गायत्री परिवार के कार्यकलापों पर ध्यान केंद्रित किया था ,श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखे गये कुछ साहित्य का अध्ययन ही नहीं मनन भी किया ,उन्होंने एक छोटी पुस्तिका महाकाल का पुकार सुनो में सप्त क्रान्ति का सुन्दर विवरण प्रस्तुत करने के साथ -साथ यह भी लिखा कि युग सन्धी बेला में संघर्षात्मक काल से हम गुजर रहे हैं इस संघर्ष में यदि हमारे परिजन भय से आगे नहीं आते हैं तो वे मेरे परिजन कदापि नहीं हो सकते ,इसे मुर्त रूप देने के लिए युग निर्माणयोजना ,मथुरा के लीलापत जी से मेरी कई बार फोन पर बातचित हुई ,मैंने जब संघर्ष के बारे में पुछना शुरू किया तो वे मायुस हो कर बार-बार कहते थे कि आज हमारे परिजन संघर्ष के नाम से कतराते हैं,द्वीप प्रज्वलित कर यज्ञ में अधिक ध्यान दिया जा रहा है ,रचनात्मक कार्य में भी कम रूचि हैं पर यज्ञ,हवन ,आदी में सभी मस्त है ,इतनी स्पष्टवादिता मैंने बहुत कम देखा सुना हैं ,लीलापत जी आखरी समय तक संघर्ष के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते रहे एक बार तो मुझसे फोन में यह भी कहने लगे कि मै बुढापे में अन्याय के खिलाफ सडक की लडाई तक करने निकल जाता हूँ ,पर परिजन बहुत कम आते है,प्रश्न यह हैं कि इस तरह की स्थिति क्यों तैयार हो जाता हैं ?
नेताजी सुभाष जब तक संघर्ष के लिए बात नहीं करते थे तब तक कांग्रेस के लिए बहुत अच्छे थे ,जबसे अंग्रेजों के खिलाफ लडने की बातें करने लगे तब से बहुत खराब होते गए ,नौबत यहॉं तक आ गया कि कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें दल से निष्काषित कर दिए , दोबार कांग्रेस के अध्यक्ष होने के बाद भी संघर्ष के नाम से नेताजी उस समय के कांग्रेसियों के नजर मे खटकने लगे थें । सबकुछ पाने की चाहत तो हैं पर कुछ खोने की किंमत पर नहीं ,बीना संघर्ष के सबकुछ पाने का जो मजा उस समय के नेताओं ने प्राप्त किया था,आज तक उसी रास्ते में चलकर संघर्ष के रास्ते को बदनाम करने का षडयंत्र जारी हैं ,एक कहावत भी बन गया कि नेताजी,भगत बहुत अच्छे,पर मेरे घर में पैदा न होकर पडौसी के घर पैदा हो । क्या सम्पूर्ण क्रान्ति के पुरोधा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन के अन्तिम पडाव को हमने नहीं देखा ? अभी 1974 की तो बात हैं ,सभी विरोधी दलों को एकसूत्र में बाधकर जनता पार्टी बना देने की ताकत लोकनायक के अलावा और किसे प्राप्त था ?लालुप्रसाद ,मुलायमसिंह, राजनारायण आदी उसी सम्पूर्ण क्रान्ति का देन था ,स्वयं प्रधा मंत्री बन सकते थे, परन्तु देश के लिए सबकुछ त्याग करने वालों को सत्ता सुख तुच्छ लगता हैं,उन्होंनें मोरारजीभाई देसाई को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था जो ,सर्वसम्मति से पारित भी हुआ ।
एक बात तो स्पष्ट हो चुका हैं कि देश में स्वार्थी लोगों का एक जमात तैयार हो चुका है,ऐसे लोग पाना तो सब कुछ चाहते हैं पर देने के नाम से बहुत पीछे ,क्या ऐसे लोगों को मतदान करने का अधिकार देना उचित है ? मतदान तो देश प्रेमीयों को देने का अधिकार हैं और देश प्रेमी कोई भी हो सकता है;
एक खोज इस पर होना चाहिए ,बेईमान,भ्रष्ट्र ,चोर ,लुटेरे ,हत्यारों के मतदान से क्या देश को सही दिशा दिया जा सकता ?100 प्रतिशत मतदान करके भी क्या लाभ होगा ,जब तक लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध न हो ,रहने के लिए निवास नहो ,समुचित चिकित्सा की सुविधा न हो ,सुशिक्षा की व्यवस्था न हो ? एक भिखारी का मतदानसे देश का क्या भला हो सकता है ?एक शराबी ,एक नशेडी से देश के लिए क्या उम्मीद किया जा सकता हैं ? मतदान का जिसे अर्थ मालूम हो, जो मत को बेचता न हो , लोभ के कारण,भय के कारण ,मत का दूरपयोग न करता हो , जागरूक हो ऐसे चिन्तनशील
मतदाताओं द्वारा जिसे जिता कर प्रजातंत्र के प्रतितिधि के रूप में देश को प्रदान करेगा उससे देश तरक्की कर सकता हैं ,विकास कार्य में यही लोग निस्वार्थ भाव से सहयोगी बनेगा,उपयुक्त चुनाव ही प्रजातंत्र की सफलता का कुंजी हैं । अत: 100 प्रतिशत या 30 प्रतिशत कोई मायने नहीं रखता ,100 गिदड से एक शेर भला , आज तो जब तक जिम्मदार मतदाता देश में तैयार न हो जाए तब तक मतदान करने का अधिकार भी सिमीत लोगों को प्रदान करने का प्रावधान करना चाहिए,इस तरह की व्यवस्था को हम सीमित प्रजातंत्र कह सकते हैं । आज मैं बहुत ही चिन्तन मनन करके एक अच्छी उम्मीदवार को मत देता हूँ और उसी समय एक शराबी भी आकर नलायक को मतदान करता हैं ,ऐसी स्थिति में मेरा चिन्तन मनन करने का क्या अर्थ है ?मेरा मतदान का कोई अर्थ रह जाता हैं क्या ?मैं तब क्यों जाउ मतदान करने ?

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

पत्नी को जिन्दा जलाने का प्रथा और राजा राम मोहन रॉय

विधवा विवाह और राजा राम मोहन राय के एक सच्ची कहानी पढने के पश्चात उस कहानी को विश्वास करना असम्भव सा लगता हैं ,हमारे देश में अत्याचार के अनेक मिशाल देखने -सुनने को आज भी मिल जाएगा, नारी अत्याचार के बारे में सुनने से भी रोंगटे खडी हो जाती है। देश के कुछ भागों में डाईन ,टोहनी ,का आरोप लगाकर खुलेआम महिलाओं को डंडे से पिट-पिट कर मारडाला जाता हैं ,इस मारने के खेल को सही ठहराने के लिए तमाम दलीले भी दी जाती हैं ,लेकिन सति प्रथा का अन्त जिस तरह किया गया हैं वह अपने आप में एक मिशाल हैं । पति के मर जाने पर पत्नी को भी जीवित चिताग्नी में जला दिया जाता था ,बेमेल विवाह के पश्चात 80 साल के बुढे के साथ 12-13 साल की पत्नी को जीवित जला देना कौन सी धार्मिक कार्य था ,और जिन्होंने भी जिस परिस्थिति में भी इसे धार्मिक रूप दे दिया था ,वह अक्षम्य अपराधी हैं ,पापिश्ठ हैं ।
राजा राममोहन राय को भाभी बहुत प्यार करते थे ,हर छोटी -छोटी जरूरतों की पूर्ति का खयाल रखना उनके दिन चर्या का अंग था ,राजा राम मोहन राय भाभी के व्यवहार से बहुत प्रभावित थे ,किसी कार्य से राजा राम मोहन रॉय को इंग्लैण्ड जाना आवश्यक होने से भाभी ने विदेश जाने की सारी व्यवस्था अपने हाथ में ले ली थी ,निश्चित दिन को बोझिल दिल से राजा राम मोहन राय को विदा देने के कुछ दिनों के पश्चात बडे भाई का अचानक मृत्यु हो जाता हैं ,भाभी सति नहीं होना चाहती थी ,परन्तु उस समय के धर्म के ठेकेदारों ने भाभी को जिन्दा जलाने की पूरी तैयारी कर ली थी ,इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ भाभी हमेशा राजा राम मोहन राय को पूर्व से कहा करते थे ,परन्तु जब घर में इस तरह की परिस्थिति निर्मित हो गई तब वे विदेश में थे ,गॉव के लोगों ने नगाडें की आवाज में भाभी की चित्कार ,आर्तनाद ,को दबा दिया , जोर -जोर से नगाडे बजा कर घर से खिंचते हुए भाभी को चिता में बाध कर आग लगा दिया गया ,इस कृत से पूर्व, देवर के लिए एक पत्र भाभी ने लिखकर उनके कमरे में छोड दी थी ,असहाय अबला सी भाभी का आज कोई भी नहीं था , पति के देहान्त के साथ-साथ जीवित भाभी के अपने भी सब पराए हो गए थे ,चिता की आग जैसे -जैसे बढती जाती ,आर्तनाद भी बढते -बढते धीमी पड गई थी ,लोगों ने दूसरे दिन अस्थी के लिए चिता जला कर घर चले गए,दूसरे दिन जब दोनों के अस्थी खोजा गया तो एक अस्थी न मिलने से लोगों में चर्चा का विषय बन कर बात चारों ओर फैल जाने से फिर खोज बीन शुरू हो गया ,जहॉं चिता जलाया गया था ,उसके एक ओर कुछ झाडी थी अचानक लोगों का नजर उस झाडी में जाने के कारण उसमें खोजने पर अधजली भाभी जीवित अवस्था में लोगों को मिल गया ,यदि दवाई आदी से सेवा किया जाता तो भाभी जीवित रह सकती थी, हुआ यह कि किसी भी तरह जब चिता में बन्धन जल गया तो जीवित रहने की अति ईच्छा के कारण नजर बचा कर उस झाडी में छुप गई , नारी अत्याचार के इस विभत्स्य रूप को राजा राम मोहन राय को दिखाने की उत्कण्ठ ईच्छा आज भाभी को जीवित रखा था ,पर मनुष्य के नाम से समाज के राक्षसों ने उस झाडी से अर्धमूर्छित भाभी को खिंच कर निकाला और फिर से चिता जला कार उसमें जला दिया .
कुछ समय पश्चात राजा राममोहन राय विदेश से वापस आते हैं,अपने कमरे में जाते ही भाभी द्वारा लिखा उस पत्र को पढ कर उन्हें कैसा लगा होगा इसकी कल्पना करना भी कठीन हैं ,मन हाहाकार कर उठा,दू:ख से , पागलों की भॉती जब यह पता लगा कि उस पत्र में मात्र यह लिखा कि देवर जी ! यदि आप यहॉं होते तो मेरे साथ यह दुर्गति कदापी न हुआ होता .....! चिता से सम्बंधित घटनाओं को सुन कर समाज के ठेकेदारों के खिलाफ आक्रोश भर चुका था ,उसी दिन घर में रखा बन्दुक लेकर गॉंव वालों को ललकारते हुए निकल पडें ,पता नहीं कितने घायल हुए होंगे या कितने मर खप गए ,जब आक्रोश थोडी सी कम हुई तो अंग्रेस वाईसराय से मिल कर यह कानून बनाने के लिए दबाव डाला कि सति प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया जाए ,वाईसराय ने अविलम्ब इस कृत को गैर कानूनी घोषित किया ,तब से आज तक सति प्रथा गैर कानूनी हैं ,आज सति होने की बात कभी कभार सुनने को मिल जाता हैं पर किसी का हिम्मत नहीं कि जोर जबरदस्ति किसी महिला को सति बनने के लिए मजबूर कर सकें । इस देश में आज भी सति प्रथा जैसे एक अमानवीय प्रथा चली आ रही हैं वह हैं जाति प्रथा ,जाति प्रथा इस देश को घुन की तरह बरबाद कर रही हैं हम इसे कानूनी रूप से अमान्य तो कर दिया हैं पर आज भी समाज में इसकी अस्तित्व इतनी गहन हैं कि सारे कानूनों को ठेंगा दिखा कर इसे जाति के ठेकेदारों ने जीवित रखा हुआ हैं ,देश के नेताओं को इसी जाति के आधार पर व्होट मिलता हैं अत: देश जाए भाड में उन्हें सत्ता और धन मिलना चाहिए , क्या इसे खत्म करने के लिए किसी राजा राममोहन राय की आवश्यकता है ?

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

हिन्दी भाषा को बेचारा मत बनाइये

भाषा पर मेरा एक अलग ही दृष्टिकोण हैं ,किसी भी भाषा अथवा बोली को अछुत की भॉंती देखना मेरे लिए असहनिय हो जाता है ,अनेक बार बी.बी.सी हिन्दी समाचार सुनते समय उच्चारण ,व्याकारण आदी अशुद्धियों पर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ ,चीन में भी हिन्दी समाचार पढा जाता हैं ,जरा सुने तो सही ,मुझे तो अच्छा लगता है ,शुद्ध-अशुद्ध का परिभाषा भी तो हमने ही बनाया हैं ,मै मानता हूँ कि एक लय और नियम बद्धता अच्छी बात हैं पर जब राष्ट्र भाषा हिन्दी की बात आती है तब इसकी परिभाषा भावना प्रधान हो जाता है -व्याकारण प्रधान नहीं ,हिन्दी लिंग भेद को इस तरह पेश किया गया कि समझने में दिक्कत होती हैं कि कौन सी शब्द स्त्री लिंग हैं और कौन सा शब्द पुलिंग हैं , असम,बंगाल में इस तरह की कोई पेरशानी नहीं हैं ,उडीसा में भी नहीं ,जहॉं तक मराठी में भी इस तरह की परेशानी नहीं हैं ,फिर राष्ट्र -भाषा में इस तरह की परेशानी क्यों हो रही है ?क्या हम अति उत्साह के कारण इस तरह की स्थिति बनाए रखना चाहते हैं ? भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम हैं जब हम एक मुक जो बात कर ही नहीं सकता हैं उसको समझने की कौशिस करते हैं, तो राष्ट्र भाषा को भी समझने की कौशिस क्यों नहीं करना चाहेंगे ? भाषा को कभी बेचारा बना कर रखना उचित नहीं है। भाषा तो बहता पानी हैं इस बहाव को कभी बॉंध द्वारा बन्धन में कर देना भाषा के साथ बलात्कार जैसे ही हैं ,क्या रेल को हिन्दी शब्द द्वारा मान्यता मिल सकी हैं ?
लौह पथ गामीनी शब्द को जिन्होंने भी सोचा होगा ,हो सकता हैं उस समय विशेष के लिए वह सही रहा है, पर आज तो इसे बदल सकते हैं ,हिन्दी में तो उर्दू ,पारसी ,संस्कृत ,अंग्रेजी और देश के अन्य बोलियों का ऐसा समावेश हो गया हैं कि कोई भी कितना ही चाहे ,आज हिन्दी को इससे अछुता रखना असम्भव हो गया हैं फिर भी हिन्दी तो हिन्दी हैं ,भारत वर्ष में किसी का भी मातृ भाषा हिन्दी नहीं हैं ,उत्तर प्रदेश ,बिहार ,आदी जहॉं हिन्दी को मातृ भाषा के रूप में अधिक मान्यता मिला हुआ हैं वहॉं तो लोग अगिंका ,भोजपुरी , मैथली, मागधी आदी बोलते हैं ,हिन्दी एक जनभाषा है कुछ लोगों ने इसे कैद कर रखा है इसलिए इसे आजादी के पहले स्वामी बिबेकानन्द ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूपमें लोगों को मान्यता देने के लिए आह्वान किया था ,उन्होनें कहा था कि देश को एक सूत्र में बाधने का कार्य भाषा के रूप में हिन्दी ही अच्छी तरिके से कर सकती हैं ,अत: जन भाषा को समयानुकूल बदलते रहना अच्छी बात हैं ,भाषा को बेचारी बना कर रखना ठीक नहीं हैं ,कुछ लकिर के फकीर को मेरी बात अच्छी नहीं लगेगी पर आगेचल कर सब ठीक होजाने से सबको पसन्द आने लगेगा ,हिन्दी भाषा को दुर्गति होने बचाने का दाइत्व हम सभी को हैं ,मात्र हिन्दी दिवस मना कर इतिश्री कर देने से अपना कर्तव्य खत्म नहीं हो जाता हैं ,लोगों को बोलने दिजिए,लिखने दिजिए फिर प्रोत्साहन भी दिजिए ,देखेंगे कि हिन्दी का प्रचलन किस गति से बढ रही हैं आप स्वयं हैरान हो जायेंगे !

वेलेंटाइन- डे का सही अर्थ

वेलेंटाइन-डे पर मुझे मेरे साथियों ने कुछ विचार व्यक्त करने के लिए बहुत दिनों से कह रहे हैं ,सच कहूं तो इस विषय पर मुझे लिखने की रूचि नहीं थी ,लिखने के लिए बहुत कुछ हैं जो वर्तमान देश के लिए आवश्यक भी हैं ,प्रेम कोई बाजार में खरिदने-बेचने की चिज तो नहीं कि इस विषय पर बहुत विज्ञापण करते रहे ,प्रेम एक ऐसी अहसास हैं जो एकान्त में ही शोभा देती हैं ,प्रेम की अभिव्यक्ति सार्वजनिक रूप से करने की क्या आवश्यकता है ? दुनियॉं इसकी विरोध करें या समर्थन दें ,प्रेम के लिए इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती ,प्रेम करने वाले करते रहेंगे और विरोध करने वाले विरोध भी करेंगे ,दोनों एक साथ चलता हैं ,इसलिए इतनी हंगमा करने की क्या आवश्यकता है ? भारत वर्ष में तो प्रेम कहानियॉं अमर होती हैं ,ताजमहल इसकी सबसे ज्वलन्त उदाहरण हैं ,प्रेम को एक दिन विशेष में बॉध देने से सारी समस्या उत्पन्न हो रही हैं ,प्रेम तो माता.पिता से ,भाई –बहनों से ,पास.पडौसी से ,दोस्त –दोस्त से ,ऐसी सभी से किया जा सकता हैं ,भारत वर्ष में तो इतनी पूजा पाठ,त्यौहार आदी प्रचलित हैं जिसका मकशद प्रेम भाव होता है ,होली में रंग गुलाल की त्यौहार तो बसन्त में मतवाला कर देती हैं यदि वास्तविक भाव द्वारा इसे मनाई जाए तो प्रेम की त्यौहार का रूप ही कुछ ओर दिखेगा ।रास –लीला ,से बढकर कोई वेलेंटाइन –डे ,दूनियॉं में खोजने से मिल सकेगा क्या ? रक्षा बन्धन ,भाई दूज सभी तो हमारे धरोहर हैं ,फिर नई रूप से एक त्यौहार इस देश में जबरदस्ती लादने का षड़यंत्र क्यो किया जा रहा है ? कोई भी त्यौहार मनाने के लिए या कोई भी डे मनाने के लिए आर्थिक साधनों का होना अति आवश्यक होता हैं जिस देश में ४० करोड जनता को भरपेट भोजन उपलब्ध न हो ,उस देश में एक विदेशी खर्चिला दिन लादने का कुचेष्टा से मन आहत हो उठता है ,जब देश में चारों ओर अँधेरा ही अन्धेरा नजर आता हो ,ऐसी स्थिति में प्रेम की अभिव्यक्ति किस तरह से हो सकता हैं ,यह विचारनीय प्रश्न हैं ।
जब देश गुलाम था तब नौजवानों ने मातृभुमि की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावार कर दिया करते थें,युवास्था में वे हँसते -हँसते फॉंसी के फन्दे में झुलजाया करते थे ,समय के साथ –साथ प्राथमिकता भी बदलती है ,अत: आज की स्थिति को देखते हुए हम सभी को त्याग करने के लिए वाध्य किया जाना चाहिए ,प्रेम फिर भी अमर रहेगा ,प्रेम तो हो जाने वाली विषय है ,प्रचार प्रसार से लाखों मिल दुर प्रेम की मंजिल है। मात्र दिखावा के लिए और व्यपार बनाने के लिए इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल करना कभी शोभा नहीं देता ,श्री राम सेना के कदम भी ठीक नहीं हैं उन्हें देश के नौजवानों को सही दिशा दिखाने के लिए एक कार्यक्रम पूर्व में ही तय कर लेना चाहिए था ,नौजवान चाहे दिशा सही चुने या गलत ,उनके मार्ग में जो भी बाधा बनके खडे होते हैं उसका विनाश होना निश्चित हैं ,कोई भी विरोध क्या तुफानों का मार्ग बदल सका हैं ? यदि युवा आज भ्रमित हैं तो उसके लिए मात्र युवाओं को दोष देना गलत है। देश के कर्णधारों ने इन्हें सही मार्ग दर्शन करने में असमर्थ होने के कारण आज विपरीत स्थिति निर्मित होकर हमारे समक्ष कटाक्ष के रूप में खडी है ,इसे ही कहते है बोये पेड बबूल का आम कहा से होय । फिर भी मेरे युवा साथियों ! आपने विपरीत स्थितियों में भी समाज को नई दिशा दी हैं , समाज को बदलने का यदि किसी में साहस हैं तो मात्र तुममे ,तुम्हें अपना सही मार्ग स्वयं को ढुढना होगा , एकला चलोरे ...पर विश्वास करके अन्धेरे को उजाले में परिवर्तित करना तुम्हारा कर्तव्य हैं ,आज यही तुम्हारा युग धर्म हैं ,तुम निद्रा से उठो ! अपने आप को पहचानो ! ईश्वर तुम्हें प्रेम से सरोबर कर देगी ,आज तुम्हारे लिए यही सबसे बडा वेलेंटाइन डे होगा ।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

धरना,प्रदर्शन,आमरण अनशन,जनहित याचिका आगे क्या ?

प्रजातंत्र में जनता का शासन होता हैं ,जनता ही मालिक और जनता ही सेवक ,चूंकि सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित होता हैं अत: देश को अपने ढंग से चलाने का नाम ही स्वतंत्रता हैं ,जिसे प्रतिनिधि बनाकर जनता देश सेवा के लिए चुनती है ,यदि चुनेहुए प्रतिनिधि देश सेवा या जनहित में कार्य न कर स्वहित में और देश विरोधी कार्य में लिप्त हो जाता हैं तो जनता का अधिकार हैं कि उसे वापस बुला ले या विरोध प्रकट करें ,जनप्रतितिध को वापस बुलाने का अधिकार अन्ना हजारे जी ने बहुत ही प्रभाव पूर्ण ढंग से प्रचार किया था ,परन्तु वर्तमान स्वार्थी नेताओ ने इसे नहीं माना ,जिसके चलते नालायक प्रतिनिधि को जनता बोझ समझकर ढोती रहती है। । प्रजातंत्र एक लचारी तंत्र बनकर रह गई हैं ,अब यदि जनता विरोध करना चाहती हैं ,और नालायकों को खींच कर बहार का रास्ता दिखाने के लिए एकत्रित होती हैं तो आज सम्भव नहीं होता ,क्योंकि अधिकांश नेताओं ने सुरक्षा के बहाने अपने लिए गन मैन की व्यवस्था कर रखा हैं ,कभी भी जनता पर गोली चलाने के लिए वे स्वतंत्र होते हैं ,विरोध का एक दुसरा रूप यह कि धरना , प्रदर्शन , आमरण अनशन , आदी का असर आज दिखता नहीं है । कहीं भी धरना प्रदर्शन आदी होती है वहॉं पर प्रशासन सुरक्षा के नाम से मशिन गनों से लैसपुलिस,फौज से छावनी सा बना कर ऐसा माहौल बना देती है कि आवाज उठाने वाले भय से ग्रसित होकर अपनी बातों या अधिकारों का इस्तेमाल पूर्णरूप से नहीं कर पाते है।
सुरक्षा का अर्थ यह माना जाता है की हडताल ,धरना -प्रदर्शन आदी के समय जनता तोड–फोड़ करती है, जिससे सम्पत्ति का नुकसान रोकने के लिए जनता पर डंडा-गोली चलाना आवश्यक होता है ,प्रश्न यह है कि डंडा -गोली से जनता मारी जाएगी तो क्या सम्पत्ति के बदले जान वापस किया जा सकता है ?जिस सम्पत्ति के कारण जनता को भुन दिया जाता है वे इस देश के मालिक होते है ,यदि प्रशासन रूपी नौकर मालिक को उसी की सम्पत्ति के लिए मार डालती हैं तो इस वारदात को क्या कहा जा सकता है ? मालिक का अधिकार होता हैं कि नौकर ठीक न होने पर उसे नौकरी से हटा दे ,नौकर का अधिकार नहीं होता कि मालिक को गोली से उडा दे ! सम्पत्ति तो फिर कभी बनाया जा सकता हैं पर प्रजातंत्र के जनता रूपी मालिक का जान क्या दोबारा वापस आ सकता है ? सुरक्षा के नाम पर जब देश के मालिकों पर ही नौकरों द्वारा हमला लगातार हो रहा है तो इस देश का मालिक कौन हैं, इसे परिभाषित करना आवश्यकत हो गया है। धरना प्रदर्शन ,हडताल अनशन,जनहित याचिका ,आदी से यदि मौलिक अधिकार का रक्षा करने में आज हम अक्षम हो गए है, तो सोचिए आगे कौन सा रास्ता शेष बचता हैं ....?
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रविवार, 8 फ़रवरी 2009

आकर्षक बने ,धनवान बने ,एक चुटकी में ---

आकर्षक बनने की लालसा किसे नहीं होता ?दुनियाँ में ऐसा कौन अभागा होगा जो स्मार्ट दिखना नहीं चाहता हैं ,कुछ बातों को यदि ध्यान में रख कर चला जाय तो आप भी आकर्षक बन सकते हैं ,आकर्षक बनने की चाहत मुझमें भी था, और आज भी हैं,आकर्षक व्यक्ति के पास धन की कमी नहीं होती,इसलिए मैं आकर्षक और धन दोनों को पूरक मानता हूँ ,मेरे पास विशेष करके नवयुवा -युवतीओं के संदेश आते हैं जिसमें अनेक बातों के साथ -साथ यह भी उल्लेख हैं कि आकर्षक कैसे बना जाय,बहुत दिनों से इसपर कुछ लिखने की इच्छा हो रही थी,इस लेखनी का श्रेय तमाम यूवा शक्ति को जाता हैं ,जिन्होंने मुझे इसके लिए प्रेरित किया,मैं मेरे अनुसरण कर्ताओं को आभार व्यक्त करना चह्ता हूँ -जिन्होंने मुझे अनेक सहयोग प्रदान किया हैं ;इस लेखनी और मेरे विचारों में मौलिक अन्तर नहीं हैं ,कोई भी विशेष उल्लेखनीय कार्य करने के लिए आकर्षक होना बहुत जरुरी हैं ,जो आकर्षक होगा वह धनवान भी होगा इस लेख को मैं क्रमशः प्रकाशित करना चह्ता हूँ , यह लेख लिक से हट कर,शिक्षाप्रद ऊर्जा से भरा अतिमह्त्वपुर्न,होने के साथ ही साथ लाभदायक भी होगा,आप सभी मुझे सहयोग देंगे यही विश्वास के साथ ....
एक शब्द में कहु तो आकर्षक केवल मात्र एक नजरिया हैं ,देखने और सोचने का एक खाश तरीका ही आकर्षक से सम्बन्ध रखता हैं, जरुरी नहीं कि मेरे नजर में जो आकर्षक हैं, वह किसी दुसरो के नजर में भी आकर्षक लगे ,मेरे मन और आखों से दुसरा नहीं देख सकता ,कुछ पुरानी उदाहरण पर जाय तो मजा आजायेगा ,भगवानो के भी जोड़ी होते हैं ,कम ऐसे भगवान् होंगे जो जोड़ी में न हो ,श्रीराधा -कृष्ण ,शिव -पार्वती,की जोड़ी तो प्रसिद्ध हैं ,श्री कृष्ण काले ,राधा गोरी ,फ़िर भी जोड़ी ऐसी की तोडें से न टूटे ये... शिव जी तो एक दम अलग ,श्मशान ,जंगल ,पर्वत आदी उनके अभिन्न मित्र ,पार्वती तो राजकन्या फ़िर शिवजी पर मोहित हो गई ?मैं आधात्मिक बातों पर नहीं जाना चाहता हूँ ,बात आकर्षक और धन से हैं, इसलिए दोनों पर ध्यान केंद्रित करना मेरा धर्म हैं ,कौआ-बगुले की जोड़ी भी रास्ते में घूमते नजर आ जाएगी,उसे देख कर मुझे अच्छा लगे या न लगे,पर उससे उनको क्या लेना देना,वे तो अपनी मस्ती में मस्त,आकर्षक मात्र विपरीत लिंग पर सीमित नहीं हैं ,पुरूष -पुरूष ,स्त्री -स्त्री ,पर भी इस मंत्र का प्रभाव कम नहीं हैं,अभी एक शिक्षक ने एक छात्री से बेमेल विवाह कर लिया ,मिडिया ने प्रकरण को नमक मिर्च लगाकर खूब उछाला,आज तो यह हाल हैं कि यह जोड़ी जहाँ भी जाती हैं वहां पर रहने आदि का खर्च की कोई चिंता ही नहीं रहता हैं ,आकर्षक भी और धन भी साथ -साथ चल रही हैं ,दुनिया मैं इस तरह के अनेक उदाहरण मिल जायेंगे ,आकर्षक दिखने के लिए कोई ऐसा सूत्र आज तक तैयार नहीं हुआ हैं जिसे वैज्ञानिक सूत्र में ढाल कर लोगों को आकर्षक बनाया जा सके ;यदि कोई ऐसा दावा करता हैं तो वह झूठा हैं ,आज गोरे होने का दावा करने वाली क्रीमों से यदि देश के सभी लोग गोरे हो जाते, तो इस देश में काले लोग नजर नहीं आते ,जैसे यह सच हैं कि कोई भी गोरेपण के क्रीमों से गोरा नहीं बना जा सकता हैं ,उसी तरह अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा से प्राभावित होकर यदि कोई काला बनना चाहे, तो वह भी सम्भव नहीं हैं ,स्मार्ट या आकर्षक देश -काल -पात्र पर निर्भर करता हैं /
हम आज परेशान इसलिए हैं कि आकर्षक का जो परिभाषा जिन लोगोने बनाया हैं उन परिभाषा को ही अन्तिम मान कर उसी का अनुशरण करना चाहते हैं ,कॉर्पोरेट जगत से जुड़े हुए लुटेरे लोगों द्वारा परिभाषित स्मार्टनेस का जो मापदंड बनाया गया हैं यदि वोही सच होता तो हर्षद ,यू .टी .आई घोटाला, केतन पारेख ,तेलगी प्रकरण ,अरबों का शेयर घोटाला ,आज सत्यम का प्रकरण ,इन सभी से जुडें तमाम घोटाले बाज क्या आकर्षक या स्मार्ट हैं ?विडम्बना हैं कि एक चोर भी इमानदार साथी खोजता हैं ,आज सत्यम के पूर्व सी इ ओ रामलिंगम राजू की पत्नी को पूंछा जाए कि तुम्हारे घोटाले बाज पति कितना स्मार्ट हैं ?तो वह क्या जबाब देगी ? रामायण में रत्नाकर दस्यु ने एक बार अपने माता -पिता को पूंछा कि मैं जो लूटपाट ,हत्या करके ,पाप कर्म द्वारा तुम लोगों का भरण -पोषण करता हूँ ,तुम लोग मेरे पाप का भागीदारी करोगे?माता- पिता ने कहा की बेटा जैसा करोगे वैसा ही फल पावोगे ,बचपन से हमने तुम्हें पाला हैं ,आज हम बुजुर्ग हो गए हैं, हमारा पालन पोषण करने का भार तुम पर हैं ,हम तुम्हारें पाप कर्म का भागीदार नहीं हो सकते हैं ,जबाब सुनकरभरी मन से यही सवाल अपनी पत्नी से पूंछा ,पत्नी ने जवाब दिया कि अग्नी साक्षी करके आपने मुझे ग्रहण किया हैं ,मेरे भरण -पोषण का भार आप पर हैं ,पापका भागीदार मैं कैसे हो सकती हूँ ? पुरी रामायण पर जाना नहीं हैं दस्यु आगे चल कर बाल्मीकी रामायण रचना करते हैं ,दस्यु के समय उसे आकर्षक किसी ने नही कहा, माता-pita
पिता,
पत्नी तक नहीं,बाल्मिकी होजाने से आज सबसे स्मार्ट ,आकर्षक ,हीरो लगते हैं ,यह तो स्पस्ट हैं की आकर्षक के लिए बाहरी आवरण से आतंरिक नियंत्रण की आवश्यकता अधिक जरुरी हैं .बाहरी आवरण द्वारा class="">धन अस्थायी रूप में भरा तो जा सकता हैं पर यह धन आगे काम नहीं आता,सत्यम के रामलिंगयम् राजू द्वारा कमाया गया धन साथ नहीं दिया ,यदि आतंरिक नियंत्रण के साथ आगे बढ़ते तो आकर्षक स्थायी बना रहता, इसलिए राधा -कृष्ण की जोड़ी आतंरिक प्रतिक हैं जिसे आकर्षक कहा गया ,कृष्ण के शाब्दिक अर्थ भी आकर्षण ही हैं .आकर्षक जीवन के लिए बहरी सजावट द्वारा दूसरो पर धौंश जमाने की मानसिकता से हमेशा दूर रहने की आवश्कता हैं ,जो आंतरिक सफाई पर ध्यान देगा ,निश्चित रूप से बहारी सफाई पर भी ध्यान जरुर देगा, आतंरिक गुणों से संपन्न लोगों के पास जो भी धन आता हैं उसका खर्च मितव्ययी होने के कारण धन की कमी कभी नहीं रहता ,लुट कर्म से ग्रसित सत्यम के रामालिंगम राजू का धन आज किस काम का हैं ?
इस दुनिया ही इतनी आकर्षक हैं की यहाँ जन्म लेकर रहना ही सार्थकता का धन हैं ,इस दुनिया में सभी लोग आकर्षक हैं ,यदि आज से मान लिया जाय की मैं आकर्षक हूँ,चाहे अन्य लोगों का सोच कुछ भी हो ,लोगों का परवाह करके हम हिन् भावना से ग्रसित हो जाते हैं ,छोटी -छोटी बातों पर ध्यान देने से हमे कभी दुखी होने की आवस्यकता नहीं होगी, नशा जीवन को घुन की भाति बरबाद कर देती हैं ,नशा किसी भी तरह की हो उससे बहुत दूर रहना चाहिए ,नशाखोर कभी आकर्षक हो ही नहीं सकता हैं ,नशा दूध का ही क्यूँ न हो .युवा अवस्था में नशा खोरों को गौर से देखने पर दया आने लगती हैं , यदि नशा से दूर होकर आत्मविश्वास के साथ जीते हैं तो ,उससे आकर्षक और कौन हो सकता हैं ,आप ऊँचे हैं ,नाते हैं ,दुबले हैं ,मोटे हैं ,काले हैं,गोरे हैं सभी आकर्षक हैं, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की यदि नशा से दूर होकर आज से संकल्प ले की मुझे एक अच्छी जीवन जीना हैं ,तो देखेंगे की धन की कमी कभी नहीं रहेगी .वर्त्तमान समय में धन की असंतुलित वितरण ही सुंदर जीवन के मार्ग में कुछ कांटें हैं यदि इसे दूर करने में थोडी चिंतन करें तो आकर्षक बनने के साथ -साथ धनवान बने रहेंगे ,नशा युवा पीढ़ी को सोचने से रोकती हैं ,नशा छोड़ अपने बारे में ,समाज के बारे में ,देश के बारे में ,सोचने लगे तो इस देश के सभी स्मार्ट और सभी धनवान नजर आवेंगे .




शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

जहर बेचने का धंधा कैसा चल रहा हैं सरकार ?

सरकार का अर्थ भारत सरकार से हैं ,जब देश के कुछ लोगों के साथ सीएसई (सेंटर फार साइंस एंड इन्वायरमेंट) के सुश्री सुनीता नारायण ने पेप्सी -कोका जैसे पेय पदार्थ का वैज्ञानिक जांच किया और जब परिणाम सामने आ गया तो , देश के सभी लोग यह जान कर हैरान और परेशान थे कि जिसे कोल्ड ड्रिंक के नाम से बड़े प्यार और जतन के साथ हम और बच्चे चाव से पीते थे वह तो जहर मिला पानी हैं , बहुत समाज सेवी संगठनों ने अपनी-अपनी तरीके से इस पेय का विरोध करते रहे हैं, सरकार सुनती नहीं थी ,जांच परिणाम के पश्चात नेताओं को लगा कि यदि जहर की बात सच हैं तो सबसे पहले अपने आप को बचाओ ,संसद में सयुक्त संसदीय समिति का गठन कर दिया गया और यह नियम बना दिया गया कि नेताओं को पेप्सी -कोकाकोला परोषा जाय ,नेताओं ने एक अच्छा कदम उठाया , खुशी हुई जेपीसी का परिणाम आने पर स्पस्ट हो गया कि इसमें कीटनाशक जहर के साथ -साथ ऐसी बहुत कुछ मिला हुआ हैं जिसे पीने पर किडनी ख़राब होना ,हड्डी कमजोर होना ,कैंसर ,मोटापा ,उच्च रक्त-चाप, भूख न लगना ,आदि अनेक बिमारी से ग्रसित होकर लोग अकाल मौत मारे जाते हैं ,देश के लोगों ने सोचा था कि जब नेताओं ने संसद परिसर में इस पेय रूपी जहर बेचने की मनाही कर दिया हैं, तो जे पी सी रिपोर्ट के बाद पुरे भारत में पेप्सी -कोकाकोला जैसे अन्य जहरीला पेय भी बेचने पर पाबन्दी लग जायेगी और इन विदेशी कम्पनियो को देश से न केवल भगा दिया जावेगा, अपितु देश के तमाम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने की आरोप में क्षति -पूर्ति का दावा के आलावा उसके ख़िलाफ़ दंडात्मक वाद लाकर कंपनी को दण्डित किया जावेगा ;काश ! ऐसा होता --- सरकार ही कंपनी के साथ मिलकर देश में जहर बेचने का धंधा करता हैं ,अभी हाल में इस धंधे में लिप्त कंपनी के सीइओ इंदिरा नुई को भारत सरकार ने उच्च सम्मान से नवाजा हैं ;जिसे देश में जहर का धंधा करने के आरोप में दंड मिलना चाहिए था उसे सम्मानित किया गया ,आज देश द्रोहिओं का इस देश में सम्मान होने लगा हैं और अन्याय का विरोध करने वालों को दंड दिया जाता हैं ,धीमी जहर से लोग पंगु की जीवन जीते रहे ,पंगु अन्याय का विरोध नहीं कर सकता ,आज सरकार को विरोध करने वाले नागरिकों की आवश्यकता नही हैं ,उन्हें तो गूंगे ,बहरे, दुम हिलाने वाले वो ..चाहिए जिन पर लम्बे समय तक पर राज कर सकें ,इन्हें तो बस राज करने हैं और अमेरिका के साथ मिलकर ऐश करना हैं ,अब आप ही बताये सरकार ! जहर बेचने का धंधा कैसा चल रहा हैं ? सरकार चाहे कुछ भी करे पर खाने ,पीने के लिए तो हम आजाद हैं ,यदि पेप्सी -कोका ,मिरिंडा ,सीत्रा आदि पीना बंद कर दे तो सरकार और कंपनी हमें जोर जबरदस्ती पीलायेगे ? आज और अभी इसे पीना छोड़ दे, और दूसरो को भी न पीने की सलाह दे ,फिर देखे क्या मजा आता हैं ,सरकार और ये कंपनी बोरिया -बिस्तर के साथ कैसे भागते नजर आवेगी;
बहिष्कार से अच्छे -अच्छे की छक्के छुट जाती हैं .










पूंजीपति भिखारी -पैकेज का भीख कब तक मांगोगे ?

दो चार करोड़ का संपत्ति होना या नगद रखना, आज पूंजीपति नहीं कहलाता हैं ,कुछ समय से तो इसदेश में १ लाख करोड़ ,५ लाख करोड़ से लेकर ३०-४० लाख करोड़ों का धन्ना सेठ, कुकुर मुत्ते की तरह देश की छाती में उग कर, जोंक की तरह खून चूस कर लहू -लुहान कर दिया हैं ,इन जोकों के कारण सत्त्यम जैसे कंप्युटर उद्यौग का अकाल मौत होरहा हैं ,रामा लिंगम राजू अपने पुत्रों के साथ मिलकर जिस देश द्रोही का परिचय दिया हैं उसके चलते नाम लेने में भी घृणा उत्पन्न होता हैं ,ऐसे सैकडों उद्यौगपति होंगे जो अपने चालबाजी से बच रहे हैं ,जो पकड़ में आया वह चोर ,जो नहीं पकड़ा गया वह साधू वाली कहावत चरितार्थ हो रहा हैं , कल का साधू आज का चोर ,फ़िर किस पर विस्वास किया जाय ? कल जिसके तारीफ़ करते-करते लोग नहीं थकते थे ,आज उससे लोग नफ़रत करने लगे यही हैं पूंजीपतियो का चरित्र ,जब लुटने का खेल खत्म होने को हैं ,तो पैकेज रूपी कटोरा लेकर वे सरकार के पास भीख मांगने पहुँच गए ,गरीब मांगे तो भीख ,पूंजीपति मांगे तो पैकेज !! फ़िर भी हमें पता हैं कि चोर -चोर मौसेरा भाई ,एक मज़बूरी में मारा भिखारी ,दुसरा सफेदपोश भिखारी ,पहला का भूख भीख मांगने पर मिटता हैं ,दुसरा का भूख मिटता ही नहीं ,ये पूंजीपति भिखारी अपने लिए तो मांग ही रहे हैं ,अपने सात पुरखों के लिए मांग कर छोड़ने की आदत बनालिया हैं ,इस राक्षशी आदत को क्या कोई छुड़ाने वाला पैदा नहीं होगा ?
एक समय के तीरंदाज आज भीख का कटोरी लेकर सरकार के दरवाजे में खड़ी हैं ,जब सरकार हमारी हैं तो इन करोड़पति भिखारिओं को भीख क्यों दिया जा रहा हैं ? एक दिन में जब २० रुपये से भी कम रकम में ४० करोड़ लोग मज़बूरी में जीवन को खिंच रहे हैं, दूसरी और देश के अरबों रुपये करोड़पति भिखारिओं को वाटाजा रहा हैं ,इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकता हैं ? मुझे तो लगता हैं कि भीख के पैकेज में भी ५० -५० का शेयर निश्चित किया गया हैं ; पहले मात्र अकेले कुछ लोगों को टुकड़े फेककर बाकी हड़प जाते थे ,आज भीख का व्यवसाय बहुत फुल- फल रहा हैं ,इसमें भी नेताओं का अंश यदि तय हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, इसदेश को पूर्व में एक अंग्रेज लुटा करते थे ,आज कई देशों के कम्पनिओं को सरकार ने लुटने का लाइसेंस देकर उदारीकरण का जामा पहनकर, भागीदारी बनके, लोक कल्याणकारी का ढोंग रचना- इससे बड़ी उदहारण कहाँ मिल सकता हैं ?
आकडों के जाल में फंसा कर अपनी बातों को मनवाना हमें भी आता हैं ,पर प्रत्यक्ष को प्रमाण कीआवशकता नहीं होती , एक बात तो साफ़ हैं कि सब मिलकर देशी -बनाम विदेशी पूंजीपति कभी उदारीकरण के नाम पर ,कभी पैकेज के नाम पर ,इस देश को खोखला करने का षडयंत्र रच लिया हैं ,अब देखना यह हैं कि भीख मांगने के नाम पर ये बहुरूपिये कब तक देश को लुटता रहेगा, क्या हम फ़िर नेताजी,भगतसिंह, चंद्रशेखर ,लाल -बाल- पाल ...का इन्तेजार करते रहेंगे ???









शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

२६/११ कल ,आज और हम -मुम्बई में होटल ताज पर हमला

शायद ही कोई २६/११ को भूल पाया हो ,कल की घटना ,लगता हैं ताजा हैं ,क्या भविष्य में इस दिन को उस दिन की भाँती याद रहेगा ?सारा मिडिया ने जिस तरह जीवंत घटनाओं से लोगों को प्रेरित किया उसका परिणाम २९/११ को देश ने देखा ,लाखों नौजवान ,आबाल -ब्रिद्ध,हाथ में श्रद्धा सुमन रूपी मोमबती लेकर स्वप्रेरणा से रास्ते में निकल आए थे ,आतंकवादिओं द्बारा होटल ताज ,ओबेरॉय ,नरीमनपॉइंट मुम्बई में जघन्य हमला कर देश की गरिमा को तारतार कर दिया;अपमानित ,पीड़ित ,ग्लानी ,आक्रोश से प्रतिक्रया स्वरुप जो अभिव्यक्ति मुम्बई में देखने -सुनने को मिली ,जो आग वहां लगी थी उससे ऐसा लग रहा था कि इस आग से तपकर देश रूपी सोना कुंदन बनकर निखरेगी ,पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ,नेताओं का बयान आया ,मिडिया ने अपना काम किया ,जानता ने प्रतिक्रिया व्यक्त किया,फ़िर हमला होगा ,फ़िर बयान ,और जनता का प्रतिक्रिया ,बस यही सिलसिला देश के नसीब में लिखी हैं ,भारत माता जख्मी होकर चीत्कार करती रहेगी ,जख्म भरने के पहले दूसरी जख्म ,फ़िर तीसरी और जख्म नासूर बनकर रह्जाएगी ,फ़िर भी माया नगरी मुम्बई देश की जीवनरेखा कहलाएगी !

विचार क्रान्ति से बढ़कर शक्तिशाली कौन हैं ?

विचार जिस तरह फैलती हैं उसके सामने आग की गति भी धीमी पड़ते देखी गयी हैं ,विचार में जो शक्ति हैं वह तोप,तलवार ,अणु,परमाणु ,में भी नहीं होती हैं .विचार ही सत्य युग हैं ,विचार ही कलयुग हैं ,विचार से ही दुनियाँ में बड़े से बड़े परिवर्तन हुए हैं ,विचार का बीज रोपण करने पर पौधा अवश्य होता हैं ,विचार फैलाने में विस्वास करना चाहिए ,आज विश्व में परिवर्तन की एक लहर सी चल रही हैं ,यदि उसकी दिशा विचार द्वारा कल्याणकारी रास्ते की ओर मोढ़ दिया जाय तो सारी समस्यायों का समाधान मिलना कठिन न होगा ; विचार रूपी उर्जा का सामूहिक रूप से प्रयोग करने के लिए ही हमें एकत्रित होना हैं ,इस प्रयोग द्वारा हम वह सारे कार्य सम्पन्न करेंगे ,जो आज असंभव दिख रहे हैं ! असंभव को सम्भव बनाना ही आज का राष्ट्र धर्म हैं ,विचार क्रान्ति से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं हैं !

श्रृंगारिक रस छोड़ - वीर रस में डुबो

समय के साथ चलना भी अच्छा हैं ,जब समय भी हमारे साथ चलने को तैयार हो ,समय यदि हमारा दुश्मन हो तो समय को बदल डालो , समय हमारे लिए हैं ,हम समय के लिए नहीं ; आज का समय जिसने भी हमारे ऊपर थौपा हैं ,उसका सम्मान करने का कोई जरुरी नहीं हैं समय ने देश पर भयानक बेरोजगारी का तलवार चलाया हैं ,समय भी आज नियम से नहीं चलता ,जिसका जोर हैं उसी का दासी बनकर आदेश का पालन करता हैं ,देश का रोजगार किसी का बपौती नहीं कि जब चाहो तब रोजगार से बाहर का रास्ता दिखा दो ,देश भी हमारा ,रोजगार भी हमारे ,यदि समय बिपरीत हैं तो समय का रुख बदलो ,अकाल हैं तो सब बांटकर खाओ ,रोजगार से निकालोगे तो श्रृंगारिक रस छोड़ कर ,डूबना होगा तो वीर रस में डुबकी लगायेंगे..संदेश सबके लिए हैं ..अतः आज के मंदी लाने के लिए जनता जिम्मेदार नहीं हैं ,मंदी के बहने रोजगार से निकालने खेल बंद करो ,त्याग मात्र सेवक ही नहीं करेगा ,त्याग मालिक को भी करना पड़ेगा ,फ़िर प्रजातंत्र में इस देश का सभी नौकर ,सभी मालिक हैं

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

जैसे नक्शलिवाले - वैसे शासन - पुलिसवाले

खलीयान में दो सांड को लड़ते हुए देश के सभी लोग देख रहे हैं ,एक सांड का नाम नक्शलि ,दुसरे का नाम शासन -पुलिस वाले हैं ,बंगाल के नक्शलबाड़ी में पैदा हुआ चारु मजुमदार ने जमीदारों के शोषण से त्रषित जनता को साथ लेकर उग्र आन्दोलन करते हुए नायक बन गए थे ,आगे यही आन्दोलन देश के दुसरे प्रांत में भी फ़ैल गया , नक्शल स्वंम को छोड़ सभी को दुश्मन समझती हैं , अतःविरोध करने वाले सभी को मौत के घाट उतरने में कोई देर नहीं करता , वास्तव में शोषकों का बाल बांका नहीं कर पाने की आक्रोश में जनता तथा पुलिस वाले पर अपना गुस्सा उतारते हुए डर का व्यवसाय में वे मग्न हैं ;दूसरी और शासन और पुलिस वाले भी नक्शल का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाने के कारण जनता को मारकर अपना बहादुरी दिखा रहा हैं ,दोनों सांड के लड़ाई में जनता रूपी बगिए की फुल कुचले जा रहे हैं ,दोनों और भाई -भाई की लड़ाई में घर उजड़ रहा हैं ,हम मौन हैं ,क्युकी राष्ट्रीय सुरक्षा नियम लागु हैं

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मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा तुंरत बंद हो

गुलाम देश में शिक्षा की प्रचार करने की आवश्कता नहीं होती ,फ़िर भारत में अंग्रेज इतनी मेहरवान क्यों हो गए कि देश में अंग्रेजी शिक्षा का बाढ़ आ गया ? कहते हैं रोटी के टुकड़े में पलने वाले वफादार होते हैं ,अंग्रेजी शिक्षा रूपी रोटी खाकर जो बड़े हुए हो, वे अंग्रेजों के वफादार तो होंगे ही ,आज अंग्रेज चले गए ,पर उनके वफादार काले अंग्रेज इस देश में राज कर रहा हैं ,टपर -टपर अंग्रेजी बोलते हुए ऐसे दिखाते हैं जैसे मात्री भाषा जानता ही न हो ,गोरे अंग्रेजों के, काले औलाद ,आज भी गुलामी के दिनों का याद दिलाता हैं ,बच्चे स्कूल में अंग्रेजी शिक्षा पाकर अंग्रेजों का गुण गाता हैं ,इसमें बच्चों का क्या दोष हैं ?यदि आगे ऐसा ही चलते रहे तो कभी दावे के साथ यह नहीं कह सकेंगे कि हम आज आजाद हैं ,यह तो राष्ट्रीय अपमान हैं ,कब तक इस अपमान को सहते रहे ,बस अब बहुत हो चुका ,मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा अब तुंरत बंद हो ,इसलिए कुछ भी खोना पड़े ,खोने के लिए तैयार हैं ,राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए अंग्रेजी और अंग्रेजियत बंद करना ही होगा एक साथ आवाज दो ---

भ्रष्ट्राचारियो को खुलेआम फाँसी दो

भ्रष्ट्राचारी देशद्रोही के समान हैं ,चाहे भ्रष्ट्राचार कम किया गया हो या ज्यादा पर दंड के भागी एक समान होगा ,कम मौका मिला इसलिए कम भ्रष्ट्राचार किया गया ,अधिक मौका मिलने पर अधिक भ्रष्ट्राचार करेगा ,इसलिए इस रोग का वर्त्तमान में एक ही दवाई हैं , "फांसी " !! सामान्य क़ानून का भय भ्रष्ट्राचारियो को नहीं रह गया हैं अतः इन्हें खुलेआम मौत देना आवश्यक हो गया हैं ,देश के न्याय व्यवस्था इतने लाचार हैं की समय से न्याय नहीं मिलपाने के कारण देशद्रोही जमानत लेकर, एक के बाद एक अपराध करता चला जाता हैं ,ऐसी स्थिति में अपराधिओं को मात्र क़ानून के भरोसे छोड़ दिया जाय या जनता को अपना फर्ज निभाने के लिए कुछ कदम उठाना चाहिए ? प्रश्न यह हैं कि जनता को कौन सा कदम उठाना उचित हैं; मुझे लगता हैं कि न्याय मिलने में देर होने पर अपराधी को जनता के न्यायालय में छोड़ देना चाहिए ,प्रजातंत्र में सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित होने के कारण न्याय करना जनता को ही शोभा देता हैं ,जनता की आदालत ही सर्वोच्च आदालत हैं

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

समाज को बदल डालो,जाति पाती को तोड़ डालो

गीता में कहा गया हैं कि चार वर्णों का श्रीजन मेरे द्वारा किया गया हैं ,जिसका आधार गुण कर्म हैं ,गुण-कर्म पर यदि चार विभाग बनाया गया हैं तो आज जन्म पर आधारित जाति कहा से आ गया हैं ? ब्रह्म ज्ञानी को ब्राह्मण, देश रक्षा करने में सक्षम को क्षत्री ,शुद्ध आर्थिक व्यवस्था बनाने में सक्षम को वैश्य और तीनों वर्गों को सेवा भार शुद्रों को दिया गया था ,कोई अछूत नही होते थे ,सभी अपना -अपना कार्य ईमानदारी से करते थे ,गुरुकुल से ही वर्ण तय कर दिया जाता था कि समाज में जाकर कौन क्या कार्य करेगा जन्म पर आधारित जाति कभी होता ही नही था ,जैसे आज स्कुल -कालेजों से डिग्री लेकर समाज में मान प्रतिष्ठा मिलता हैं ,उसी तरह पूर्व में वर्ण का डिग्री दिया जाता था ,पिता यदि एम् .बी .बी .एस होकर नाम के आगे डॉक्टर लगाते हैं तो कोई बात नहीं पर बिना डिग्री के पुत्र यदि नाम के आगे डॉक्टर लगाता हैं तो दंड का भागी होगा ,फ़िर चार वेद न जानने वाले चतुर्वेदी ,चौबे लिखने से दण्डित क्यूँ नहीं किया जाता ? अतः जाति -पाती तोड़ कर समाज को बदलना ही पड़ेगा !!

*नेताजी*के साथ गांधीजी के व्यावहार अमानवीय था

इतिहास कभी झूठ नहीं होता,कुछ लोग इतिहास को झूठा साबित करने का षडयंत्र रचते हैं ,पर सफलता शायद ही प्राप्त होता हैं ,जनता पार्टी के राज में कालपात्र निकाल कर देखा गया, उसमें आजादी का श्रेय गांधीजी और कांग्रेस को दिया गया था ,जिन शहीदों ने देश के लिए कुर्बानी दिया था उनके नाम तक कालपात्र में नहीं था ,जनता पार्टी के शासन में शहीदों के नाम कालपात्र में दर्ज कर उनके गौरव को अक्षुण्य रखा गया ,प्रश्न यह हैं कि नाम हटाने का दुस्साहस क्यूँ किया गया था ? यदि हम इसका उत्तर चाहते हैं तो १९३९ त्रिपुरी ,जबलपुर के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन का मनन करना होगा ,जहाँ नेताजी के दोबारा अध्यक्ष चुने जाने के पश्चात् नेताजी के प्रति गांधीजी के व्यवहार अत्यान्त्य अमानवीय था ,उस व्यवहार को हम हिंसा की चरम बिन्दु कह सकते हैं ,यही व्यवहार के कारण नेताजी को देश भी छोड़ना पड़ा था ,देश को एक नवरत्न खोना पड़ा ,स्वार्थ से बिलबिलाते कीडों की भांति जीवन और महाभारत के ध्रितराष्ट्र से उदहारण देना अतिशयोक्ति न होगा ,ध्रितराष्ट्र ने पुत्र मोह में दुर्यधन को राज्य सौप कर देश का अनर्थ किया था ,आगे महाभारत का युध्य न चाहते हुए भी करना पड़ा ,गांधीजी ने नालायक जवाहर लाल नेहरू को देश के प्रधान मंत्री के रूप में थौपकर ,देश को रसातल में डुबोते हुए विदा हो गए , अबतो महाभारत के कृष्ण और अर्जुन मिलना भी असंभव हो गया हैं !!!

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

शेयर बाज़ार बनाम कानूनी डकैत -बंद करो नाटक

आज देश मुट्ठी भर पूंजीपतिओं के हाथ गुलाम बन चुका हैं ,कहने के लिए हम आजाद हैं पर वास्तविक सत्ता चन्द लोगों के इशारों पर चलता हैं ,इन्हें रकम की आवश्यकता हो तो बैंक के साथ -साथ झूठा आश्वासन देकर जनता से प्रत्यक्ष धन वसूल करके उधारी की व्यवसाय से चौधरी बन कर जनता को खुल्लम -खुल्ला लुटता हैं , लोगों की लुट न हो, इसलिए बैंक आदि का राष्ट्रीयकरण किया गया था,फ़िर भी लुट की बाज़ार का नाम शेयर बाज़ार रखकर कानूनी जामा पहना दिया हैं इस कुकर्म के लिए सरकार भी दोषी हैं ,कानूनी डकैती तुंरत बंद किया जाए ,इस लुट से जिसका नुकसान हुआ हैं ,उसका भरपाई करना आवश्यक हैं , पूंजीपतिओ को पैकेज देकर जिलाने से काम नही चलेगा ,शेयर से नुकशान हुए लोगों को पैकेज देना जरुरी हैं पूंजीपति बैंक से उधारी ले ,शेयर बाज़ार का
नाटक बंद किया जाना देशहित में आवश्यक हैं

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

जल ,जमीन,जंगल हवा हमारा ,नही किसी के बाप का ..

आज विकास का जो परिभाषा हमें बताया जारहा हैं उसका अर्थ अधिकाधिक धन -संपत्ति एकत्रित कर ऐश आराम की जीवन जीने की शैली से लिया जाता हैं ,इसके लिए प्रकृति के साथ कुछ सिरफिरे धन -पिशाच जो दिखने में मनुष्य जैसे लगते हैं पर वास्तव में ये मनुष्य के भेष में रक्त्त पिपाषू होते हैं ,कुछ ऐसे पिशाच देश के व्यवस्था में भी घुस गया हैं ,इनके इशारे में देशके जल,जमीन,जंगलों,हवा आदि पर अपना अधिकार जताने का कानून बनाकर, प्रकृति प्रदत्त सब जीवो के लिए उपहार स्वरुप सभी साधनों पर अपना कब्जा करके किसानो ,आदिवासियो,एवं देश के जनता का मुलभुत अधिकारों को रौंदने का दुस्साहस किया जा रहा हैं , जल ,जमीं ,जंगल ,हवा पर जनता का प्राकृतिक अधिकार हैं ,यह किसी के बाप का नहीं हैं कि पूंजीपतियो को मनमानी वांटकर कमजोरों का शोषण किया जाए

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