शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

हिन्दी भाषा को बेचारा मत बनाइये

भाषा पर मेरा एक अलग ही दृष्टिकोण हैं ,किसी भी भाषा अथवा बोली को अछुत की भॉंती देखना मेरे लिए असहनिय हो जाता है ,अनेक बार बी.बी.सी हिन्दी समाचार सुनते समय उच्चारण ,व्याकारण आदी अशुद्धियों पर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ ,चीन में भी हिन्दी समाचार पढा जाता हैं ,जरा सुने तो सही ,मुझे तो अच्छा लगता है ,शुद्ध-अशुद्ध का परिभाषा भी तो हमने ही बनाया हैं ,मै मानता हूँ कि एक लय और नियम बद्धता अच्छी बात हैं पर जब राष्ट्र भाषा हिन्दी की बात आती है तब इसकी परिभाषा भावना प्रधान हो जाता है -व्याकारण प्रधान नहीं ,हिन्दी लिंग भेद को इस तरह पेश किया गया कि समझने में दिक्कत होती हैं कि कौन सी शब्द स्त्री लिंग हैं और कौन सा शब्द पुलिंग हैं , असम,बंगाल में इस तरह की कोई पेरशानी नहीं हैं ,उडीसा में भी नहीं ,जहॉं तक मराठी में भी इस तरह की परेशानी नहीं हैं ,फिर राष्ट्र -भाषा में इस तरह की परेशानी क्यों हो रही है ?क्या हम अति उत्साह के कारण इस तरह की स्थिति बनाए रखना चाहते हैं ? भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम हैं जब हम एक मुक जो बात कर ही नहीं सकता हैं उसको समझने की कौशिस करते हैं, तो राष्ट्र भाषा को भी समझने की कौशिस क्यों नहीं करना चाहेंगे ? भाषा को कभी बेचारा बना कर रखना उचित नहीं है। भाषा तो बहता पानी हैं इस बहाव को कभी बॉंध द्वारा बन्धन में कर देना भाषा के साथ बलात्कार जैसे ही हैं ,क्या रेल को हिन्दी शब्द द्वारा मान्यता मिल सकी हैं ?
लौह पथ गामीनी शब्द को जिन्होंने भी सोचा होगा ,हो सकता हैं उस समय विशेष के लिए वह सही रहा है, पर आज तो इसे बदल सकते हैं ,हिन्दी में तो उर्दू ,पारसी ,संस्कृत ,अंग्रेजी और देश के अन्य बोलियों का ऐसा समावेश हो गया हैं कि कोई भी कितना ही चाहे ,आज हिन्दी को इससे अछुता रखना असम्भव हो गया हैं फिर भी हिन्दी तो हिन्दी हैं ,भारत वर्ष में किसी का भी मातृ भाषा हिन्दी नहीं हैं ,उत्तर प्रदेश ,बिहार ,आदी जहॉं हिन्दी को मातृ भाषा के रूप में अधिक मान्यता मिला हुआ हैं वहॉं तो लोग अगिंका ,भोजपुरी , मैथली, मागधी आदी बोलते हैं ,हिन्दी एक जनभाषा है कुछ लोगों ने इसे कैद कर रखा है इसलिए इसे आजादी के पहले स्वामी बिबेकानन्द ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूपमें लोगों को मान्यता देने के लिए आह्वान किया था ,उन्होनें कहा था कि देश को एक सूत्र में बाधने का कार्य भाषा के रूप में हिन्दी ही अच्छी तरिके से कर सकती हैं ,अत: जन भाषा को समयानुकूल बदलते रहना अच्छी बात हैं ,भाषा को बेचारी बना कर रखना ठीक नहीं हैं ,कुछ लकिर के फकीर को मेरी बात अच्छी नहीं लगेगी पर आगेचल कर सब ठीक होजाने से सबको पसन्द आने लगेगा ,हिन्दी भाषा को दुर्गति होने बचाने का दाइत्व हम सभी को हैं ,मात्र हिन्दी दिवस मना कर इतिश्री कर देने से अपना कर्तव्य खत्म नहीं हो जाता हैं ,लोगों को बोलने दिजिए,लिखने दिजिए फिर प्रोत्साहन भी दिजिए ,देखेंगे कि हिन्दी का प्रचलन किस गति से बढ रही हैं आप स्वयं हैरान हो जायेंगे !

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