बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

*नेताजी*के साथ गांधीजी के व्यावहार अमानवीय था

इतिहास कभी झूठ नहीं होता,कुछ लोग इतिहास को झूठा साबित करने का षडयंत्र रचते हैं ,पर सफलता शायद ही प्राप्त होता हैं ,जनता पार्टी के राज में कालपात्र निकाल कर देखा गया, उसमें आजादी का श्रेय गांधीजी और कांग्रेस को दिया गया था ,जिन शहीदों ने देश के लिए कुर्बानी दिया था उनके नाम तक कालपात्र में नहीं था ,जनता पार्टी के शासन में शहीदों के नाम कालपात्र में दर्ज कर उनके गौरव को अक्षुण्य रखा गया ,प्रश्न यह हैं कि नाम हटाने का दुस्साहस क्यूँ किया गया था ? यदि हम इसका उत्तर चाहते हैं तो १९३९ त्रिपुरी ,जबलपुर के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन का मनन करना होगा ,जहाँ नेताजी के दोबारा अध्यक्ष चुने जाने के पश्चात् नेताजी के प्रति गांधीजी के व्यवहार अत्यान्त्य अमानवीय था ,उस व्यवहार को हम हिंसा की चरम बिन्दु कह सकते हैं ,यही व्यवहार के कारण नेताजी को देश भी छोड़ना पड़ा था ,देश को एक नवरत्न खोना पड़ा ,स्वार्थ से बिलबिलाते कीडों की भांति जीवन और महाभारत के ध्रितराष्ट्र से उदहारण देना अतिशयोक्ति न होगा ,ध्रितराष्ट्र ने पुत्र मोह में दुर्यधन को राज्य सौप कर देश का अनर्थ किया था ,आगे महाभारत का युध्य न चाहते हुए भी करना पड़ा ,गांधीजी ने नालायक जवाहर लाल नेहरू को देश के प्रधान मंत्री के रूप में थौपकर ,देश को रसातल में डुबोते हुए विदा हो गए , अबतो महाभारत के कृष्ण और अर्जुन मिलना भी असंभव हो गया हैं !!!

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