मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

धरना,प्रदर्शन,आमरण अनशन,जनहित याचिका आगे क्या ?

प्रजातंत्र में जनता का शासन होता हैं ,जनता ही मालिक और जनता ही सेवक ,चूंकि सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित होता हैं अत: देश को अपने ढंग से चलाने का नाम ही स्वतंत्रता हैं ,जिसे प्रतिनिधि बनाकर जनता देश सेवा के लिए चुनती है ,यदि चुनेहुए प्रतिनिधि देश सेवा या जनहित में कार्य न कर स्वहित में और देश विरोधी कार्य में लिप्त हो जाता हैं तो जनता का अधिकार हैं कि उसे वापस बुला ले या विरोध प्रकट करें ,जनप्रतितिध को वापस बुलाने का अधिकार अन्ना हजारे जी ने बहुत ही प्रभाव पूर्ण ढंग से प्रचार किया था ,परन्तु वर्तमान स्वार्थी नेताओ ने इसे नहीं माना ,जिसके चलते नालायक प्रतिनिधि को जनता बोझ समझकर ढोती रहती है। । प्रजातंत्र एक लचारी तंत्र बनकर रह गई हैं ,अब यदि जनता विरोध करना चाहती हैं ,और नालायकों को खींच कर बहार का रास्ता दिखाने के लिए एकत्रित होती हैं तो आज सम्भव नहीं होता ,क्योंकि अधिकांश नेताओं ने सुरक्षा के बहाने अपने लिए गन मैन की व्यवस्था कर रखा हैं ,कभी भी जनता पर गोली चलाने के लिए वे स्वतंत्र होते हैं ,विरोध का एक दुसरा रूप यह कि धरना , प्रदर्शन , आमरण अनशन , आदी का असर आज दिखता नहीं है । कहीं भी धरना प्रदर्शन आदी होती है वहॉं पर प्रशासन सुरक्षा के नाम से मशिन गनों से लैसपुलिस,फौज से छावनी सा बना कर ऐसा माहौल बना देती है कि आवाज उठाने वाले भय से ग्रसित होकर अपनी बातों या अधिकारों का इस्तेमाल पूर्णरूप से नहीं कर पाते है।
सुरक्षा का अर्थ यह माना जाता है की हडताल ,धरना -प्रदर्शन आदी के समय जनता तोड–फोड़ करती है, जिससे सम्पत्ति का नुकसान रोकने के लिए जनता पर डंडा-गोली चलाना आवश्यक होता है ,प्रश्न यह है कि डंडा -गोली से जनता मारी जाएगी तो क्या सम्पत्ति के बदले जान वापस किया जा सकता है ?जिस सम्पत्ति के कारण जनता को भुन दिया जाता है वे इस देश के मालिक होते है ,यदि प्रशासन रूपी नौकर मालिक को उसी की सम्पत्ति के लिए मार डालती हैं तो इस वारदात को क्या कहा जा सकता है ? मालिक का अधिकार होता हैं कि नौकर ठीक न होने पर उसे नौकरी से हटा दे ,नौकर का अधिकार नहीं होता कि मालिक को गोली से उडा दे ! सम्पत्ति तो फिर कभी बनाया जा सकता हैं पर प्रजातंत्र के जनता रूपी मालिक का जान क्या दोबारा वापस आ सकता है ? सुरक्षा के नाम पर जब देश के मालिकों पर ही नौकरों द्वारा हमला लगातार हो रहा है तो इस देश का मालिक कौन हैं, इसे परिभाषित करना आवश्यकत हो गया है। धरना प्रदर्शन ,हडताल अनशन,जनहित याचिका ,आदी से यदि मौलिक अधिकार का रक्षा करने में आज हम अक्षम हो गए है, तो सोचिए आगे कौन सा रास्ता शेष बचता हैं ....?
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