शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

पूंजीपति भिखारी -पैकेज का भीख कब तक मांगोगे ?

दो चार करोड़ का संपत्ति होना या नगद रखना, आज पूंजीपति नहीं कहलाता हैं ,कुछ समय से तो इसदेश में १ लाख करोड़ ,५ लाख करोड़ से लेकर ३०-४० लाख करोड़ों का धन्ना सेठ, कुकुर मुत्ते की तरह देश की छाती में उग कर, जोंक की तरह खून चूस कर लहू -लुहान कर दिया हैं ,इन जोकों के कारण सत्त्यम जैसे कंप्युटर उद्यौग का अकाल मौत होरहा हैं ,रामा लिंगम राजू अपने पुत्रों के साथ मिलकर जिस देश द्रोही का परिचय दिया हैं उसके चलते नाम लेने में भी घृणा उत्पन्न होता हैं ,ऐसे सैकडों उद्यौगपति होंगे जो अपने चालबाजी से बच रहे हैं ,जो पकड़ में आया वह चोर ,जो नहीं पकड़ा गया वह साधू वाली कहावत चरितार्थ हो रहा हैं , कल का साधू आज का चोर ,फ़िर किस पर विस्वास किया जाय ? कल जिसके तारीफ़ करते-करते लोग नहीं थकते थे ,आज उससे लोग नफ़रत करने लगे यही हैं पूंजीपतियो का चरित्र ,जब लुटने का खेल खत्म होने को हैं ,तो पैकेज रूपी कटोरा लेकर वे सरकार के पास भीख मांगने पहुँच गए ,गरीब मांगे तो भीख ,पूंजीपति मांगे तो पैकेज !! फ़िर भी हमें पता हैं कि चोर -चोर मौसेरा भाई ,एक मज़बूरी में मारा भिखारी ,दुसरा सफेदपोश भिखारी ,पहला का भूख भीख मांगने पर मिटता हैं ,दुसरा का भूख मिटता ही नहीं ,ये पूंजीपति भिखारी अपने लिए तो मांग ही रहे हैं ,अपने सात पुरखों के लिए मांग कर छोड़ने की आदत बनालिया हैं ,इस राक्षशी आदत को क्या कोई छुड़ाने वाला पैदा नहीं होगा ?
एक समय के तीरंदाज आज भीख का कटोरी लेकर सरकार के दरवाजे में खड़ी हैं ,जब सरकार हमारी हैं तो इन करोड़पति भिखारिओं को भीख क्यों दिया जा रहा हैं ? एक दिन में जब २० रुपये से भी कम रकम में ४० करोड़ लोग मज़बूरी में जीवन को खिंच रहे हैं, दूसरी और देश के अरबों रुपये करोड़पति भिखारिओं को वाटाजा रहा हैं ,इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकता हैं ? मुझे तो लगता हैं कि भीख के पैकेज में भी ५० -५० का शेयर निश्चित किया गया हैं ; पहले मात्र अकेले कुछ लोगों को टुकड़े फेककर बाकी हड़प जाते थे ,आज भीख का व्यवसाय बहुत फुल- फल रहा हैं ,इसमें भी नेताओं का अंश यदि तय हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, इसदेश को पूर्व में एक अंग्रेज लुटा करते थे ,आज कई देशों के कम्पनिओं को सरकार ने लुटने का लाइसेंस देकर उदारीकरण का जामा पहनकर, भागीदारी बनके, लोक कल्याणकारी का ढोंग रचना- इससे बड़ी उदहारण कहाँ मिल सकता हैं ?
आकडों के जाल में फंसा कर अपनी बातों को मनवाना हमें भी आता हैं ,पर प्रत्यक्ष को प्रमाण कीआवशकता नहीं होती , एक बात तो साफ़ हैं कि सब मिलकर देशी -बनाम विदेशी पूंजीपति कभी उदारीकरण के नाम पर ,कभी पैकेज के नाम पर ,इस देश को खोखला करने का षडयंत्र रच लिया हैं ,अब देखना यह हैं कि भीख मांगने के नाम पर ये बहुरूपिये कब तक देश को लुटता रहेगा, क्या हम फ़िर नेताजी,भगतसिंह, चंद्रशेखर ,लाल -बाल- पाल ...का इन्तेजार करते रहेंगे ???









कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

translator